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Dihuli Hatyakand: भयानक नरसंहार की कहानी, आरडी शुक्ला की कलम से

Dihuli Hatyakand: अचानक प्रदेश के जनपद मैनपुरी से एक सामूहिक हत्या कांड की खबर आई की मैनपुरी के देवली गांव में 24 हरिजन की गोली मार कर हत्या कर दी गई।

RD Shukla
Published on: 18 March 2025 10:05 PM IST
Dehuli News
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Dehuli News (Image From Social Media)

Dihuli Hatyakand: आज फैसला आया है देवली हत्याकांड का 44 साल बाद इस हत्याकांड की खबर जब मैंने लिखी थी तब रहा होगा 30 साल का स्वतंत्र भारत दैनिक में अपराध संवाददाता था मैं देवली (मैनपुरी)इस नरसंहार की खबर लेने गया था आज जब 75 साल का हो गया तब इसका फैसला आया है तीन लोगों को फांसी हुई खुशी हुई कि अपने जीवन काल में अपने लिखी खबर का फैसला सुना है उसी की कहानी अपनी कलम से बता रहा हूं जरूर पढ़ें , वैसे मेरे लिखे कई अन्य बड़े हत्याकांड जैसे करहना कांड(बस्ती) माधवपुर कांड (गोंडा) पर फैसला अदालत के आ चुके हैं।

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मित्रों यह पहला अवसर है कि मैं अपनी कलम से आपको कोई खबर बता रहा हूं बात 1980 की है जब मैं स्वतंत्र भारत में अपराध संवाददाता का कार्य संभाला था। अचानक प्रदेश के जनपद मैनपुरी से एक सामूहिक हत्या कांड की खबर आई की मैनपुरी के देवली गांव में 24 हरिजन की गोली मार कर हत्या कर दी गई। बड़ा नरसंहार था। प्रदेश में इस खबर से भूचाल आ गया था। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। अचानक मुझको संपादक की ओर से आदेश मिला कि आप देवली रवाना हो जाएं। उस समय गाड़ियों की बहुत किल्लत होती थी। मुझे किसी तरह जल्दबाजी में जाना अति आवश्यक था तो एक पुरानी मेटाडोर मिली जो पीछे से बिल्कुल खुली हुई थी और बहुत पुरानी थी। मैं बिल्कुल नया अपराध संवाददाता था। खबर बड़ी थी मैं डर गया तब मैंने अपने साथ अपने वरिष्ठ स्वर्गीय नंदकिशोर श्रीवास्तव जी को किसी तरह साथ चलने के लिए राजी कर लिया। हम दोनों जन यहां से रवाना हुए। रात भर चलने के बाद किसी तरह मैनपुरी पहुंचे। गाड़ी बहुत खराब थी इसलिए धीरे-धीरे चल रही थी।

मैनपुरी पहुंचने के बाद वहां के लोगों ने बताया कि देवली यह गाड़ी नहीं जा पाएगी क्योंकि वहां भीषण जंगल है। रास्ता ठीक नहीं है। कांटेदार जंगल है। हम लोग नहीं माने। नए-नए रिपोर्टर बने थे। किसी की क्यों सुनते, अपनी जिद में किसी तरह उस गाड़ी पर ही आगे बढ़े तो रास्ते में कई वरिष्ठ पत्रकार साइकिल से देवली जाते हुए मुझे मिले, जिसमें से एक वरिष्ठ पत्रकार अजय जी भी थे, जो साइकिल से देवली के लिए जा रहे थे। सभी ने कहा वहां का रास्ता नहीं ठीक है, बहुत बीहड़ में देवली गांव है, लेकिन हम जिद करके चलते गए और जब कांटेदार पेड़ों का काफिला शुरू हुआ तो हमारी मेटाडोर काफी फायदेमंद साबित हुई। पीछे लगे कवर लगाने के स्टैंड ने आगे आने वाली कांटेदार झाड़ियां के झुरमुट से खूब बचाव होता गया। मैनपुरी से देवली ग्राम 30 40 किलोमीटर के लगभग था पूरा रास्ता मेटाडोर ने सुरक्षित बिना किसी नुकसान के देवली पहुंचा दिया। तब तक वहां कोई मुख्यालय से पत्रकार नहीं पहुंच पाया था, सब साइकिलों पर आ रहे थे बहुत पीछे थे।

जब देवली गांव पहुंचे तो वहां के दर्दनाक हालात देखकर जिगर कपकपा उठा 6 माह के बालक से लेकर महिलाएं पुरुष जिनकी संख्या 24 बताई गई थी वहां मारे गए थे। बीती पूरी रात वहां गोलियां चली थीं। यह भीषणनरसंहार हुआ था। मेरे लिए पहला अवसर था इतना बड़ा खून खराबा देखने का और रोती बिलखती महिलाओं का सामना करने का भी पहला मौका था। इन्हीं सबके बीच हमको रिपोर्ट भी बनानी थी, बना रहा था।

इसी बीच खबर आई कि दिल्ली से तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह आने वाले हैं और खबर मिली प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी देवली पहुंच रहे हैं। उनके हेलीकॉप्टर के गांव में ही उतरने के लिए जगह बनाई जा रही थी क्योंकि गांव तक सड़क के रास्ते आना मुमकिन नहीं था। कुछ समय बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह और ज्ञानी जैल सिंह वहां हेलीकॉप्टर से पहुंचे।

इत्तेफाक था कि उस समय तक वहां लखनऊ मुख्यालय से कोई संवाददाता नहीं पहुंच पाया था, कारण था सब साइकिल पर आ रहे थे। हमारी मेटाडोर पहुंच गई थी, हम भाग्यशाली थे हमने उन लोगों की अगवानी की। पूरे गांव में वे दोनों घूमे हमारे साथ। लोग बता रहे थे कि राइफल से हत्याएं हुई रात भर जबकि मैंने एक दरवाजे से 32 बोर का रिवाल्वर का भी कारतूस निकाल कर उन्हें दिखाया हमने कहा केवल राइफल नहीं, यहां रिवाल्वर का भी प्रयोग हुआ है। उन्होंने हमारी बात स्वीकार की।

बाद में पता चला की यहां कोई राधे संतोसा डकैतो ने यह हत्याकांड किया है। उस समय तक इस हत्याकांड का कारण भी वहां पता ना चल सका था। काफी शाम हो चली थी, इसलिए जो भी समाचार एकत्र हुआ वह लेकर जल्दी निकलना था वहां से हमारी मेटाडोर भी खराब थी और लखनऊ आकर खबर भी देनी थी, जब वहां से हम लोग निकल रहे थे तब लखनऊ के संवाददाता देवली पहुंच रहे थे। बहुत ही खतरनाक कटीलाजंगल देखा हमने किसी तरह वहां से वापस मैनपुरी आए और वहां से लखनऊ यह घटना 44 वर्ष पूर्व की है। लखनऊ आकर पूरा विवरण स्वतंत्र भारत दैनिक समाचार पत्र में लिखकर दिया हमने, आज जब मैं 75 वर्ष का हो गया हूं तब मुझे उस देवली कांड मैं अदालत के फैसले की जानकारी मिली जिसमें तीन लोगों को फांसी की सजा हुई है। इस देवली नरसंहारकांड में सजा का ऐलान सुनने को मिला।

आश्चर्य तो हुआ लेकिन अच्छा यह लगा कि मैं आपको यह बताऊं कि वहां मैं पहुंचा था और विश्वनाथ प्रताप सिंह और ज्ञानी जैल सिंह जी को पूरे गांव मैं टहलाने का मौका मिला था बाकी मैं उस समय ज्यादा कुछ नहीं जानता था घटनास्थल की खबर मैंने दी थी बाकी खबर लखनऊ का संवाददाता दे रहा था उसमें डकैत राधे संतोष गिरोह का नाम आता था, उसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रदेश में डकैतों के खिलाफ एक महा अभियान चलाया था जिसमें उनका एक भाई भी डकैतों का शिकार हुआ था। इस अभियान में सैकड़ो डकैत मारे गए थे। तभी से बीहड़ के डकैतों का काफी सफाया भी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कर दिया था। इसी के चलते डाकू उनसे बहुत नाराज हो गए थे और बदला लेने के चक्कर मेंउनके भाई को इलाहाबाद में डकैतों ने मार डाला था। इसके बाद मुझे कई बार इस क्षेत्र में जाने आने का मौका मिला था जिसे आगे लिखूंगा।

आज मैनपुरी की अदालत ने 44 साल बाद तीन लोगों को फांसी की सजा दी अब देखना है हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट कितने वर्षों बाद इनको फांसी के फंदे पर पहुंचाता है। जब मैंने इस खबर को रिपोर्ट किया था 30 साल का रहा होऊंगा। अब रहू ना रहूं इस देवली कांड को जानने वाला कोई बचेगा ही नहीं । विश्वनाथ प्रताप सिंह गुजर गए, ज्ञानी जैल सिंह खत्म हो गए हम लोग इस कांड के गवाह है कितने दिन 75 साल के तो गए।

आर. डी. शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार की कलम से

Ramkrishna Vajpei

Ramkrishna Vajpei

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