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अथ श्री दंत कथा: अरज सुनो मोरी बनवारी, दंत कथा मैं कहुं बिचारी

अथ श्री दंत कथा: कपिल भट्ट कंत द्वारा रचित पंक्तियां...

Kapil Bhatt Kant
Written By Kapil Bhatt Kant
Published on: 24 April 2024 9:16 PM IST (Updated on: 25 April 2024 2:42 PM IST)
Dant Katha written by Kapil Bhatt Kant
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अथ श्री दंत कथा: Photo- Social Media

अथ श्री दंत कथा: कपिल भट्ट कंत ने इस दंत कथा में हास्य व्यंग्य के सहारे दांतों की महिमा का गुणगान करते हुए मुख में दांतों के रहने के फायदे और उम्र के साथ दांतों के टूट कर गिर जाने के बाद जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उन मुश्किल हालातों की चर्चा किया है।

मंगलाचरण

एकदंत ओ दयावंत सौं, अरज करूं मैं आज।

प्रभु मेरो पूरन करो, दंत कथा को काज ।1।

जय हो गुरू गणेश की, कीजो यही सहाय।

कृपा प्रभु ऐसी करो, दंत कथा हिट जाए।2।

अरज गरज मेरी सुनो, एकदंत भगवान।

दंत कथा के कारजे, तुमको कोटि प्रनाम।3।

प्रभु ऐसा वर दीजिये, पूरन हों सब काज।

ध्यान तुम्हारा नित धरूं, एकदंत महाराज।4।

महावीर बलवान हैं, ज्ञान बुद्धि की खान।

मोदक प्रिय मंगल करैं, एकदंत भगवान।5।



अरज सुनो मोरी बनवारी।

दंत कथा मैं कहुं बिचारी।6।

अरज सुनो मेरी प्रभु, मांगू एक सहाय।

जब तक जीवित मैं रहूं, दांत एक ना जाए।7।

मो पर कृपा करो रघुबीरा, दंतहीन नहीं चाहुं सरीरा।

कपिलन दंत अमोल हैं, रखिए इन्हें संभार।

जावत पै इनके मिलै, फकत दूध की धार।8।

दोहों की बरसात है, दोहों की है पांत।

लिख ना पाता एक भी, जो ना गिरते दांत।।

दंत संत दोउ एक हैं, सुख सबही को देत।

कितना कठिन कठोर हो, सहज सरल कर देत।9।

दंत संत दोउ एक हैं, एक सी इनकी रीत।

कुटिल, विषम हो या विमल, सबसों करते प्रीत।10।

अस्त्र शस्त्र सब हों विफल, बैरी भी नव जाय।

चलै प्रेम का बाण जब, दांत कटी हो जाय।11।


जीवन जग मैं है सकल, भोजन स्वाद अधार।

दंतहीन मुख का जान सकै, स्वादों का ब्यौपार।12।


दांत आंत को मेल है, आंत दांत आधार।

बत्तीसी जब पीस दे, उदर बहै रसधार।13।

मेरा मेरा क्या करै, मेरा है कछु नाहीं।

पीडा वाकी देखिये, जिनके बत्तीसी नाहीं।14।

सकल जगत में स्वाद है, सकल जगत में वाद।

बिन बत्तीसी ना बनै कपिलन स्वाद ना वाद।15।



दंत चातकी एक हैं, दोनों की गति एक।

एक स्वाति आधार है, दूसर मुख की टेक।16।

प्रभु ऐसा वर दीजिये, दांत एक ना जाय।

बत्तीसी साबुत रहै, गन्ना-बाटी खाय।17।

मुख मंडल की दिव्यता, दंतपंक्ति सों आय।

टूट जाय दो चार छह, युवा वृद्ध कहलाय।18।

बुद्धि बिबेक ज्ञानी कुसल, मनुज तभी कहलाय।

बत्तीसी पूरन करन, अकल दाढ जब आय।19।

रसना दंत आधार है, जिह्वा कहै बिचार।

ज्यौं हिम सौं गंगा बहै, या सौं रस की धार।20।

दांत जो मांजै दुई पहर, आजीवन सुख पाय।

छत्तीसों रस भोगता, ह्ष्ट-पुष्ट बन जाय।21।

रे प्राणी तू क्यूं सदा, पेट भरत मैं जाय।

बत्तीसी के श्रम बिना, उदर ना कछु कर पाय।22।

स्वादन सारे जगत के, बस इसके आधार।

जब बत्तीसी ना रहै, सूना जग संसार।23।

बिना दंत हरि ना मिलै, जपो कितहीं बार।

मुख बोलै हरि हरि जबै, निकसै फूंक अपार।24।

निकसै फूंक अपार, चित्त मैं चैन ना आवै।

रूठ्यो राम स्वाद भी छूट्यो, जीव कहां सुख पावै।25।

पत्नी जी से हो गया वाक् युद्ध अति तेज।

खट्टे हो गए दांत सब, छूटी घर की सेज।26।

छूटी घर की सेज, जीव कैसे सुख पावै।

दांत निपोरे घूमते, लोग हंसि हंसि कै जावै।27।

मूरख सों उलझो मति, मूरख अम्ल समान।

दांत खट्टे हो जाएंगे, चली जाएगी शान।28।

अहि के दो सौ दांत में, विष के दंत हैं चार।

नर की बत्तीसी सकल, विष सौं भरी अपार।29।

संत दंत दोउ एक हैं, कछु को देय ना पीर।

संत सौं पावत जगत सुख, दंत सौं पावै सरीर।30।

करुणानिधि मौ पै करो, अपनी प्रबल सहाय।

बत्तीसी साबुत रहै, तो नवयौवना मिल जाय।31।

निगम पुरान सबहीं कहैं, रहो सदा ही दूर।

जिनके दंत विशाल हैं, वो कर दें चकनाचूर।32।

दांत दूध के ना गये, बालक हूं मैं आज।

प्रभु भरोसे तोर सब, पूरन कीजो काज।33।

अरज सुनो बजरंग अब, दो ऐसो वरदान।

दांत जो पीसै भार्या, हम निकलैं बलवान।34।




साईं ऐसा वर दीजिये, पलना मैं ही सोय।

दंत दूध अक्षुण रहैं, और ना चाहत कोय।35।

दंत दंत की लूट है, हम तो ना रहे लूट।

बिना दांत के खायेंगे, मिश्री मावा भरपूर।36।

संत दंत दोउ की सदा, महिमा अपरंपार।

हरि संतन आधार हैं, भोजन दंत अधार।37।

मेरा मेरा क्या करै, मुख मैं जब दांत ना एक।

क्या खावै बस सूंघता, जीवन रस की टेक।38।

पढो लिखो काबिल बनो, मेहनत का सब खेल।

दांत ना गिनेगा तब कोई, हो जाओगे जब फेल।39।

महिमा बत्तीसी की प्रभु, कछु नहीं बरननि जाय।

सार सार को गहि रहे, थोथा देय उडाय।40।

सबरे स्वाद जगत के, बस इसके आधार।

बत्तीसी जब ना रहै, सूना जग संसार।41।

नकली दांत लगाय कै, बुढउ बहुत इतराय।

देवै कोउ अखरोट जब, भरम सकल मिट जाय।42।

ताना पत्नी दे रही, बच्चा हंसि हंसि जाय।

डूबे हम दलिया दाल में, मटन-चिकन वो खाय।43।




न ही कछु जग मै सार है, ना ही कछु सहाय।

पतो नाय कब टूट कै, दांत ग्रास मैं आय।44।

दंत कथा सुमिरन करै, ना कछु रहै कलेस।

बत्तीसी पूरी रहै, पाचन तंत्र बिसेस।45।

दंत कथा सुमिरन करै, जीव सदा सुख पाय।

छप्पन भोग को रस चखै, ह्ष्ट-पुष्ट बन जाय।46।

द्वंद्व युद्ध जब होय तो, रखो यही विचार।

प्रथमहि मुष्टिका सों करो, अरि के दंत पै प्रहार।47।

तत्व अंबु के जगत में, रखिये सब सों नेह।

दंत टूट जायें सभी, उनका रहे सनेह।48।

दांत दूध के टूटे जबहिं, कभी ना पीडा देय।

हरष हरष बालक बिमल, मुख दिखाय सुख लेय।49।

प्रियतमा ने तज दिया, इक झटके में साथ।

दुर्घटना की बलि चढे, चार छह जब दांत।50।

सबसे उंचा प्रेम वो, जहां नहीं इक दंत।

ना तृष्णा, ना मोह है, सुख ही सुख अनंत।51।

बत्तीसी फिर भेज दो, कर दो कृपा निधान।

सुख यह ही अपवर्ग का, ना कछु चाहूं आन।52।

सामिष का ब्यौपारी वर्ग, रटै एक ही उपाय।

सकल दंत सबके रहें प्रभु, नॉनवेज सब खाय।53।

संग नीच को ही सदा, दुख देवत दिन रात।

इनको यही उपाय है, तोड दो इनके दांत।54।

कपिलन या संसार मैं, यही एक नर खास।

मद्यपायी के ना कभी, बत्तीसी रहै पास।55।

चिंता ना कभी करो मति, जो दंतहीन हो जाय।

बहुरस हैं या जगत मैं, जिह्वा जिनको चाह।56।

मुख की शोभा दांत सों, दांत को राखिए पाय।

बिना दांत के नवयुवक, बूढा ही कहलाय।57।

शोभित मुख मंडल रहै, दारा रहै इतराय।

बत्तीसी की भव्यता, कबहुं ना बरनन जाय।58।

कपिलन अब क्या कीजिये, मुख में दांत ना एक।

नॉनवेज के रस सकल, सपनेहुं की टेक।59।

दंत सुलक्षण हरि कथा, कपिलन दुर्लभ दोय।

कबहुं ना इनको त्याजिये, यह दुर्लभ संयोग।60।

हरि-स्वाद दोनों कपिल, जग के हैं सुखरास।

दंत हीन ना मनुज है, हरि बिन भजन ना आस।61।

अहो दंत तुम ही सदा, जग मैं प्रबल प्रवीन।

तुम बिन मेरो कौन है, सब स्वाद तेरे आधीन।62।

भोजन के रस स्वाद सब, वो ही जन सुख पाय।

जाकी बत्तीसी है सकल, वो हलवा पूरी खाय।63।

महिमा बडी अपार है, दंत राज सरकार।

तुम्हरे बल पर चल रहा, अरबों का ब्यौपार।64।

करके यह कारोबार, अरबपति सब बन जावैं।

अचरज मे हम पडे, बत्तीसी फिर भी ना बच पावैं।65।

जैसे दांत बतीस हैं, वैसा ही उपचार।

एक्सपर्ट हर दांत के, कमाई अपरंपार।66।



कोई तोडै कोई लगाय दे, कोई मांझै बत्तीस।

कोउ सैट करै सभी, उलट पलट सब रीत।67।

दिल लीवर गुर्दा सभी, के हैं अलग विशेष।

पर बासठ बत्तीस के, इनकी अलग है टेक।68।

ब्यौपारी हैं दंत के, षोडषी के दिखलाय।

बुढउ बिचारा क्या करै, भरम में वो फंस जाय।69।

कबहुं ना कछु करि सकैं, लंबे लंबे दांत।

जिह्वा भी दुख पावती, सुख ना पावै आंत।70।

षोडषी हम को वो मिली, चलचित्र में दांत चमकाय।

भारी अचंभा तब भयो, जब पेस्ट ना वो अजमाय।71।

प्रभु की कृपा अपार है, प्रभु को नेह अनंत।

नव उत्पादों के बिना, सकल हमारे दंत।72।

कबहुं मित्र बनाइये, जो हो दंतविहीन।

भोजन पर बुलवायेगा, बस दिखलावेगा खीर।73।

लाल सौं जब हमने कहा, नहीं तुम्हारा योग।

दंत चिकित्सा जो करी, तो बहुजन पाय वियोग।74।

सुत ने हमको एक दिया, भारी भरकम तर्क।

दांत उखाडूं रोप दूं, क्या पड़ता है फर्क।75।

दंतहीन नर को कछु, है भरोस जग माहीं।

काटे चाटे एक सम, कछु समझत नहीं आनि।76।

दंत चिकित्सक बहु बड़े , ऐसा किया उपाय।

वाम दर्द करै दांत तो, दाहिने हाथ मैं आय।77।

अध लेटे से बैठ गए, कुर्सी पर हम शांत ।

घर पहुंचे तब आ गया, हाथ दर्द का दांत।78।

तना पत्नी जी ने दिया, फरमाइश ना अब आय।

दांत तुम्हारे दो चार बचे, बस खिचड़ी ही खाय।79।

धमकाने का ब्रह्मास्त्र था, तब हर जन के यह पास।

दांत तोड़ दूंगा तेरे, अब बैठ जाओ चुपचाप।80।

भीरू जब संग्राम मैं, अरि के सन्मुख आय।

दांत पीस रह जाय बस, नहीं कछु कर पाय।81।

अणु परमाणु अस्त्र को, जानै सकल जहान।

गुप्त शस्त्र पुष्टदंत हैं, संकट काम हैं आन।82।

इनका विष किसी काल में, होता नहीं विफल।

विष दंतों की मार को, जानत जगत सकल।83।

बाबा दांत दिखाय कै, बेचे मंजन पेस्ट।

युवा भये बेचैन अरु षोडषी को ना रेस्ट।84।

षोडषी को ना रेस्ट, सहेली तान देवैं।

तेरा प्रियतम गुण दांत के, या बाबा से लेवै।85।

निष्ठुर प्रेमी दंत है, कोमल प्रेयसी जीभ।

कबहुं ना मिल पात हैं, होय जो कितने करीब।86।

जुगल बड़ी सरकार है, जीभ और बत्तीस।

इनके बिनु कछु ना घटै, व्यापक व्यर्थ सरीर।87।

प्रियतम मैं तुम बिन ना बछु, तुम मेरे बिन कछु नाहीं।

दंत जीभ की जुगल को, तोड़ ना या जग माहीं।88।



तुम्हरी अति है भव्यता, जब होये जग माहुं।

अपनी पीर छुपाय कै, मैं बलिहारी जाउं।89।

विधवा सो जीवन भयो, छोड़ गए जब साथ।

व्यंजन बहु बहु भांति के, बिसर गए सो हाथ।90।

प्रीत मोरी अखंड है, जाओ तुम बत्तीस।

जायें तुम्हरे जो मिलैं, उनसों प्रीत असीस।91।

उनसों प्रीत असीस, कभी ना रस पावैं।

दलिया, खिचड़ी भोग, इनहुं सै हम सुख पावैं।92।

उनसों प्रीत असीस, कोउ भी ना घबरावैं।

दंत विहीन जिह्वा सों, सब हंसि हंसि जावैं।93।

उनसों प्रीत असीस, मैं क्या करूं बिचारी।

दंत विहीन जीभ पै, सब जग होय है भारी।94।

प्रभु सब दुख मुझको दीजिए, देओ पीर अपार।

दंतहीन कबहुं ना रहुं, महिमा करो अपार। 95।

महिमा करो अपार, सबहिं व्यजंन मोहै भावैं।

ललना, षोडषी, युवजन, सखा हमरे कहलावैं।96।

सबहुं साथ, सबहुं व्यथा, सबहुं बेद, सबहुं कथा।

व्यर्थ सदा हैं सब कपिल, जबहुं ना होये दंत कथा।97।

हिलते दांत बचाइये, हिलैं चाहि बहु बार।

उखड़ जाय तो ना मिलैं, ढूंढो कितनी ही बार।98।

हंसना दूभर हो गया, दंतपंक्ति जब से गई।

तस्वीरों के इतिहास में, अपनी हस्ती सिमट गई।99।

दंत सेन बोली कुपित, मौसों आज बिचार।

कवि तुमने कोसा बहुत, रखी ना हमरी लाज।100।

रखी ना हमरी लाज, जीभ को दिया समर्थन।

रक्षा मैं हम सदा रहैं, स्वाद का वो उदहारण। 101।

जीवन अति कठोर है, लाख टके की सीख।

कठिन दंत आधार हैं, स्वस्थ सरीर की रीख।102।

संग साथ क्या होत है, बत्तीसी बतलाय।

इनकी एक ही है सदा, एक हटै दुई जाय।103।

सुघड़ सुड़ौल सबल हम, रहैं सदा सब साथ।

बत्तीसी के बत्तीसों की, प्रभु से यही अरदास।104।

प्रभु से यही अरदास, तभी है मूल्य हमारा।

बिछुड़ जाय जो एक तो, मलिन हो नाम हमारा।105।


एका मैं है बल सभी, एका की सब रीत।

बिछुडों की कभी ना मिलै, प्रेम पियारी प्रीत।106।

बत्तीसी की निठुरता, ऐसी भयी सहाय।

पचपन की भी यौवना, अंकल कही कही जाय।107।



छूटे सब रस जगत के, बिछड़े मधुरस पात।

जीवन के आधार अब, दलिया खिचड़ी भात।108।

भला सभी का कीजिये, हों कितने भी दुष्ट।

भोजन तब ही रसधार बनै, होये दंत जब पुष्ट।109।

होये दंत जब पुष्ट, काम मैं रति रही जावैं।

शांत सुडौल रहैं सदा, कभी महिमा नहीं गावैं।110।

वदे नेताजी के विकट, ज्यों हाथी के दांत।

देखन मै सुंदर लगै, कछु काम ना आत।111।

खाने के तो अलग हैं, देखन के कछु और।

कबहु भरोस ना कीजिये, हस्त दंत की ठौर।112।

प्रेमी दंत की बहु व्यथा, कछु ही करो उपाय।

बिनु प्रेयसी के जगत मै, कभी ना पाय सहाय।113।

कितना भी सौष्ठव सरीर, कैसा भी दृढ सीस।

बत्तीसी जब ना रहै, कोउ ना देव असीस।114।

कितनी करो सराहना, कितना भी गुणगान।

मुंह में जब ना दांत हैं, उपमा व्यर्थ ही जान।115।

दांतों का ही खेल है, अंदर बाहर दोय।

खावत अरू दिखाव के, मूल्यवान बहु दोय।116।

सब कुछ तेरे पास था, धन संपदा अपार।

कछु भी ना तू भोग सका, बिन बत्तीसी यार।117।

बचपन में बहु भांति से, धमकाते थे मित्र।

दांत तोड़ दूंगा तेरे, धमकी सबसे बिचित्र।118।

दलिया खिचड़ी मित्रता, हलुआ बहुत अपार।

दंतविहीन को यह सकल, भावै बहु बहु बार।119।

कहो कौन है साथ, कहो कौन है पांत।

बत्तीसी के बिन नहीं, कोई तुम्हारी जात।120।

नहीं है कोई जात, कभी ना तुम सुख पावो।

कितने बहु कर्मवीर, दंतहीन ही कहलाओ।121।

अभी अभ रचना रची, अभी टूट गयो दांत।

कपिलन तुम्हरी दीनता, कबहुं ना मिलै संभांत।122।

पीर वृथा हो गई सभी, माता हुई निहाल।

लाल नै कट्टी काट ली, दूध दांत की चाल।123।

नकली दांत लगाय कै, बुढउ बहुत इतराय।

बछड़े की चाह मैं सदा, बैल गुलाटी खाय।124।

नकली दांत लगाय कै, असली रूप छुपाय।

चरित यही है मनुज का, बछड़ा बैल कहाय ।125।

टूटै पहलो दांत जब, बालक हंसि हंसि जाय।

मुख खोलै सबसों कहै, हाथ मै लेय दिखाय।126।

कितने बैद हकीम सभी, बतलावैं तरकीब।

लेकिन नीम की डांड सों, चमकत हैं बत्तीस।127।

चकमत हैं बत्तीस, आज सब भूलि गये हैं।

मंजन पेस्ट के विज्ञापन मै, झूम रहे हैं।128।

बापू कहते रहे सदा, होवै जो कछु टीस।

सरसों तेल ओ फिटकरी, सों मांजो बत्तीस।129।

ऐसो सरल उपाय है, सबको सुलभ हैं दोय।

कहे कछु तुम ढूंढते, दंत मै ना होवै कोय।130।

देखिये वो कहां जा रहे हैं,

किस महफिल में हाथ आजमा रहे हैं।

मटन, चिकन, बाटी की जहां बहार है,

बिना दांत के तो मायूस आ रहे हैं।131।

संबंधों की चिता पर वो हाथ सेंक रहे हैं,

अपने जमीर की सर्दी यों मेट रहे हैं।

हम पियाला, हम निवाला थे वो कभी हमारे,

हम खिचड़ी के सहारे, वो नॉनवेज पेल रहे हैं।132।

साथ रहा कब सदा किसी का,

संग सभी का छूटेगा।

जग आया फकत अकेला

बस ऐसे ही रूठेगा।

संग नहीं मैं आया लेकिन

साथ कभी ना छोडूंगा।

खोदेंगे जब मिट्टी तेरी

बस दंत हमेशा फूटेगा।133।



दंतहीन जब से भये

भये सकल सुख काज।

हलुआ, रसगुल्ला खीर सब

रस स्वादन हैं आज।

रस स्वादन हैं आज

प्रभु बस किरपा कीजो।

भर भर थाली मैं

मालपूआ, रबड़ी भी दीजो।134।

खूब हुआ था यु़द्ध

रात को हमने देखा।

रोती रही रोती सिसकी बाटी

सुनी सबकी ही लेखा।

भये प्रसन्न हलूआ रबड़ी

रसगुल्ला इतरावैं।

बहना तुम बनवास

हमहीं मुख मै सुख पावैं।135।

सुख ऐसे कैसे मिलै

सुख ही है अभिलाश।

बिनु श्रम जीवन में कभी

होता नहीं प्रकाश ।

होता नहीं प्रकाश

श्रम सभी कै काम मे आवै।

बत्तीसी को निष्काम भाव

सुख सरीर सब पावैं।136।

बचपन की सखी जो मिली

पचपन मैं जब आज।

मुस्काई बोली हंसी

नहीं तुम्हारा काज।

नहीं तुम्हारा काज

दांत तुम्हरे सब रीते।

बुढउ हो गए तुम

प्रसंग सब प्रेम के झूंटे।137।

सखी कबहुं कछु रीत है, कबहुं कहां प्रति पाय।

चपल चंचला दंतपक्ति, हमहु सुदर्शन नाय।138।

आली वो रूठ गए मौ से, कहे कहां अब रीत।

बत्तीसी जब छूट गई, अब षोडशी सों प्रीत।139।

आली सुख बहुतेरे बहुत, नहीं है कोई रार।

दलिया पिउं मौज मै, हमउ भोज्य की धार।140।

प्रभु ऐसो वरदान दो, होउं जो दंत विहीन।

सबरे सुख पाउं सदा, सकल रस होयं आधीन।141।

कविवर जग में ही सदा, सुंदरता की टेक।

मुखमंडल की भव्यता, जिनका पाचन नेक।142।

जिनका पाचन नेक, वही सकल बत्तीसी पावै।

समही तुम्हारा काव्य, कभी तक तह मैं ना जावै।143।

जब तक बत्तीसी रहै, मुखमंडल की जीत।

चले जायें दो चार तो, करै ना कोउ प्रीत।144।

बोसा जो हमने लिया, प्रियतम का पहली बार।

दांत टूट कर गिी पडा, प्रेम लगा निस्सार।145।

प्रेम हुआ निस्सार, कुपित हो प्रेयसी बोली।

बत्तीसी में नाहीं दम, क्यों कराओ ठिठोली।146।

लज्जित हम ऐसे भये, डूब जाये नत सीस।

हिलती बत्तीसी का मनुज, औन पौन छत्तीस।147।

लाल लाइट हम लांघ गए, होने लगा चलान।

दंतहीन मुख जब प्रकट किया, छूटी हमरी जान।148।

छूटी हमरी जान, प्रकट हो कांस्टेबल बोला।

अंकल अकल लगाओ, चलाते कैसे ठेला।149।

संपादक जी ने हमसे कहा, पैनल में आओ आज।

इतराते हम पहुंच गए, पर बची ना हमरी लाज।150।

बची ना हमरी लाज, मुख जैसे ही खोला।

बोका मुंह टीवी पर दिखा, एंकर हमसे यों बोला।151।

प्रभु पधारो ना हमें, अपनी टीआरपी गिरवाना।

कितने भी हो विद्वान, पूरी बत्तीसी में आना।152।



ना इज्जत है ना मधुर, गए सकल हैं दंत।

चाचा बाबा सब कहैं, मधुर माधुरी संत।153।

रच दिए सारे दोहरे, कह दी पूरी बात।

दंत कथा का अब यहीं, होता है श्रीपात।154।

(लेखक- साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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Shashi kant gautam

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