×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Ayodhya Ram Mandir: दिव्य-भव्य-नव्य अयोध्या: एक सारगर्भित यात्रा

Ayodhya Ram Mandir: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था। त्रेतायुगीन सूर्यवंशीय नरेशों की राजधानी रही अयोध्या पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखती है। एक जनश्रुति के अनुसार महात्मा बुद्ध ने भी अपने जीवन की सोलह ग्रीष्म ऋतुएं साकेत में व्यतीत की थीं।

Network
Newstrack Network
Published on: 31 Dec 2023 10:46 PM IST
Divine-Grand-Navy Ayodhya: A pithy journey
X

दिव्य-भव्य-नव्य अयोध्या: एक सारगर्भित यात्रा: Photo- Social Media

Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या इस समय भारत ही नहीं विश्वस्तर पर चर्चा में है। अयोध्या वर्तमान में दिव्य हो है, भव्य हो है और नव्य भी। अयोध्या के इतिहास में कई नए अध्याय जुड़ रहे हैं, जुड़ गए हैं। इतिहास में गौरवशाली साक्ष्यों को समेटे हुए अयोध्या ने अब सर्म्पूण विश्व को आकर्षित किया है, मोहा है । रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला के बहुप्रतीक्षित भव्य मंदिर निर्माण का कार्य लक्षित अवधि में पूर्ण होना इसे हर्षित कर रहा है। यहाँ के निवासी अपने को धन्य समझ रहे हैं, भक्तिमय हो गए हैं। राम का आदर्श उन्हें भाव-विभोर कर रहा है। अयोध्या के साथ पूरा देश उत्साह में है। रामराज्य की कल्पना से यहाँ का वातावरण सुगन्धित हो गया है। वर्षों से गढ़े जा रहे पत्थर राम मंदिर से जुड़कर जीवंत हो उठे हैं। वैदिक कालीन नदी सरयू अपने भाग्य पर इतरा रही हैं। अयोध्या इसी सरयू नदी के किनारे तो बसा है, इतराना तो बनता है। यह एक वैदिक कालीन नदी है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इस नगरी को श्रीराम का जन्मस्थली होने की मान्यता ने एक नई करवट ले ली है।

प्राचीनकाल में शक्तिशाली हिन्दू राजाओं की यह राजधानी थी। अयोध्या को साकेत एवं राम नगरी के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में इसे कोशल जनपद के नाम से भी वर्णित किया गया है। कौशल प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका क्षेत्र आधुनिक गोरखपुर के आस-पास तक विस्तृत था। इसकी प्रथम राजधानी अयोध्या और द्वितीय राजधानी श्रावस्ती थी।

Photo- Social Media

सूर्यवंशीय नरेशों की राजधानी रही अयोध्या

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था। त्रेतायुगीन सूर्यवंशीय नरेशों की राजधानी रही अयोध्या पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखती है। एक जनश्रुति के अनुसार महात्मा बुद्ध ने भी अपने जीवन की सोलह ग्रीष्म ऋतुएं साकेत में व्यतीत की थीं। चीनी यात्री फाह्यान एवं ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृत्तान्तों में इस नगरी का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग 7वीं शताब्दी में यहाँ आया था। ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में उल्लेख किया है कि यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। पुष्यमित्र शुंग के शिलालेख खुदाई में यहाँ मिले हैं। इस नगरी के अनेक स्थल श्रीराम, सीता व दशरथ से सम्बद्ध रहे हैं। यह भारत के सप्तमहापुरियों में से एक है। भारत की सप्तमहापुरियाँ हैं- अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन तथा द्वारिका। यह नगर मोक्षदायी नगर हैं, ऐसी मान्यता है।

अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है तथा इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद 10वें खण्ड के दूसरे सूक्त के 31वें मंत्र में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-

“अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या,

तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः ।"

अर्थात् देवों की नगरी अयोध्या आठ चक्रों और नौ द्वारों वाली है। कोई युद्ध करके उसे जीत नहीं सकता। उसमें हिरण्यमय कोष और प्रकाश से ढका हुआ स्वर्ग है।

आदिकवि महर्षि वाल्मीकी द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना सनातन धर्म के प्रथम योगीपुरुष मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग 144 किमी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग 36 किमी) चौड़ाई में बसी थी। स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है। जैन मत के अनुसार यहाँ चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म इसी भूमि पर हुआ। उक्त सभी तीर्थंकर और राम सभी इक्ष्वाकु वंश से थे।

अयोध्या में श्रीराम का जन्म हुआ था, यह प्रमाणिक हो चुका है। मान्यता है कि श्रीराम जन्मभूमि का अन्वेषण राजा विक्रमादित्य ने किया था। चैत्र मास की रामनवमी को श्रीराम के जन्मोत्सव के अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहाँ प्रतिवर्ष आते हैं। श्रीराम जन्मभूमि के उत्तर पूर्व में कनक भवन स्थित है। ऐसी कथा प्रचलित है कि जब जानकी विवाह के पश्चात् अयोध्या आयीं तो महारानी कैकेयी ने कनक निर्मित अपना महल उनको प्रथम भेंट स्वरूप प्रदान किया था। महाराजा विक्रमादित्य ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।

Photo- Social Media

हनुमानगढ़ी

अयोध्या की महिमा में हनुमानगढ़ी का विशेष स्थान है। हनुमानगढ़ी का वर्तमान मन्दिर राजा टिकैतराय के नवाब मंसूर अली ने बनवाया था। मन्दिर में हनुमान जी की मूर्ति माता अंजनी की गोद में स्थापित है, जो स्वर्ण निर्मित है। ऊँचे स्थान पर स्थित इस मन्दिर तक 76 सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जाता है। मान्यता है कि यहाँ हनुमान जी सदैव वास करते हैं। अयोध्या आने वाले लोग श्रीराम के दर्शन से पूर्व भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। श्रद्धावानों में मान्यता है कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था। श्रीराम ने हनुमान जी को यह अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा।

इस मन्दिर के निर्माण के नेपथ्य में एक कथा प्रचलित है। सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था। एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे। रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गईं। इसके पश्चात् नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया अपितु ताम्रपत्र पर लिखकर यह घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहाँ के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। बावजूद इसके इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं, परन्तु कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप में रहा वह हनुमान टीला है जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है।

Photo- Social Media

संजीवनी बूटी के पर्वतखण्ड को

यहाँ मणि पर्वत भी है। ऐसा विश्वास है कि हिमालय से संजीवनी बूटी के पर्वतखण्ड को लेकर लंका जाते हुए हनुमान जी ने पर्वतखण्ड को रखकर यहाँ विश्राम किया था। बौद्ध जनश्रुति के अनुसार महात्मा बुद्ध ने इसी स्थान पर छह वर्षों तक कठिन तप किया था। अयोध्या में ब्रह्म-कुण्ड, तुलसी चौरा, रामघाट, कौशल्या भवन, सीता रसोई, सीताकूप, कैकेयी भवन, लव-कुश मन्दिर, लक्ष्मण किला आदि दर्शनीय हैं। अयोध्या के समीपवर्ती तीर्थों में मखौड़ा (मख भूमि), नन्दिग्राम (भरतकुण्ड), सूकर खेत (गोण्डा), श्रृंगी ऋषि आश्रम, बालार्क तीर्थ (सूर्य कुण्ड) भी प्रमुख हैं।

अयोध्याकी परिक्रमाएं भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। यहाँ की प्रमुख परिक्रमाएं हैं- चौरासी कोसी परिक्रमा, चौदह कोसी परिक्रमा, पंचकोसी परिक्रमा तथा अर्न्तगृही परिक्रमा। चौरासी कोसी परिक्रमा चैत शुक्ल रामनवमी को प्रारम्भ होती है। चौदह कोसी परिक्रमा कार्तिक शुक्ल नवमी या अक्षय नवमी पर की जाती है। पंचकोसी परिक्रमा का महत्व कार्तिक एकादशी को की जाती है। नित्य प्रति होने वाली परिक्रमा को अर्न्तगृही परिक्रमा कहा जाता है।

अयोध्या के लगने वाले मेले भी उल्लेखनीय हैं। यहाँ के प्रमुख मेलों में- चैत्र रामनवमी, सावन झूला मेला, कार्तिक पूर्णिमा, श्रीराम विवाहोत्सव, रामायण मेला, भरत कुण्ड मेला, सूकर क्षेत्र का मेला, मखभूमि या मखौड़ा का मेला, गुप्तार घाट का मेला, बालर्क तीर्थ का मेला आदि प्रमुख हैं।

अयोध्या ने अपनी यात्रा में कई पड़ाव देखें हैं। इसने वेदना भी सही है और सुख के पलों का आनन्द भी लिया है। अयोध्या का जब भी स्मरण किया जाएगा, तब-तब 6 दिसम्बर, 1992 की तिथि को भी याद किया जाएगा। अयोध्या के इतिहास का यह सच बार-बार लोगों द्वारा रेखांकित किया जाएगा। इसी क्रम में उपजे विवाद के कालखण्ड में आयोध्या के इतिहास में एक पल ऐसा भी आया जब देश की सर्वोच्च पीठ ने अयोध्या विवाद पर पूर्णविराम लगाया। 9 नवम्बर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या विवाद के बहुचर्चित मामले में 40 दिन की सुनवाई के बाद 161 वर्ष पुराने कानूनी विवाद का निपटारा किया था । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या विवाद का यह निर्णय 1045 पृष्ठों में दिया गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। फैसला 5-0 के बहुमत से हुआ। निर्णय देने वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण व न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल थे।

Photo- Social Media

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

इस मुकदमें के मुख्य वादी रामलला विराजमान थे। सर्वोच्च न्यायालय ने केस के वादी रामलला विराजमान अर्थात् राम के बाल रूप को मालिकाना हक देते हुए 2.77 एकड़ विवादित भूमि प्रदान की । यह भूमि राम मंदिर बनवाने के सरकार संचालित ट्रस्ट को दी गई । निर्णय में मंदिर निर्माण के लिए 03 माह में ट्रस्ट के गठन का निर्देश दिया गया था। फैसले में मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही किसी प्रमुख स्थल पर मस्जिद बनाने के लिए पाँच एकड़ भूमि दी गई। पाँच एकड़ भूमि चयनित कर उस मुस्लिम पक्ष को सौंपने की जिम्मेदारी केन्द्र व राज्य सरकार को दी गई। निर्णय में निर्मोही अखाड़े को रामलला की मूर्ति का उपासक नहीं मानते हुए उसका दावा खारिज हुआ। शिया वक्फ बोर्ड के विवादित ढांचे पर दावे को भी सर्वोच्च न्यायालय ने नहीं माना। अयोध्या विवाद में फैसले तक पहुँचने के लिए संविधान पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को अहम आधार बनाया था ।

Photo- Social Media

अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन

उपर्युक्त निर्णय के पश्चात् अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ और अयोध्या के नागरिक राम मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होते देखने के साक्षी बने। लोगों में आस जगी है। अथर्ववेद के मंत्र का यह अंश अर्थात् इसका हिरण्यमय कोष और प्रकाश से ढका हुआ स्वर्ग, सबको दृश्यमान होगा, ऐसी उम्मीद है। इसी आस के साथ वर्तमान में अयोध्या विकसित होकर अत्यन्त भव्य रूप में दर्शनीय हो गया है। यहाँ अनेक नई परियोजनाओं ने अपने को पूर्ण कर इसे सँवारा है, भव्यता प्रदान की है। यहाँ का रेलवे स्टेशन पुनर्विकसित होकर “अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन” का नाम पाकर पुलकित है। यहाँ के ऐतिहासिक प्रवेश द्वार संरक्षित होकर अपने सौन्दर्य को निहार रहे हैं। यहाँ एक अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे ने अपना विस्तार ले लिया है। इसका नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर “महर्षि वाल्मीकि अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अयोध्या धाम” रखा गया है। इस हवाई अड्डे का उद्घाटन 30 दिसम्बर, 2023 को हुआ। स्पष्ट है कि अयोध्या ने अपने नागरिकों को एक नया वातावरण दिया है। यहाँ भाईचारे का रामराज्य स्थापित होगा, यह उम्मीद है । देश-विदेश के लोग यहाँ पधारकर स्वयं को धन्य करेंगे, ऐसा विश्वास है। विश्वास है यहाँ के नव-निर्माण पर्यटकों को आकर्षित जरुर करेंगे और लुभायेंगे भी । प्रभु श्रीराम सबको सद्बुद्धि दें और अपने आदर्शों पर चलने की प्रेरणा भी ।

(लेखक--डॉ. सूर्यनारायण पाण्डेय, वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)



\
Shashi kant gautam

Shashi kant gautam

Next Story