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सजग रहें, भगाएं त्योहारों में कोविड को

त्योहारों में लोग घरों से मंदिरों, धार्मिक स्थानों, बाजारों तथा सगे सम्बन्धियों के यहां जाने के लिए निकलने लगते हैं। नतीजा यह होता है कि भीड़भाड़ बढ़ने के कारण कोविड का जिन्न सामने आकर खड़ा हो जाता है।

RK Sinha
Written By RK SinhaPublished By Shashi kant gautam
Published on: 7 Sept 2021 3:36 PM IST
It is necessary to follow covid guidelines during the festive season
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त्यौहारों का सीजन: कोविड गाइडलाइंस का पालन जरुरी 

कोविड और त्योहारों के मौसम का बहुत ही घनिष्ठ और घातक संबंध है। त्योहारों में लोग घरों से मंदिरों, धार्मिक स्थानों तथा बाजारों तथा सगे सम्बन्धियों के लिए निकलने लगते हैं। नतीजा यह होता है कि भीड़भाड़ बढ़ने के कारण कोविड का जिन्न सामने आकर खड़ा हो जाता है। पिछले साल दशहरा और दिवाली के बाद कोविड के रोगियों की बढ़ी हुई संख्या को सारे देश ने देखा था। अब जन्माष्टमी से त्योहारों का सीजन चालू हो चुका है। सारे देश ने जन्माष्टमी का पर्व वैसे तो बहुत संयम से मनाया। कहीं भी सार्वजनिक बड़े आयोजन नहीं हुए। इसका लाभ भी प्रत्यक्ष दिख ही रहा है। लगभग सारे देश में कोविड के केस घट रहे हैं। वैसे केरल इसका एक बड़ा अपवाद हो सकता है।

अब कोविड महामारी की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद कर्नाटक सरकार ने राज्य में गणेश चतुर्थी समारोह की इजाजत दे दी है। समारोह तीन दिनों तक ही सीमित रहेगा। भगवान गणेश की मूर्तियों को स्थापित करने और संबंधित उत्सव आयोजित करने के लिए स्थानीय जिला प्रशासन या बेंगलुरु शहर के क्षेत्रों में बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका से पूर्व अनुमति जरूरी है। कर्नाटक के बाद महाराष्ट्र में भी गणेश चतुर्थी मनाने की अनुमति मिलना अब तय माना जा रहा है।

त्योहारों में कोविड गाइडलाइंस को सख्ती से लागू किया जाए

आखिरकर गणेश चतुर्थी का असली आयोजन तो महाराष्ट्र में ही होता है। जिसे 1907 ई. में पुणे से लोक नायक बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनता को संगठित करने के उद्देश्य से किया था। अब अगर इन पर्वों को मनाने की इजाजत राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही थी तो यह भी देख लिया जाना जरूरी है कि इनमें कोविड गाइडलाइंस को सख्ती से लागू भी किया जाए। इनके आयोजनों के दौरान किसी भी तरह की अराजकता न हो। अगर यह हुआ तो हमें फिर से कोविड के बढ़े हुए केस देखने को मिल सकते हैं। वह स्थिति तो बहुत भयानक होगी।

फोटो- सोशल मीडिया

अब रामलीला का भी वक्त दूर नहीं है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और देश के बाकी हिंदी भाषी भागों में रामलीला का मंचन होगा या नहीं, इस पर जल्दी ही स्थिति साफ हो जानी चाहिये। हालांकि कुछ रामलीला कमेटियां अभी से ही रामलीला मंचन को लेकर दावे भी कर रही हैं। इन सब आयोजनों में जनभागेदारी भी काफी गहरी रहती है। लेकिन भीड़ की स्थिति में कोविड गाइडलाइंस का तार-तार होना भी तो तय है। प्रशासन के लाख दावों और कोशिशों के बावजूद अभी भी कुछ लोग मास्क पहनना अपनी शान के खिलाफ समझते है। फिर भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग की बातें करना भी बेमानी ही होगी । यह सब गंभीरता से चिंतन योग्य बातें हैं। दशहरा के दौरान ही दुर्गा पूजा भी होती है। उसमें भी पंडाल में खूब लोग जुटते हैं। दशमी के सोलहवें दिन दीवाली और उसके बाद मात्र दो दिन बाद भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा और उसके तीन दिन बाद छठ का महापर्व।

हालांकि देश में कोविड पर काबू पाने के लिए टीकाकरण का काम भी तेजी से चल रहा है, एक-एक दिन में एक करोड़ से ज्यादा वैक्सीन भी लगने जा रहे हैं पर फिलहाल जितना हो सके हमें अपने को कोविड गाइडलाइंस के मुताबिक ही सख्ती से चलना होगा। अब भी बहुत से ऐसे लोग मिल जाते हैं जो कहते हैं कि वे कोविड से लड़ने के लिए जरूरी टीका नहीं लगवाएंगे। वे इस बाबत कई बेसिर पैर के तर्क भी देते हैं। पर जो भी कहिए फिलहाल तो हमारे पास सिर्फ यह टीका ही है कोविड से बचाव के लिए एक कारगार हथियार है ।

अच्छी बात यह है कि कुछ राज्यों में टीकाकरण का काम शानदार तरीके से हुआ है। इस लिहाज से हिमाचल प्रदेश का नाम लेना होगा। वहां पर कोविड टीकाकरण की पहली खुराक सभी को सफलतापूर्वक लग गई है। इस तरह हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जहां सभी को पहला कोरोना वैक्सीन लग चुका है। प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी ने सही कहा, '100 वर्ष की सबसे बड़ी महामारी के विरुद्ध लड़ाई में हिमाचल प्रदेश, चैंपियन बनकर सामने आया है।' हिमाचल के बाद सिक्किम और दादरा नगर हवेली ने शत प्रतिशत पहली डोज का पड़ाव पार कर लिया है और अनेक राज्य इसके बहुत निकट पहुंच गए हैं।

फोटो- सोशल मीडिया

पूरे देश को सजग रहना ही होगा

देखिए, अभी पूरे देश को सजग रहना ही होगा। इसे जरूरत समझें या मजबूरी। अभी लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं है। अगर हम सतर्क और सजग रहे तभी हम कोविड को हरा सकेंगे। इसके लिए यह जरूरी है कि हम त्यौहारों के दिनों में भी घरों से अनावश्यक रूप से बाहर न निकलें । कोविड की वैक्सीन लगवाने में कतई विलंब न करें। भारत आज एक दिन में सवा करोड़ टीके लगाकर रिकॉर्ड बना रहा है। जितने टीके भारत आज एक दिन में लगा रहा है, वो कई देशों की पूरी आबादी से भी ज्यादा है। भारत के टीकाकरण अभियान की सफलता, प्रत्येक भारतवासी के परिश्रम और पराक्रम की पराकाष्ठा का परिणाम है।

कोरोना की काट वैक्सीन को लेकर अब घबराने का और ग़लतफ़हमी के जाल में फंसने का वक्त निकल चुका है। अब इसे फौरन लगवा ही लेना चाहिए। जो लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं उन्हें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। हमने पहले देखा था जब उड़न सिख मिल्खा सिंह कह रहे थे कि उन्होंने कोरोना की वैक्सीन को लगवाने के संबंध में सोचा ही नहीं। अफसोस कि कोरोना के कारण ही उनकी जान चली गई। अगर उन्होंने कोरोना वैक्सीन को वक्त रहते लगवा लिया होता तो वे स्वस्थ हो जाते,क्योंकि वैक्सीन कोरोना वायरस के असर को काफी हद तक खत्म कर देती है। मैं एक वर्ष तक कोरोना से बचा रहा, लेकिन, हर सतर्कता के बावजूद एक सार्वजानिक कार्यक्रम में कोरोना के चपेट में आ गया, परन्तु, चूँकि मुझे दोनों वैक्सीन समय से लग चुकी थी, पंद्रह दिन घर पर ही आराम करके बिलकुल ठीक हो गया।

पहले किस ने कहाँ सुना था 'वर्क फ्रॉम होम'

देखिए कि अब जिंदगी काफी हद तक पटरी पर वापस आ रही है। स्कूल-कॉलेज भी खुलने लगे हैं। बाजार तो खुल ही रहे हैं। पर अभी हम कोविड से पहले के दौर में अभी लौट नहीं सकते क्योंकि इस महामारी का असर तो बरकरार है। अभी इस पर विजय पाने में कुछ और वक्त लग सकता है। बेशक, कोविड ने हम सब की जिंदगी को काफी हद तक बदल डाला है। पहले किस ने कहाँ सुना था "वर्क फ्रॉम होम" के बारे में। पर अब यह व्यवस्था तो अनेकों बड़ी कंपनियों को भी सूट करने लगी है। इससे उन्हें दफ्तर चलाने के भारी-भरकम खर्चो से निजात मिल जाती है। यह तो मानना होगा कि वर्क फ्रॉम होम के कारण अब भी देश भर में लाखों पेशेवर अपने घरों से ही काम कर रहे हैं। यह भी देखा जाए तो कोविड से बचाव का तो एक बड़ा और कारगर रास्ता तो है। पर आपको घर से तो निकलना ही होता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि बहुत सोच समझकर ही घर से बाहर जाएं। त्यौहारों में तो खासतौर पर अनावश्यक रूप से ना निकलें। इसी में आपकी और सबकी सुरक्षा है। जीवन रहेगा तो घूमने और तफरीह के बहुत से मौके मिलते रहेंगे।

(लेखक वरिष्ठ स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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