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Diwali Market 2023: ग़ुस्से में ये हम क्या कर रहे! इस बार तो 40 अरब रुपये का पटाखा बनाया दिया

Diwali Market 2023: न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया में जहाँ जहाँ भारतीय रह रहे हैं, उन सभी जगहों पर दीपवाली बड़ा बाज़ार बन गई है। अमेरिका, यूएई, ब्रिटेन हर जगह दीपावली की धूम है। बाजारों में रौनक है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 15 Nov 2023 2:21 PM IST
ग़ुस्से में ये हम क्या कर रहे!
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ग़ुस्से में ये हम क्या कर रहे! (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Diwali Market 2023: दीपावली, खुशियों, रोशनी और धूम धड़ाके का त्योहार है। अब इसमें बिग बिजनेस भी जुड़ गया है। क्योंकि न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया में जहाँ जहाँ भारतीय रह रहे हैं, उन सभी जगहों पर दीपवाली बड़ा बाज़ार बन गई है। सीधी सी बात है- महंगाई अपनी जगह। लेकिन त्यौहार अपनी जगह। अमेरिका, यूएई, ब्रिटेन हर जगह दीपावली की धूम है। बाजारों में रौनक है। दिवाली ने बहुत से रंग देखा है। यह भी देखा कि पच्चीस रुपये किलो प्याज़ के लिए लोग लाइन लगाये पड़े थे। यह भी देखा कि 41 टन सोने की देश भर में बिक्री हुई। जो पिछले साल से 12 टन ज़्यादा है।

यह भी देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा रखा था। पटाखा बनाने वाले शहर शिवकाशी में साठ अरब की जगह चालीस अरब रुपये के मूल्य का पटाखा इस साल बनाया गया। अकेले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो सौ करोड़ रुपये का पटाखा बिका। राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक AQI 500 के ऊपर निकल गया। देश के तमाम शहर हवा में दम घुटने और दृश्यता कम होने की स्थिति से गुजरे। ध्वनि प्रदूषण के तो आँकड़े ही सार्वजनिक नहीं होने दिये जा रहे हैं। पटाखा बनाने के काम से आठ लाख परिवार सीधे तौर से जुड़े हैं। पटाखा का ज्ञात इतिहास 1400 ईस्वी के आसपास से मिलना शुरू होता है, यह वह समय है जब युद्ध में बारूद का इस्तेमाल शुरू हुआ।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दिवाली पर ऐसा रहा कारोबार

ऑल इंडिया ज्वेलर्स एंड गोल्डसमीथ फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज अरोड़ा ने बताया कि देश भर में सोने-चाँदी एवं अन्य वस्तुओं का लगभग 30 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। यह भी देखा कि सत्ताइस रुपये किलो की दर वाला सरकारी भारत आटा ख़रीदने के लिए लोग दुकान दुकान घूम रहे थे। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि धनतेरस-दिवाली के लिए सजे बाजारों में उम्मीद से ज्यादा भीड़ दिखी। माहौल अच्छा रहा। इस बार देशभर के खुदरा बाजारों में करीब दो लाख करोड़ रुपये तक कारोबार होने की उम्मीद रही। पिछले साल धनतेरस-दिवाली पर खुदरा बाजारों में 1.50 लाख करोड़ रूपये का कारोबार हुआ था। इसके अलावा, 1,000 करोड़ रुपये के बर्तन और 1,000 करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद बिकने का अनुमान लगाया जा रहा है। पहली बार 10 लाख से ज्यादा गाड़ियों को बेचने का लक्ष्य रखा गया था। जबकि पिछले त्योहारी सीजन में कंपनियों ने 9.4 लाख गाड़ियां बेची थीं। इस सीजन में आम तौर पर, हाई-एंड गाड़ियों और कम बिकने वाले मॉडल्स पर ज्यादा छूट दी गयी। पॉपुलर मॉडल्स पर कम छूट मिली। इन गाड़ियों से निकलने वाला धुआं अगले साल फिर एयर इमेंरजेंसी कुछ जल्दी ही लेकर आयेगा।

अमेरिकी व्यापारी भी तेजी से अपना रहे ये त्योहार

जुलाई में किए गए पिंटरेस्ट-जीडब्लूआई वैश्विक शोध अध्ययन से पता चला है कि ‘दिवाली उत्सव’ शब्द की खोज में साल दर साल 60 फीसदी की वृद्धि हुई है। मतलब कि ऑनलाइन सर्च में दीपावली शब्द अब काफी प्रचलित हो चला है। शायद इसीलिए अमेरिकी व्यापारी दीपावली यानी रोशनी के त्योहार को इसकी व्यावसायिक संभावनाओं के कारण तेजी से अपना रहे हैं।

इस साल दीपावली पर राम लला के शहर में रिकार्ड दिये जला कर हमने फिर गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाया। यह भी देखा कि सेक्स एजुकेशन की बात कितने अनगढ़ और क्रूड तरीक़े से एक मुख्यमंत्री सदन में बोलते हैं। और ऐसे गंभीर विषय पर भी माननीय लोग उसी सदन में हंसी ठहाका करते हैं। वहीं पर हमारी ऐथिक्स कमेटी के सामने एक महिला सांसद रोती है। वहाँ पर भी इसी नैतिकता के सवाल पर घेराबंदी की जाती है।

(सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मुफ़्त सामान देने के वादों की लगी होड़

लखनऊ के एक बाज़ार में ठेला लगाये एक दुकानदार बताता है कि इस साल बिक्री ही नहीं हुई। वहीं चुनावी मौसम में मुफ़्त सामान देने के वादों की होड़ भी लगी हुई है। रेवड़ियाँ बाँटना अब गये समय की बात हो गयी है। अब राजनीतिक दलों ने पाँचों राज्यों के चुनाव में रसगुल्लों की झड़ी लगा दी है। जीत गए तो मुफ्त सिलेंडर देंगे, मुफ्त लैपटॉप देंगे, मुफ्त बिजली देंगे, गोबर खरीदेंगे, पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करेंगे, क़र्ज़ माफ़ी, दवाई, पढ़ाई,खिलाई सब फ़्री और घर पहुंचवाई भी ... वगैरह वगैरह।

जेबें कंगाल हैं, रसोइयाँ ठनठन गोपाल हैं। जब आटा-प्याज खरीदने की हैसियत न बची हो तो गोबर खरीद और मोबाइल-लैपटॉप सरीखी मुफ्त की रेवड़ी दिखाना लाजिमी है। सो, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में जनता पर राज करने को लालायित राजनीतिक पार्टियों ने बोरे भर-भर के चुनावी वादे किये हैं। लेकिन हमारा दुर्भाग्य – किसी ने यह वादा नहीं किया कि ऐसा कुछ कर देंगे कि अबसे रेवड़ियों की नौबत नहीं आने देंगे।

हमने यह भी देखा कि माननीयों के खिलाफ मुकदमों की सुनवाई के लिए बनाई गई कोर्ट कितने लचर तरीक़े से काम कर रही हैं कि सर्वोच्च अदालत को भी उनके लिए आदेश देना पड़ रहा है।दिवाली पर हमने यह भी देखा कि इस्राइल और फ़िलिस्तीन के झगड़े में हम तय नहीं कर पा रहे हैं कि हमें किधर जाना है?

पराली का धुआँ कैसे रुकेगा यह न तो आप तय कर पा रहे हैं और न तो हम तय कर पा रहे हैं। अमेरिका में घुसपैठ करने के लिए सत्तर अस्सी लाख रुपये देकर अपने देश की बुराई करने को हम जायज़ समझ रहे हैं।

अब इसका आंकलन करना हमारा काम

अब नये साल की तैयारी है। तमाम देशों को भारतीय पर्यटक चाहिए। उन्होंने वीज़ा फ्री इंट्री खोल दी है। ताकि भारतीय दूसरे देशों में भी लाखों खर्च करें। अब उन देशों को अपने यहाँ दिवाली का बाज़ार सजने की उम्मीद हुई है। यह दिवाली तो बीत गई। अब अगली दिवाली पर कितने टन सोना बिकेगा, भारत आटा के बजाये और कौन सी चीज़ सरकार बेचेगी। पटाखों पर प्रतिबंध के बदले के ग़ुस्से में हम और कितना धुआँ फैलायेंगे। अब इसका आंकलन करना हमारा आप का ही काम है।

(लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)

Shreya

Shreya

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