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Diwali 2024: इस दीवाली किसकी जोत जलाएं?

Diwali 2024: भारतीय दर्शन में अग्नि से जगत की उत्पत्ति मानी गई है। आग का उपयोग लगभग दो मिलियन साल पहले शुरू हुआ। लगभग 400,000 साल पहले तक इसका लगातार उपयोग किया जाता था।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 29 Oct 2024 11:45 AM IST
Diwali 2024
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Diwali 2024   (photo: social media )

Diwali 2024: अँधेरे पर प्रकाश की विजय। लंका विजय के उपरान्त भगवान श्री राम का अयोध्या आगमन। माता लक्ष्मी के पूजन का पर्व। धन-धान्य की अर्चना का त्यौहार। दीवाली के अनेक रूप हैं। हों भी क्यों न, ये हमारा सबसे बड़ा पर्व जो है। जितनी रोशनी दीपावली पर होती है, जितनी खुशियाँ इस त्यौहार पर मनाई जातीं हैं, जो जो जतन इस पर्व के लिए किये जाते हैं, उतने शायद ही दुनिया में कहीं भी किसी पर्व पर किये जाते हों। हम अनादिकाल से पूरी श्रद्धा और शिद्दत से दीवाली का पर्व मनाते आये हैं।

भारतीय दर्शन में अग्नि से जगत की उत्पत्ति मानी गई है। आग का उपयोग लगभग दो मिलियन साल पहले शुरू हुआ। लगभग 400,000 साल पहले तक इसका लगातार उपयोग किया जाता था। होमो इरेक्टस का नाम आग की खोज से जुड़ा हुआ है। इसने पाषाण युग से कांस्य युग में मानव सभ्यताओं को आगे बढ़ाने में मदद की।अग्नि ज्योति का केंद्र है। ज्योति बहुलार्थी, बहुआयामी और कहीं वृहत्तर संकल्पना हैं। ऋग्वेद में ज्योति है। सभी धर्म ग्रंथों में ज्योति की महत्ता व्याख्यायित हैं। बुद्ध का- ‘अप्प दीपों भव:’, आर्य मनीषियों को ‘ज्योतिषमान भव:’ ज्योति की स्वीकृति है। ईश्वर भी ज्योतिर्मय हैं। दीप का जलना- ‘तमसो माँ अमृतगमय’ की प्रार्थना को चरितार्थ करता है। हम चाहे जितने अन्धकार में क्यों न रहे हों, जितनी काली - स्याह रातें क्यों न गुजार रहे हों । लेकिन दीवाली पर एक उम्मीद का दीया जरूर जलाते हैं। यही दीया अगली दीवाली तक हमें जिलाए रखता है।

चाँद और मंगल अब हमारी जद में

फिर वही दीया प्रज्जवलित करने का समय आया है। घर घर में एक उम्मीद की जोत जलाने का अवसर है। ये दीया दिल में इसी भरोसे और लगन के साथ रोशन करना होगा कि कालिमा दूर होगी। जरूर होगी। दीवाली पर दीया तो हम अनंत काल से जलाते आये हैं। आगे भी जलाते रहेंगे। लेकिन इसे सिर्फ परम्परा और अनुष्ठान से आगे ले जाना होगा, इसे उम्मीद की अनवरत जलने वाली अखंड ज्योत बना होगा।

कितनी ही उम्मीदें हमारे सामने हैं। कितनी ही गर्व की बात है कि चाँद और मंगल अब हमारी जद में हैं, हम दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकतों की लिस्ट में शुमार हैं, टेक्नोलॉजी से लेकर सॉफ्टपावर तक में हम अग्रणी हैं, दुनिया के शीर्षस्थ अमीर हमारे यहाँ हैं। हम अपना अनाज खुद उगाते हैं, हम किसी पर निर्भर नहीं हैं। हम दुनिया की सबसे बड़ी मानव शक्ति हैं।

हम बहुत कुछ हैं। हम शिखर पर पहुँचने की राह पर हैं। कितनी बड़ी उम्मीदें हैं हमारे सामने इस दीवाली । लेकिन तमाम आस्था और अनन्य दृढ़विश्वास के साथ जब आप उम्मीद का दीया जलाने चलेंगे तो हाथ कांपेंगे भी जरूर। बहुत कुछ याद आयेगा जो परेशान कर देगा।


धनतेरस पर जगमगाते ज्वेलरी शोरूम

जब आपके ज़ेहन में उन तमाम परिवारों की तस्वीर उभरेगी जिनके जवान बेटों को आपके शहर की जांबाज़ पुलिस पकड़ ले गयी थी। कुछ ही घंटों में वे थाने की स्याह कोठरियों में लाश बन गए। आपकी आस्था डगमगायेगी जरूर जब आपको याद आयेगा कि कैसे हर रोज आपके ही शहर की सड़कों पर कितने ही लोग बड़े वाहनों के पहियों तले कुचल कर खत्म हो जाते हैं। आपका मन उदास जरूर होगा जब आप धनतेरस पर बाज़ार जायेंगे और भीड़ से ठसाठस भरे जगमगाते ज्वेलरी शोरूम को निहारते हुए किसी फुटपाथ से कटोरी चम्मच खरीद ले आएंगे। आपका दिल रोयेगा भी जब दुकानों से आलीशान कारों में ड्राईफ्रूट्स और मिठाइयों के डिब्बे पैक हो रहे होंगे और आप उसी दूकान के सामने खड़ी वैन के आगे सरकारी सस्ते प्याज और चना दाल के लिए लाइन लगाये होंगे। आपका विश्वास डिगेगा जब आप अस्पतालों में बेजार लोगों की बेशुमार लम्बी लाइनें देखेंगे। आपका दिल बैठ जाएगा जब आप मच्छरों से हारती जिंदगियों के बारे में सोचेंगे। आपका मन टूटेगा जब आप इस पावन पर्व पर दिल्ली-मुम्बई से आती ट्रेनों में भूसे की तरह भरे यात्रियों को देखेंगे। आप अपने आप से सशंकित होंगे जब आप पढ़ेंगे कि किस तरह लाखों-करोड़ हमवतन किसी भी तरह जान छुड़ा कर विदेश भागने को आतुर हैं। आपका मन असहनीय वितृष्णा से भर जाएगा जब आपको याद आयेगा कि किस तरह खाने की चीजों में क्या क्या मिलाया जा रहा है।

उदास होने, नाउम्मीद होने और अवसादित होने को कितनी ही चीजें गिनाएं, लफ्ज़ कम पड़ जायेंगे। अब कोई खबर हैरान नहीं करती, कोई वाकया नया नहीं लगता, हम इतना कुछ सुन – देख – महसूस कर चुके हैं कि लगता है अब हम इंसान ही नहीं रहे कुछ और में तब्दील हो चुके हैं।


इस दीवाली एक दीया अपने लिए भी करे प्रज्ज्वलित

हम फिर भी दीवाली मनाएंगे, छठ पर्व भी मनाएंगे। क्योंकि हम आस्था वाले लोग हैं, हमें अपने आराध्यों पर भरोसा है। वही भरोसा हमें ज़िंदा रखे हुए है। लेकिन इस दीवाली एक दीया अपने लिए प्रज्ज्वलित करिएगा। नाउम्मीदी के लफ़्ज़ों की अंतहीन फेहरिस्त को कोई काट सकता है तो वह सिर्फ आप और हम। कोई मसीहा नहीं आने वाला। हमें ही मसीहा बनना होगा। हमीं ने सब कुछ बिगाड़ा है। ठीक करने की भी जिम्मेदारी भी हमीं की है। किसी और को दोष नहीं दे सकते। जो कोई भी, जो कुछ कर रहा है वो हमारे बीच से ही पनपा है। उसको पोषित भी हम ही कर रहे हैं। इस दीवाली को जाया नहीं जाने देना चाहिए। इस पर्व के महत्त्व को सिर्फ एक रात की पूजा-अर्चना, उल्लास और मनोरंजन तक सीमित नहीं करना है। दीवाली को शानोशौकत, विलासिता और ऐश्वर्य के प्रदर्शन में नहीं बाँधना है। दीवाली को इन सबसे आजाद करना होगा, अमावास की स्थाई लगती रात को दूर भगा देना है। प्रण करना है कि जितनी स्याह रात होगी उतना ही अदम्य प्रकाश हम फैलायेंगे। हम हार नहीं मानेंगे, हमारे हाथ भले ही कांपें । लेकिन हम उम्मीद की ज्योत जरूर जलाएंगे और जलाये रखेंगे।


( लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार।)



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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