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One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन की कठिनाई और चुनौतियाँ

One Nation One Election: संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान में लोकतान्त्रिक व्यवस्था संचालन हेतु प्रत्येक पाँच वर्ष केंद्र और राज्य में चुनाव की व्यवस्था की गई है। संविधान में संघ का नाम भारत अर्थात इंडिया को राज्यों का संघ कहा गया है।

Manendra Mishra Mashal
Published on: 4 Sept 2023 3:44 PM IST
One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन की कठिनाई और चुनौतियाँ
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One Nation One Election (photo: social media )

One Nation One Election: भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था विविधता लिए हुए है। भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप में यह दिखाई भी पड़ती है। विभिन्न भाषाई पहचान से लैस भारतीय समाज में कई रूप-रंग है। यहाँ की संस्कृति प्रांतवार विभिन्नता लिए है। इसे समझते हुए स्वतंत्रता आंदोलन संघर्ष उपरांत राष्ट्र निर्माण के लिए संविधान समिति में सहमति/असहमति के विचारों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया गया। जिससे भारत की अनेकता में एकता की भावना आकार ले सके। संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान में लोकतान्त्रिक व्यवस्था संचालन हेतु प्रत्येक पाँच वर्ष केंद्र और राज्य में चुनाव की व्यवस्था की गई है। संविधान में संघ का नाम भारत अर्थात इंडिया को राज्यों का संघ कहा गया है। इसका ढांचा संघीय है। इसके साथ ही केंद्र और राज्य की व्यवस्था के पृथक्करण हेतु सातवीं अनुसूची में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची का प्रावधान किया गया है। जिससे केंद्र और राज्य के बीच प्रशासनिक शक्तियों एवं सीमाओं के बीच टकराहट से बचा जा सके। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में महामहिम राष्ट्रपति को प्रथम व्यक्ति के रूप में स्थान प्राप्त है। जिसका निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। जबकि प्रधानमंत्री संसद के मंत्रिमंडल का नेता होता है जिसका निर्वाचन परंपरागत मतदान प्रणाली से होता है।

राज्यों में यह व्यवस्था महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रूप में दिखाई देती है। केंद्र और राज्य के चुनाव जहां निर्वाचन आयोग करवाता है वहीं राज्यों में निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव को राज्य निर्वाचन आयोग ही करवाता है। यह विश्लेषण इस निष्कर्ष पर पहुंचाता है कि भारत में चुनाव का स्वरूप एकरूप नहीं है। स्वतंत्र भारत की संवैधानिक व्यवस्था में विविधता प्रभावी तत्व है। राष्ट्रीय स्तर पर देश के अमूमन सभी प्रांतों का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अन्य महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों की विविधता भारत को एक राष्ट्र के रूप में बांधे रहती है।

मौजूदा चुनावी प्रक्रिया में आम चुनावों के दौरान राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दे केन्द्रीय भूमिका में रहते हैं। जिसका लाभ राष्ट्रीय राजनैतिक दलों को मिलता है। जबकि राज्यों के चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दों की प्रमुखता रहती है। इन चुनावों में सामाजिक संरचना से सीधे जुड़ाव के कारण क्षेत्रीय दल फायदे की स्थिति में रहते हैं।

भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में मजबूत बने रहने से विभिन्न राज्यों की आकांक्षाओं को उचित मंच मिलता रहता है। इससे देश के अनेक राज्यों के मुद्दे पर सामूहिक नजरिया विकसित करने में मदद मिलती है। भारत के भीतर एक क्षेत्र विशेष की समस्या से पूरे देश के चुनाव प्रभावित नहीं होते हैं। अलग-अलग राज्यों के चुनाव से आम जनता के मतदान और निर्वाचित सरकार से केंद्र पर दबाव भी पड़ता है। जिससे पूर्ण बहुमत की निर्वाचित सरकार पर जनता का दबाव अन्य राज्यों के चुनावी परिणाम से दिखता है।

वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में महंगे चुनावी खर्चे का तर्क दिया जा रहा है। जिसे कम करने हेतु लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की दलील है। उस संदर्भ में भारत की स्थिति को समझना बेहद जरूरी है। हाल ही में मणिपुर में दो जनजातियों के बीच हुए संघर्ष को रोकने में भारतीय सेना और मणिपुर पुलिस प्रशासन को दो महीने से अधिक का समय लग गया। इसी प्रकार हरियाणा के मेवात में हुए हिंसा को कम करने में सेना की मदद लेनी पड़ी। पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा को अभी अधिक दिन नहीं हुए। जबकि पंजाब में हाल ही में खलिस्तान आंदोलन का डरावना स्वरूप देखने को मिला जिसमें प्रधानमंत्री के घोषित कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न हो गया। जनजातीय क्षेत्रों में नक्सलवाद की चुनौती लगातार बनी हुई है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के सूत्र कहीं न कहीं भारत से जुड़ ही जा रहे हैं। इन समस्याओं के समाधान में भारतीय सेना त्वरित गति से प्रतिकूल परिस्थितियों पर नियंत्रण कर लेती है।

देश के भीतर प्राकृतिक आपदा में राहत एवं बचाव कार्यों के लिए भी भारतीय सेना पर ही निर्भरता रहती है। ऐसे में एक साथ चुनाव होने की स्थिति में जब सेना और पैरा मिलिट्री फोर्स शांतिपूर्ण चुनाव की व्यवस्था में व्यस्त रहेंगी उस समय देश के सामरिक चुनौतियों के साथ सुरक्षा से कौन निपटेगा। यह एक गंभीर प्रश्न है?

लोकसभा एवं विधानसभा सीटों वाले देश

सबसे अधिक लोकसभा एवं विधानसभा सीटों वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पूरा चुनाव अमूमन कई चरणों में होता है। जिसकी समयावधि दो महीने से अधिक रहती हैं। ऐसे में पूरे देश का चुनाव एक साथ होने से पर यह अवधि भी बढ़ेगी! उस दौरान केंद्र और राज्य सरकार की शक्तियां किसके अंदर निहित रहेंगी! क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल पद और सशक्त होने जा रहे हैं? पूर्ण बहुमत न आने की स्थिति में क्या मध्यावधि चुनाव होंगे या राष्ट्रपति शासन होगा! जनता पर पड़ने वाले इस मध्यावधि चुनावी खर्चे का बोझ अर्थव्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करेगा! ऐसे कई प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं। जिनसे जूझना होगा!

भारत की भौगोलिक संरचना कई मौसमों को समेटे हुए है। जिसमें एक ही समय गर्मी, बर्फबारी, मूसलाधार बारिश और सूखा जैसी स्थितियाँ रहती हैं। कहीं तीव्र गर्मी तो दूसरी ओर बर्फबारी होती रहती है। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कौन सा मौसम अनुकूल होगा, यह भी विचारणीय प्रश्न है। जिससे दुर्गम स्थलों पर विपरीत मौसम में भी चुनावी कार्यक्रम एक साथ सम्पन्न हो सके।

भारत की जनता में राष्ट्रीय एकता की भावना ही सबको जोड़े रहती है। इसके अतिरिक्त पूरे भारतीय जनमानस में विविधता ही मूल चरित्र है। ऐसे में कोई भी नवीन प्रयोग करने से पूर्व एक व्यापक संवाद बेहद जरूरी है। इस दिशा में केंद्र सरकार को आगे आने की जगह संवैधानिक रूप से स्वतंत्र संस्थाएं जैसे निर्वाचन आयोग को जिम्मेदारी देनी चाहिए। जिससे सत्ताधारी दल के अतिरिक्त विपक्षी दलों एवं अन्य राजनैतिक दलों का इस प्रक्रिया में भरोसा बन सके। साथ ही जनता में अपनी स्थानीयता से जुड़ी पहचान और मुद्दों के राष्ट्रीय आधार पर खोने का भय न रहे।

भारत का संविधान दुनिया के कई देशों के सबसे न्यायप्रिय प्रावधानों का संकलन है। ऐसे में भारत की तुलना अन्य देश से नहीं की जा सकती। भारत में सभी धर्मों का सम्मान है एवं राज्य का चरित्र धर्मनिरपेक्ष है। यह विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों का संगम है। जबकि दुनिया के बहुतायत देश एक ही पंथ और धर्म पर आधारित हैं। उन देशों के नागरिकों की शारीरिक बनावट और जीवन संस्कृति समान है। यह एक ऐसा विषय है जो शेष दुनिया से भारत की पहचान को अलग करता है। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति बनाने सहित संसद का विशेष सत्र बुलाना चुनावी दृष्टिकोण को ही रेखांकित करता है। चुनावी वर्ष में यह अभियान शुरू करने के कारण इसकी मंशा और लक्ष्य को लेकर मतभेद होना स्वाभाविक हैं। फिलहाल यह प्रयोग लोकसभा चुनाव और कई राज्यों में क्या गुल खिलाएगा यह भविष्य के गर्भ में है!

लेखक : पूर्व अतिथि प्रवक्ता एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

Manendra Mishra Mashal

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