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स्वास्थ्य का अधिकार, कब होगा सपना साकार

भारतवर्ष में "शिक्षा का अधिकार" और "सूचना का अधिकार" का कानून तो है, लेकिन "स्वास्थ्य का अधिकार" कानून नहीं है।

D.P.Yadav
Written By D.P.YadavPublished By Chitra Singh
Published on: 22 May 2021 4:44 PM IST (Updated on: 22 May 2021 4:49 PM IST)
right to health in india
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स्वास्थ्य का अधिकार (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

स्वास्थ्य किसी भी देश के विकास के महत्वपूर्ण मानकों में से एक है। उत्तम स्वास्थ्य वह अनमोल रत्न है जिसका मूल्य तब ज्ञात होता है, जब वह खो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं है बल्कि स्वास्थ्य एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक,सामाजिक और आध्यात्मिक खुशहाली की स्थिति है।

अगर भारत देश में "स्वास्थ्य का अधिकार" का कानून होता तो सरकार की यह जिम्मेदारी हो जाती कि मरीजों का बेहतर और समय पर इलाज किया जाए, जिससे अधिक से अधिक लोगों की जान बचायी जा सके और अस्पतालों की मनमानी पर रोक भी लगे। भारतवर्ष में "शिक्षा का अधिकार" का कानून और "सूचना का अधिकार" का कानून तो है, लेकिन "स्वास्थ्य का अधिकार" कानून अभी भी अस्तित्व में नहीं है या क्रियान्वित नहीं है। भारत में अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लोगों का इलाज करने और जिंदगी बचाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य नेटवर्क चाहिए, जो भारत में पूरी तरह से ध्वस्त है।

भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बहुत से गरीब देशों जैसे बांग्लादेश,नेपाल और घाना से भी कम है और डॉक्टर या अस्पताल बनाम मरीज का औसत विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने से भी बहुत नीचे है। भारत में निजी अस्पताल बेहद महंगे हैं, खास तौर पर दवाओं और जांच की कीमत के नाम पर लोगों को एक बहुत बड़ा बिल,सर दर्द और गरीबी पकड़ाते हैं। ये सर्वविदित है कि हमारे देश में स्वास्थ्य का ढांचा कैसा है और सरकार लोगों के स्वास्थ्य के प्रति कितना गंभीर है, रही सही कलई कोरोना महामारी ने खोल दिया है।

लूट के अड्डे बने गए अस्पताल

कोरोना महामारी में यह साफ दिखाई दे रहा है कि किस प्रकार से अस्पताल लूट के अड्डे बन गए हैं और महंगे इलाज के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं।स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति को देखते हुए क्या आपको लगता है कि स्वास्थ्य सेवा सरकार की प्राथमिकता में है, बिल्कुल नहीं है। हमारे देश में अस्पतालों के मनमाने रवैये से लगभग हर किसी को दो-चार होना पड़ता है और नाजुक मौके पर होने वाली लापरवाही से लोगों की जान भी चली जाती है।हमारे संविधान ने जीने का अधिकार तो प्रदान कर दिया है लेकिन स्वास्थ्य का अधिकार मिलना अभी बाकी है जिससे लोगों का समय पर समुचित इलाज हो सके।

अस्पताल (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार है,जीने के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार वर्णित है, लेकिन भारतीय संविधान के अंदर कहीं भी स्वास्थ्य के अधिकार (राइट टू हेल्थ)को एक मौलिक अधिकार के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है।हर मरीज को बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। 2015 में "स्वास्थ्य का अधिकार" के कानून को लेकर एक मसौदा तैयार किया गया था,लेकिन 2017 में बने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया। विश्व के लगभग 100 देशों के संविधान में "स्वास्थ्य का अधिकार" कानून है। इस मामले में भारत कई विकासशील देशों से भी पीछे है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने संविधान में कहा है कि "स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त मानक का आनंद जाति,धर्म,राजनीतिक विश्वास,आर्थिक या सामाजिक स्थिति के भेद के बिना हर मनुष्य के मौलिक अधिकारों में से एक है। "स्वास्थ्य का अधिकार" का अर्थ है कि सभी की उन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए जिनकी उन्हें आवश्यकता है। कोरोना काल में स्वास्थ्य के ऊपर खतरा कई गुना बढ़ा है।

भारत में हर साल करीब 4.6% लोग गरीब क्यों

हमें सरकार से पूछना चाहिए कि जब हम टैक्स भरने में कोई कोताही नहीं करते हैं ,हर बढ़े हुए टैक्स को हंसते-हंसते झेलते हैं। हमारी बचत पूरी तरह से सरकार के हवाले है, तो स्वास्थ्य पर खर्च और महंगे इलाज के कारण भारत में हर साल करीब 4.6% लोग गरीब क्यों हो जाते हैं।क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह बीमार लोगों के स्वास्थ्य को बचाए उनको स्वस्थ और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार दे।तो क्या अब समय नहीं आ गया है कि सभी लोग मिलकर के "स्वास्थ्य का अधिकार" के मांग को जन आंदोलन का रूप दें जिससे सरकार संविधान में व्यवस्था करे और सबको स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार दे।

(नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं)

Chitra Singh

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