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Election 2024 : कांग्रेस की दिशाहीनता एवं बढ़ता पलायन

Election 2024 : लोकसभा के चुनाव उग्र से उग्रतर होते जा रहे हैं, लोकतंत्र के महायज्ञ की 7 मई को आधी से ज्यादा आहुति पूरी होने वाली है, पहले चरण में 102 और दूसरे चरण में 88 सीटों पर मतदान हो चुका है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 6 May 2024 4:20 PM IST
Election 2024 : कांग्रेस की दिशाहीनता एवं बढ़ता पलायन
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Election 2024 : लोकसभा के चुनाव उग्र से उग्रतर होते जा रहे हैं, लोकतंत्र के महायज्ञ की 7 मई को आधी से ज्यादा आहुति पूरी होने वाली है, पहले चरण में 102 और दूसरे चरण में 88 सीटों पर मतदान हो चुका है। तीसरे चरण में 94 सीटों पर मतदान होने वाला है। इसके बाद 543 में से आधे से अधिक यानी 284 सीटों पर मतदान पूर्ण हो जाएगा। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। भाजपा की ओर रुख करते नेताओं ने कांग्रेस की नींद उड़ा कर रख दी है। यह सिलसिला आगे भी जारी रहने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आक्रामक, तीक्ष्ण एवं तीखे आरोप लगाने वाली कांग्रेस पार्टी में लगातार हो रही टूट एवं पार्टी छोड़ने के कांग्रेसी नेताओं के सिलसिले को रोक नहीं पा रही है। इस बड़े संकट से बाहर निकलने का रास्ता कांग्रेस को नहीं सूझ रहा है।

कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे बड़ा झटका इंदौर में लगा, जहां से पार्टी के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने नामांकन वापसी के अंतिम दिन मैदान ही छोड़ दिया और वो भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ को खजुराहो में झटका लगा था, जहां आपसी समझौते के चलते यह सीट समाजवादी पार्टी को दी गई थी। समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा दीपक यादव का पर्चा निरस्त हो गया। इस तरह राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से दो- खजुराहो और इंदौर ऐसी है, जहां से कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता राधिका खेड़ा एवं दिल्ली के कांग्रेसी नेता अरविन्द सिंह लवली ने ‘नाइंसाफी’ के कारण पार्टी से इस्तीफा दिया है। लवली तो अपने अन्य साथियों के साथ भाजपा में शामिल हो गये हैं। पुरी से कांग्रेस प्रत्याशी सुचारिता महंती ने यह कहते हुए टिकट लौटा दिया कि पार्टी चुनाव लड़ने के लिए धन नहीं दे रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके क्षेत्र में ओडिशा विधानसभा चुनावों के लिए कमजोर उम्मीदवार उतारे गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में राजनीतिक अपरिपक्वता, दिशाहीनता एवं निर्णय-क्षमता का अभाव है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कांग्रेस कई राज्यों में बेमन से चुनाव लड़ रही है।


आज के परिदृश्यों में कांग्रेस अनेकों विरोधाभासों एवं विसंगतियों से भरी है। चुनाव प्रचार हो या उम्मीदवारों का चयन, राजनीतिक वायदे हो या चुनावी मुद्दे हर तरफ कांग्रेस कई विरोधाभासों से घिरी है। उसकी सारी नीतियों में, सारे निर्णयों में, व्यवहार में, कथन में विरोधाभास स्पष्ट परिलक्षित है। यही कारण है कि उसकी राजनीति में सत्य खोजने से भी नहीं मिलता। उसका व्यवहार दोगला हो गया है। दोहरे मापदण्ड अपनाने से उसकी हर नीति, हर निर्णय समाधानों से ज्यादा समस्याएं पैदा कर रही हैं। यही कारण है कि कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने या फिर चुनाव लड़ने से इन्कार करने का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। यह निर्णय क्षमता का अभाव ही है या हार का डर कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने क्रमशः अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय लेने में बड़ी कोताही बनती है। अब राहुल ने अमेठी में स्मृति ईरानी का सामना करने में स्वयं को अक्षम पाया तो रायबरेली से नामांकन पत्र दाखिल कर दिया और प्रियंका एक बार फिर चुनाव लड़ने से दूर ठिठक गईं। राहुल गांधी का अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ना भी कांग्रेस की दिशाहीनता का सूचक है। यह हास्यास्पद है कि गांधी परिवार के करीबी एवं चाटुकार कांग्रेस नेता राहुल के अमेठी से चुनाव न लड़ने के फैसले को यह कहकर बड़ी राजनीति जीत बता रहे हैं कि पार्टी ने स्मृति इरानी का महत्व कम कर दिया। क्या सच यह नहीं कि कांग्रेस ने अमेठी से स्मृति इरानी की जीत सुनिश्चित करने का काम किया है?

राहुल गांधी का दो-दो सीटों से का चुनाव लड़ना भी यह दर्शाता है कि दोनों में से एक सीट पर तो वे जीत हासिल कर ही लेंगे। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का सेक्शन 33 प्रत्याशियों को अधिकतम दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति भी देता है। देश में लोकतंत्र की जड़ें लगातार मजबूत हो रही हैं। ऐसे में नेताओं के एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर विसंगतियां भी सामने आ रही हैं। विमर्श इस बात पर हो रहा है कि जब एक व्यक्ति को एक वोट का अधिकार है तो प्रत्याशी को दो सीटों पर चुनाव लड़ने की अनुमति क्यों होनी चाहिए? नेता अपने राजनीतिक हितों के लिए एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ते हैं और दोनों सीटों पर चुनाव जीतने की स्थिति में अपनी सुविधानुसार एक सीट से इस्तीफा दे देते हैं। कानूनी रूप से उनके लिए ऐसा करना जरूरी भी है। फिर उस सीट पर उपचुनाव होता है। इसमें न सिर्फ करदाताओं का पैसा खर्च होता है बल्कि उस क्षेत्र के मतदाता भी ठगा हुआ महसूस करते हैं। इस बात की पड़ताल जरूरी है कि दो सीटों से चुनाव लड़कर राहुल गांधी भारतीय लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं या इस व्यवस्था से सिर्फ अपने राजनीतिक हित साध रहे हैं?

भले ही राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान बेहद आक्रामक दिख रहे हों, लेकिन वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पा रहे हैं। इसका एक कारण गठबंधन के नाम पर अपने पुराने मजबूत गढ़ों में भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ना है। यह कांग्रेस ही लगातार कमजोर होती राजनीति ही है कि वह जीत की संभावना वाली सीटों को भी महागठबंधन के अन्य दलों को दे रही है। ऐसे ही निर्णयों के चलते कांग्रेसजनों के लिए भी यह समझना कठिन है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी से समझौता करने से पार्टी को क्या हासिल होने वाला है? इस बार गांधी परिवार दिल्ली में उस आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को बोट देगा, जिसने उसे रसातल में पहुंचाया। इस तरह के मामले केवल यही नहीं बताते कि कांग्रेस उपयुक्त प्रत्याशियों का चयन करने में नाकाम है, बल्कि यह भी इंगित करते हैं कि उसके पास अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने और अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने की कोई ठोस रणनीति नहीं है।


कांग्रेस की नीति एवं नियत भी संदेह के घेरों में हैं। क्या कारण है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के नेता अब दुआ कर रहे हैं कि कांग्रेस का ‘शहजादा’ भारत का प्रधानमंत्री बने। दुश्मन राष्ट्र के नेता अगर किसी व्यक्ति या नेता के प्रधानमंत्री बनने की कामना करते हैं तो निश्चित ही उस देश का हित जुड़ा होता है। पड़ोसी देश भले ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता हो लेकिन भारत की जनता अपने हितों की रक्षा करते हुए विवेकपूर्ण मतदान के लिये तत्पर है। भारत मजबूत प्रधानमंत्री वाला मजबूत देश चाहता है। नए भारत के ‘सर्जिकल और एयर स्ट्राइक’ ने उस पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया था जिसे कांग्रेस शासन के दौरान भारत पर आतंकी हमलों का समर्थन करने के लिए जाना जाता था।

कांग्रेस ने बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की है, उसी का परिणाम है कि जिसने 500 वर्षों तक पीढ़ियों के संघर्ष के बाद बने प्रभु श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह एवं मन्दिर से कांग्रेस दूरी बनाये रखी है। जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय का भी विरोध किया है, जबकि अब वहां आतंकवाद खत्म होकर शांति, अमन एवं विकास की गंगा प्रवहमान है। जनता ही नहीं, कांग्रेस के नेता भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृृत्व की इन विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को समझ रहे हैं और पार्टी से पलायन कर रहे हैं। मुगलों व अंग्रेजों की भाषा बोल रहे व हिंदू जनमानस व हिंदू संस्कृति के विरुद्ध जहर उगल रहे राहुल गांधी को पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह आगामी लोकसभा चुनाव में जनता क्या जबाव देती, यह भविष्य के गर्भ में हैं।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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