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प्लास्टिक की बोतल का मत करें इस्तेमाल, जानें इससे है कितना नुकसान

सरकार का कहना है कि रोजाना 9 हजार टन प्लास्टिक रिसाइकल किया जाता है, हालांकि यह सही नहीं है। सही यह हैकि प्लास्टिक कचरे का बड़ा हिस्सा रिसाइकलिंग के बजाए कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है।

राम केवी
Published on: 22 April 2020 9:05 AM GMT
प्लास्टिक की बोतल का मत करें इस्तेमाल, जानें इससे है कितना नुकसान
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प्लास्टिक की बोतलों का कचरा

योगेश मिश्र

इन दिनों फैटी लीवर के चलते डॉक्टर अभय त्रिपाठी से आयुर्वेद की दवा लेनी पड़ रही है। वैसे एलोपैथ में जितनी दवाएं हैं, उनके साइड इफेक्ट ज़रूर हैं, इसलिए काफ़ी देखभाल और पड़ताल के बाद आयुर्वेदिक दवा लेना ही उचित समझा।

डॉक्टर मना कर रहे प्लास्टिक बोतल वापस लेने से

डॉक्टर अभय प्लास्टिक की बोतलों में मुझे अर्क देते हैं। कई महीनों से उनकी दवा ले रहा हूँ । हर बार उनको बोतल वापस करता हूँ । दवा लेने अक्सर मेरा चालक मोनू जाता है। हर बार आकर वह शिकायत करता है कि डॉक्टर साहब बोतल लेने से मना करते हैं। मैं मानने को तैयार नहीं होता।

मोनू बताता है कि वह कहते हैं कि बोतल वापस मत लाया करो । डॉक्टर साहब द्वारा मेरे चालक को लगातार कहीं जाने वाली यह बात गले नहीं उतरती थी ।क्योंकि बोतलों को वापस करने के एवज़ में मैं कोई डिस्काउंट भी नहीं चाहता था। आज जब चालक को दवा लाने भेज रहा था तो सोचा कि डॉक्टर साहब से बात कर लूं।

बोतल वापस करने के पीछे ये थी सोच

मैं तो सोचता हूँ कि इस बोतल को बनाने में जो भी खनिज तत्व लगे होंगे और अगर बोतल का मल्टिपल यूज हम कर सकेंगे तो राष्ट्रीय बचत में हमारी हिस्सेदारी होगी।

हम उस बोतल को कूड़ेदान में फेंकने के सिवा कोई उपयोग नहीं कर सकते हैं। डॉक्टर साहब ने बोतल न लेने की जो वजह बतायी वह मेरी समझ में ऐसी है कि हमें लगता है आपके साथ उसे शेयर करना चाहिए ।

कांच की शीशी वापस ले सकते हैं प्लास्टिक की शीशी नहीं

डॉक्टर साहब ने बताया कि बोतल अगर शीशे की होती तो हम उसे वापस ले सकते थे। अगर आप कहें तो आपको हम शीशे की बोतल में दवा दे दिया करें। यह जो बोतल है इसका दूसरी बार उपयोग संभव नहीं है क्योंकि इसे दोबारा उपयोग में लाने के लिए गरम पानी से साफ़ करना ज़रूरी है।

गर्मपानी डालते ही यह विशेष क़िस्म की प्लास्टिक पिघल जाती है, साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी कि जब से बाबा रामदेव आयुर्वेद की दुनिया में उतरे हैं, तब से ही आयुर्वेद में शीशे की बोतलों की जगह प्लास्टिक की बोतलें उपयोग की जानी लगी हैं।

प्लास्टिक बोतलों की शुरुआत बाबा रामदेव ने की

डॉक्टर ने यह भी बताया कि मैं तो आपको प्लास्टिक की बोतल में केवल अर्क दे रहा हूँ परंतु बाबा रामदेव और अब दूसरे सभी आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादक और विक्रेता आसव और अरिष्ट जैसी दवाएँ भी प्लास्टिक की बोतल में ही दे रहे हैं।

अर्क तो प्लास्टिक की बोतल में कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, वैज्ञानिक रिएक्शन नहीं करता। लेकिन आसव और अरिष्ट प्लास्टिक की बोतल में वैज्ञानिक रिएक्शन भी करते हैं।

हमारे यहाँ घरों में जो अचार डाला जाता है, जो सिरका बनाया जाता है, इन सबके लिए शीशे का बर्तन ही इस्तेमाल होता है। लेकिन इन आयुर्वेदाचार्यों को जाने क्या हो गया है। जबकि इनसे यह जानने की उम्मीद की जानी चाहिए कि दवा तो छोड़िये प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना भी ख़तरनाक है।

प्लास्टिक की बोतल से तो पानी पीना भी खतरनाक है

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि प्लास्टिक की बोतल में चाहे वह पानी की बोतल हो याफिर कोल्डड्रिंक की बोतल। इससे पानी पीना और खाना सेहत के लिए जानलेवा हो सकता है।

ये बोतलें polyethylene terephthalate (PET) से बनती हैं। ज़्यादा तापमान होने पर या पानी के गरम होते ही बोतल में से कई खतरनाक हानिकारक तत्व निकलते हैं , जो पानी के साथ पेट में पहुंच जाते हैं।

इन बोतलों में पानी पीने से हो सकती हैं ये बीमारियां

इससे कैंसर, डायबिटीज, ऑटिज्म जैसी कई खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं। यह दावा न्यूयॉर्कयूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में किया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक प्लास्टिक बोतल मेंइंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल (ईडीसी) जैसा रसायन होता है , जो शरीर के हार्मोनल सिस्टम कोनुकसान पहुंचाते हैं।

प्लास्टिक की बोतलों में ये रसायन है जानलेवा

मुख्य शोधकर्ता व प्रोफेसर लियोनार्डो ट्रासेंडे के मुताबिक, प्लास्टिक के बोतल में पाया जाने वाला रसायन ईडीसी स्वास्थ्य के लिए जानलेवा है। इससे होने वाली बीमारियों से बचाव में सिर्फ अमेरिकामें हर साल 2300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते हैं।

ईडीसी के कारण स्नायुतंत्र संबंधी बीमारियों सहित एकाग्रता में परेशानी, सोचने-समझने की क्षमता में भी कमी आना, दिमागी असंतुलन होना, ऑटिज्म, कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, पुरुषों में बांझपन और महिलाओं में गर्भाशय संबंधी बीमारियों के साथ साथ हार्मोनल डिसआडर होने की आशंका बढ़ जाती है।

प्रभाव जांचने के लिए की गई ये रिसर्च

शोधकर्ताओं ने इस रयासन के प्रभाव को जांचने के लिए 5000 लोगों के खून और यूरिन का सैंपललिया था।ये वो लोग थे जो प्लास्टिक के बोतल में पानी पीते थे।

फिर इनके विश्लेषण के लिए वैज्ञानिकों ने एक कंप्यूटर मॉडल विकसित किया। जिससे यह पता लग सके कि ईडीसी से किन बीमारियों का खतरा रहता है। ये आंकड़े वर्ष 2009 से 2015 के बीच अमेरिका के नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एक्जामिनेशन सर्वे ने जुटाए थे।

टॉयलेट सीट से ज्यादा होते हैं बैक्टीरिया

एक दूसरा अध्ययन बताता है कि प्लास्टिक की बोतलों में पाए जाने वाला बैक्टीरिया किसी सामान्य टॉयलेट सीट पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया से कहीं ज़्यादा होते हैं। यानि प्लास्टिक बोतल में पाए जाने वाले 60 प्रतिंशत कटाणु लोगों को बीमार करने के लिए काफ़ी हैं।

प्लास्टिक की बोतल में ये दूसरा रसायन भी खतरनाक

प्लास्टिक बोतल में पानी रखने से हार्ट डिजीज का ख़तरा होता है, पैदा हुए बचे को कई बीमारियों काखतरा, गर्भवती महिला को खतरा, पेट में दिक़्क़त आदि ऐसी कई बीमारयां हैं, जिसके होने का खतरा निरंतर बना रहता है।

दरअसल, प्लास्टिक बोतल में BPA (बसफेनोल) नामक एक रसायन भी पाया जाता है, जिसका सेहत पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्लास्टिक की बोतलों में होते हैं ये जहरीले तत्व

प्लास्टिक बोतल का बार- बार इतेमाल करना कई तरह की महिला संबंधित समस्याओं का कारक हो सकता है, जैसे PCO पेट संबंधी समस्या,और कई अन्य बीमारियों के लिए कम घातक नहीं है। प्लास्टिक की बोतल में कोल्ड ड्रिंक्स का होना और पीना अभी कम हानिकारक नहीं है।

केंद्र सरकार के टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड ने पेप्सी और रोका कोला ब्रांड के कई कोल्ड ड्रिंक्स के बोतलों की जाँच की। इन सभी में एंटमनी, लेड, क्रोमियम , कैडिमयम और कपाउंड DEHP जैसे जहरीले तत्व का होना पाया गया था।

एक व्यक्ति पर बन रहा आधा किलो प्लास्टिक

पिछले 50 वर्ष में हमने अगर किसी चीज का सबसे ज्यादा उपयोग किया है तो वह है प्लास्टिक।इतना ज्यादा उपयोग किसी भी अन्य वस्तु का नहीं किया गया है।

1960 में दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था। आज यह मात्रा बढ़कर 300 करोड़ टन के पार हो चुकी है। यानी लगभग हर व्यक्ति के लिए करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है।

भारत समुद्र में बहाता है दुनिया का 60 फीसद कचरा

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक काकूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60 प्रतिशत हिस्सा भारत डालता है।

भारतीय रोजाना 15000 टन प्लास्टिक को कचरे के रूप में फेंक देते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जंतुओं की मौत हो जाती है।

सैकड़ों साल लग जाएंगे ये कचरा साफ होने में

यह धरती के लिए काफी हानिकारक है। दुनियाभर के विशेषज्ञ कहते हैं कि जिस रफ्तार से हमप्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे वर्ष 2020 तक दुनियाभर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमाहो चुका होगा। इसे साफ करने में सैकड़ों साल लग जायेंगें।

भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किलोग्राम है, जो पूरी दुनिया के मुकाबले 28 किलोग्रामकम है, लेकिन यहां 15 हजार टन प्लास्टिक हर दिन इस्तेमाल में लाया जाता है।

सरकार का कहना है कि रोजाना 9 हजार टन प्लास्टिक रिसाइकल किया जाता है, हालांकि यह सही नहीं है। सही यह हैकि प्लास्टिक कचरे का बड़ा हिस्सा रिसाइकलिंग के बजाए कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है।

( लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के संपादक हैं)

राम केवी

राम केवी

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