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मेरे अग्रज डॉ. कृष्णमूर्ति का निधन

डॉ. जीवीजी कृष्णमूर्ति कल कौशांबी में दिवंगत हो गये, 86 वर्ष के थे। निर्वाचन आयोग प्रमुख टी.एन.शेषन के वे सहयोगी रहे।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shraddha
Published on: 15 April 2021 9:10 PM IST (Updated on: 15 April 2021 9:13 PM IST)
डॉ. जीवीजी कृष्णमूर्ति कल दिवंगत हो गये
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 डॉ. जीवीजी कृष्णमूर्ति कल दिवंगत हो गये फोटो - सोशल मीडिया

पूर्व चुनाव आयुक्त, मेरे फुफेरे भाई, डॉ. जीवीजी कृष्णमूर्ति कल कौशांबी (गाजियाबाद) में दिवंगत हो गये। वे 86 वर्ष के थे। निर्वाचन आयोग प्रमुख टी.एन.शेषन के वे सहयोगी रहे। आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के चीराला नगर में डॉ. कृष्णमूर्ति नियोगी विप्र कुटुम्ब में जन्मे थे। भारतीय विधि सेवा के आला अधिकारी रहे।

प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के डॉ. कृष्णमूर्ति सलाहकार थे। खासकर झारखण्ड के सांसदों के दलबदलू प्रकरण में। जब पराजित कांग्रेसी प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी ने इंदिरा गांधी के नामित वीवी गिरी के राष्ट्रपति चुनाव (1969) के विरुद्ध याचिका दायर की थी तो डॉ. कृष्णमूर्ति ने उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के कटघरे में स्वयं उपस्थित रहने की राय दी थी। हालांकि राज्यपाल और राष्ट्रपति को अदालती समन से संवैधानिक छूट मिलती है।

कृष्णमूर्ति ने शिवसेना की पार्टी के रुप में मान्यता निरस्त करने का निर्णय लिया

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को शिवसेना के संगठनात्मक निर्वाचन कराने का निर्देश डॉ. कृष्णमूर्ति ने दिया तो ठाकरे का उत्तर था कि ''शिवसेना में पदाधिकारी आजीवन रहते हैं। मेरे आदेश ही संविधान हैं।'' इस पर डॉ. कृष्णमूर्ति ने शिवसेना की पार्टी के रुप में मान्यता निरस्त करने का निर्णय लिया। तत्काल शिवसेना में पहली बार मतदान हुआ। चुनाव आयोग के समक्ष शेर मिमियाया।

डॉ. कृष्णमूर्ति प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के सलाहकार थे

डॉ. कृष्णमूर्ति के साथ एक विडंबना भी हुई। गत आम चुनाव में गाजियाबाद जनपद के कौशांबी के मलयगिरी आवास कालोनी में मतदाता सूची में उनका नाम नदारद था। कारण यही कि सोसाइटी के पदाधिकारियों ने उनके परिवार का नाम दर्ज ही नहीं कराया था। अतंत: डॉ. कृष्णमूर्ति ने अपने पुराने आवास जनपथ रोड के बूथ पर वोट डाला जहां उनका नाम वर्षों से दर्ज था। मताधिकार का उपयोग न करने वाले नागरिकों पर कठोर कानूनी कार्यवाही के वे पक्षधर रहे।

पहली बार सांसद और विधायकों ने अपनी स्वेच्छा से वोट डाला

डॉ. कृष्णमूर्ति का ही प्रयास था कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में कोई पार्टी व्हिप जारी नहीं किया जा सकता। पहली बार सांसद और विधायकों ने अपनी स्वेच्छा से वोट डाला। नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्र ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि ''डॉ. कृष्णमूर्ति को मतदान प्रक्रिया तथा निर्वाचन प्रणाली में प्रगतिशील सुधार और उन्हें सशक्त बनाने में योगदान हेतु सदैव याद किया जायेगा। उन्होंने निष्पक्ष तथा निर्बाध चुनाव कराया था।''

इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नालिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) की राष्ट्रीय परिषद के रांची (तब अविभाजित बिहार) अधिवेशन (1997) को डॉ. कृष्णमूर्ति ने संबोधित किया था। उनके साथ बिहार के राज्यपाल अखलाउर रहमान किदवई तथा केन्द्रीय रेल मंत्री राम विलास पासवान ने उद्बोधन किया था। वे अपने पीछे पत्नी, एक बेटी और पुत्र डॉ. जीवी राव (सर्वोच्च न्यायालय में वकील) छोड़ गये।



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