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Congress Neta: भारत जी-हुजूरों का लोकतंत्र ?

Congress Neta: गोवा के शीर्ष कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का हाथ थाम लिया है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Chitra Singh
Published on: 1 Oct 2021 9:12 AM IST
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अमरिंदर सिंह व अमित शाह- लुईजिन्हो फलेरियो (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Congress Neta: नवजोत सिंह सिद्धू का मामला अभी अधर में ही लटका हुआ है और इधर कल-कल में कुछ ऐसी घटनाएं और भी हो गई हैं, जो कांग्रेस पार्टी की मुसीबतों को तूल दे रही हैं। पहली बात तो यह कि पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह से मिले। क्यों मिले? बताया गया कि किसान आंदोलन के बारे में उन्होंने बात की। की होगी लेकिन किस हैसियत में की होगी ? अब वह न मुख्यमंत्री हैं, न कांग्रेस अध्यक्ष! तो बात यह हुई होगी कि अमरिंदर का अगला कदम क्या होगा ? वे भाजपा में प्रवेश करेंगे या अपनी नई पार्टी बनाएंगे या घर बैठे कांग्रेस की जड़ खोदेंगे?

उधर गोवा के शीर्ष कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो (Luizinho Faleiro) ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। गोवा में कांग्रेस की दाल पहले से ही काफी पतली हो रही है । अब नौ अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ फलेरियो का तृणमूल में जाना गोवा की कांग्रेस के चार विधायकों की संख्या को घटाकर आधी न कर दे?

यह ठीक है कि कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस से जुड़ने की घोषणा कर दी है। ये दोनों युवा नेता दलितों और वंचितों को कांग्रेस से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । लेकिन असली सवाल यह है कि क्या वे कांग्रेस में रहकर वैसा कर पाएंगे? इस समय कांग्रेस में माँ-बेटा और बहन के अलावा जितने भी नेता हैं, क्या उनकी स्थिति देश के दलितों से बेहतर है? दलितों के कुछ संवैधानिक अधिकार तो हैं। उन पर अन्याय हो तो वे अदालत की शरण में जा सकते हैं । लेकिन कांग्रेसी जब दले जाते हैं तो वे किसकी शरण में जाएँ?

कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

जी-23 के नेता कपिल सिब्बल चाहे दावा करें कि उनके 23 पत्रलेखक कांग्रेसी नेता जी-23 तो हैं । लेकिन वे जी-हुजूर—23 नहीं हैं। लेकिन उनके इस दावे पर मुझे एक शेर याद आ रहा है-

'इश्के-बुतां में जिंदगी गुजर गई मोमिन। आखरी वक्त क्या खाक मुसलमां होंगे?'

इंदिरा कांग्रेस में वहीं नेता अभी तक टिक सके हैं और आगे बढ़ सके हैं, जो चापलूसी के महापंडित हैं। शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे कितने नेता हैं ? इंदिराजी ने नई कांग्रेस का जो बीज बोया था, वह वटवृक्ष बन गया था। इस वटवृक्ष में अब घुन लग गया है। दो साल हो गए, पार्टी का कोई बाकायदा अध्यक्ष नहीं है और पार्टी चल रही है, जैसे युद्ध में बिना सर के धड़ चला करते हैं। पता नहीं, यह धड़ अब कितने कदम और चलेगा? राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के इस शरीर के लड़खड़ाने की खबर आती रहती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि हमारी आज की कांग्रेस मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले की तरह अपनी आखरी सांसें गिन रही है।

देश के लोकतंत्र के लिए इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात क्या हो सकती है? यदि कांग्रेस बेजान हो गई तो भाजपा को कांग्रेस बनने से कौन रोक सकता है? तब पूरा भारत ही जी-हुज़ूरों का लोकतंत्र बन जाएगा। इस वक्त भाजपा और कांग्रेस का अंदरुनी हाल एक-जैसा होता जा रहा है । लेकिन आम जनता में अब भी भाजपा की साख कायम है। यानि अंदरुनी लोकतंत्र सभी पार्टियों में शून्य को छू रहा है । लेकिन यही प्रवृत्ति बाहरी लोकतंत्र पर भी हावी हो गई तो हमारी पार्टियों की इस नेताशाही को तानाशाही में बदलते देर नहीं लगेगी। यदि हम संयुक्तराष्ट्र संघ में जाकर भारत को 'लोकतंत्र की अम्मा' घोषित कर रहे हैं , तो हमें अपनी इस अम्मा के जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए सदा सावधान रहना होगा।



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Chitra Singh

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