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विधानसभा चुनाव की चौसर पर मोदी-राहुल आमने-सामने
मदन मोहन शुक्ला
राजनीतिक गहमा-गहमी का आगाज पांच राज्यों में चुनाव की तिथि घोषित होने के साथ हो चुका है। इन पांच राज्यों में तीन राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा सत्ता पर काबिज है। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह 2003 से शासन चला रहे हैं तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिये कमर कस चुके हैं। वहीं राजस्थान में वसुन्धरा राजे दूसरे टर्म के लिए जोर लगाए हुए हैं। विधानसभाओं के ये चुनाव अगले लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल माने जा रहे हैं। जिसमें नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा तो दांव पर लगी ही है तो राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य भी इन्हीं चुनावों पर टिका है।
ऐसे देखा जाए तो सी-वोटर द्वारा ए.बी.पी. न्यूज के लिये हाल ही में किया गया चुनावी सर्वेक्षण राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने का समर्थन करता है। इसमें कांग्रेस को राजस्थान में करीब तीन चौथाई सीट मिलने की उम्मीद की जा रही है। इसी तरह मध्य प्रदेश में कांग्रेस को करीब 122 सीटें और छत्तीसगढ़ में 47 सीटों पर जीत का अनुमान जताया गया है।
सर्वेक्षण के अनुसार कांग्रेस राजस्थान में सरकार बना लेगी लेकिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की डगर आसान नहीं होगी।इन दोनों राज्यों में वहां के मुख्यमंत्रियों को अपने बल बूते पर ही चुनाव को अपने पक्ष में मोडऩे की जोर पैमाइश करनी होगी।
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कांग्रेस आक्रामक तो है लेकिन मध्य प्रदेश में अपने घर को व्यवस्थित करने के लिये संघर्ष कर रही है। चुनावी रणनीति को अंजाम देने के लिये एक तरफ सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य मुख्यमंत्री की पद की दावेदारी कर रहे हैं लेकिन दिग्विजय सिंह एवं कमलनाथ उनके लिए सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए हैं। देखा जाए तो दिग्विजय सिंह की छवि ग्वालियर-चंबल एवं मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में लोकप्रिय नेता के रूप में है तो अनुभवी कमलनाथ की आदिवासी बेल्ट पर पकड़ मजबूत है। ऐसे में राहुल को इन दोनों दिग्गजों को साधना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
2014 में मोदी लहर के दौरान सिंधिया व कमलनाथ का संघर्ष कांग्रेस की किरकिरी कर चुका है। कांग्रेस एमपी में एंटी इन्कमबैंसी पर दांव लगाए हुए है। दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी ताकत कांग्रेस नेतृत्व द्वारा मुद्दों को बढ़ाने में असमर्थता है। चौहान ने चुनाव जीतने के लिये हमेशा सामाजिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। पिछले चुनावों में सडक़ और पानी मुद्दा था तो इस बार रोटी और मकान का। चौहान ने आर्र्थिक रूप से कमजोर और कम आय समूह का अधिनियम पारित किया जिसका उददेश्य गरीबों को घर या जमीन का अधिकार प्रदान करना है। क्या ऐसे कार्यक्रम जनता को लुभा पाएंगे ये देखने वाली बात है।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो रमन सिंह यहांचौथी सीधी जीत का लक्ष्य रखते हैं। देखना है कि अजीत जोगी, जिन्होंने मायावती के साथ चुनावी गठबंधन किया है अैार वे स्वयं काफी लोकप्रिय हैं, वे क्या इम्पैक्ट छोड़ते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सरकार बनाने में जोगी की अहम भूमिका रहेगी। इसीलिए भाजपा व कांग्रेस उनको नजर अंदाज नहीं कर सकती। दूसरी तरफ रमन सिंह की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। नक्सलवाद राज्य को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा मुद्दा है। रमन सिंह का नाम हाल के कुछ दिनों मेंं कई घोटालों में भी आया है। देखना है कि कांग्रेस, खास तौर से राहुल, किस तरह से चुनावी हवा को अपनी तरफ मोड़ते हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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