ED Action Update: प्लीज हमें और ईडी दो

ED Action Update: इतने नियम कानूनों के होते हुए भी लोग चिल्लाते - कराहते रहते हैं कि देश में कानून का राज नहीं है। ये हकीकत भी नीचे से ऊपर तक सब जानते है सो इसीलिए हमारे अदना से लेकर महान नेता भी 77 साल से कानून का राज लागू करने का ऐलान और वादा भी कर रहे हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 9 Oct 2024 6:27 AM GMT
ED Action Update: प्लीज हमें और ईडी दो
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ED Action Update News: यूँ तो हर देश कानूनों वाला होता है । लेकिन हम सुपर कानून वाले देश हैं। हमारे पास हर चीज के लिए कानून है। हर चीज के लिए नियम कायदे हैं। आप नाम गिनाइए, उसके लिए कोई न कोई कायदा - कानून जरूर है। हर महकमे के अपने कायदे कानून हैं। इन नियम, कायदा, कानूनों की तादाद इतनी है कि पूरी लिस्टिंग की ही नहीं जा सकती। यही नहीं, हर रोज कहीं न कहीं किसी राज्य में कोई न कोई नियम कायदा बनता ही जाता है। लगता है कुछ लोग बस यही ढूंढते रहते हैं कि अब कौन सा नया कानून बनाया जाए।

सो, कानून इतने हैं कि कोई काम न करने के भी कानूनी बहाने हैं। कायदे कानून इतने ज्यादे भी हैं कि अगर सब के सब लागू हो जाएं तो या हमारा देश स्वर्ग बन जायेगा या फिर देश का चक्का जाम ही नहीं बल्कि सुपर जाम हो जाएगा। यह बात शायद नरेंद्र मोदी समझ गये थे तभी वह दावा करते थे कि मैं क़ानून बनाने नहीं क़ानून ख़त्म करने का काम करुंगा। कम करने का काम करुंगा।


बहरहाल, इतने नियम कानूनों के होते हुए भी लोग चिल्लाते - कराहते रहते हैं कि देश में कानून का राज नहीं है। ये हकीकत भी नीचे से ऊपर तक सब जानते है सो इसीलिए हमारे अदना से लेकर महान नेता भी 77 साल से कानून का राज लागू करने का ऐलान और वादा भी कर रहे हैं, खास कर चुनावों के टाइम तो कानून के राज का झुनझुना या ढोल ज्यादा ही बजता है। हमारे आका अफसरान भी भला पीछे क्यों रहें। कुर्सी पर आते ही हाकिम यही ऐलान करता है कि वो सब नियम कानून अक्षरशः लागू करेगा। गांव से लेकर मोहल्ले और शहर से लेकर प्रदेश और राष्ट्र तक सब लगे हुए हैं। कायदे कानून की लिस्ट सबकी जेब में है लेकिन होता कुछ नहीं। होता भी है तो उसके खिलाफ जिसकी किस्मत कुछ ज्यादा ही खराब होती है।


ऐसे ही खराब किस्मत वालों के लिए नियम कानून लागू करे जा रहा है एक महकमा जिसका नाम है ईडी यानी एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट। काम है उन्हीं कानूनों को एनफोर्स यानी लागू कराना जो मनी लॉन्ड्रिंग अवैध धन, काले धन, टैक्स चोरी वगैरह के लिए बनाए गए हैं। यूँ तो इन कामों के लिए विजिलेंस, एंटी करेप्शन, इनकम टैक्स से लेकर सीबीआई जैसी ढेरों स्टेट व सेंट्रल एजेंसियां हैं लेकिन बेचारे जब खुद महकमे वाले कानून लागू नहीं कर पाए तो इस काम के लिए ईडी बना दिया गया। अब ईडी गलत पैसे के कानून लागू करने में लगा हुआ है। ईडी का डंका बजा हुआ है। नेता से लेकर अफसर और बिजनेसमैन से लेकर कंपनी, सबों पर ईडी मोटे पैसे वाले ढेरों कानूनों को एनफोर्स करने में लगा हुआ है।


इधर जनता की गाड़ी, मस्त और पस्त दोनों पहियों पर चल रही है। मस्त इसलिए कि टोकरे भर कानूनों के बावजूद मनमानी करते जाओ, कोई देखने पूछने एनफोर्स करने वाला नहीं। और पस्त भी इन्हीं वजहों से कि कोई एनफोर्स करने वाला नहीं।अब देखिए, सड़क पर चलने, गाड़ी चलाने से लेकर शोर मचाने और सरकारी दफ्तर में कामकाज, हर चीज के लिए कायदे, नियम और कानून हैं। बिल्डिंग बनाने के कानून हैं, आग से सुरक्षा के भी कानून हैं। लेकिन हर बिल्डिंग की असलियत उसे बनाने वाले ही नहीं, कानून बनाने वाले और कानून के रखवाले तक सभी जानते हैं। ड्राइविंग के कानून हैं लेकिन लागू कौन करवाये? गंदगी और कूड़े के भी कानून हैं पर किसको फिक्र है? और तो और, कानून के रखवाले यानी पुलिस के कामकाज और बर्ताव तक के कायदे कानून हैं पर डिब्बे में बंद हैं।


ढेरों महकमे हैं, सबके अलग अलग नियम कानून हैं फिर भी जहां देखिए वहां बड़ी बड़ी अवैध कालोनियां बस जाती हैं, अट्टालिकाएं खड़ी हो जातीं हैं। सब कानून धरे रह जाते हैं। एक और मिसाल देखिए - पचासों साल से हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़ा मनाया जा रहा है। हिंदी में सरकारी काम का भी नियम बना हुआ है लेकिन वहां की हिंदी कोई समझ ले तो बताए। हिंदी के परचम का एक किस्सा भी सुनिए - एक ट्रैवेल ब्लॉगर को अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में वीडियो बनाते वक्त पुलिस ने पकड़ कर थाने में बंद कर दिया। उस ब्लॉगर ने भारतीय दूतावास के इमरजेंसी नम्बर पर दर्जनों कॉल कीं पर फोन नहीं उठा। अनेक मैसेज भेजे तो पलट कर जवाब आता है कि हमें हिंदी नहीं आती, इंग्लिश में लिख कर भेजो। ये है हर साल हिंदी दिवस मनाने वाले भारतीय दूतावास का हाल। वहां कौन करेगा हिंदी एनफोर्स?


जिधर हाथ डालिये, उधर एनफोर्समेंट शून्य है। जी हां - जीरो। हां, कभी कभार मन बहलाने को कुछ कर दिया जाता है जिस पर कोई अब ध्यान भी नहीं देता। सवाल बस एक है, बहुत छोटा सा, बहुत ही मासूम सा - इन रोजमर्रे वाले कायदे कानूनों का ईडी कब बनेगा? कब होगा एनफोर्समेंट? कब बनेगा 77 साल से जनता की हराम हुई जिंदगी को आराम देने वाला जनता ईडी? करोड़ों अरबों रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग वाली ईडी से पहले जरा हमारी रोजमर्रा की जिंदगी जीने लायक बनाने वाली ईडी चाहिए। हमें वो ईडी चाहिए जो सड़क से लेकर ट्रेन और स्कूल से लेकर अस्पताल तक हमारी हिफाज़त और सहूलियत के लिए बनाए कानून कायदे एनफोर्स करे। ऐसी ईडी चाहिए जो पुलिसवालों और थाने में कानून एनफोर्स करे।


ऐसी ईडी चाहिए जो चुनाव के नियम कानून अक्षरशः लागू कराए। भले ही ईडी करोड़ों अरबों की मनी लॉन्ड्रिंग पकड़ रही हो लेकिन यहां जनता तो नगर निगम के निक्कमेपन के चलते मच्छरों से कटवा कर डेंगू चिकनगुनिया की शिकार हुई जा रही है उसे तो उन अरबों रुपये की मनी लांड्रिंग पकड़ने से धेला भर फायदा नहीं हो रहा। क्यों न लाई जाए जनता ईडी? ये तो जरूरी है क्योंकि बाकी सब फेल है। अब ईडी ही आखिरी चिराग है। वही जान बचाए।

हम बस यही कहेंगे - ये दिल मांगे मोर ईडी। चप्पे चप्पे पर ईडी। हर गली मोहल्ले में ईडी। हर चौराहे पर ईडी। हमें चाहिए हर शाख पर बैठा ईडी। प्लीज़ जल्दी दे दो न। हम गुण गाएंगे : हर शाख पर ईडी बैठा हो तो अंजाम ए गुलिस्तां बढ़िया होगा।

( लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार। )

Shalini singh

Shalini singh

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