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India Education: भारत में गिरता शिक्षा का स्तर
India Education: वर्तमान समय में छात्रों की मांग रहती है कि विश्वविद्यालय में प्रवेश के पश्चात उसको कक्षा में अध्ययन करने हेतु कोई बाध्य ना करे।
India Education: किसी भी देश की प्रगति उस देश की सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है। वर्तमान समय में यह सर्वविदित तथ्य है कि भारत की शिक्षा का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। इस नकारात्मक स्थिति की जिम्मेदारी विद्यार्थियों, अध्यापकों, राजनेताओं, मीडिया, जनता और माता-पिता सभी की है। हम सभी को इस ज्वलंत विषय पर अपनी-अपनी भूमिका का स्वयं आंकलन करने की आवश्यकता है। हमारे देश का शिक्षा का स्तर कितने निम्न स्तर पर पहुँच गया है वह इन आंकड़ो से ही स्पष्ट होता है कि जब किसी सरकारी संस्था अथवा निजी कम्पनी में 100 रिक्तियों के लिए आवेदन माँगा जाता है तो 5000 आवेदन प्राप्त हो जाते हैं, इनका वरियता के आधार पर चयन होने पर मात्र 10-15 प्रतिशत ही सफल हो पाते हैं। अर्थात इनमें से 85-90 प्रतिशत रिक्तियाँ शेष रह जाती हैं। शिक्षा के निम्न स्तर के कारण ही भारत के उद्योगों को कुशल मैनेजर व वैज्ञानिको का मिलना एक विकट समस्या बनता जा रहा है। हमारे देश में विश्वसनीय चिकित्सकों एवं नर्सों का अत्यन्त आभाव है। परिणामस्वरूप आम जनता सरकारी चिकित्सालयों में निःशुल्क इलाज कराने से भी घबराती है।
वर्तमान समय में छात्रों की मांग रहती है कि विश्वविद्यालय में प्रवेश के पश्चात उसको कक्षा में अध्ययन करने हेतु कोई बाध्य ना करे। छात्र अपने अध्ययन के समय को व्यर्थ व्यतीत करके, परीक्षा में उत्तर पुस्तिका को खाली छोड़कर अथवा उसमें अनर्गल लिखकर चाहते हैं कि उत्तीर्ण हो जाएँ। ऐसे छात्र ही भविष्य में समाज अथवा सरकार पर बोझ बन जाते हैं। आजकल कुछ नए विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गए हैं, जिनके अधिकांश मुखिया नॉन एकेडेमिक्स होते हैं, ऐसे विश्वविद्यालयों का काम सिर्फ डिग्री छापकर देने का रह गया है। इसके इतर जो विश्वविद्यालय ईमानदारी से काम करना चाहता है और छात्रों का परीक्षा परिणाम ईमानदारी से घोषित करता है, वहाँ पर कम अध्ययन करने वाले छात्र अनुत्तीर्ण भी होते हैं, ऐसे में वहाँ छात्रों का विद्रोह होना स्वाभाविक है। परन्तु दुख तब होता है जब विश्वविद्यालय के ईमानदार प्रशासन को पुलिस प्रशासन व मीडिया का पर्याप्त सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता और जिससे छात्रों की उदण्डता बढ़ती जाती है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा का स्तर गिरना स्वाभाविक हो जाता है।
इस विकट स्थिति को यदि शीघ्र ही सभी सरकारों ने हस्तक्षेप कर नहीं सम्भाला तो कितनी भी श्रेष्ठ शिक्षा नीति ले आए अथवा क्रांतिकारी कदम कागजों पर उठा लें, उसका कोई विशेष लाभ होने वाला नहीं है। शिक्षा का स्तर भारत में राजनेताओं के व्यवहार, शिक्षकों की ईमानदारी एवं पुलिस की चुस्ती के संयुक्त प्रयास से ही सम्भल सकता है और देश का उद्धार हो सकता है। यदि ऐसा सम्भव नहीं हो पाया तो आगामी 10 वर्षो में ही देश में अशिक्षित डिग्रीधारकों की संख्या, सरकारों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाएगी। वर्तमान में यह समस्या जिसे हम अभी सहज रूप से ले रहें हैं, भविष्य में अत्यधिक विकराल रूप धारण करेगी, जिससे देश को अत्यधिक हानि का सामना करने की सम्भावना है।अशिक्षित कामगार से लेकर अशिक्षित राजनेता तक देश को केवल और केवल बर्बाद करने का कार्य करते हैं।
( लेखक प्रख्यात शिक्षाविद हैं।)