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लोकतंत्र ! सबकी अपनी परिभाषा अपनी सोच, आखिर सत्यता क्या है ?

आज 75 वर्ष बाद भी अमेरिका इस्लामी पाकिस्तान को जम्हूरिया ही मानता है। बीते कल वाशिंगटन में आयोजित प्रजातांत्रिक राष्ट्रों के प्रथम विश्व अधिवेशन में राष्ट्रपति जो बिडेन ने पाकिस्तान को बुलाया था। कम्युनिस्ट चीन को नहीं। इसलिए पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने बिडेन का निमंत्रण ठुकरा दिया।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Deepak Kumar
Published on: 10 Dec 2021 11:07 PM IST
लोकतंत्र ! सबकी अपनी परिभाषा अपनी सोच, आखिर सत्यता क्या है ?
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लोकतंत्रीय राष्ट्र (democratic nation) कौन है? आज 75 वर्ष बाद भी अमेरिका (America) इस्लामी पाकिस्तान (Pakistan) को जम्हूरिया ही मानता है। बीते कल वाशिंगटन में आयोजित प्रजातांत्रिक राष्ट्रों के प्रथम विश्व अधिवेशन में राष्ट्रपति जो बिडेन (President Joe Biden) ने पाकिस्तान को बुलाया था। कम्युनिस्ट चीन (communist china) को नहीं। इसलिए पाकिस्तान के पीएम इमरान खान (Pakistan PM Imran Khan) ने बिडेन का निमंत्रण ठुकरा दिया। भले ही सीताराम येचूरी की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी चीन को लोकतंत्र कहे। पाकिस्तान की सोच की ताईद करे। नागरिक शास्त्र का एक औसत छात्र भी बता देगा कि अधिनायकवादी चीन किसी भी परिभाषा अथवा मानक पर प्रजातंत्र नहीं कहा जा सकता है।

चीन में लोकतंत्र मानता है पाकिस्तान

चीन (China) में केवल एकमात्र कम्युनिस्ट पार्टी ही है। उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping) जीवन पर्यन्त राष्ट्रपति चुने गए हैं। देश में समाचार पत्र केवल एक या दो है। वह भी पार्टी/सरकार के अधीन हैं। मानवाधिकार योद्धाओं से जेलें भरीं हैं। भेंड़ तथा इंसान में अंतर नहीं दिखता। फिर भी पाकिस्तान चीन में लोकतंत्र मानता है। पड़ताल कर लें कि खुद इस्लामी देश कितने जनतंत्रीय होते हैं? बादशाह, सुलतान, नवाब, शेख, अमीर आदि शासक हैं। बाप का बेटा होने के नाते सत्ता पर बने रहते है। गुप्त मतदान द्वारा चुनाव का तो मसला ही नहीं होता। लेकिन अमेरिका का दशकों से दोस्त रहा पाकिस्तान अभी भी बिडेन को लोकतंत्र ही दिखेगा।

लोकतंत्र के भी होते हैं कई प्रकार: बिडेन

हालांकि राष्ट्रपति जो बिडेन (President Joe Biden) ने अपने भाषण में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) का उल्लेख कर यह स्वीकारा था कि लोकतंत्र भी कई प्रकार के होते हैं। मगर लोकतांत्रिक गणराज्य की कुछ बुनियादी अपरिहार्तायें हैं : सर्वप्रथम बहुपार्टी प्रणाली हो। प्रेस स्वतंत्र हो, नियमित गुप्त मतदान होता हो, अभिव्यक्ति का हक, अर्थात् मानवाधिकारों का हनन न होता हो, न्यायतंत्र निर्बाध हो।

एक बार भारतीय श्रमजीवी पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल को लेकर प्राग (चेकोस्लोनाकिया, तब सोवियत रुस के कब्जे में था) के प्रेस क्लब में हमारे साथ उनकी बहस हुई थी। उन लोगों की मान्यता थी कि संसद में कई राजनीतिक दलों का रहना ही उसके लोकतांत्रिक होने का प्रमाण नहीं हो सकता। एक पार्टी भी सत्तारुढ़ रह सकती है। हम सब ने तब कम्युनिस्ट पत्रकारों को याद दिलाया कि विचार की विविधता तो प्रथम शर्त है। उसे वोट द्वारा ही प्रतिस्पर्धा वाले निर्वाचन में व्यक्त किया जा सकता है। किन्तु हमसे उनकी सहमति नहीं बन सकी। अब बिना वैचारिक वैविध्य के प्रजातंत्र के क्या मायने हैं?

खान अब्दुल गफ्फार समझे कांग्रेस में ही लोकतंत्र

यहां सीमांत गांधी खान अब्दुल खान की आत्मकथा की एक घटना का उल्लेख हो। वे 1905 में ढाका में हुये प्रथम मुस्लिम सम्मेलन में शिरकत करने गये थे। वहां तेज तर्रार बहस हो रही थी। दो वक्ता आप में भिड़ गये थे। जब संवाद समाप्त हुआ तो दोनों ने कटार निकाल ली। बीच बचाव से हिंसा रुकी। वे नहीं मानते थे कि समझाने बुझाने से ही शांतिमय हल निकालना चाहिए। दुखी होकर बादशाह खान सभी से तुरंत बाहर निकल गये और फिर दिल्ली में राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में शामिल हुए। वहां हाथ उठाकर वोट द्वारा समाधान की पद्धति देखकर खान अब्दुल गफ्फार समझ गए कि कांग्रेस में ही लोकतंत्र है। अभिव्यक्ति की आजादी है। कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

अत: बीते कल वाली वाशिंगटन की बैठक में स्पष्ट हो गया कि जिस राष्ट्र में विरोध का हक नहीं है, वहां केवल अधिनायकवाद ही है। यह नियम सभी देशों पर लागू होता है। किन्तु चीन इसे जानता ही नहीं है। गुलाम भारत में राजेरजवाडों ने भी लोकतांत्रिक आधार पर प्रजामंडल के गठन की अनुमति दी थी। आजाद भारत में वह फलती फूलती रही। यह तो भारत का भौगोलिक दुर्भाग्य, त्रासदी है कि उसके उत्तर तथा पश्चिम सीमा पर तानाशाही वाला शासन है।

सोवियत रुस में भिन्न लोकतंत्र की परिभाषा

जो बाइडन (President Joe Biden) की विचारगोष्ठी में संशोधन होना चाहिए था। पाकिस्तान को कतई निमंत्रण नहीं मिलना चाहिए था। जिस देश में विचार की आजादी न हो, वहां दिमाग कैसा मुक्त रहेगा? अभिव्यक्ति तो रहेगी ही नहीं। मसलन बीते युग में सोवियत कम्युनिस्ट राज्य (Soviet communist state) में एक अमेरिकी पर्यटक ने मास्को में अपने गाइड से कहा, ''तुम रूसी लोग परतंत्र हो। हम अमेरिकी लोग राजधानी​ वाशिंगटन में व्हाइट हाउस (White House in Washington) के सामने चीख सकते है कि ''राष्ट्रपति निक्सन भ्रष्ट है। क्या तुम मास्को में ऐसा कहा सकते हो?'' रूसी गाइड ने जवाब दिया : '' हां, हमें पूरी स्वाधीनता है कि क्रेमलिन के सामने हम भी चीख कर कह सकते है '' निक्सन बेईमान है।'' लोकतंत्र के मायने स्पष्ट हो गए। तो सोवियत रुस में ऐसी भिन्न लोकतंत्र की परिभाषा थी।

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Deepak Kumar

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