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Eye: आंखें जवां हो गईं

Eye: ऑपरेशन के बाद अब सब कुछ ठीक लगता है, नीक भी। संयोग था छः दशक पूर्व का। स्कूली दौर वाला। ब्लैक बोर्ड साफ नहीं दिखता था। पर बात खुली जब कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में क्रिकेट टेस्ट मैच देखने सपरिवार गया था।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 25 Jan 2023 7:24 PM IST
eyes become young
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eyes become young

Eye: मेरा पूरा पखवाड़ा नयनों से ही जूझते बीता, उनकी मरम्मत के संग। अतः तनिक भी लिख-पढ़ नहीं पाया था। अपनी ही आंखों का यह संदर्भ है। मोतिया बिंद (कैटरेक्ट) हो गया था। दृष्टि धुंधली हो चली थी। मानो चहुँओर कोहरा ही हो। राहत पायी जब चक्षुओं पर सर्जन का रेजर चला, नया लेंस लगा। (यह लेंस आंख की पुतली का पारदर्शी अंग है जो प्रकाश को नियंत्रित करने हेतु आकृत्ति बदलता है ताकि स्पष्ट दिखाई दे)। तत्काल नजर तेज़ हो गई। ऐनक बिल्कुल उतर ही गई। उससे पूर्व तक कैसा होता था ? गोस्वामी तुलसीदास की मानस की पंक्ति याद आई : "नयन दोष जा कहँ जब होई । पीत बरन ससि कहुँ कह सोई" ।। जब जिसको [कवँल आदि] नेत्र-दोष होता है, तब वह चन्द्रमा को पीले रंग का कहता है।

ऑपरेशन के बाद अब सब कुछ ठीक लगता है, नीक भी। संयोग था छः दशक पूर्व का। स्कूली दौर वाला। ब्लैक बोर्ड साफ नहीं दिखता था। पर बात खुली जब कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में क्रिकेट टेस्ट मैच देखने सपरिवार गया था। अग्रज श्री के. एन. राव, IA & AS, (भारत के उपप्रधान लेखाकार एवं नियंत्रक) तथा ज्योतिषाचार्य हमें ले गए थे। जब उन्होने स्कोर पूछा। मैं बता नहीं पाया क्योंकि बोर्ड पढ़ नहीं पाया था। लखनऊ लौटते ही चश्मा लगवा दिया। गत माह तक लगा रहा। सात दशकों तक। अब दृष्टि 6/6 हो गई। अर्थात छः मीटर दूर तक साफ देख सकते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस तथा फौज में भर्ती की यह न्यूनतम अनिवार्यता होती है। हालांकि मुझे इन दोनों की आवश्यकता नहीं है।

ख्याल आता है कि ऐसी ही करिश्मायी शल्य चिकित्सा शरीर के अन्य अवयवों के लिए भी यदि आविष्कृत हो तो मानव-जीवन ही बदल जाये। मसलन नहुषपुत्र, पांचवें चंद्रवंशी सम्राट ययाति जैसी कामुक तो हर्षित हो जाते। ययाति का किस्सा वेदों में है। इनका पाणिग्रहण राक्षसगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से हुआ था। देवयानी के गर्भ से इनको यदु और तुर्वसु नाम के दो तथा शर्मिष्ठा के गर्भ से द्रुह्यु, अणु और पुरु नाम के तीन पुत्र हुए थे। इनमें से यदु से यादव वंश और पुरु से पौरव वंश का आरंभ हुआ। शर्मिष्ठा इन्हें विवाह के दहेज में मिली थी। शुक्राचार्य ने ययाति से कह दिया था कि शर्मिष्ठा के साथ संभोग न करना। पर जब शर्मिष्ठा ने ऋतु-मती होने पर इनसे ऋतुरक्षा की प्रार्थना की, तब इन्होंने उसके साथ संभोग किया और उसे संतान हुई। इस पर शुक्राचार्य ने इन्हें शाप दिया कि तुम्हें शीघ्र बुढ़ापा आ जायेगा। मगर जब उन्होंने शुक्राचार्य को संभोग का कारण बतलाया, तब उन्होंने कहा कि यदि कोई तुम्हारा बुढ़ापा ले लेगा, तो तुम फिर ज्यों के त्यों हो जाओगे। ययाति ने एक एक करके अपने चारों पुत्रों से पूछा कि : "तुम मेरा बुढ़ापा लेकर अपना यौवन हमें दे दो।" पर किसी ने स्वीकार नहीं किया। अंत में पुत्र पुरु ने उनका बुढ़ापा आप ले लिया और अपनी जवानी पिता को दे दी। पुनः यौवन प्राप्त करके ययाति ने एक सहस्र वर्ष तक विषय-सुख भोगा। अंत में पुरु को अपना राज्य देकर खुद वन में जाकर तपस्या करने लगे और स्वर्ग चले गए। अब कैटरेक्ट जैसी शल्यक्रिया यदि अन्य अंगों हेतु ईजाद हो पाए तो ययाति जैसे कामार्थियों की तमन्ना सुगमता से पूरी हो जाये।

जिस महिला नेत्र-विशेषज्ञ ने मुझे अंधेपन से बचाया वे हैं डॉ. श्रीमती मेमूना बहादुर जी, बायखला, मुंबई, मध्य रेलवे अस्पताल में हैं। चूंकि पूर्व रेलवे कर्मचारी डॉ. के. सुधा राव का पति हूं, अतः रिटायरमेंट के बाद भी निःशुल्क शासकीय सुविधा मिलती है। वर्ना लाख रुपए से ऊपर का बिल होता। डॉ. मेमूना के हिंदु पति डॉ. मदन मोहन बहादुर जसलोक अस्पताल में ही नेफ्रोलोजी (गुर्दा) विशेषज्ञ हैं। दोनों भोपाल में पढ़े। सहपाठी थे। विषम आस्था उनकी शादी मे आड़े नहीं आई। डॉ0 मेमुना बहन ने मुझे नई दृष्टि दी। लेखनीय सृजनता की दिशा में। मोतिया बिंद से मुझे घना अंधेरा ही लग रहा था। अब नहीं। मेरी रोशनी व्यापक हो गई। खूब पढ़ सकता हूं।

इसी जसलोक अस्पताल में मेरे चिरपरिचित, मेडिसिन के नामचीन निष्णात डॉ. रमापति राम भी हैं, जिन्हें कुछ माह पूर्व लंदन में ससम्मान MRCP की डिग्री मिली थी। लखनऊ में चारबाग रेलवे अस्पताल मे रहे डॉ. राम हरफनमौला हैं। मेरे स्वास्थ्य के पथप्रदर्शक हैं। अब अपने साथियों को भी मैं आगाह कर सकता हूं। तो बता दूं कि अगर आपको दूर या पास का कम दिखाई दे, गाड़ी ड्राइव करने में समस्या हो या आप दूसरे व्यक्ति के चेहरे के भावों को न पढ़ पाएं तो समझिए की आप की आंखों में मोतिया बिंद हो रहा है। यह कई लोगों को उनके परिवार हिस्ट्री की वजह से भी होता है। जैसे की परिवार में माता पिता को डायबिटीज है तो भी आपके मोतियाबिंद होने के संभावना बढ़ जाती है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो मोतियाबिंद अंततः पूर्ण अंधापन का कारण बन जाएगा। अच्छी खबर यह है कि इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है। इसकी सर्जरी बहुत ही सामान्य और दर्दरहित होती है। अधिकांश लोग सर्जरी के नाम से डरते हैं। मगर इससे बीमारी का इलाज करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। तकनीकों के विकसित होने के कारण आंखों के लेंस को बदलने की प्रक्रिया में बहुत कम समय लगता है। जटिलताएं कम होती हैं। इसलिए इंतजार मत करें।

अंत में डॉक्टर श्रीमती मेमूना बहन को सादर सलाम जिन्होंने मुझ जैसे एक लापरवाह रिपोर्टर को आंखों की हिफाजत करना और संवारना सिखाया। आंखें तो आत्मा की नाड़ी हैं। चिकित्सक इसी से हृदयगति को समझता है। अंग्रेजी साहित्यकार जोसेफ एडिसन ने कहा भी था : "आंखें ही अंतर्मन का झरोखा होती हैं। मौन को वाणी देती हैं। इसकी कृपा दृष्टि ही सहमति सरजा कर, विषमता खत्म करती हैं।" यह नन्हा सा अंग समस्त शरीर को जीवंत बना देता है। तो ऐसे हिस्से की उपेक्षा मत करें। ध्यान दें। उसे सहलायें।

Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

Content Writer

अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

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