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देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता

किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जो कुछ भी हुआ है उसे जायज नहीं करार दिया जा सकता है. कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों का ट्रैक्टर मार्च  हिंसक हो गया.

Monika
Published on: 27 Jan 2021 10:17 PM IST
देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता
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देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता.

डॉo सत्यवान सौरभ

( किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है. यह बात तो सच है कि आज इन प्रोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई. आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया. इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब इन पर थु-थू कर रहा है. जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में व्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे.)

किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जो कुछ भी हुआ है उसे जायज नहीं करार दिया जा सकता है. कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों का ट्रैक्टर मार्च हिंसक हो गया. कई जगहों पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई. पिछले करीब दो महीने से दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित सिंघू बॉर्डर पर जमे किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली, इस दौरान पुलिस और किसानों के बीच जमकर हिंसक झड़प हुई. प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर बैरेकेडिंग तोड़ते हुए दिल्ली के अंदर घुस गए और जबरन तोड़फोड़ की.

किसानों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दिए

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दिए. कई जगहों पर पुलिस ने बवाल मचा रहे किसानों को तितर बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया. कई जगहों पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए . इस दौरान पुलिस के साथ कई झड़प के दृश्य भी सामने आए. सेंट्रल दिल्ली के आईटीओ में प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले छोड़े गए. लेकिन, प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड को तोड़कर पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया और पुलिस की गाड़ियों में तोड़फोड़ की. हालांकि, किसानों के उग्र प्रदर्शन से किसान नेताओं ने पल्ला झाड़ लिया है. गौरतलब है कि किसान संगठन केन्द्र सरकार की तरफ से सितंबर महीने में लाए गए तीन नए कृषि कानूनों का विरोधस्वरुप पिछले करीब महीने से भी ज्यादा वक्त से दिल्ली और इसके आसपास के सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनकारी किसानों की मांग है कि सरकार नए कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ ही एमएसपी को कानून का हिस्सा बनाए. जबकि सरकार का कहना है कि इन कानूनों के जरिए कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और नए निवेश के अवसर खुलेंगे.

उत्पादन व्यापार और वाणिज्य

किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 किसानों को अपनी उपज को कृषि उपज मंडी बाजारों के बाहर बेचने की अनुमति देता है. इसलिए, किसानों के पास स्पष्ट रूप से अधिक विकल्प हैं कि वे किसे बेचना चाहते हैं. मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 पर किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता विधेयक अनुबंध खेती के लिए एक रूपरेखा की स्थापना के लिए प्रावधान करता है. किसान और एक खरीदार उत्पादन होने से पहले एक सौदा कर सकते हैं. किसानों की आपत्तियां देखे तो वो कहते है कि अध्यादेशों की घोषणा के समय और बाद में संसद के माध्यम से विधेयकों को आगे बढ़ाने के दौरान केंद्र सरकार द्वारा कोई परामर्श नहीं किया गया था. कृषि बाजारों में वैश्विक अनुभव यह दर्शाता है कि किसानों के लिए एक सुनिश्चित भुगतान गारंटी बड़े व्यवसाय के हाथों किसानों के शोषण का परिणाम है. इससे छोटे और सीमांत किसानों को खतरा है जो कुल किसानों का 86% हिस्सा हैं.

अनुबंध की खेती प्रकृति में स्वैच्छिक

हरीश दामोदरन कृषि अर्थशास्त्री के अनुसार अनुबंध पर खेती अधिनियम पर आपत्ति करने के लिए बहुत कम तर्क है जो केवल अनुबंध खेती को सक्षम बनाता है. कंपनियों और किसानों के बीच इस तरह के विशेष समझौते आलू, टमाटर जैसे विशेष प्रसंस्करण ग्रेड की फसलों में पहले से ही चालू हैं.अनुबंध की खेती प्रकृति में स्वैच्छिक है. यह प्रावधान प्रकृति में सुधारवादी है. जब यह एपीएमसी की बात आती है, तो किसान, अपने हिस्से के लिए, अपनी उपज की आवाजाही, स्टॉकिंग और निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं चाहते हैं. विपणन के मामले में - विशेष रूप से एपीएमसी के एकाधिकार को समाप्त करने - किसानों, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में, किसी को और कहीं भी बेचने के लिए "स्वतंत्रता की पसंद" के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं. इस विवाद का कारण धान, गेहूं और बढ़ती दाल, कपास, मूंगफली और सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद है. इस प्रकार देखे तो तीनों बिल पूरी तरह किसान हितैषी ही तो है.

मगर किसानों कि आड़ में ये मुद्दा राजनैतिक हो गया है. ये कौन सा तरीका है कि संसद द्वारा बनाये गए कानूनों को ऐसे आंदोलन ले जरिये बदलने की कोश्शि की जाये. संसद की गरिमा कहाँ रह जाएगी फिर? क्या संसद के बहुमत की कोई महत्ता नहीं है? लाल किले पर 26 जनवरी के दिन खालिस्तानी झंडा लहराना भारत के वजूद को ख़त्म करने की गहरी साजिश प्रतीत हुआ. किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है. यह बात तो सच है कि आज इन प्रोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई. आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया. इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब इन पर थु-थू कर रहा है. जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में व्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे.

ये भी देखें: किसान ! असली कौन, नकली कौन ?

पूरे देश ने देखा कि आंदोलनकारी किसान नहीं

सरकार ने अब तक पूरे मामले में बड़ा शांतिपूर्ण साथ दिया है. हमारे पुलिस कर्मी भाई-बहन देश की आन-बान के लिए घायल हुए, उनको तहदिल से सलाम. सरकार की नींव आज और मजबूत हुई है और पूरे देश ने देखा कि आंदोलनकारी किसान नहीं है और न ही वर्तमान सरकार द्वारा लाये गए बिल किसान विरोधी है. धरने पर बैठे लोग सोच-समझी राजनीति कर रहें हैं. ये ऐसे लोग है जो अपनी घटिया मानसिकता के कारण देश को अस्थिर करना चाहते है. सुप्रीम कोर्ट को अब इस मामले को दोबारा से सुनना चाहिए. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश देने चाहिए जो हमारी राष्ट्रीय एकता और संविधान पर चोट करें, वो भी पूरी तरह प्लानिंग के जरिये. ये किसान आंदोलन नहीं है ये भारत की संप्रभुता पर आतंकी हमला है इस तरह के हमलों को सरकार को कुचल देना चाहिए. दूसरी तरफ असली किसान नेताओं को सामने आकर भारत सरकार से सीधी बात करनी चाहिए. ऐसे घटिया लोगों के नाम सामने आने चाहिए जो अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए देश के किसान को आगे कर अपना घिनौना खेल रच रहें है. उनको ये सच बताना ही होगा कि देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता.

रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार



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Monika

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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