संविधान अजर-अमर नहीं होता, राष्ट्र कब तक गतिहीन या प्रतिगामी दशा में रहेगा

raghvendra
Published on: 12 Jan 2018 7:54 AM GMT
संविधान अजर-अमर नहीं होता, राष्ट्र कब तक गतिहीन या प्रतिगामी दशा में रहेगा
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के. विक्रम राव

क्या सात दशक पुराना भारतीय संविधान बदला जाना चाहिए?

एक भाजपाई राज्य मंत्री की ऐसी ही मांग पर दो दिन संसद चलने नहीं दी गई।

युगानुसार परिवर्तन का तकाजा क्या वस्तुनिष्ठ नहीं होगा?

राष्ट्र कब तक गतिहीन या प्रतिगामी दशा में रहेगा

जब यह मुद्दा अनंतकुमार दत्तात्रेय हेगड़े ने अपने ढंग से उठाया तो बवाल उठ गया। हेगड़े ने ‘सेक्युलर’ वाला पूर्वसर्ग निरस्त करने की बात की थी। आखिर आंबेडकर और नेहरू ने संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द लगाया ही नहीं था। वह तो आपात्काल (1975-77) में इंदिरा गांधी ने जोड़ा था। तो क्या भारत पहले पच्चीस वर्षों तक सेक्युलर नहीं था?

मसौदा समिति के अध्यक्ष डा भीमराव आंबडेकर ने तो राज्य सभा में एक दफा यहा तक कह डाला था कि, ‘मैं प्रथम व्यक्ति होऊंगा जो इस संविधान को जला दूंगा’, (राज्य सभा: 19 मार्च 1955)। तब पंजाब के कांग्रेसी सदस्य डा. अनूप सिंह ने चौथे संशोधन (निजी संपत्ति विषयक) पर चर्चा के दौरान डा. आंबेडकर से उनकी हुँकार पर जिरह भी की थी। सांसद तथा संपादक स्व0 के0 रामा राव ने डा. आंबेडकर की संविधान जला डालनेवाली उक्ति पर टिप्पणी की थी कि ‘डा. आंबेडकर एक सियासी पहेली, एक मनोवैज्ञानिक गुत्थी तथा रुग्ण भाव वाले हैं।’ यदि आज हेगड़े ने कह दिया होता है कि सेक्युलर संविधान को जला दो तो लोग उन्हीं को भस्म कर देते। बहुजन समाज वाले माचिस लिये हरावल दस्ते में रहते।

आखिर भारतीय संविधान कोई गीता, बाइबिल या कुरान तो हैं नहीं कि जिसमें तब्दीली वर्जित हो। यह तो मानवकृत है। फिर मानव कब से सर्वथा दोषमुक्त हो गया ?

नेहरू से मोदी तक के दौर में इसी संविधान को एक सौ एक बार संशोधित किया जा चुका है। ताजातरीन वाला है वस्तु एवं सामान्य सेवा कर (जीएसटी) हेतु किया गया संशोधन। इन्दिरा गाँधी ने तो 42वें संशोधन (1976) द्धारा सर्वोच्च न्यायलय से ऊपरी पायदान पर संसद को रखा था। तब संसद कांग्रेस की थी। सारा विपक्ष जेल में था। तभी संसदीय प्रणाली की जगह राष्ट्रपति पद्धति का प्रस्ताव विचाराधीन था। भला हो जनता पार्टी सरकार का कि दोनों अधिनायकवादी प्रस्तावों को तज दिया गया।

फ्रांस में गत सदी में पांच बार संविधान पूर्णरूपेण बदला गया। पाकिस्तान में कई बार बिना संविधान के फौज शासन करती रही। लोकंतत्र की परनानी ब्रिटेन में लिखित संविधान है ही नही। सोवियत रूस में जोसेफ स्टालिन ने जो बात कही वही संविधान की धारा मानी जाती थी।

भारतीय संविधान के प्रति मोह पालने वालों को कुछ तथ्य पता चलना चाहिये। केवल 166 दिनों में निर्मित इस संविधान के मसौदे पर ही प्रथम चरण में ही दो हजार संशोधन पेश हुये थे। संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर वोटरों द्धारा निर्वाचित नहीं हुये थे। प्रांतीय विधान मंडलों के विधायकों द्वारा 1946 में परोक्ष रूप से 292 लोग चुने गये थे। उन्तीस रजवाड़ों ने 70 प्रतिनिधि मनोनीत किये थे। इन सबका जनधार क्षीण था। हर सदस्य वर्गहित का रक्षक तथा पोषक था। राजाओं के प्रतिनिधि रैय्यात का हित कैसे करते ?

यूं भी हम श्रमजीवी इस संविधान को पूंजीपोषक मानते हैं। सोशलिस्टों (जयप्रकाश नारायण, अशोक मेहता, राम मनोहर लोहिया) ने संविधान सभा का बहिष्कार किया था। प्रसिद्ध विधिवेता और बड़े उद्योगपति स्व0 डी0 पी0 खैतान और टीटी कृष्णमाचारी (मूंदड़ा काण्ड वाले) उसके रचयिताओं में रहे। अर्थात् आज हम लोग एक समतामूलक नवीन संविधान हेतु जनसंघर्ष क्यों न चलायें ?

अब मूल प्रश्न पर आयें। तो आखिर यह संविधान में बदलाव मांगने वाला यह सांसद है कैसा? पेशे से किसान, 49-वर्षीय, बारहवीं पास अनंतकुमार दत्तात्रेय हेगड़े राष्ट्रीय मसाला बोर्ड के वर्षों से अध्यक्ष रहे। तो तीखापन उनमें आ ही जायेगा। सागरतटीय उत्तर कन्नड़ क्षेत्र से पांच बार लोकसभा सदस्य रहे। सोनिया की सहेली मार्गरेट आल्वा को हराने वाले हेगडे कुछ उलटबांसी बोलते हैं। उनके गृहराज्य कर्नाटक में जब हिन्दी-विरोधी आन्दोलन चल रहा था तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में हिन्दी में शपथ ली। कांग्रेस मुख्य मंत्री सिद्धरामय्या ने लिगांयत संप्रदाय को अलग मतावलम्बी माना, तो हेगड़े ने विप्र और सवर्णों का समूह बनाया। हालाँकि उनके नेता बीएस येदियूरप्पा, वरिष्ठ लिंगायत की उन्होनें परवाह नहीं थी। स्वंतत्रता दिवस (15 अगस्त 1994) पर उन्होनें हुगली के ईदगाह के गुम्बद पर तिरंगा लहराया। उन्होंने यह कह दिया कि ‘जब तक इस्लाम रहेगा, शांति नहीं रहेगी’।

हेगड़े मोदी के कौशल विकास राज्य मंत्री हैं। सुदूर कर्नाटक के सागरतटीय कुकनूर के युवा परिषद में हेगड़े बोले (24 दिसंबर) कि संविधान बदला जाय। सेक्युलर शब्द हटाया जाय। बवाल थमा जब अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उन्हें समझाया कि क्षमायाचना से कोई प्रतिष्ठा कम नहीं होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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