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पंचायतों एवं सहकारिता के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार का सशक्तिकरण

समृद्ध गांवों की कल्‍पना तभी की जा सकती है जब वहां रोजगार के पर्याप्‍त संसाधन हों। गांव से रोजगार की खोज में लोग शहरों की ओर रुख न करें।

Kapil Moreshwar Patil
Newstrack Kapil Moreshwar PatilPublished By Ashiki
Published on: 19 Sept 2021 8:13 PM IST
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कॉन्सेप्ट इमेज  

भारत में गांवों को समृद्ध एवं सशक्‍त बनाए बगैर सशक्‍त राष्‍ट्र की कल्‍पना अधूरी है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी सदैव इस बात के प्रबल पक्षधर रहे हैं कि गांवों को विकास की मुख्‍यधारा में लाकर ही हम एक उन्‍न्‍त और सक्षम राष्‍ट्र की अवधारणा को मूर्त रूप दे सकते हैं। समृद्ध गांवों की कल्‍पना तभी की जा सकती है जब वहां रोजगार के पर्याप्‍त संसाधन हों। गांव से रोजगार की खोज में लोग शहरों की ओर रुख न करें।

बढ़ती आबादी के कारण खेती के लिए कम होती जोत ने गांवों में आजीविका के लिए गंभीर प्रश्‍न खड़े किए हैं, किंतु संतोष का विषय यह है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में विगत सात वर्षों में इस दिशा में गंभीरतापूर्ण विचार करके सतत प्रयत्‍न किए गए हैं , जिनके सकारात्‍मक परिणाम भी दृष्टिगोचर होने लगे हैं। स्‍वरोजगार एक ऐसा सशक्‍त माध्‍यम है जिससे बढ़ती हुई बेरोजगारी के संकट को काफी हद तक समाप्‍त किया जा सकता है। 'स्‍वरोजगार' की शक्ति ही प्रधानमंत्री के 'आत्‍मनिर्भर भारत' के संकल्‍प को सिद्ध करने का सबसे सशक्‍त माध्‍यम है।


गांवों में स्‍वरोजगार के सशक्तिकरण के कार्य में ग्राम पंचायतों एवं सहकारिता के क्षेत्र की महति भूमिका है। गांवों में आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्‍याय की अवधारणा को पूर्ण रूप से स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से स्‍थानीय नियोजन और योजनाओं के कार्यान्‍वयन हेतु संविधान के अनुच्‍छेद 243 के माध्‍यम से 11 वीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी 29 विषयों के संबंध में ग्राम पंचायतों को सशक्‍त एवं अधिकार संपन्‍न बनाया गया है। ग्रामीण भारत के रूपांतरण में ग्राम पंचायतें एक महत्‍वपूर्ण कारक की भूमिका निभा रही हैं।

ग्राम पंचायते स्‍थानीय स्‍तर पर संवैधानिक रूप से स्‍वशासन की इकाई तो हैं ही वे केंद्र एवं राज्‍य सरकारों की सभी योजनाओं के क्रियान्‍वयन का अंतिम अभिसरण बिंदु भी हैं। गांवों में सरकार की सभी योजनाओं के सफल क्रियान्‍वयन का दायित्‍व प्रत्‍यक्ष अथवा परोक्ष रूप से ग्राम पंचायतों पर ही होता है। ऐसे में रोजगार का विषय सीधे सीधे ग्रामीण अंचलों में पंचायतों से संबद्ध करके देखा जा सकता है।यहां हम पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास के माध्‍यम से स्‍वरोजगार के साधनों की उपलब्‍धता एवं उसके पश्‍चात सहकारिता क्षेत्र की शक्ति का इसके निहितार्थ उपयोग के विषय पर चर्चा करेंगे।

चूंकि ग्राम पंचायत गांवों में सभी योजनाओं के सफल क्रियान्‍वयन के लिए अंतिम किंतु महत्‍वपूर्ण अभिसरण बिंदु है। स्‍वरोजगार की दिशा में भी पंचायतों की क्षमता का भरपूर उपयोग किया जा सकता है। केंद्र एवं राज्‍य सरकार के कृषि, पशुपालन, उद्यानिकी जैसे कई मंत्रालयों-विभागों से संबंधित स्‍वरोजगार की योजनाओं को गांवों में जमीनी स्‍तर पर पहुंचाने के लिए ग्राम पंचायतें एक महत्वपूर्ण ऐजेंसी की भूमिका निभा सकती हैं। इन योजनाओं का ग्रामीण अधिक से अधिक लाभ उठाएं । इसके लिए व्‍यापक जनजागरूकता कार्यक्रम भी पंचायतों के माध्‍यम से संचालित किया जा सकता है। वर्तमान में भी पंचायते इस दिशा में अपने दायित्‍व को निभा रही हैं, किंतु भविष्‍य में इसे और अधिक क्रियाशील करने की आवश्‍यकता है।


14 वें केंद्रीय वित्‍त आयोग की अनुशंसाओं के माध्‍यम से अनुदान राशि के उपयोग हेतु ग्राम पंचायतों को ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) के निर्माण एवं उसके क्रियान्‍वयन के लिए प्रावधानित किया गया है। ग्राम पंचायत स्‍वयं अपनी स्‍थानीय आवश्‍यकताओं, भविष्‍य के विकास की संभावनाओं एवं गांव में रोजगार की संभावनाओं को चिन्हित कर विगत वर्षों में ग्राम पंचायत विकास योजनाओं का निर्माण कर उनका सफल क्रियान्‍वयन कर रही है। विगत तीन वर्षों से जननियोजन अभियान (PPC) दिशानिर्देशों एवं पंचायती राज मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से जारी परामर्शी ने स्वयं सहायता समूहों एवं दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के संघों को वार्षिक जीपीडीपी नियोजन प्रक्रिया में भाग लेने एवं ग्राम निर्धनता न्यूनीकरण योजना (वीपीआरपी) तैयार करने के लिए अधिदेशित किया है।

वीपीआरपी के माध्‍यम से स्‍व सहायता समूहों की स्‍व रोजगार की आवश्‍यकताओं एवं आजीविका माध्‍यमों को ग्राम पंचायत विकास योजना में सम्मिलित किया जाता है जो कि गांव के लिए आवश्‍यक एवं प्रासंगिक है। इस वर्ष भी स्‍वतंत्रता दिवस, 15 अगस्‍त,2021 के अवसर पर आयोजित ग्राम सभाओं के माध्‍यम से देश की सभी ग्राम पंचायतों में वीपीआरपी निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। गांव में महिला सशक्तिकरण, उन्‍हें स्वरोजगार से जोड़कर आजीविका उपलब्‍ध कराने की दिशा में पंचायती राज मंत्रालय एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय के इस संयुक्‍त प्रयास के सार्थक एवं उल्‍लेखनीय परिणाम प्राप्‍त होना सुनिश्चित हैं।


ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्‍ट्रीय आजीविका मिशन ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को आजीविका से जोड़ कर गरीबी दूर करने का एक अभिनव प्रयास है। इस कार्यक्रम के माध्‍यम से देश में अब तक 70 लाख से अधिक स्‍व सहायता समूहों का गठन किया गया है, जिसमें देश की 7 करोड़ 80 लाख से अधिक महिलाओं ने भागीदारी कर के स्‍वरोजगार के साधनों से अपने परिवारों में समृ्द्धि के द्वार खोले हैं।

25 सितंबर, 2014 को पं. दीनदयाल उपाध्‍याय जी के जन्‍मदिवस पर प्रारंभ की गई दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल योजना का उद्देश्‍य 15 से 35 वर्ष के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को कौशल प्रदान करके उन्‍हें स्‍वरोजगार के लिए तैयार करना है। अब तक इस योजना के माध्‍यम से देशभर में 11 लाख 26 हजार से अधिक युवा कौशल प्रशिक्षण प्राप्‍त कर चुके हैं। इसके साथ ही 6 लाख 61 हजार से अधिक युवाओं को रोजगार भी प्राप्‍त हो चुका है।

प्रधानमंत्री द्वारा 24 अप्रैल, 2020 को राष्‍ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रारंभ की गई स्‍वामित्‍व योजना अत्‍यंत महात्‍वाकांक्षी एवं ग्रामीण भारत के नवनिर्माण में एक नया अध्‍याय स्‍थापित वाली योजना है। स्‍वामित्‍व के माध्‍यम से देश के गांवों में रहने वाले सभी लोगों को उनके मकान का मालिकाना हक संपत्ति कार्ड के रूप में प्रदान किया जा रहा है। संपत्ति कार्ड के प्राप्‍त होने के बाद ग्रामीणों की संपत्ति का व्‍यावसायिक एवं आर्थिक उपयोग संभव हो पाया है। ग्रामीण स्‍वामित्‍व योजना के माध्‍यम से मिले अपनी संपत्ति के दस्‍तावेजों के आधार पर बैंक से ऋण प्राप्‍त करके स्‍वरोजगार के कार्य प्रारंभ कर सकते हैं।

'आत्‍मा गांव की, सुविधाएं शहर की' के ध्‍येय वाक्‍य के साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन वस्‍तुत: आर्थिक विकास, बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे पर गांव और शहर के बीच की खाई को पाटने की एक अभिनव पहल है। रूर्बन मिशन के माध्‍यम देशभर में 300 क्‍लस्‍टर बनाए जा रहे हैं जो ग्रामीण अंचल में होते हुए भी विकास के हर पैमाने पर शहरों से कम नहीं होंगे। रूर्बन मिशन ने गांवों स्‍वरोजगार कई रास्‍ते खोले हैं।

सहकारिता एक वृहद क्षेत्र है एवं सहकार की भावना से किसी भी क्षेत्र का विकास सरलता से किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में स्‍वरोजगार के लिए सहकारिता क्षेत्र भी महत्‍वपूर्ण भूमिका हो सकती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के मार्गदर्शन में सरकार द्वारा देशभर में 10 हजार कृषक उत्‍पादक संगठनों ( FPO) की स्‍थापना का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। इन एफपीओ से जुड़कर कृषक परिवारों के युवा न केवल स्‍वरोजगार प्राप्‍त कर सकते हैं अपितु संगठित माध्‍यम से उन्‍नत एवं लाभकारी कृषि से अच्‍छी आय भी सृजित कर सकते हैं।

सहकारी संस्‍थाओं के माध्‍यम से ग्रामीण अंचलों में खाद्य प्रसंस्‍करण, वेयर हाउसिंग, लॉजिस्टिक, एग्रो मार्केटिंग, बागवानी, फिशरीज़ जैसे कई क्षेत्रों में कार्य किया जा सकता है। कई राज्‍यों में इस दिशा में उल्‍लेखनीय कार्य हो भी रहे हैं। आधुनिक युग में तकनीकी एवं कौशल को स्‍थानीय ग्रामीण आवश्‍यकता के साथ जोड़कर भी स्‍वरोजगार के साधन पैदा किए जा सकते हैं।

हमारे देश की 65 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। आजीविका की तलाश में गांव से शहर की ओर होती रोजागार की खोज ने एक नए संकट - 'उजड़ते गांव, बिगड़ते शहर' को पैदा कर दिया है। इस संकट का समाधान स्‍वरोजगार के साधनों में छिपा हुआ है। स्‍वरोजगार के आने वाली गांवों की संपन्‍नता ग्राम-शहर संतुलन को बनाएगी ही राष्‍ट्र को भी शक्ति प्रदान करेगी।

कपिल मोरेश्वर पाटिल

( लेखक केंद्रीय पंचायती राज्य मंत्री हैं।)



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Ashiki

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