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संघ की फटकार, कठघरे में भाजपा और सरकार

कोरोना की दूसरी लहर में केंद्र सरकार की लापरवाही को लेकर हमले शुरू हो गए हैं।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 9 May 2021 9:53 AM GMT
Dattatreya Hosble and Prime Minister Narendra Modi
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फोटो— दत्तात्रेय होसबले और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (साभार— सोशल मीडिया)

कोरोना की दूसरी लहर में केंद्र सरकार की लापरवाही को लेकर हमले शुरू हो गए हैं। खास बात यह है कि महामारी की पहली लहर में थाली-ताली बजाने वाले लोग विभीषिका का कहर देखकर अब आक्रामक हो उठे हैं। पहली लहर में लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पलायन को लेकर मुद्दे विपक्ष की तरफ से उठे थे। लेकिन यह पहली बार है जब सवाल आम लोगों के बीच से और खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से उठ रहे हैं। पांच राज्यों की चुनावी सभाओं और रोड शो कराने का मसला हो या हरिद्वार में कुंभ के आयोजन का, भाजपा ने तब तक परहेज नहीं किया जब तक लोगों के बीच से आलोचना शुरू नहीं हो गई। पहली लहर में जनता के लिए मददगार की भूमिका प्रचारित करने वाली भाजपा इस बार महामारी की प्रचंड लहर में कहीं सक्रिय नहीं दिखी जो कि सवाल खड़े करता है।

विभिन्न हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार रहे है जिनमें भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी शामिल हैं। यानी जनता की नाराजगी पर अब अदालतें सख्त हैं और सरकार के रवैये से नाराज हैं।

कोरोना काल में पांच राज्यों में बिहार की तर्ज पर वर्चुअल रैली न करके जोखिम उठाना और फिर उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ना। इस सबके बावजूद भाजपा को कुछ हासिल न होना बड़े सवाल खड़े कर रहा है।

अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं, जहां कोरोना की वजह से मची तबाही भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। इसे लेकर आरएसएस भी चिंतित है।

हैरत की बात यह है कि सरकार की सख्ती के बावजूद सोशल मीडिया में जिस तरह मंगलवार 27 अप्रैल को फेल्ड मोदी हैशटैग तीन घंटों तक ट्रेंड करता रहा और शाम को रिजाइन मोदी ने ट्रेंड किया, उसने भाजपा के दिग्गजों के कान खड़े कर दिये हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कोरोना की दूसरी लहर से मचे हाहाकार के बीच एक बयान जारी कर नाराजगी जताई है। जिसमें कहा है, ''समाज विघातक और भारत विरोधी शक्तियां इस गंभीर परिस्थिति का लाभ उठाकर देश में नाकारात्मक एवं अविश्वास का वातावरण खड़ा कर सकती हैं.'' इस बयान से भाजपा को आगाह करने की बात प्रतिध्वनित होती है।

इसके बाद संघ के ही अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ की उत्तर प्रदेश इकाई का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कड़ा पत्र लिखना बहुत कुछ कह रहा है, जिसमें कहा गया है कि महामारी के बीच में राज्य में पंचायत चुनाव कराना दुर्भाग्यपूर्ण है।

पत्र में यह भी लिखा है कि, ''महासंघ की जानकारी के मुताबिक इस चुनाव ड्यूटी में शामिल 135 शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु हो गई है। ये सभी महासंघ से जुड़े हुए हैं और मृतकों के आश्रितों को 50 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए।'' महासंघ के पत्र के बाद विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हुए हैं।

कुल मिलाकर कोरोना की दूसरी लहर में त्रासदी झेल रही निरीह जनता की मदद करने में मंत्री, विधायक और भाजपा के कद्दावर नेता नाकारा साबित हो चुके हैं। योगी सरकार एक कद्दावर मंत्री ने खुद पत्र लिखकर लाचारी जताई। तमाम विधायक पत्र लिख चुके हैं।

इन हालात में संघ के एक पदाधिकारी की बेबसी में की गई टिप्पणी काफी कुछ कहती है, ''जो हालात हैं उसमें कोई भी कुछ करने की स्थिति में नहीं है, परेशान लोग खासकर भाजपा के शुभचिंतक और काडर जब मदद के अभाव में अपनों को खो रहे हैं तो यह संगठन के लिए चिंता की बात है।''

कुल मिलाकर संघ की चिंता इस बात को लेकर है कि कोरोना के चलते बने हालात आने वाले दिनों में सियासी रूप से भाजपा और केंद्र सरकार को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का यह कहना है कि संघ का बयान डेटारेंट की तरह है, ताकि भाजपा में असंतोष जोर न पकड़े। यह बयान भाजपा को बचाव का रास्ता दिखाने की कोशिश है, ताकि नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों को भारत विरोधी बताया जा सके।

राजनीतिक विश्लेषक लंबे समय बाद संघ के मौन भंग को असाधारण घटना मानते हैं जिसमें पंचायत चुनाव कराने के समय पर सवाल और दत्तात्रेय होसबले का बयान दोनों शामिल हैं।

इससे एक बात तो साफ है कि भाजपा और उसके समर्थक ही अपनी सरकार से नाखुश ही नहीं नाराज भी हैं। सवाल यह भी है कि कोरोना की दूसरी लहर में भाजपा कर क्या रही है? भाजपा के मंत्री सांसद और विधायक यह क्यों नहीं बता पा रहे कि उन्होंने कहां और किसकी कितनी मदद की है।

इन हालात में अब आम जनता तो भाजपा संगठन और सरकार दोनों से सवाल करेगी ही। यह बात दीगर है कि अभी तक सवाल विरोधी दलों की ओर से ही उठते थे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Raghvendra Prasad Mishra

Raghvendra Prasad Mishra

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