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भारतीय भाषाओं की विजय, खुल गए सभी भाषाओं के द्वार

तमिलनाडु में कोई आदमी पोस्ट आफिस का कर्मचारी बने और वह तमिल न जाने तो वह किस काम का है ? यही बात देश के सभी प्रांतों पर लागू होती है। उन्हें एक अखिल भारतीय भाषा के साथ-साथ प्रांतीय भाषा भी आनी चाहिए।

SK Gautam
Published on: 18 July 2019 11:12 AM GMT
भारतीय भाषाओं की विजय, खुल गए सभी भाषाओं के द्वार
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: तमिलनाडु के राज्यसभा सदस्यों को मैं हार्दिक बधाई देता हूं कि उन्होंने राज्यसभा का काम ठप्प करवाकर सारी भारतीय भाषाओं को मान्यता दिलवाई। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की सराहना करनी होगी कि उन्होंने तत्काल फैसला करके तमिल ही नहीं, सभी भाषाओं के द्वार खोल दिए। तमिलनाडु में 14 जुलाई को पोस्ट आफिसों में भर्ती के लिए कुछ परीक्षाएं हुईं। उनका माध्यम सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी रखा गया।

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एक अखिल भारतीय भाषा के साथ-साथ प्रांतीय भाषा भी आनी चाहिए

तमिलनाडु में कोई आदमी पोस्ट आफिस का कर्मचारी बने और वह तमिल न जाने तो वह किस काम का है ? यही बात देश के सभी प्रांतों पर लागू होती है। उन्हें एक अखिल भारतीय भाषा के साथ-साथ प्रांतीय भाषा भी आनी चाहिए। याने अखिल भारतीय भाषा का कामचलाऊ ज्ञान हो और प्रांतीय भाषा इस लायक आए कि उसमें ही वे अपनी भर्ती परीक्षा दे सकें । इस नियम को तमिलनाडु में उलट दिया गया था।

इसी बात पर द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने राज्यसभा में हंगामा खड़ा कर दिया था। जब मैंने अब से 54 साल पहले इंडियन स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में अपना पीएच.डी. का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो द्रमुक के नेता अन्नादुरई और के. मनोहरन ने लोकसभा ठप्प कर दी थी। तब डाॅ. लोहिया ने उन्हें समझाया था कि वैदिक सिर्फ हिंदी में लिखने की मांग नहीं कर रहा है, वह सभी भारतीय भाषाओं के दरवाजे खुलवाना चाहता है।

अन्नादुरईजी घनघोर हिंदी- विरोधी थे

अन्नादुरईजी घनघोर हिंदी- विरोधी थे लेकिन उनसे मिलकर मैंने उन्हें अपना दृष्टिकोण समझाया तो वे काफी नरम पड़ गए। आज उनके शिष्यों ने पोस्ट आफिस की भर्ती परीक्षा में तमिल माध्यम की मांग करके समस्त भारतीय भाषाओं के दरवाजे खुलवा दिए हैं। 14 जुलाई को हुई भर्ती—परीक्षा को रद्द कर दिया गया है।

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बहुत पहले से हम मांग करते रहे हैं कि ससंद में सभी भारतीय भाषाओं में बोलने और संघ लोकसेवा आयोग में परीक्षाएं देने की अनुमति होनी चाहिए। यह काम तो शुरु हो गया है लेकिन अभी भी देश की न्यायपालिका पिछड़ी हुई है।

उसका लगभग सारा काम अब भी अंग्रेजी में ही होता है। राष्ट्रपतिजी की पहल पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों का संक्षिप्त हिंदी अनुवाद करना शुरु कर दिया है, जो कि अच्छी शुरुआत है लेकिन यह काफी नहीं है। समस्त भारतीय भाषाओं को हर क्षेत्र में उनका उचित स्थान मिलने लगे तो हिंदी अपने आप सर्वभाषा बन जाएगी।

SK Gautam

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