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फिजूलखर्ची रोकने का संदेश देता अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर का नोबेल

raghvendra
Published on: 14 Oct 2017 8:07 AM GMT
फिजूलखर्ची रोकने का संदेश देता अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर का नोबेल
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राहुल लाल

अर्थशास्त्र को मनोविज्ञान से जोडक़र उसे मानवीय चेहरा प्रदान करने के लिए अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को वर्ष 2017 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। थेलर ने अपने रिसर्च के जरिए यह दिखाया कि आर्थिक एवं वित्तीय फैसले हमेशा तार्किक नहीं होते बल्कि ज्यादातर वे मानवीय हदों से बंधे होते हैं। थेलर का नाम बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स यानी व्यवहार अर्थशास्त्र का विचार देने वालों में शुमार होता है।

परंपरागत आर्थिक सिद्धांत में यह माना जाता है कि उपभोक्ता हमेशा समझदारी से फैसले लेता है। थेलर ने इसी मान्यता को खारिज किया है। 2008 में नज नामक किताब लिखने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्री का मानना है कि लोग विवेक को ताक पर रखकर भी कई आर्थिक फैसले लेते हैं। थेलर ने यह किताब आर.स्नस्टीन के साथ मिलकर लिखी है। किताब आदमी की सोच और खर्च करने के उसके तौरतरीके के बीच के रिश्ते की पड़ताल करती है।

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द न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार से थेलर ने कहा कि बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए हमें इस बात को समझना चाहिए कि उपभोक्ता भी इंसान होता है। थेलर के अनुसार लोग एक समान तरीके से ताॢकक स्थिति से दूर जाते हैं। ऐसे में उनके व्यवहार के बारे में पता लगाया जा सकता है। उन्होंने एक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट करने की कोशिश की। वे कहते हैं कि गैस की कीमत कम होने की स्थिति में अर्थशास्त्र के मान्य सिद्धांतों के तहत उपभोक्ता बचे हुए पैसे से बहुत जरूरी सामान ही खरीदेगा। हकीकत यह है कि वह इस हालत में भी बचे हुए धन को गैस पर खर्च करेगा। उन्होंने यह सिद्ध किया कि लोग आमतौर पर उस वस्तु के लिए ज्यादा खर्च करते हैं जो उनके पास पहले से मौजूद है। उन्होंने इसे एंडोवमेंट इफेक्ट की संज्ञा दी।

जहां तक व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र का सवाल है तो यह व्यक्ति और संस्थानों की आर्थिक निर्णय प्रक्रिया से जुड़ा है। अर्थात यह बताता है कि ये फैसले कैसे किए जाते हैं। दरअसल थेलर ने अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच की खाई पाटने की कोशिश की। थेलर का शोध व्यवहार संबंधी अर्थशास्त्र पर केन्द्रित है जो यह पड़ताल करता है कि वित्तीय व आर्थिक बाजारों में किसी व्यक्ति, व्यक्तियों या समूहों द्वारा किए गए फैसलों पर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों का क्या असर रहता है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सोमवार को थेलर के नाम का ऐलान किया। एकेडमी ने कहा कि थेलर के योगदान ने निर्णय की प्रक्रिया में आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के बीच सेतु का काम किया है। इससे सीमित तर्कसंगतता, सामाजिक प्राथमिकताएं और स्वनियंत्रण की कमी के परिणामों की पड़ताल करते हुए उन्होंने दिखाया है कि ये मानवीय गुण व्यक्तिगत फैसलों और बाजार के परिणामों को किस तरह प्रभावित करते हैं। उनका अनुभव आधारित शोध परिणाम और सैद्धांतिक परख नए और तेजी से फैलते व्यवहारिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र के लिए मददगार साबित हुआ है। थेलर को 11 लाख डॉलर यानी करीब 7.15 करोड़ रुपये नकद और प्रतीक चिह्न दिया जाएगा।

थेलर ने आर्थिक मनोविज्ञान की जिस गुत्थी को सुलझाया है, उसे हम अपने रोजमर्रा के उदाहरणों से भी समझ सकते हैं। कई बार आक्रामक विज्ञापनों से प्रभावित होकर हम अतार्किक तरीके से खर्च कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आपके पास पहले से ही कोई अति बेहतर स्मार्ट फोन हो,परंतु विज्ञापन से प्रभावित होकर आप पुन: किसी दूसरी कंपनी का खरीद लें। यहां पर विज्ञापन आपको पुन:उसी तरह का दूसरी कंपनी का स्मार्ट फोन खरीदने का अतार्किक फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकता है।

इसी तरह से उपभोक्ता कई बार अपने पड़ोसी अथवा मित्र से प्रतिस्पर्धा के कारण भी कोई अतार्किक खर्च करने का फैसला ले लेता है। यहां पर भी परंपरागत अर्थशास्त्र का वह सिद्धांत मान्य नहीं रहा कि उपभोक्ता सदैव तार्किक फैसले लेते हैं। उदाहरण के लिए आपके पड़ोसी ने 55 इंच टीवी का स्मार्ट टीवी अपने लिए खरीदा और अब आप भी इस प्रतिस्पर्धा में अपने सभी कक्ष के लिए इसी तरह का टीवी खरीद लेते हैं।

अब प्रश्न उठता है कि आर्थिक मनोविज्ञान की गुत्थी सुलझने से सामान्य लोगों को क्या लाभ होगा? इस बारे में नोबेल सम्मान का फैसला करने वाले जजों ने थेलर के बारे में बताया कि उनके दिए तरीके से लोग खुद पर बेहतर तरीके से नियंत्रण रख सकते हैं। आपने कई ऐसे लोगों को देखा होगा जो अत्यधिक अतार्किक निर्णय से खर्च करते हैं। इस कारण उनका बजट भी बिगड़ जाता है।

थेलर का आर्थिक मनोविज्ञान आपको फिजूलखर्ची की वजह बताकर फिजूलखर्ची रोकने में अत्यंत सहायक है। हम लोगों को बचपन से घर के बुजुर्ग प्राय: थेलर जैसी अर्थव्यवस्था के बारे में सिखाते रहते हैं, परंतु समय के साथ हम उसे भूल जाते हैं। लेकिन वर्ष 2017 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार ने पुन: हमें तार्किक उपभोक्ता बनने तथा फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए प्रेरित किया है।

(कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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