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Economic Inequality: दुनिया में तेजी से बढ़ रही है आर्थिक असमानता!

Economic Inequality: आर्थिक असमानता एक लंबे समय से चली आ रही एक जटिल समस्या है, तो आइए जानते है कि क्या है आर्थिक असमानता के मापने के पैमाने, आंकड़े और प्रभाव?

Vikrant Nirmala Singh
Written By Vikrant Nirmala SinghPublished By Chitra Singh
Published on: 23 Jun 2021 3:03 PM IST (Updated on: 23 Jun 2021 3:06 PM IST)
Economic Inequality
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आर्थिक असमानता (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Economic Inequality: आर्थिक असमानता (Economic Inequality) एक लंबे समय से चली आ रही एक जटिल समस्या है। पहले राजा-महाराजाओं के समय में यह खाई देखने को मिलती थी। बाद के समय में ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान भी आर्थिक असमानता व्याप्त थी। वर्तमान समय में पूंजीवाद के वर्तमान एकाधिकार स्वरूप के रूप में आर्थिक असमानता एक गहरी समस्या के रूप में बनी हुई है।

हम अक्सर सुनते रहते हैं कि देश की 1 फ़ीसदी आबादी के पास 50 फ़ीसदी संपत्ति है। किसी अन्य देश में 70 फ़ीसदी संपत्ति वहां की 1 फ़ीसदी आबादी के पास है। इसी तरह से भिन्न-भिन्न आंकड़े हमें मिलते रहते हैं। लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि आखिर यह आंकड़ा निर्धारित कैसे किया जाता है? अगर आय असमानता व्याप्त करती है तो फिर इसके मापने का पैमाना क्या है? कोई आधार तो मौजूद है जिसके अनुसार यह कहा जा सकता है कि किसी देश में या किसी हिस्से में आर्थिक असमानता मौजूद है। आईए समझते हैं कि आय असमानता के मापने का पैमाना क्या है और इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं।

क्या हैं आय असमानता मापने के पैमाने? (Income Inequality Measuring Scale)

अर्थशास्त्र में असमानता को मापने के लिए दो प्रमुख सिद्धांतों का इस्तेमाल किया जाता है। पहला है लोरेंज कर्व और दूसरा गिनी कॉएफिशिएंट (गुणांक) । लॉरेंज कर्व (वक्र) आर्थिक असमानता को विजुअल रूप में दिखाता है तो वहीं गिनी कॉएफिशिएंट संख्या में बताता है। लॉरेंज कर्व का सिद्धांत प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मैक्स ओ लॉरेंज ने 1905 में दिया था। आय असमानता को समझने और दर्शाने के लिए लॉरेंज ने वक्र (कर्व) का इस्तेमाल किया था। यह कर्व कुल आबादी और कुल आय के बीच में संबंध बताता है। इस सिद्धांत के अंतर्गत बनने वाले ग्राफ से स्पष्ट होता है कि कितने प्रतिशत आबादी के पास कितनी प्रतिशत आय मौजूद है। दुनिया में कोई भी देश इस सिद्धांत के हिसाब से समुचित आय वितरण के पैमाने पर खरा नहीं उतरता है। गिनी कॉएफिशिएंट (गुणांक) का सिद्धांत इतालवी सांख्यिकीविद और समाजशास्त्री कोराडो गिनी ने सन् 1912 में दिया था। यह आय असमानता को संख्या में मापने का कार्य करता है। गिनी गुणांक तय करने में लॉरेंज कर्व की भूमिका होती है।

आय असमानता के आंकड़े क्या कहते हैं? (Income Inequality Statistics)

आय असमानता पर प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। हर वर्ष यह संस्था दुनिया में मौजूद विभिन्न आर्थिक एवं सामाजिक असमानताओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 6.9 बिलियन लोगों की तुलना में दोगुने से अधिक धन है। ज्ञात हो कि दुनिया की कुल आबादी तकरीबन 7.7 बिलियन है। आय असमानता लैंगिक आधार पर भी देखी जा सकती है। आय के आधार पर महिला और पुरुष के बीच एक गहरी खाई बनी हुई है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों के पास दुनिया की संपत्ति का 50% अधिक है, और 22 सबसे अमीर पुरुषों के पास अफ्रीका की सभी महिलाओं की तुलना में अधिक धन है।

ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक देखभाल कार्य का अनुमान $10.8 ट्रिलियन प्रति वर्ष का है जो कि दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं से कई गुना है। भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में यह ढाई गुना अधिक है। महिलाएं दुनिया के गरीब परिवारों की सबसे बड़ी आबादी है। उन्हें हमेशा से पुरुषों की तुलना में कम आय और कम संपत्ति हासिल होती रही है। रोजगार के अवसरों में भी महिलाओं की भागीदारी हमेशा से कम रही है। एक बहुत बड़ी महिलाओं की आबादी को अपने पूरे जीवन काल में गैर वेतन एवं कम भुगतान वाले कार्यों को करना पड़ता है। दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को यह समझना चाहिए कि महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किए बिना एक सार्वभौमिक एवं संतुलित अर्थशास्त्र का निर्माण नहीं किया जा सकता है।

आय असमानता (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

भारत के संदर्भ में क्या है आंकड़े?

अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम के अनुसार भारत की 10 फ़ीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 74.3 फ़ीसदी हिस्सा मौजूद है। यानी बची हुई 90 फ़ीसदी आबादी के पास महज 25.7 फ़ीसदी हिस्सा ही राष्ट्रीय संपत्ति का मौजूद है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1 वर्ष में चोटी के 1 फ़ीसदी लोग की संपत्ति 46 फ़ीसदी बढ़ गई, लेकिन नीचे से 50 फ़ीसदी आबादी की संपत्ति महज 3 फ़ीसदी बढ़ सकी। महिलाओं के संदर्भ में आय असमानता के मामले में भारत की स्थिति बेहद निम्न स्तर की है। यह रिपोर्ट बताती है कि एक घरेलू महिला को किसी तकनीकी आधारित कंपनी के सीईओ के बराबर कमाने में कुल 22,277 वर्ष लग जायेंगे।

यह आंकड़े भारत में मौजूदा आर्थिक असमानता को दिखाते हैं जो यह बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में वेल्थ का केंद्रीकरण महज कुछ चुनिंदा हाथों में है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि कोविड-19 की भयंकर आर्थिक तबाही के बीच जब हमारी 97 फ़ीसदी आबादी पहले की तुलना में गरीब हो गई और तकरीबन 23 करोड़ आबादी गरीबी रेखा के नीचे चली गई, ठीक उसी दौरान देश के 100 बड़े पूंजीपतियों की संपत्ति में 12,97,882 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी। ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान इन पूंजीपतियों की संपत्ति में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई।

आय असमानता के क्या प्रभाव है? (Income Inequality Effect)

आय असमानता के प्रभाव को समझने से पहले इसके पीछे के कारण को समझते हैं। इसका सबसे प्रमुख कारण सस्ता श्रम है। वर्तमान अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन और उस पर होने वाले लाभ की तुलना में दिया जाने वाला श्रम बेहद ही न्यूनतम है। यही कारण है कि कंपनी के मालिक और उसके कर्मचारी के आय के बीच कई हजार गुना का अंतर बना रहता है। भारत में शिक्षा की कमी भी इस समस्या की एक मूल जड़ है। सबसे अधिक गरीबी और आय असमानता अशिक्षित तबके में देखने को मिलती है।

बढ़ती आर्थिक असमानता के सामाजिक और आर्थिक परिणाम घातक साबित हो सकते हैं। अगर संपत्तियों का केंद्रीकरण ऐसे ही होता रहा तो आने वाले समय में एक बड़ा सामाजिक विघटन देखने को मिल सकता है। वर्तमान समय में पूजीपतियों के खिलाफ तैयार हो रहे एक नकारात्मक मनोविज्ञान को भी आप देख सकते हैं। आर्थिक रूप से असंतुष्ट हो रही आबादी अगर जरूरी आर्थिक अवसरों को हासिल नहीं कर सकी तो एक दिन निश्चित ही विद्रोह कर देगी।

दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि के अनुपात में अगर उसमें रहने वाली आबादी की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं होगी तो यह एक अस्वस्थ अर्थव्यवस्था का संकेत होता है। कल्पना कीजिए कि 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनामी बनने की तरफ बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है।

इस समस्या के समाधान के रूप में हम महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का उपयोग कर सकते हैं। बापू ने 1903 में ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था। ट्रस्टीशिप अर्थात न्यासिता के अनुसार पूंजी का असली मालिक पूंजीपति नहीं बल्कि पूरा समाज होता है और पूंजीपति तो केवल उस संपत्ति का रखवाला है। भारत में ट्रस्टीशिप का एक अच्छा उदाहरण आईटी उद्योग की प्रमुख कंपनी विप्रो के मुखिया अजीम प्रेमजी है। जिन्होंने आधी संपत्ति अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर दी है । यह फाउंडेशन आज भारत के 6 राज्यों व एक केन्द्र शासित प्रदेश में स्कूली शिक्षा हेतु महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। इसके साथ ही सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्थिक अवसरों का विकेन्द्रीकरण बना रहे।



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Chitra Singh

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