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भाषा संघर्ष का पहला शहीद

आजाद भारत राष्ट्र को भाषावार राज्यों में पुनर्गठित करने की मांग पर ठीक आज के दिन (15 दिसम्बर 1952) स्वाधीनता सेनानी, तेलुगुभाषी, प्रखर गांधीवादी पोट्टि श्रीरामुलु 69 दिनों बाद भूख हड़ताल के कारण शहीद हो गये थे।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shashi kant gautam
Published on: 15 Dec 2021 3:57 PM GMT
first martyr of language struggle
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प्रखर गांधीवादी पोट्टि श्रीरामुलु का संघर्ष 

आज 69 वर्ष गुजरे, आजाद भारत (free india) के सर्वप्रथम भाषावार राज्य (आंध्र प्रदेश) (First language wise state (Andhra Pradesh) की घोषणा के। प्रत्येक भाषाप्रेमी के लिये यह संदर्भ लेख प्रस्तुत है। आजाद भारत राष्ट्र को भाषावार राज्यों में पुनर्गठित करने की मांग पर ठीक आज के दिन (15 दिसम्बर 1952) स्वाधीनता सेनानी, तेलुगुभाषी, प्रखर गांधीवादी पोट्टि श्रीरामुलु 69 दिनों बाद भूख हड़ताल के कारण शहीद हो गये थे। बहुभाषीय मद्रास प्रेसिडेंसी को विभाजित कर आंध्र प्रदेश की स्थापना हेतु उनका यह अनशन था।

जब प्रथम भाषावार राज्य आंध्र बना था, तो लोगों ने महसूस किया था कि स्वाधीन भारत अब जनभाषा (vernacular) की उपेक्षा असहाय और अक्षम्य है। मांग की गयी कि बर्तानवी साम्राज्यवाद द्वारा प्रशासकीय सुलभता के लिए बनाये गये प्रदेशों का भौगोलिक पुनर्गठन (geographical reorganization of territories) लोक भाषा के आधार पर हो। आंध्र राज्य के बनने के तुरंत बाद ही (अंग्रेजी साम्राज्यवादी सुविधा के सिद्धांत पर बने भारत राष्ट्र का) कन्नड, मलयालयम, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के आधार पर सीमांकन हुआ। सिलसिला थमा जब हिन्दीभाषी हरियाणा (1 नवम्बर 1966) को निर्मित हुआ था।

भारत के विभाजन की नींव

अमरजीवी, शहीद पोट्टि श्रीरामुलु का उत्सर्ग राष्ट्रीय कांग्रेस के 22—26 दिसम्बर 1926 के दिन सम्पन्न 41वें सम्मेलन में काकीनाडा नगर में पारित उस प्रस्ताव के क्रियान्वयन हेतु था जिसमें निर्दिष्ट था कि जब भी देश इंग्लिश राज से मुक्त होगा भारत का भौगोलिक मानचित्र विभिन्न आंचलिक भाषाओं (regional languages) के आधार पर बनेगा। मगर आजादी के बाद अंग्रेजी छाई रही। काकीनाडा तेलुगुभाषी क्षेत्र के गोदावरी तट पर बसी ऐतिहासिक चालुक्य वंशवाली राजधानी थी। भाषा वाले प्रस्ताव के अलावा काकीनाडा का कांग्रेस अधिवेशन एक अन्य घटना के लिये भी स्मरणीय है। यह सम्मेलन मौलाना मोहम्मद अली जौहर, रामपुरवाले, की अध्यक्षता में हुआ था। मौलाना तब सभापति पद तजकर वाक आउट कर गये थे क्योंकि संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने ''वंदे मातरम्'' गाया था। इसे इस्लाम—विरोधी बताकर मोहम्मद अली ने बहिष्कार किया। यही से भारत के विभाजन की नींव भी पड़ी थी।

जब स्वाधीनता के सात साल बीतने पर भी काकीनाडा वाला तीन दशक पुराना भाषासंबंधी प्रस्ताव ठण्ड़े बस्ते में ही पड़ा रहा तो श्रीरामुलु ने पुरानी मांग के सम​र्थन में भूख हड़ताल शुरु कर दी। उसके आज सात दशक बीते, आजाद भारत के सर्वप्रथम भाषावार राज्य (आंध्र प्रदेश) का ऐलान हुये। मगर 56 दिन के अनशन के बाद स्वाधीनता सेना, तेलुगुभाषी, गांधीवादी पोट्टि श्रीरामुलु शहीद हो गये थे। उनके पूर्व भगत सिंह थे युवा साथी जतीन दास 63 दिन तक लाहौर में अनशन कर अमर हो गये थे।

पंडित जवाहरलाल नेहरु का हठ

इतिहासकार स्वीकारते है कि यदि जवाहरलाल नेहरु (Jawaharlal Nehru) अपना हठ तज कर कांग्रेस के काकीनाडा वाले प्रस्ताव को लागू कर देते तो श्रीरामुलु के प्राण बच सकते थे। जब श्रीरामुलु की भूख हड़ताल के दो माह बीते तो मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी से नेहरु ने मद्रास की सार्वजनिक स्थिति पूछी। तब तक जनाक्रोश बढ़ गया था। फिर भी राजगोपालाचारी ने कहा कि यह साधारण अनशन है जो शीघ्र तोड़ दिया जायेगा। मगर पोट्टि श्रीरामुलु के निधन के बाद समूचा दक्षिण भारत कट गया। रेल की पटरियां उखड़ गयीं। फिर भी अपने आप्त बंधु राजगोपालाचारी का पल्लू प्रधानमंत्री थामे रहे। उस वक्त राजगोपालाचारी का विरोध लगभग सभी वरिष्ठ स्वाधीनता सेनानी कर रहे थे। उनमें थे डा. बी. पट्टाभि सीतारामय्या, टी. प्रकाशम आदि थे। य​ही वह राजगोपालाचारी थे जिन्हें नेहरु ने गवर्नर जनरल माउंटबैटन के बाद भारत गणतंत्र का प्रथम राष्ट्रपति बनाना चाहा था। मगर सरदार पटेल ने इसका विरोध किया। राजगोपालाचारी ने अगस्त 1942 के ''भारत छोड़ो'' आन्दोलन का विरोध किया था। जेल नहीं गये थे। मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान वाले प्रस्ताव का समर्थन किया था।

यह कलंक तो अमिट है कि एक स्वाधीनता सेनानी के प्राणों की आहुति निजी सियासत के पक्ष और हित में चढ़ा दी गयी। आज हर भाषाप्रेमी पोट्टि श्रीरामुलु को उनके महान उत्सर्ग पर याद करता हैं।

Shashi kant gautam

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