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Risk in Selfie: सेल्फी लो मगर ध्यान से

No Risk for Selfie: 2011 से 2017 तक 259 लोग सेल्फी लेने की चक्कर में अपनी जान गवां बैठे हैं। यह आंकड़ा सालों-साल बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में सेल्फी के कारण होने वाली मौतों में भारत सबसे आगे है।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 21 Jan 2024 5:54 PM GMT
Risk in Selfie: सेल्फी लो मगर ध्यान से
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No Risk for Selfie: गुजरात के वडोदरा शहर के बाहरी इलाके में स्कूली बच्चों को सैर कराने ले जा रही नाव हरणी मोटनाथ झील में पलट गई। इस हादसे में 12 छात्रों और दो शिक्षकों की मौत हो गई, जबकि 18 छात्रों और दो शिक्षकों को बचा लिया गया।

कहा जाता है कि नाव में क्षमता से अधिक लोग सवार थे। स्कूली बच्चे नदी पर पिकनिक मनाने आए थे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि सेल्फी लेने के लिए सभी बच्चे और शिक्षक नाव में एक ओर पहुंच गए। इससे नाव बेकाबू होकर पलट गई। नाव में सवार बच्चे और शिक्षकों ने लाइफ जैकेट भी नहीं पहनी थी। उनकी आवाज सुनकल आस-पास के लोग बचाने के लिए दौड़े। यह वह हादसा था जिसे होने से रोका जा सकता था। क्या हाल होगा उन बच्चों के माता-पिता का जिनके बच्चे बड़े ही शौक से अपने हमउम्र दोस्तों के साथ पिकनिक पर गए होंगे। बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है शिक्षकों की, जिन पर विश्वास कर माता-पिता अपने बच्चों को उनके साथ कहीं बाहर भेजते हैं। जो बच्चे और शिक्षक उस हादसे में बच गए, वे बहुत भाग्यशाली हैं। नाव दुर्घटना के एक दिन बाद शुक्रवार को एक ठेकेदार के प्रबंधक समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया। नाव चालकों को गिरफ्तार कर लिया गया। मामले में कोटिया प्रोजेक्ट्स के साझेदारों सहित 18 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) और 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) के तहत प्राथमिकी दर्ज की।

Photo: Social Media


आखिर क्यों होती है इस तरह की घटनाएं बार-बार?

हम किसी लापरवाही से कभी भी सबक नहीं ले पाते हैं। हमारे सामने घटती बार-बार इस तरह की लापरवाहियां भी हमारी आंखें खोलने के लिए काफी नहीं होती हैं। यह एक अकेला किस्सा नहीं है जहां सेल्फी लेने के चक्कर में इतनी जान एक साथ गई हों। आए दिन पढ़ते हैं, सुनते हैं कि सेल्फी लेने के चक्कर में पैर फिसला, सेल्फी लेने के चक्कर में युवक गाड़ी के नीचे आ गया या कुछ और इस तरह की घटनाएं। सेल्फी लेने के चक्कर में लड़ाई-झगड़ा, वाद -विवाद, मारपीट तक हो जाती है। सबसे पहली गलती उन नाव चालकों की, जिन्होंने क्षमता से अधिक बच्चों को नाव में बैठाया। इस तरह की घटनाएं हमेशा ही एक बड़ी दुर्घटना के रूप में हमारे सामने आती रही हैं। चाहे बिहार हो या चाहे असम की नदियां हों।

जब-जब क्षमता से अधिक लोगों को नाव में बैठाया गया है, एक बड़ी दुर्घटना घटी ही है। नाव की ही बात क्यों ,सड़क पर चलने वाली बस में भी जहां क्षमता से अधिक यात्री बैठे हों, उससे भी दुर्घटनाएं घटित होती हैं। दूसरी गलती शिक्षक की जिनके जिम्मेदारी पर बच्चों को भेजा जाता है। वहां बच्चों के निर्णय से अधिक महत्वपूर्ण निर्णय खुद शिक्षक के होते हैं, क्योंकि उस समय वही वहां पर निर्णय ले रहा होता है। अविवेकी निर्णय हमेशा दुखांत पर ही समाप्त होते हैं। तीसरी गलती उन बच्चों की, जिनका सेल्फी लेना इतना भारी पड़ा की एक साथ 14 जानें चली गईं। बच्चों को हमेशा जब भी बाहर पिकनिक पर या समूह में भेजा जाए उन्हें बहुत समझा कर भेजा जाए कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। यह माता-पिता और शिक्षक दोनों की ही जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अच्छे से समझा कर कहीं बाहर लेकर जाएं।

Photo: Social Media


अभी पिछले दिनों एयरपोर्ट पर देखा कि एक विद्यालय के बच्चे किसी स्पोर्ट्स मीट में हिस्सा लेने आए हुए थे। बच्चों के शिक्षक बार-बार बच्चों को चेक कर रहे थे, उनकी गिनती कर रहे थे, उनका सामान चेक कर रहे थे और अलग-अलग छोटे-छोटे समूह में उनको एक-एक शिक्षक के साथ भेज रहे थे। कोई भी पिकनिक सिर्फ मौज- मस्ती के लिए ही नहीं होती है। पिकनिक एक तरह का प्रबंधन होता है जिसको ठीक से और सुरक्षित तरीके से पूरा करने के लिए सभी कोर वर्कर्स का आपस में सहयोग बहुत जरूरी होता है। जिस तरह से सुई , धागे और मोतियों के आपस में एक दूसरे के प्रति सहयोग के बिना एक माला अच्छी नहीं बन पाती है, वैसे ही एक पिकनिक तभी सफल होती है जब आप सुरक्षित जाएं, सुरक्षित वापस आएं और उस पिकनिक में सब कुछ व्यवस्थित और आनंदपूर्वक तरीके से सब संपन्न हो। एक स्कूल में पढ़ने वाले सब बच्चे अलग-अलग संस्कृतियों से आते हैं, अलग-अलग विशेषताओं को लिए हुए आते हैं। कुछ बच्चे बदमाश होते हैं, कुछ बच्चे तेज होते हैं, कुछ बच्चे समझदार होते हैं, कुछ अंतर्मुखी होते हैं। सबका अपना एक कोई विशेष गुण होता है, उन सभी गुणों को एक साथ बांधकर, एक साथ रखकर उनके बीच एक अच्छा समन्वय स्थापित कर किसी भी काम को पूरा करना यह शिक्षक की अपनी महती जिम्मेदारी होती है।

आज से कुछ साल पहले तक ना स्मार्टफोन का और न ही सेल्फी का इतना क्रेज था। स्मार्टफोन का प्रयोग इंटरनेट चलाने , वीडियो देखने , फोटो लेने के लिए किया जाता था।लेकिन आज जब फोन में 32 मेगापिक्सल के फ्रंट कैमरे मिलने लगे हैं, लोग सेल्फी के दीवाने हो गए हैं।

सेल्फी के चक्कर में जान देने से भी नहीं कतरा रहे लोग

इंडिया जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसीन एंड प्राइमरी केयर ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि 2011 से 2017 तक 259 लोग सेल्फी लेने की चक्कर में अपनी जान गवां बैठे हैं। यह आंकड़ा सालों-साल बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में सेल्फी के कारण होने वाली मौतों में भारत सबसे आगे है। 32 मेगापिक्सल के फ्रंट कैमरे मिलने लगे हैं, जबकि एक साधारण डिजिटल कैमरा में 16 मेगापिक्सल का लेंस मिल रहा है। वहीं सिर्फ 5 सालों में स्मार्टफोन का बाजार इतनी तेजी से बढ़ा कि आज लोग सेल्फी के चक्कर में जान देने से भी नहीं कतरा रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि सेल्फी स्टिक भी सेल्फी लेने से होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण है।

Photo: Social Media


यह एक जानी हुई बात ह कि महिलाएं अपनी फोटो खींचने की और खिंचवाने की बड़ी ही दीवानी होती हैं। सेल्फी ने उनका यह काम बहुत आसान कर दिया है। लेकिन महिलाएं सेल्फी के चक्कर में अपनी जान जोखिम में नहीं डालती हैं। हां जो युवक हैं, बच्चे हैं या पुरुष वर्ग है वह सेल्फी के चक्कर में अपनी जान भी जोखिम में डालने से बाज नहीं आता है। रिपोर्ट में सेल्फी से होने वाली मौत को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जिनमें डूबने, दुर्घटनाग्रस्त होने और ऊंची जगह से गिरना शामिल है। सेल्फी से होने वाली मौत को ध्यान में रखते हुए गोवा, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों के कई इलाकों को नो-सेल्फी जोन में भी तब्दील कर दिया गया है।

अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि जैसे एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, वैसे ही वही कैमरा, सेल्फी स्टिक और सेल्फी यह हमारे लिए किस अर्थ में अधिक महत्वपूर्ण है। हम चाहे तो उनका अच्छी तरह से सदुपयोग कर सकते हैं। हम चाहे तो उनको गलत तरीके से प्रयोग करके अपनी जान को भी जोखिम में डाल सकते हैं। फिलहाल आवश्यकता यह है कि हमेशा विवेकपूर्ण निर्णय लिए जाएं। बच्चों को बाहर भेजते समय सही-गलत की समझ विकसित की जाए, तभी हम इन हादसों से बच सकते हैं अन्यथा लापरवाही दर लापरवाही इस तरह के हादसों में कमी नहीं लाएगी बल्कि बढ़ाएगी ही बढ़ाएगी।

(लेखिका पूर्वोत्तर के अग्रणी हिंदी समाचार पत्र 'दैनिक पूर्वोदय' में छः वर्षों से नियमित रूप से साप्ताहिक स्तंभ लेखन कार्य। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और पुस्तकों में प्रेरक साहित्य लेखन, विशेष रूप से स्त्री विमर्श विषयों पर स्वतंत्र लेखन कार्य। काव्य रचना, साक्षात्कार, अनुवाद, समीक्षा आदि विधाओं में लेखन। दूरदर्शन गुवाहाटी, नार्थ ईस्ट लाइव आदि चैनलों एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कार्यक्रमों में सक्रिय उपस्थिति। ईमेल: anshusarda11@gmail.com)

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Started career with Jagran Prakashan and then joined Hindustan and Rajasthan Patrika Group. During her career in journalism, worked in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi.

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