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कोरोना काल: क्या भूलें, क्या याद करें

कोरोना ने पूरी दुनिया को डरा दिया। लेकिन इसने पूरी दुनिया को कुछ अच्छे सबक भी दिए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब लोगों ने अपनी जीवनशैली में आमूल-चूल बदलाव का फैसला ​खुद किया।

Sarojini Sriharsha
Written By Sarojini SriharshaPublished By Shweta
Published on: 20 Oct 2021 9:49 PM IST
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कोरोनावायरस (फोटोः सोशल मीडिया)

कोरोना ने पूरी दुनिया को डरा दिया। लेकिन इसने पूरी दुनिया को कुछ अच्छे सबक भी दिए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब लोगों ने अपनी जीवनशैली में आमूल-चूल बदलाव का फैसला ​खुद किया। यह अलग बात है कि यह सब लोगों ने कोरोना के डर से किया। लेकिन इससे लोगों की जीवन शैली में कुछ अच्छी बातें भी शामिल हुई हैं।

कोरोना के बाद की जीवनशैली और पहले हमारे देश में लोगों की जीवन शैली का अंतर अब शोधार्थियों को आकर्षित कर रहा है। शोधार्थी यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना की वजह से हमारी जीवन शैली में क्या—क्या बदलाव हुए हैं। दरअसल, जीवनशैली मनुष्य जीवन जीने का वह तरीका है जिसे लोग , समुदाय या राष्ट्र के लोग प्रयोग में लाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जीवनशैली का निर्धारण विशिष्ट भौगोलिक, आर्थिक, राजनीतिक , सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों से होता है। इससे व्यक्तियों की कार्यक्षमता, उनके व्यवहार , पेशे, कार्य और आहार आदतें भी तय होती हैं।

हाल के कुछ दिनों में जब से कोरोना का प्रभाव हमारे देश पर पड़ा है । शोधकर्मियों के लिए स्वास्थ्यप्रद जीवनशैली सबसे महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 60 फीसदी लोगों के स्वास्थ्य समस्या का कारण उनकी जीवनशैली है। कई बीमारियां जैसे डायबिटीज , उच्च रक्तचाप, जोड़ो का दर्द , मोटापा या हिंसा जैसी समस्यायों का कारण अस्वस्थ जीवनशैली है। बढ़ते तकनीकी और प्रौद्योगिकी का सबसे प्रतिकूल असर लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रह है। कोरोना काल ने बहुत कुछ इंसानों को सिखाया है - कैसे जीवनशैली को स्वस्थ्य किया जाए। कई दिनों तक लोग अपनी घरों में कैद रहकर बाहरी दुनिया की चीजों या आदतों से दूर हो गए, बाहरी खाना, दूषित पर्यावरण में घूमना, व्यसन की आदतों से दूर रहने की आदत डालनी पड़ी। मगर इन्ही चीजों में से कुछ चीजें जो अब कोरोना प्रभाव कम होने पर फिर से आदतों में अपनाई जाने लगी है, उन्हें काफी हद तक अपने जीवनशैली में न अपनाई जाए तो मनुष्य एक स्वस्थ जीवन जी सकता है। ये चीजें बहुत ही मामूली हैं । लेकिन इनका पालन करना कठिन लगता है।।

कोरोना में आई कमी को देखते हुए ज्यादातर ऑफिस, कॉलेज, स्कूल खुल चुके हैं या खुलने के कगार पर हैं। ऐसे में कुछ आदतें जो हमे कोरोना ने सिखाई और हमारे जीवनशैली में काफी बदलाव लाया। इनमें से कई आदतें हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हैं, तो क्यों न हम इनको आगे भी ऐसे ही अपनाते रहें। जैसे : ज्यादातर लोग कोरोना के समय घर में बना ही व्यंजन या स्नैक्स इस्तेमाल कर रहे थे।लेकिन इस आदत को हम अपने दिनचर्या में लाकर स्वस्थ खानपान बरकरार रख सकते हैं। आप बाहर की चीज़ों का भी स्वाद लीजिए। लेकिन इसे आदत मत बनाइए। नवजात शिशुओं को दिए जाने वाला डिब्बा बंद आहार की जगह घर का बना हुआ पदार्थ ही खाने में दे ।.इससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता बनेगी। बड़े होने पर घर के खाने का स्वाद उनके खानपान में शामिल रहेगा। कई लोगों ने कोरोना समय में योग और लाभप्रद स्वास्थ्य की प्रक्रिया अपना ली थी। लेकिन अब फिर से व्यस्त जीवनशैली में इसे अनदेखा न करें बल्कि कुछ पल अवश्य निकालें। पर्यावरण जिस तरह प्रदूषित हो रहा है, ऐसे में मास्क एक तरह से उनसे बचाने का काम करते हैं । पुराने जमाने में हर धर्म के लोगों में साफ सफाई खास तौर पर हाथ पैर धोने पर जोर दिया जाता था। कोरोना ने भी समय समय पर हाथ धोते रहने का संदेश दिया है , इसे हमें अपने जीवनशैली में जरूर अपनाना चाहिए।

एक साथ घर में सपरिवार कुछ दिन बिताने का प्रयत्न हर साल करना चाहिए। पर्यटन पर जाने की बात तो हर कोई सोचता है । लेकिन अपने परिवार के साथ ही बिना किसी आयोजन के साथ रहने की योजना भी अब बनानी चाहिए। इस कोरोना ने कई इंसानों से उनके प्रियजनों को छीन लिया । लेकिन उन लोगों ने दूसरों को जीने की सीख दी है। कई लोगों के कारोबार बंद हो गए , कई के रोजगार चले गए । लेकिन सब सही होगा ऐसा सोच देकर जीवनशैली को और मजबूत बनाने के लिए प्रेरित किया। तमाम दिक्कतों के बाद भी कोरोना काल से जीने के लिए हमें कुछ सिल्वर लाइनें मिलीं। रात चाहे कितनी भी अंधेरी हो, कितनी भी लम्बी हो सवेरा तो होना ही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि 2020 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दो गुना हुआ। कार्बन उत्सर्जन कम हुआ। नासा ने बताया कि चांद पर उम्मीद से ज़्यादा पानी है।लोग अपने अपने परिवार से निकट परिचय पा सके। उनके बीच समय बिताया। घर का खाना लजीज लगा। मोबाइल पर सबसे अधिक समय गुजरा। वर्क फ्राम होम, मास्किंग, सोशल डिस्टेंस्सिंग, ऑनलाइन पढ़ाई लाइफ स्टाइल का स्थायी हिस्सा बने। डिजाइनर मास्क बाजार पा गये। सिनेमाघर, बार, पार्क, मॉल बंद होने की वजह से लोग घरों पर ही टीवी के आगे बैठे। दूरदर्शन पर रामायण, महाभारत आदि पुराने धारावाहिक फिर हिट रहे। सीरियलों के नये एपिसोड नहीं आये। लोगों ने वेब सीरीज देखकर समय बिताया। बड़े पर्दे की फिल्में भी ओटीटी पर रिलीज हुईं। ऑनलाइन शॉपिंग ने मॉल या सामान्य दुकानों से खरीदारी की जगह ली। डिजिटल पेमेंट का दायरा बढ़ा। जिन्दगी में लॉकडाउन, क्वारंटाइन, आइसोलेशन, वायरल लोड,सोशल डिसटेंसिंग,मास्किंग, नाईट कर्फ़्यू , फेस शील्ड जैसे कई नये शब्द जुड़े। पाजिटिव शब्द का अब तक का मतलब उलट गया।

संवेदनाओं पर हमले का कोरोना काल यह सबसे निर्मम काल रहा। उसने संवेदनाओं और भावों पर संघातिक हमले किये। उन्हें मार डाला या कम से कम अधमरा तो कर ही दिया। पहले मोहल्ले या गांव या इलाके में हुई मौत पर स्वाभाविक रूप से अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां समझ कर वहां पहुंच जाने वाले लोग अपने निकटतम लोगों के अंत्येष्टि या जनाजे में शामिल न होने के लिए कोरोना का कवच ओढ़ते नजर आये। परिवार और पारिवारिक मूल्यों का ककहरा जो कोरोना काल में सीखा सालों साल याद रहेगा। उम्मीद है कि अपनी व्यस्तता का भ्रम, अपनी परेशानियों का भ्रम हम परिवार पर नहीं डालेंगे। बच्चों को कम झिडक़ेंगे, बुजुर्गों को कम भूलेंगे, जीवन के सहयात्री पर कम बिगड़ेंगे। कोरोना काल व उसके बाद का सबक बहुत तेजी से हमारे जीवन मूल्यों को बदलता रहा। लोगों से दूर रहना। अपनों से कतराते जाना। किसी मुसीबत को सिर्फ एक 'खराब सूचना' से ज्यादा तवज्जो न देना। तकनीकी प्रगति और आधुनिक होते जा रहे हमारे समाज में यह प्रवृत्तियां तो अरसे से दिख रही थीं। लेकिन कोरोना काल में इसकी रफ्तार भयावह थी। 'फिजिकल डिस्टेंसिंग' के लिए 'सोशल डिस्टेंसिंग' शब्द -इस्तेमाल किया गया।सामाजिक दूरी जानलेवा विचार है। इसे हटना ही चाहिए।

कुछ दिनों के लिए गाड़ियाँ सडक़ों से गायब हुई।.पहाड़ की चोटियां शहरों से दिखने लगीं।चिमनियों के धुएं पर विराम लगा तो हमारा हांफना कम हो गया। हमारी बिल्डिंगें बननी बंद हुईं, कारखानों में ताले लगे तो आक्सीजन की खोज कितनी आसान हो गयी है। नदियों का पानी साफ हो गया । जिसे साफ करने में हजारों करोड़ रुपये बह चुके हैं। विकास के लिए यह सब जरुरी है। लेकिन कोरोना काल ने हमें सिखाया कि विकास यात्रा की गाड़ी सही दिशा चले और विनाश के प्लेटफार्म पर ना पहुंचे ।इसके लिए पर्यावरण की चिंता भी उतनी ही जरूरी है। हमारी चौखट पर वैश्विक बीमारी ने दस्तक दी तो हमारी रक्षा हमारी संस्कृति ने, हमारे रीति रिवाजों, हमारी परंपरा ने की। पीढिय़ों से हमें सिखाया जाता था कि घर पर लौटने के बाद मुंह, हाथ, पैर धोना है फिर घर में प्रवेश करना है। सुबह का काढ़ा और तुलसी, अदरख, हल्दी के गुण भारत के गुणधर्म में रचे बसे हैं। और भी बहुत से सबक भी सीखने को मिले। सीमित जरूरतें, आज में जीना, नए स्किल सीखने के साथ ही आत्मनिर्भरता की कीमत बहुत अच्छे से समझ में आई।अपना हाथ जगन्नाथ वाली बात चरितार्थ करके दिखाया।



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Shweta

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