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अंतत: हारे को हरि नाम, खोज कर मानेंगे कि कांग्रेस के ‘पंजे’ से उत्तराखंड कैसे फिसला

raghvendra
Published on: 12 Jan 2018 2:14 PM IST
अंतत: हारे को हरि नाम, खोज कर मानेंगे कि कांग्रेस के ‘पंजे’ से उत्तराखंड कैसे फिसला
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आलोक अवस्थी

दो-दो जगहों से हारने के नौ महीने बाद अपने ‘हरदा’ (हरीश रावत) हार के कारणों की जांच परख के लिए इस पहाड़ से उस पहाड़ तक निकलने जा रहे हैं.. जय हो॥ बड़े नेता हैं.. बड़ा फैसला लेने में भी बड़ी देर लगाते हैं.. बेकार जहमत उठाने चले हैं, किसी भी कांग्रेसी से पूछ लेते, बता देता.. ओहहो.. पूछते भी तो किससे अब कांग्रेस बची ही कहा? ‘हरदा’ को तो कोई पूछ नहीं रहा ये भला किससे पूछते.. थक गए इंतजार करते-करते पूरे 9 महीने हो गए इनको भी कोई नहीं मिला पूछने वाला..लोग बाग आम दर्शक मंडल में शामिल न कर लें इसी डर से ‘हरदा’ स्वत: रीचार्ज होकर निकलने की ठान बैठे.. गुजरात के दौरे में राहुल बाबा की आध्यात्मिक यात्रा है ही मार्ग दिखाने के लिए तो ‘हरदा’ ने तय किया कि जहां भी जाएंगे देवी-देवताओं को सिर नवाते जायेंगे.. गांव गांव गली गली खोज कर मानेंगे कि कांग्रेस के ‘पंजे’ से उत्तराखंड कैसे फिसला..

‘हरदा’ ने तो वही किया जो ‘आलाकमान’ करता है दादा भी सरकार मिलते ही रावत प्राइवेट लिमिटेड बनाने में लग गए.. और ऐसा लगे कि सारे पुराने मुलाजिमों तक को निपटा बैठे.. मुलाजिमों को निपटा बैठे। अब हार का हार पहनने के लिए कोई गर्दन बची ही नहीं जिस पर ताने उंगली, एक उंगली दूसरों पर उठाते हैं तो तीन उंगलियां जुड़ उनके ऊपर तनी जा रही हैं अरे कोई तो सामूहिक जिम्मेदारी लो?

अब थक हारकर ‘हरदा’ ने मोर्चा उठा लिया.. कोई नहीं अब ठीकरा त्रिवेंद्र सिंह रावत पर फोड़ कर रहेंगे.. अपनी कमियां तो कैसे और किस पर मढ़ें.. अपने रावतों के फैलाएं रायते पर फिसलने से अच्छा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पर टूट पड़ो.. और अब बेचारे कमल छाप रावत की खैर नहीं.. पहाड़ का शेर निकलने जा रहा है रावत जी की खबर लेने ‘रावत बनाम रावत’ बड़ी मेहनत से फेहरिस्त तैयार की है एक एक एक पहाड़ी पर एक-एक सवाल दागा जाएगा यह क्यों नहीं किया.. तो वह क्यों नहीं किया..

‘कुर्सी नशीन रावत’ पूरे मौज में है वह वैसे ही जवाब नहीं देते.. घर के पडोसी शूरवीर भट्ट साहब हैं ना वह रावत चाहे भले न हों परन्तु हरदा को जानते ठीक से हैं वो निपट ही लेंगे.. दाजू अजय दा जिंदाबाद! अजय दा को भी लड़ाई बराबर की लगती है.. पिछले पूरे कार्यकाल में रावत जी से लड़ते-लड़ते अभ्यस्त हो गए हैं..अब सरकार में कामकाज कुछ मिला नहीं.. और अपने पर टिप्पणी कर सकते नहीं तो चलो ‘हरदा’ से निपटने बहुत मजा आएगा.. जाड़ा बहुत है हाथ जेब से बाहर नहीं आ रहे.. जबान जबान चला चला कर खूब ‘जै जबान जै परेशान’ के नारे बुलंद होंगे.. अब तो वैसे भी सारे विभीषण अजय दा के साथ हैं.. सर से नाभी तक की सारी सूचनाएं हैं.. कुछ कमी नहीं रहेगी.. बहुत मजा आने वाला है

पूरी बीजेपी परेशान है अपने संभलते नहीं अपनी कमियां अपने मुंह से निकलती भी नहीं,,‘हरदा’ की कमी अखर रही थी.. कोई अपना तो मिले जो हमारे ‘अपने’ पर बाण छोड़ सके.. कसम से ‘मनकसमसा’ रहा है.. अपने रावत पर कोई उंगली उठाओ.. दाजू इतनी खामोशी नहीं सही जाती.. कब तक अपने मुंह में थूक भरे रहें.. अब जाकर चैन पड़ी.. ‘हरदा’ आपको पूरी डूबी हुई ‘कमलछाप’ हुई कांग्रेस की कसम है..आओ करो जी भर के बेईज्जती..

‘डबल इंजन’ मोदी मॉडल की खोज और ना जाने क्या-क्या.. ‘हरदा’ एकदम ‘वास्कोडिगामा’ बनने जा रहे हैं.. शर्लक होम्स की तरह जाड़े में कैप लगाकर गांव गांव कस्बे कस्बे तक हरदा अब जाकर मानेंगे क्या पता बीजेपी की कमियां ढूंढते ढूंढते कोई कांग्रेसी भी मिल जाए.. जिस पर हार का ‘दारोमदार’ डाला जा सके

एक आग्रह है कि गलती से भी ‘रंजीत दा’ को अपने साथ मत ले जाइएगा.. वरना डर के मारे कोई भी अपने मन की बात आपसे नहीं कर पाएगा.. और हां याद रखिए कि आप फैमिली पर टूर पर नहीं जा रहे हैं..वरना सब को फिर पुराने दिन याद आ जाएंगे.. आप पराजय का कारण तलाशने निकले हैं कहीं लोग आपकी फैमिली की ओर ही इशारा न कर दे.. दाजू पहाड़ी लोग हैं भोले हैं कई सच न बोल दें.. फिर आप उन्हें भी कमल छाप बताते घूमें.. वैसे हरदा आपके साहस को प्रणाम है.. आप हारे का हरिनाम हैं..।

(संपादक उत्तराखंड संस्करण)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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