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Father's Day 2024: उन्हें शुभकामनाएं कैसे दें

Father's Day 2024: मां अगर लाल पलाश का फूल होती है, पूरी तरह औषधीय तो पापा होते हैं शुभ्र फूलों से लदे-फदे हरसिंगार की तरह।

Anshu Sarda Anvi
Published on: 16 Jun 2024 12:03 PM IST
Fathers Day 2024
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Father's Day 2024

Father's Day 2024: कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो शब्दों में छोटे पर अर्थ में बहुत गहरे होते हैं जैसे -माता और पिता। उन पर लिखना असंभव तो नहीं पर मुश्किल जरूर होता है। उन पर लिखना ठीक वैसे ही जैसे कहानी का कोई पृष्ठ अधूरा रह जाता है क्योंकि सही शब्द नहीं मिलते हैं अपने भावों को व्यक्त करने के लिए। क्योंकि शब्दावली खो जाती है उनका पर्यायवाची ढूंढने में, क्योंकि हमारा कौशल, हमारी कला, हमारी प्रकृति सभी वहां निष्क्रिय हो जाते हैं अपार विस्तार के बाद भी। मां अगर लाल पलाश का फूल होती है, पूरी तरह औषधीय तो पापा होते हैं शुभ्र फूलों से लदे-फदे हरसिंगार की तरह। मां अगर कविता होती है राग-रागनियों से लबरेज, जिसमें उसकी भावनाओं का अर्थ सिर्फ उसके शब्दों में ही नहीं होता है बल्कि बहुत कुछ उसकी लय और ताल में भी मिला हुआ होता है। तो पापा होते हैं एक गद्य की भांति, लगता है बड़ा ही आसान है पढ़ लेना पर, पर क्या वाकई आसान लगा आपको उस पापा रूपी गद्य को पढ़ लेना। नहीं न। क्योंकि उस गद्य में कहीं विराम, कहीं टूटे, बिखरे और अधूरे वाक्य, भाषा और शब्द होते हैं, पर फिर भी जिसके हर वाक्य की अपनी विशिष्टता होती है।

'पापा' यह कह देने भर से ही ऐसा लगता है मानो चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बन गया हो, जो हमारे ऊपर किसी मुसीबत को न आने दे। यह कहते ही लगता है कि हमें कोई मजबूत सहारा मिल गया हो, खुद को संभालने के लिए। यह कह देने भर से ही लगता है कि एक वितान तान दिया हो हमारे सिर के ऊपर, ऊपरी कष्टों से बचाने के लिए। यह पिता ही तो होते हैं, जिनका साथ और सहयोग हौंसला देता है बच्चों के मनोबल को मजबूत करने में है। यह पिता ही तो होते हैं जो सबसे ज्यादा खुश होते हैं अपने बच्चों की प्रगति पर, चाहे वे उम्र के किसी भी दौर में पहुंच जाएं। यह पिता ही तो होते हैं जिनका संबल बचपन में ही बच्चों के विकास की नींव डाल देता है। हमारा समय था जब पिता अपने बच्चों से उतना खुले नहीं थे पर उनका अनुशासन कड़ा था। ऊपरी तौर पर नजर बच्चों पर होती थी या नहीं, यह पता नहीं चलता था पर अंदरूनी तौर पर उन्हें बच्चों की हर जानकारी हुआ करती थी। उनका शासन कहें या अनुशासन कहें जो भी कहें उसके बल पर उन्होंने अपने बच्चों को बेहतरीन जिंदगी जीने लायक खड़ा कर दिया है। वह चाहें बच्चों के साथ हों या नहीं पर उनका शासन, अनुशासन बच्चों के साथ हमेशा बना रहता है।

समय बदला है और पिताओं की भूमिका भी कुछ बदल गई है समय के साथ। अब भी पिता अपने बच्चों के साथ होते हैं बल्कि ज्यादा साथ होते हैं और उन्हें समय देना चाहते हैं। पिता अब बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरुरत में मां के समान उनके साथ होते हैं। उनके पास खड़े होते हैं उनकी उपलब्धियों में। अब पिता बच्चों के साथ शासन या अनुशासन का व्यवहार नहीं करते बल्कि कुछ-कुछ दोस्ताना हो गए हैं। उस शासन- अनुशासन का अर्थ अब बदल गया है। वह जानते हैं कि अनुशासन आज भी उनके बच्चों के सही और संतुलित विकास के लिए जरूरी है पर वह यह भी जानते हैं कि उनके पिता वाला अनुशासन अब आज की पीढ़ी पर लागू नहीं किया जा सकता है। पहले पिता बच्चों को काम सीखने, करने की हिदायतें देते थे पर अब पिता उनके कामों में सहयोग देते हैं। भूमिकाएं बदली हैं ,पिता भी बदले हैं‌ पर भावनाएं वही हैं। आज पिता अपने बच्चों को अगर अकेले खड़े रहना सिखाते हैं तो हर कदम पर उसके साथ चलने के लिए भी तैयार रहते हैं।

ओह। यह मन भी कहां से कहां चला जाता है। आज 'फादर्स डे' है, सोचा था जरूर कुछ लिखूंगी उनके लिए जो हमारे जन्मदाता हैं, जिन्होंने हमें अपना नाम दिया, जिन्होंने चलने के साथ-साथ गिरना और फिर उठना भी सिखाया, जिसे सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में ' मेखलाकार पर्वत' भी कहा जा सकता है यानी पापा। जिसके अर्थ में गहराई होती है या यह भी कह सकते हैं कि गहराई में उतरने से उनके संघर्षों का अर्थ समझ आता है। इसे 'फादर्स डे' ही यहां रहने दिया है क्योंकि यह जैसी देन है, उसको वैसे ही रखना उचित लगा बजाय इसको 'पितृ दिवस' करने के। पिता इस भौतिक दुनिया में हमारे साथ हो या न हो पर उनका प्रभाव हमारी जिंदगी पर, हमारे ऊपर हमेशा ही बना रहता है। उनकी यादें हमारे संग-संग हमेशा ही रहती हैं, हमारे आलोचक के साथ-साथ प्रशंसक के रूप में भी। अगर आपके पास पिता हैं तो जरूर उन्हें आज उनकी आपके जीवन में महत्ता का अहसास कराइये।

" कैसे दे उन्हें आज 'फादर्स डे' की हार्दिक शुभकामनाएं

जो निकल गए कभी न वापस आने के सफर पर"



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Shalini singh

Shalini singh

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