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अंतत:, लो हो गया ना एनजीटी (नेशनल गॉडफादर टीम)
आलोक अवस्थी
एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को हरिद्वार के खनन पट्टों पर रोक लगाते समय ये साफ करना चाहिए था कि उसके इस निर्णय के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं है। अब ऐसा न करने के कारण बेमतलब के मतलब ढूंढे जा रहे हैं। मौजूदा हालात में बीजेपी के अपने एनजीटी (नेशनल गॉडफादर टीम) यानी मोदी-अमित मंडल पर खामखां शक की सुई जाती दिखाई देती है। क्यों न दिखे हरिद्वार पर रोक और डोईवाला में काम चालू!! टीएसआर (त्रिवेंद्र सिंह रावत) का इलाका है डोईवाला। अब यहां काम चलेगा और हरिद्वार की दुकान पर ताला लगेगा तो शक तो लाजमी है भाई। अगर आपकी याद ताजा न रही हो तो पिछले 10 दिन पहले का कैलेंडर उठाकर देख लीजिए।
अखबार की सुर्खियां बन गई थी हरिद्वार की चैंपियनशिप प्रतियोगिता और अपने डॉक्टर साहब की चाय। याद है कि उसे भी याद दिलाना पड़ेगा। तभी मैंने लिखा था यह चाय बड़ी महंगी पड़ेगी, तब तो किसी ने सीरियसली लिया नहीं...अब भुगतो। कहा था कि टीएसआर भवन से पंगा मत लो। बड़ों के दंगल में तब तो बड़ा मजा आ रहा था। अब शुरू हो गया ना.. मंगल खत्म, अमंगल जारी!! बहुत गड़े मुर्दे खोदने की प्रतियोगिता को प्रोत्साहन कार्यक्रम चल रहा था, अब भुगतो।
चले थे 1857 की गदर करने...अब अपने ही पत्थर अपने सर पर फोड़ो। अच्छी खासी चलती दुकान पर खुद ही ताला जड़ दिया। लोग कुल्हाड़ी से पेड़ काटते हैं यहां पत्थर से तोड़ लिया। अपनी पार्टी के एनजीटी के इशारे को भी जो ठीक से नहीं समझते उनको भुगतना ही पड़ता है, खुद भी भुगते पूरे जिले को भी भुगता दिया। डॉक्टर साहब की फार्मूला रेस बेचारे मदन गोपाल पर भी भारी पड़ गई। बिना लिए दिए ही उनके अपने यात्री भी प्रसाद पा गए। बड़ी मुश्किल से धंधा चला था। सीजन शुरू ही हुआ था की नजर लग गई। अपने जिले का दीपक पहले ही काम नहीं आ रहा था। अब पावर हाउस से पंगा मोल ले लिया। बड़ा मजा आ रहा था शोले के ठाकुर साहब के डायलॉग पर और गब्बर हाथ ले गया। किसी तरह शाल ओढक़र इज्जत बचाए घूम रहे हैं। नित्यकर्म तक जाने अब कैसे निपटा रहे होंगे। बहुत होली सवार थी तो एनजीटी ने खेल ली। बसंती की इज्जत धन्नो के हाथ में है। पता नहीं अब क्या होगा। बड़ा सुर लगाके गा रही थी जब तक है जान मैं नाचूंगी, अब नाचो।
एनजीटी सब देखता है, टीएसआर से सीखो। नार्थ ईस्ट ठीक तो सब ठीक। होली के हुलयार में वीर रस की कविता हास्य गति को ही प्राप्त होती है, पता नहीं साहित्यकार लोग यह क्यों नहीं समझ पाते। मंचीय कवियों को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए। अवसर देखकर ही रचना का प्रस्तुतीकरण करें। चलो कोई बात नहीं गिरते हैं शह सवार ही मैदान-ए-जंग में। गिरे तो गिर गए चलो बाकी सवारों के लिए तो सबक बन ही गए। मैं तो हरिद्वार के लिए परेशान हूं पूरा जिला झेल गया। बंदर की बला तबेले वाले झेल रहे हैं। अब चाय तो छोड़ो श्राद्ध का प्रसाद ग्रहण करने के पूर्व टीएसआर भवन के इशारे का इंतजार करेंगे। इतनी समझ तो अब आ ही गई है। हवन में हाथ नहीं जलाए जाते। जजमान की दक्षिणा पंडों के जीवन से कीमती कभी नहीं होती।
तो कमल छाप भक्तों इस पूरे प्रकरण या प्रहसन से क्या शिक्षा मिली. कि दूसरे की फटे से पहले अपने फटे की चिंता करो। अपनी बीमारी के इलाज के लिए टीएसआर भवन के प्रामाणित डॉक्टर से ही इलाज करवाओ। अपनी भावना को बस में रखो, ज्यादा ठाकुर के चक्कर में मत पड़ो। जब भी कोई ठाकुर शाल ओढ़े दिखे तो उससे सीमित दूरी बनाओ। खाम खां जय-वीरू बनने की कोशिश मत करो। जय का निपटना तय है, बसंती की वीरु के साथ कब तक निभेगी पता नहीं। बसंती की इज्जत के चक्कर में धन्नो कतई मत बनो, वरना एनजीटी गति को प्राप्त हो जाओगे।
अंत में जेलर साहब की तरह आधे दाएं आधे आधे बाएं और तुम्हारे पीछे साया भी नहीं होगा क्योंकि जब तक एनजीटी मेहरबान, टीएसआर पहलवान। कुछ समझ में आया मेहरबान? नहीं भी आया तो भी ताली बजाओ।
(संपादक उत्तराखंड संस्करण)