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कॉरपोरेट दुनिया में समझा जाए प्रमोटर- सीईओ का फर्क

विश्व भर में बड़ा बदलाव दिखने लगा है । अब प्रमोटर कंपनी को चलाने का दायित्व अनुभवी और सक्षम पेशेवरों को सौंपने लगे हैं।

RK Sinha
Written By RK SinhaPublished By Shraddha
Published on: 14 April 2021 11:10 AM GMT
इंफोसिस टेक्नोलॉजी
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इंफोसिस टेक्नोलॉजी ने सीईओ सलिल पारेख को बनाया फोटो - सोशल मीडिया 

भारत के कॉरपोरेट जगत पिछले कुछ वर्षों में विश्व भर में एक बड़ा ही सकारात्मक बदलाव होने लगा है। अब प्रमोटर अपनी कंपनी या समूह को चलाने का दायित्व अनुभवी और सक्षम पेशेवरों को सौंपने लगे हैं। कुछ वर्ष पहले तक तो प्रमोटर ही प्रबंध निदेशक भी और चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर यानि सीईओ के पद पर भी जमे रहते थे। इस कड़ी में अभी हाल ही में अनीष शाह को देश के प्रमुख औद्योगिक घराने महिन्द्रा एंड महिन्द्रा का मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) बनाया गया है।

टाटा समूह ने एन.चंद्रशेखरन को साल 2017 में ही सारे समूह को चलाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी। वे टाटा समूह के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त होने से पहले टाटा समूह की बेहद कामयाब कंपनी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के सीईओ थे। यह समझना जरूरी है कि टाटा और महिन्द्र एंड महिंद्रा समूह भारत के कॉरपोरेट जगत के प्रमुख स्तम्भ हैं। इन दोनों को सालाना हजारों करोड़ का तो मुनाफा ही होता है। इनमें लाखों लोग काम भी करते हैं। अकेले टीसीएस में ही लगभग पांच लाख पेशेवर हैं। इनमें चंद्रशेखरन और अनीष शाह से पहले प्रमोटर ही मैनेजिंग डायरेक्टर होते थे। मतलब टाटा समूह का चेयरमेन और सीईओ टाटा और महिन्द्रा का चेयरमेन महिन्द्रा परिवार का ही कोई सदस्य बनता था।

इंफोसिस टेक्नोलॉजी ने सीईओ सलिल पारेख को बनाया

बहरहाल, यह तो मानना होगा कि ज्यादातर अच्छी कंपनियों में प्रमोटर और सीईओ के अंतर को कुछ समय पहले ही समझ लिया गया था। इंफोसिस टेक्नोलॉजी ने कुछ साल पहले विकास सिक्का को अपना सीईओ बनाया था। अब वहां पर सलिल पारेख सीईओ हैं। बाकी शिखर टेक कंपनियों में भी यही हो रहा है।

सच में हमारे देश में बहुत देर से ही सही पर अब प्रमोटर और सीईओ के बीच का फर्क समझा जाने लगा है। हां, इस लिहाज से कुछ कंपनियों ने पहल अवश्य कर दी थी। जैसे कि अमेरिकी मूल के नागरिक रेमेंड बिक्सन टाटा समूह के ताज होटल के सीईओ बनाए गए, तो इंडिगो एयरलाइंस ने ब्रूश एशबाय को अपना प्रमुख बनाया। नील मिल्स स्पाइसजेट के सीईओ बने। इसी तरह से भारती एयरटेल ने जोकिम हॉर्न को अपना कार्यकारी निदेशक बनाया। जब तक रैनबक्सी को जापानी कंपनी दाइची ने टेकओवर नहीं किया था, तब तक उसके सीईओ ब्रिटिश नागरिक ब्राइन टेम्पेस्ट ही थे। वीडियोकॉन ने भी केआर किम को अपना वाइस चेयरमेन और सीईओ नियुक्त किया था। पर अब बड़े समूह सारी रोजमर्रा की जिम्मेदारी सीईओ को दे रहे हैं।

कंपनियों को देसी या पारिवारिक सीईओ रखने का मोह भी छोड़ना होगा

एक बात और महत्वपूर्ण यह है कि अब प्रख्यात कंपनियों को सिर्फ देसी या पारिवारिक सीईओ रखने का मोह भी छोड़ना होगा, अगर वे विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। अब जरा जापान की प्रतिष्ठित कंपनी सोनी को लीजिए। उसने अमेरिका के स्टिंगर वेल्समेन को अपना सीईओ नियुक्त करने में तनिक संकोच नहीं किया था। और जब क्लॉज क्लेनफेल्ड को साल 2008 में अमेरिकी कंपनी ऑल्को का सीईओ नियुक्त किया गया, तो ज्यादातर मीडिया ने उत्सुकता के साथ इस सच्चाई की घोषणा भी कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी एल्यूमीनियम बनाने वाली कंपनी की अगुआई अब एक जर्मन नागरिक कैसे करेगा।

सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने सीईओ नियुक्त किया

सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने सीईओ नियुक्त किया फोटा - सोशल मीडिया

माइक्रोसॉफ्ट ने हैदराबाद में जन्में सत्या नडेला को अपना सीईओ नियुक्त करके भारत के बिजनेस जगत को एक बड़ा संदेश दे दिया था। संदेश साफ है कि मेरिट से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। माइक्रोसाफ्ट के आइकॉनिक संस्थापक बिल गेट्स ने सीईओ के ओहदे पर अपने किसी परिवार के सदस्य को नहीं नियुक्त किया। उन्हें सत्या में मेरिट दिखी, तो उन्हें सौंप दी गई इतनी अहम जिम्मेदारी।

सत्या की सरपरस्ती में माइक्रोसॉफ्ट सफलता की नई बुलंदियों को छू रही है। सत्या के अलावा अमेरिका में कोका कोला की सीईओ इंदिरा नूई और मास्टर कार्ड के ग्लोबल हेड अजय बंगा रहे। ये दोनों भारतीय मूल के हैं। मतलब इन्हें विश्व प्रसिद्ध कंपनियों ने अपने शिखर की जिम्मेदारी सौपी क्योंकि इनमें मेरिट थी।

पेशेवर सीईओ रखने के फायदे

एक बात स्पष्ट हो जाए कि पेशेवर सीईओ रखने से कंपनियों और समूहों के सामने उत्तराधिकार प्लान का भी संकट नहीं रहता। फिर तो प्रमोटर और कंपनी का बोर्ड किसी भी योग्य शख्स को सीईओ बना सकता है। इस स्थिति में यह कयास भी नहीं लगते कि फलां-फलां के बाद कौन देखेगा समूह को? तो नई स्थितियों में कॉरपोरेट संसार का उत्तराधिकार बड़े प्यार से तय होने लगा है। पहले यह स्थिति नहीं थी। इसी कारण गड़बड़ हो जाती थी। उदाहरण के रूप में ओसवाल समूह में विवाद खड़ा हो गया था। इसके चेयरमेन अभय ओसवाल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र पंकज ओसवाल ने अपने को समूह का चेयरमेन होने का दावा किया था। उनके दावे के पीछे तर्क यह था कि चूंकि पिता की मृत्यु के बाद उन्हें पगड़ी पहनाई गई थी इसलिए वे ही समूह के चेयरमेन हैं।

हालांकि ओसवाल समूह के निदेशक मंडल ने उनकी मां अरुणा ओसवाल को उनके पिता के स्थान पर चेयरमेन बना दिया था । मामला पुलिस तक पहुंच गया था। रिलायंस समूह के प्रमुख मुकेश अंबानी के जुड़वां बच्चों क्रमश: ईशा और आकाश को रिलायंस इंडस्ट्रीज की टेलिक्म्युनिकेशन और खुदरा इकाइयों के बोर्ड में जगह मिली। यानी भविष्य की तस्वीर साफ हो रही है।

आटो कंपनी हीरो ने पवन कुमार मुंजाल को चेयरमेन के रूप में नियुक्ति कर दी

इसी तरह से आटो कंपनी हीरो समूह ने पवन कुमार मुंजाल को अपना चेयरमेन और प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्ति कर दी थी। वहां पर अबतक बाहरी सीईओ नहीं लाया जा रहा। हीरो समूह के चेयरमेन ब्रजमोहन मुंजाल की मृत्यु के बाद पवन कुमार मुंजाल को हीरो का चेयरमेन बनाया गया था। पर सक्सेशन प्लान पहले ही तय हो गया था। रिलायंस और हीरो समूह ने एक तरह से अपने सक्सेशन प्लान को साफ करके शानदार उदाहरण पेश किया। ओसवाल समूह में विवाद इसलिए हुआ, क्योंकि वहां पर अभय ओसवाल ने अपने समूह की आगे की रणनीति नहीं बनाई थी। उन्होंने कोई विल नहीं छोड़ी थी। अगर वे अपने जीवनकाल में ही किसी को सीईओ की नियुक्ति कर देते तो विवाद खड़ा ही नहीं होता।

भारत में अब प्रमोटर के विजन को अमली जामा पहनाएंगे सीईओ

नए बदलावों का निष्कर्ष यह निकल रहा है कि भारत में अब प्रमोटर के विजन को अमली जामा पहनाएंगे सीईओ। भारत के कॉरपोरेट जगत के प्रथम पुरुष जे.आर.डी टाटा अपना विजन अपने समूह की विभिन्न कंपनियों के सीईओ के सामने रख देते थे। वे अजित केरकर (ताज होटल), एफ.सी. सहगल (टीसीएस), प्रख्यात विधिवेत्ता ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट), रूसी मोदी (टाटा स्टील) जैसे अपने सीईओ से मिलकर उन्हें निर्देश दे देते थे। उनके सामने अपनी कंपनियों का ग्रोथ प्लान और विजेन रखते थे। टाटा की सलाह को मानते हुए उनके सीईओ उनके सपनों को साकार करते थे। यही तो होना भी चाहिए। प्रमोटर भविष्य द्रष्टा अवश्य होता है, लेकिन, यह जरूरी नहीं कि काम बढ़ जाने पर वह उसको पेशेवर ढंग से शिखर पर पहुँचाने में सक्षम भी हो I

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं।)


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