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कोरोनाः मुसलमानों से दुश्मनी किसने निभाई, किसके बीच फैलेगा सबसे ज्यादा

भारत में कोरोना ने इतना वीभत्स रुप धारण नहीं किया था, जितना उसने चीन, इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों में कर लिया है लेकिन निजामुद्दीन के मरकजे-तबलीगी जमात ने भारत में भी खतरे की घंटियां बजवा दी हैं।

राम केवी
Published on: 1 April 2020 10:49 AM IST
कोरोनाः मुसलमानों से दुश्मनी किसने निभाई, किसके बीच फैलेगा सबसे ज्यादा
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हमें संतोष था कि भारत में कोरोना ने इतना वीभत्स रुप धारण नहीं किया था, जितना उसने चीन, इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों में कर लिया है लेकिन निजामुद्दीन के मरकजे-तबलीगी जमात ने भारत में भी खतरे की घंटियां बजवा दी हैं।

13 मार्च से अब तक चल रहे इस इस्लामी अधिवेशन में देश के कोने-कोने से और 16 देशों से लोग आए हुए थे। इनकी संख्या तीन हजार से ज्यादा थी। इनमें से सैकड़ों लोग कोरोना से पीड़ित हैं और लगभग दर्जन भर लोगों का इंतकाल हो चुका है।

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के सारे प्रतिबंधों की अवहेलना इस मरकजे-तबलीग ने की है। ऐसा करके इस मरकज़ ने कानून का उल्लंघन तो किया ही, कोरोना को लाखों लोगों तक पहुंचाने का आपराधिक दरवाजा भी खोल दिया। इस मरकज़ ने किसके साथ दुश्मनी निभाई ? सबसे ज्यादा अपने ही मुसलमान भाइयों के साथ ! मरनेवाले सब लोग कौन हैं ? सब पीड़ित लोग कौन हैं ? ज्यादातर मुसलमान हैं। यह कोरोना अब किन लोगों के बीच सबसे ज्यादा फैलेगा ? उनके बीच जिनसे इन तबलीगी लोगों का संपर्क होगा। उनके परिजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों में यह सबसे ज्यादा फैलेगा।

सब कुछ जानते हुए किया

ऐसा नहीं है कि इस खबर का अंदाज इस संगठन के मुखिया को नहीं था। उन्हें था। उन्होंने याने मौलाना मुहम्मद साद ने अपनी तकरीरों में कहा है कि मुसलमानों तुम मस्जिदों में जाना बंद मत करो। अगर वहां मर भी गए तो इससे उम्दा मौत तुम्हें कहां मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह कोरोना मुसलमानों को डराने और मस्जिदों को बंद करवाने के लिए ही फैलाया जा रहा है। वे भूल गए कि भारत के सारे मंदिरों, गुरुद्वारों, गिरजों और मस्जिदों पर लोगों ने अपने आप तालाबंदी कर रखी है।

मौलाना साद की इस आपराधिक गैर-जिम्मेदारी की अनदेखी करनेवाली दिल्ली पुलिस भी दंड की पात्र है। अपने-अपने गांवों की तरफ कूच करनेवाले भूखे-प्यासे मजदूरों की बेरहमी से पिटाई करनेवाली यह दिल्ली पुलिस कितनी बेशर्मी से इस जमावड़े को बर्दाश्त करती रही। मजहब के नाम पर इंसानों की बलि चढ़वाने से मजहब तो बदनाम होता ही है, लोगों की ईश्वर-अल्लाह में से आस्था भी डगमगाने लगती है।

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