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Controversial Advertisements in India: बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा

Controversial Advertisements in India: विज्ञापन का लक्ष्य मस्तिष्क को केंद्रीभूत करना होता है। यह भी कह सकते हैं विज्ञापनों के मार्फ़त उपभोक्ता के दिमाग़ को किसी ख़ास वस्तु के लिए तैयार करना होता है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 6 Jun 2022 12:01 PM GMT
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा
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विवादित एड्स (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Controversial Advertisements in India: इन दिनों केंद्र सरकार (Modi Government) एक डियो लेयर'आर शॉट के विज्ञापन (Body Spray Ads) को लेकर परेशान है। विज्ञापन हटाने के लिए ख़तो किताबत कर रही है। लेयर'आर शॉट (Layer'r Shot), परफ्यूम और बॉडी स्प्रे के विज्ञापन में दिखाया गया है कि एक कमरे में एक लड़का और एक लड़की बेड पर बैठे हुए हैं। तभी वहां तीन लड़के और आ जाते हैं। नए तीन लड़कों को देखकर लड़की सहम जाती है। उन तीनों लड़कों में से एक लड़का कमरे में लड़की के साथ बैठे लड़के से पूछता है कि शॉट तो मारा होगा? इस बात पर वहां मौजूद लड़की चौंक जाती है। इस द्विअर्थी सवाल पर लड़का जवाब देता है कि हां मारा है। इसके बाद वो लड़के कहते हैं कि अब हमारी बारी है। और आगे बढ़ते हैं लड़की सहम कर सिमटने की कोशिश करती है तब तक लड़का शॉट की बोतल उठा लेता है।

लेयर के शॉट बॉडी स्प्रे के दूसरे वायरल वीडियो में चार लड़के एक ग्रॉसरी स्टोर में नजर आते हैं। वे स्टोर में परफ्यूम स्पेस में जाते हैं। यहां पर पहले से एक लड़की मौजूद होती है। उस परफ्यूम स्पेस में शॉट बॉडी स्प्रे की केवल एक ही शीशी रखी होती है, जिस पर उन लड़कों में से एक कहता है कि हम चार हैं और यहां सिर्फ एक है, तो शॉट कौन लेगा? उनकी बातें सुनकर लड़की सहम जाती है और गुस्से से पीछे मुड़ कर देखती है।

डिओडोरेंट के अपमानजनक विज्ञापन के वीडियो को हटाने का आदेश

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने शनिवार को यूट्यूब और ट्विटर को अपने प्लेटफॉर्म से इस डिओडोरेंट के अपमानजनक विज्ञापन के वीडियो को हटाने के लिए कहा। मंत्रालय ने शुक्रवार को अपलोड किए गए वीडियो की ओर उनका ध्यान आकर्षित करते हुए दोनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ईमेल भेजे और इसे तत्काल हटाने को कहा। मंत्रालय ने इस विज्ञापन को टेलीविज़न पर दिखाने पर भी बैन लगा दिया। विज्ञापन ने YouTube पर एक मिलियन के करीब व्यूज दर्ज किए थे और इसे ट्विटर पर भी प्रसारित किया जा रहा था।

दिल्ली महिला आयोग ने सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखकर सामूहिक बलात्कार संस्कृति को बढ़ावा देने वाले गलत विज्ञापन के लिए ब्रांड के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। आयोग ने दिल्ली पुलिस को एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने और मास मीडिया प्लेटफॉर्म से सामग्री को हटाने के लिए एक नोटिस भी जारी किया था।

आलिया का विज्ञापन में विवादित टिप्पणी

लेकिन इसी बीच फ़िल्म अभिनेत्री आलिया भट्ट टाइटन घड़ी के एक मॉडल रागा के विज्ञापन में कुछ ऐसा कह बैठती हैं कि भारतीय संस्कृति के पहरेदारों को ही नहीं, महिला स्वातंत्र्य के लोग भी बेहद क्रुद्ध हो उठे हैं। आलिया शादी की तैयारी के लिए कपड़े चुन रही होती हैं कि वह किस अकेजन पर क्या पहनेंगी। इसी बीच उनकी माँ पूछ बैठती हैं, "हनीमून पर क्या पहनेगी?" आलिया का जवाब, "हनीमून पर कपड़े कौन पहनता है।" आलिया घड़ी कलाई पर बांधते हुए दिखती हैं। आलिया के जवाब से सब सन्न रह जाते हैं। हो सकता है कि इस विज्ञापन को लेकर भी हाय तौबा मचने पर सरकार की ओर से ख़तों किताबत के बाद विज्ञापन दाताओं की ओर से माफ़ी माँग ली जाये। इसे हटा दिया जाये। पर सच्चाई यह है कि इतने बस से विज्ञापन देने वालों के काम हो जाते हैं। उनका उद्देश्य हल हो जाता है।

यह नहीं सोचना चाहिए कि यह सब किसी गलती से हो गया हो। यह तो विज्ञापनों को सफल बनाने के फ़ार्मूले का एक हिस्सा है। पर ऐसा नहीं कि हर बार निगेटिव कैंपेन के मार्फ़त ही विज्ञापन दाता अपनी बात कहते हों। भारतीय विज्ञापनों के कांसेप्ट की तारीफ़ भी कम नहीं हुई है। 2017 में प्राक्टर एंड गैंबल ने विक्स का एक विज्ञापन किया था। जिसमें वास्तविक ट्रांसजेंडर गौरी सावंत व उनकी गोद ली गयी बेटी को दिखाया गया था। 'नाट जस्ट ए कैडबरी एड' की भी खूब तारीफ़ हुई। 1994 में कैडबरी ने अपने डेयरी मिल्क के विज्ञापन में "क्या स्वाद है ज़िंदगी" डालकर उसे यादगार बना दिया। वैश्वीकरण के दौर के बाद विज्ञापनों को लेकर पूरी की पूरी धारणा बदल गयी। विज्ञापनों ने अपने न केवल कलेवर बदले। बल्कि लोगों को चिढ़ाने वाली कैच लाइन का इस्तेमाल शुरू कर दिया। विज्ञापन किस तरह विवादास्पद हो सकता है, ये प्रयोग किये जाने लगे।

चीन की एक कंपनी ने अपने वाशिंग पाउडर के विज्ञापनों दिखाया कि एक लड़की अश्वेत युवक को वाशिंग मशीन में डालती है और वाशिंग पाउडर से धुल देती है। युवक गोरा हो जाता है। उस पर नस्लवाद का आरोप लगा। रुस में फुटबॉल वर्ल्ड कप से पहले बर्गर किंग ने महिलाओं से कहा कि वे विदेशी खिलाड़ियों के संपर्क में आयें और उनसे बच्चा पैदा करें। इस तरह रुस को खिलाड़ियों के जींस मिलेंगे। ऐसा करने वाली महिलाओं को आजीवन बोनस व बर्गर मुफ़्त मिलता रहेगा। दोनों विज्ञापनों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खूब खींचा।

सोरोगेट विज्ञापनों का दौर

अब जब सोशल मीडिया का दौर आया। तो विज्ञापनों के नरेटिव को इससे आगे आना ही था। जिसमें रेजर के प्रचार के लिए महिलाओं का उपयोग होने लगा। अधो वस्त्र में दिखना तो गये जमाने की बात हो गयी। न्यूड विज्ञापन अपनी जगह बनाने लगे। सोरोगेट विज्ञापनों का दौर शुरू हो गया। जिसमें दिखाओ कुछ, बेचो कुछ।

विज्ञापन का लक्ष्य मस्तिष्क को केंद्रीभूत करना होता है। यह भी कह सकते हैं कि विज्ञापनों के मार्फ़त उपभोक्ता के दिमाग़ को किसी ख़ास वस्तु के लिए तैयार करना होता है। रोज़र टविज का कहना है कि एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार विशेष को स्थानांतरित करने की कला विज्ञापन है। ई.एफ.एल. ब्रेच मानते हैं कि विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुंचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की मदद करना, प्रतिस्पर्धी को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक व उपभोक्ता के सोच को एक उत्पाद विशेष के लिए अच्छा बनाना होता है। विज्ञापन को संदेशों का माध्यम भी कह सकते हैं। विज्ञापन (Advertising) लैटिन के शब्द Advertere से बना है।

कैसे बदली विज्ञापनों की दुनिया

29 जनवरी, 1780 को हिकी ने जो पहला सामाचार पत्र प्रकाशित किया। उसी में विज्ञापन था। 1906 में धारीदार मिल ने ऊनी कपड़ों के अपने विज्ञापन में कहा, "भारत के लिए, भारत में बना।" वंदे मातरम व बंकिम चंद्र चटर्जी के चित्र भी विज्ञापनों का हिस्सा बने। 1900 में भारतीय मॉडलों को विज्ञापन में जगह मिली। आज़ादी के बाद विज्ञापनों में महिलाओं व लड़कियों के चित्र भी लगने लगे। 1896 में मूक फ़िल्म की शुरुआत के साथ विज्ञापनों में रोमांस व सेक्स आया। 1931 में फ़िल्म आलमआरा के विज्ञापन छपे। 1920 में कुछ विदेशी विज्ञापन कंपनियों ने भारत में अपने कार्यालय खोले। 1930 में नेशनल एडवरटाइज़िंग सर्विस नाम की पहली भारतीय एजेंसी बनी।

बस इसी के बाद से विज्ञापनों की दुनिया बदलने लगी। हाल फ़िलहाल के कुछ ऐसे विज्ञापनों का ज़िक्र ज़रूरी है, जिन्होंने निगेटिव पब्लिसिटी के मार्फ़त खूब जगह बनाई।

इन कंपनियों को करना पड़ा विवाद का सामना

तनिष्क

टाटा प्रोडक्ट्स के ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क (Tanishq) को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था जब कम्पनी ने 'एकत्वम' नाम से अपना नया ज्वैलरी सेट लॉन्च किया। इस विज्ञापन में दिखाया गया कि एक हिंदू महिला एक मुस्लिम परिवार में शादी करती है। ये शादी दक्षिण भारत हिंदू रिवाज से होती है। विज्ञापन में दिखाया गया कि मुस्लिम परिवार में दुल्हन को कितना प्यार मिल रहा है।

इस विज्ञापन पर सोशल मीडिया पर काफी हल्ला हुआ और लोग तनिष्क पर 'लव जिहाद' (Love Jihad) को बढ़ावा देने का आरोप लगाने लगे। ट्विटर पर तनिष्क को बायकॉट (Boycott Tanishq) करने का थ्रेड ट्रेंड करने लगा। अभिनेत्री कंगना रनौत (Kangana Ranaut) भी तनिष्क के खिलाफ उतर आईं और ट्वीट किया कि विज्ञापन न केवल लव जिहाद को बढ़ावा देता है बल्कि सेक्सिज्म को भी बढ़ावा देता है। दूसरी ओर, कांग्रेस के शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने विज्ञापन का समर्थन किया। तनिष्क ने आखिरकार कहा कि उसे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का गहरा दुख है।

हिंदुस्तान लीवर

हिंदुस्तान लीवर ने अपने सर्फ एक्सेल डिटर्जेंट पाउडर के लिए एक विज्ञापन लॉन्च किया जिसमें बच्चे होली खेल रहे थे। साइकिल पर सवार एक हिंदू लड़की मस्जिद जा रहे एक मुस्लिम लड़के की रक्षा के लिए होली के रंगों और गुब्बारों का सामना करती है। इस विज्ञापन को भी काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा और इसे 'लव जिहाद' का टैग दिया गया।

ब्रुक बॉन्ड चाय

हिंदुस्तान लीवर की ब्रुक बॉन्ड चाय के विज्ञापन पर भी विवाद हुआ था। इसमें दिखाया गया कि एक लड़का कुंभ मेले में अपने बूढ़े पिता को छोड़ना चाहता था। लेकिन उसने देखा कि एक आदमी अपने बेटे को कुंभ मेले में भीड़ से बचाने के लिए कपड़े से बांध रहा है। ये देखकर लड़के को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने खोए हुए पिता को ढूंढना शुरू कर दिया। उसने अपने पिता को एक चाय की दुकान पर पाया। पिता जानता है कि उसका बेटा जल्द ही वापस आएगा इसलिए उसने 2 कप चाय का आर्डर दिया था। विज्ञापन पर विवाद ये हुआ कि लोग इसे कुम्भ की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ कहने लगे। ट्विटर पर हिंदुस्तान लीवर के बहिष्कार का आह्वान खूब ट्रेंड हुआ और करीब 42 हजार ट्वीट हुए।

टाइटन

टाटा के टाइटन ब्रांड ने महिला दिवस पर एक विज्ञापन जारी किया। विज्ञापन में दिखाया गया कि एक दफ्तर में सिमरन नामक कर्मचारी को महिला समझा जाता है जबकि वह पुरुष है। जिसकी आलोचना यह हुई कि यह विज्ञापन न केवल मनुष्य को बदनाम करता है बल्कि कॉर्पोरेट जगत की नैतिकता पर भी सवाल उठाता है। विज्ञापन की व्यापक आलोचना के कारण अंततः कंपनी द्वारा विज्ञापन को हटा दिया गया था।

अमूल माचो

2007 में अमूल माचो अंडरवियर के एक टीवी कमर्शियल में मॉडल सना खान को एक आदमी के अंडरवियर धोते समय कुछ सेक्सी और उत्तेजक भावों का प्रदर्शन करते दिखाया गया। बैकग्राउंड में एक आवाज़ आती है - "ये तो बड़ा टोइंग है।" इस विज्ञापन की इतनी आलोचना हुई कि आईबी मंत्री ने इस पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। लेकिन इसके तुरंत बाद, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने इसे सार्वजनिक प्रसारण के लिए मंजूरी दे दी।

'टफ' शूज़

1995 में आया 'टफ' शूज़ का विज्ञापन शायद अब तक के सबसे विवादास्पद प्रिंट विज्ञापनों में से एक है। इसमें मॉडल मिलिंद सोमन और मधु सप्रे को एक दूसरे को सहलाते हुए, उनके चारों ओर लिपटे एक अजगर के साथ नग्न मुद्रा में प्रदर्शित किया गया था। इसके खिलाफ अश्लीलता का मामला दर्ज किया गया, विरोध प्रदर्शन हुए। इसपर कानूनी कार्यवाही 14 साल तक चली, और अदालत ने 2009 में आरोपी को निर्दोष घोषित कर दिया।

फ़ास्टट्रैक घड़ी

2011 में फ़ास्टट्रैक घड़ी का विज्ञापन आया। इसमें क्रिकेटर विराट कोहली को एक पायलट और एक्ट्रेस जेनेलिया डिसूजा को एक एयर होस्टेस के रूप में दिखाया गया है। विज्ञापन में एयर होस्टेस पायलट को लुभाती है और दोनों कॉकपिट में प्यार करने करते हैं। इस विज्ञापन की कई विमानन कंपनियों ने निंदा की थी। हालांकि इसके खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज कर दिया गया।

जटाक डीओ

2010 में जटाक डीओ का एक टीवी विज्ञापन आया जिसकी बहुत आलोचना हुई। विज्ञापन में दिखाया गया कि सुहागरात पर एक महिला बेडरूम में अपने पति के आने का इंतजार कर रही है। वह बिस्तर पर बैठी है, तभी अचानक उसे परफ्यूम की महक आ जाती है। वह दौड़ कर खिड़की के बाहर देखती है कि यह खुशबू कहाँ से आ रही है। वह अपने पड़ोसी को डीओ लगाते हुए देखती है। विज्ञापन में उस महिला को उत्तेजित होते हुए और अपनी शादी की अंगूठी उतारते दिखाया गया। इस विज्ञापन को नारीवादी संगठनों से काफी आलोचना का सामना करना पड़ा।

लक्स कोज़ी

2007 में लक्स कोज़ी अंडरवियर का एक टीवी कमर्शियल आया। इसमें लक्स कोज़ी अंडरवियर पहने एक आदमी एक कुत्ते का पीछा कर रहा है। अचानक कुत्ता उस व्यक्ति की कमर में बंधे तौलिए को खींच लेता है। तभी कम कपड़े पहने एक महिला उस आदमी के पास आती है और उसके गाल पर एक किस देती है और उसके अंडरवियर को देखती है। विज्ञापन टैग लाइन "अपनी किस्मत पहन के चलो" के साथ समाप्त होता है। इस विज्ञापन की बहुत आलोचना हुई जिसके बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अश्लील होने के आधार पर विज्ञापन के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया।

इन विज्ञापनों ने भी काटा बवाल

नवरात्रि के अवसर पर गुजरात में जारी सोनी लियोन के मेनफोर्स कंडोम के विज्ञापन पर विवाद हुआ। जिस में लिखा था- "नवरात्रि खेलो मगर प्यार से।" 2021 में डाबर की एक फ़ेम क्रीम के विज्ञापन ने बवाल काटा। इसमें एक महिला दूसरे महिला के चेहरे पर ग्राम लगा रही थी। दोनों एक दूसरे को छलनी से देख रहे थे। कहा गया कि डाबर समलैंगिकता को बढ़ावा दे रहा है। फेब इंडिया को दिवाली पर जारी अपने त्योहारी कलेक्शन को जश्न ए रिवाज नाम देना भारी पड़ा। फ़ैशन ब्रांड मान्यवर मोहे के एक विज्ञापन में आलिया भट्ट का कन्यादान की परंपरा पर सवाल उठाना भारी पड़ा। फ़ैशन चेन ज़ारा ने 2014 में बच्चों की टी शर्ट पर सुनहरे रंग का सितारा टांग दिया। यह कुछ ऐसा था, जैसा जर्मन नाजियों ने यहूदियों के लिए इस्तेमाल किया था।

वेनेटन टेक्स्टटाइल कंपनी ने एक बार भूमध्य सागर में बचाये गये अफ्रीकी परिवारों की तस्वीर अपने विज्ञापन में इस्तेमाल की। नीचे लिख दिया- "यूनाटेड कलर्स ऑफ वेनेटन।" इसी कंपनी ने 2011 में अनहेट नाम का अभियान चलाया। कंपनी ने पोप बेनेडिक्ट 16 और मिस्र की अल अज़हर मस्जिद के शेख़ को एक दूसरे को चूमते हुए दिखाया। वैटिकन ने मुकदमे की धमकी दी। स्वीडन की एक फ़ैशन चेन एच एंड एम ने हुडी के विज्ञापन में अश्वेत बच्चे को दिखाया। लिखा-" जंगल का सबसे कूल मंकी।" अफ़्रीका में इस कदर ग़ुस्सा उबला कि कई स्टोर बंद करने पड़े। टाटा समूह के ज्वैलरी ब्रांड ने अपने एक विज्ञापन में मुस्लिम समाज अपने हिंदू बहू की गोदभराई करता हुआ दिखाया गया। इस पर कोहराम इस हद तक मचा कि विज्ञापन की वापसी हुई। सव्ययाची के एक मंगलसूत्र के विज्ञापन को लेकर भी लोगों का ग़ुस्सा फूटा। इसमें एक साँवली मॉडल ब्रा, बिंदी व मंगलसूत्र पहने एक शर्टलेस आदमी के कंधे पर अपना सिर टिका रखा है। आरोप लगा कि सव्यसाची ने अंडरगारमेंट में मंगलसूत्र किया फ़्लोट।

लिवाइस जींस के साथ कंगना के विज्ञापन ने भी कम बवाल नहीं काटा। इसमें कंगना किसी पुरुष मॉडल की पीठ पर पेट के बल लेटी हुई हैं। जौमैटो के विज्ञापन में एमसी व बीसी को लेकर हो हल्ला मचा। 1998 में एक विज्ञापन ने लोगों की नाराज़गी के चलते काफ़ी सुर्ख़ियाँ बटोरीं। जिसमें विपाशा बसु पेट के बल बिस्तर पर लेटी हैं। उन्होंने सिर्फ़ अंत: वस्त्र पहन रखे हैं। मॉडल डीनो मोरिया सिर्फ़ शॉट्स पहने उनके ऊपर झुके हैं। वह दांतों से विपाशा का अंडर बीयर उतारने की कोशिश कर रहे हैं।

वैश्विक विज्ञापन बाजार

वैश्विक विज्ञापन बाजार 2021 में 590.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य पर पहुंच चुका है। आईएमएआरसी समूह को उम्मीद है कि 2022-2027 के दौरान 5.2% के सीएजीआर का प्रदर्शन करते हुए, 2027 तक बाजार 792.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। भारत की हिस्सेदारी 2.98 बिलियन डालर है। जहां इतना पैसा हो, वहाँ इथिक्स की बात बेमानी हो ही जाती है। तभी तो अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, जूही चावला, करीना कपूर, शाहरुख़ खान, अक्षय कुमार, सलमान खान, अजय देवगन, रणवीर सिंह, रनवीर कपूर, ऋतिक रोशन, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित जैसे नामचीन सितारे बिना किसी इथिक्स का पालन किये किसी उत्पाद का प्रचार करते मिलते हैं। वह भी तब जब उनके सामने यह नज़ीर है कि दक्षिण भारत के लोकप्रिय अभिनेता अल्लू अर्जुन ने करोड़ों का तंबाकू का विज्ञापन इंडोर्स करने से मना कर दिया।

पर बहुत से सितारों की विज्ञापन से होने वाली आमदनी फ़िल्मों से होने वाली कमाई से ज़्यादा होती है। इसलिए उन्हें कुछ दिखता नहीं है। यही आई साइट विज्ञापन कंपनियों की भी होती है कि उनकी कोई एक शरारत जब करोड़ों लोगों तक पहुँचने का ज़रिया बन सकती है तो फिर वे अपने विज्ञापन को शरारत व विवाद से रोकें क्यों?

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Shreya

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