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Fathers Day 2021: जिंदगी के मार्गदर्शक हैं पिता

Fathers Day 2021: बच्चे के लिए पिता एक एहसास, मार्गदर्शक, गुरु, शिक्षक ये सब होता है। जिसके बारे में बयां करना बहुत मुश्किल है।

Shreya
Published By Shreya
Published on: 20 Jun 2021 1:29 PM IST
Fathers Day 2021: जिंदगी के मार्गदर्शक हैं पिता
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फादर्स डे (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Fathers Day 2021: फादर्स डे पर अमरेन्द्र यादव द्वारा लिखी सुंदर कविता-

जो निंदो में भी याद आ जाए।

हर पल हमारे बीच एक दोस्त की तरह हो जाए।

कहीं किसी परेशानी में हो तो हमसे बेहतर उपाय बताए।

अपने बड़े होने का एहसास हमें दिलाए।

वो हैं पापा... जो महज 3 महीने का था तबसे सबने बोलना है सिखाए।

कैसे बयां करूं कैसे अनुभव किया होगा जब पहली बार उन्होंने मुझे गोद में है उठाए।

शायद एक सुकून सा मिला, भरोसे का जो एक दिन उनका कंधा बन जाए।


लुढ़क लुढ़क कर चलना हो या उंगली पकड़ के चलने का पहला प्रयास, हर चीज पर मुस्कराए।

मेरी हर छोटी छोटी हरकतें, तोतला कर बोलना, पहली बार किसी से झगड़ने पे शाबासी देना, बाल नोचना,

हर चीज कितना है सबको भाए।

पांच वर्ष का हुआ, तबसे ममता की वो आपार ढेर पता नहीं कहां है वो छुपाए।

अब कभी गलतियों पे डांटे तो कभी पढ़ने जैसे कठिन कार्य के लिए धमकाए।

कभी गलत सही के बीच फर्क समझाए।

तो कभी सही पे भी है हमने खूब कुटाए।

बचपन भी न क्या वो दिन होते हैं... बेवजह अनचाहे गलतियों के भंडार है लग जाए।

बारह वर्षों तक सिलसिला ये चल जाए जब एक मौका उनसे अलग होने का हो पाए।

स्कूल, दोस्त, शिक्षक बाहर की दुनिया जब इन सब की बात रखना पर जाए।

दूरियां बढ़ती जाए, स्वयं का स्वयं के लिए मंथन है बढ़ता जाए।

20 वर्ष तक जब ये घड़ी चले आए, तब उनपे ही है कुछ संदेह हो जाए।

जैसे स्वयं ज्ञान का समंदर और वो प्रश्न के दायरे में आ जाए।

इन उलझनों से बाहर आए तब तक एक चौथाई जिंदगी का हिस्सा है बीत जाए।


अब बड़ा हो गया हूं, समझदार भी, अंगूली पकड़ कर नहीं चलता पर सच तो ये है कि बिना अंगूली डोर के सहारे एक पग भी न चला जाए।

कैसे किसी का पापा बुढ़ापे में है बोझ बन जाए।

नतमस्तक हूं उन रिश्तों का जो जन्म से ही है जुड़ जाए।

एकलौले मित्र जो बिना अपनी परवाह किए हमेशा अच्छी राह बतलाए

कठिनाइयों से लड़ना, लक्ष्य के लिए संघर्ष करना सिखाए।

सच तो ये है पापा क्या है, जब पहली बार आप स्वयं पुत्र अनुभूति का गौरव पाए

जब कोई स्वयं पिता होने का सौभाग्य पाए।

- अमरेन्द्र यादव (कविता के लेखक)

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