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डाॅक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ

इस तरह की फीस के दम पर बने डाॅक्टरों से सेवा की उम्मीद करना निरर्थक है। इसका एक गंभीर दुष्परिणाम यह भी होगा कि गरीब, ग्रामीण और मेहनतकश तबकों के बच्चे डाॅक्टरी शिक्षा से वंचित रह जाएंगे।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 12 Nov 2022 7:08 AM GMT
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Representational Image (Source: Social Media)

Doctors in India: कर्नाटक और गुजरात के मेडिकल काॅलेजों ने गज़ब कर दिया है। उन्होंने अपने छात्रों की फीस बढ़ाकर लगभग दो लाख रु. प्रति मास कर दी है। याने हर छात्र और छात्रा को डाॅक्टर बनने के लिए लगभग 25 लाख रु. हर साल जमा करवाने पड़ेंगे। यदि डाॅक्टरी की पढ़ाई पांच साल की है तो उन्हें सवा करोड़ रु. भरने पड़ेंगे। आप ही बताइए कि देश में कितने लोग ऐसे हैं, जो सवा करोड़ रु. खर्च कर सकते हैं? लेकिन चाहे जो हो, उन्हें बच्चों को डाॅक्टर तो बनाना ही है। तो वे क्या करेंगे?

बैंकों, निजी संस्थाओं, सेठों और अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेंगे, उसका ब्याज भी भरेंगे और बच्चों को किसी तरह डाॅक्टर की डिग्री दिला देंगे। फिर वे अपना कर्ज कैसे उतारेंगे? या तो वे कई गैर-कानूनी हथकंडों का सहारा लेंगे या उनका सबसे सादा तरीका यह होगा कि वे अपने डाॅक्टर बने बच्चों से कहेंगे कि तुम मरीजों को ठगो। उनका खून चूसो और कर्ज चुकाओ।

इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए आजकल निजी अस्पतालों में जबर्दस्त लूट-पाट मची हुई है। उनके कमरे पांच सितारा होटलों के कमरों से भी ज्यादा सजे-धजे होते हैं। किसी मरीज़ की एक बीमारी के कारण का पता करने के लिए डाॅक्टर लोग दर्जनों 'टेस्ट' करवा देते हैं। और फिर दवाइयां भी ऐसी बता देते हैं, जिससे रोगी का रोग द्रौपदी का चीर बन जाए ताकि उससे मोटी राशि वसूली जा सके। हमारे डाॅक्टर अपना धंधा शुरु करने के पहले यूनानी दार्शनिक के नाम से चली 'हिप्पोक्रेटिक शपथ' लेते हैं, जिसमें आदर्श और नैतिक आचरण की ढेरों प्रतिज्ञाएं हैं। क्या वे उनका पालन सच्चे मन से कभी करते हैं?

उनके उल्लंघन से ही उनका पालन ज्यादातर डाॅक्टर करते हैं। उन डाॅक्टरों की पढ़ाई की यह लाखों रु. फीस इस उल्लंघन का सबसे पहला कारण है। हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर घोर आपत्ति की है। उसने एक याचिका पर अपना फैसला देते हुए कहा है कि जिन काॅलेजों ने अपनी फीस में कई गुना वृद्धि कर दी है, यह शुद्ध लालच का प्रमाण है। यह काॅलेज के प्रवेश और फीस-निर्णायक नियमों का सरासर उल्लंघन है।

इस तरह की फीस के दम पर बने डाॅक्टरों से सेवा की उम्मीद करना निरर्थक है। इसका एक गंभीर दुष्परिणाम यह भी होगा कि गरीब, ग्रामीण और मेहनतकश तबकों के बच्चे डाॅक्टरी शिक्षा से वंचित रह जाएंगे। वे इतनी मोटी फीस कैसे भरेंगे? नतीजा यह होगा कि हमारे डाॅक्टरों में ज्यादा वही होंगे, जिनके माता-पिता ऊँची जातियों के होंगे, मालदार होंगे, शहरी होंगे और शिक्षित होंगे। इस तरह के वर्गों से आनेवाले युवा डाॅक्टरों में सेवा का विनम्र भाव कितना होगा, इसका अंदाज आप स्वयं लगा सकते हैं।

Rakesh Mishra

Rakesh Mishra

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