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वाटरगेट साजिश के पांच दशक

राजधानी वाशिंगटन में पोटेमेक नदी के निकटवाला स्थल। स्मृति पटल को पोछिये। दमक कर याद आ जायेगा। ठीक पचास साल पुरानी

K Vikram Rao
Published on: 1 April 2021 9:11 PM IST
वाटरगेट साजिश के पांच दशक
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वाशिंगटन में पोटेमेक नदी(सोशल मीडिया)

नई दिल्लीःवाटरेगट ? राजधानी वाशिंगटन में पोटेमेक नदी के निकटवाला स्थल। स्मृति पटल को पोछिये। दमक कर याद आ जायेगा। ठीक पचास साल पुरानी (रविवार, 18 जून 1972 की) खबर है। तब सर्वशक्तिमान अमेरिका के महाबलशाली रिचर्ड मिलहाउस निक्सन पर विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यालय में सेंधमारी के कारण महाभियोग चला था। निक्सन ने ल​ज्जा के मारे त्यागपत्र दे दिया था। जलील हुये। खलनायकी का इतिहास रचा। उस दौर में हीरो थे हमपेशेवर दो अदना रिपोर्टर—एक उन्नीस साल का तो दूसरा बीस का। तेज तर्रार थे, उभरती हुयी जवानी थी, इसीलिये निडर थे। फिर काहे का, किससे डर? उनके साहस से खोजी पत्रकारिता विश्व में कीर्ति के एवरेस्ट पर चढ़ गयी थी।

मीडिया संस्थानों में भर्ती के नये रिकार्ड बन रहे थे। युवजन में सैनिक के बाद श्रमजीवी पत्रकार बनने की आकांक्षा कुलाचे भर रही थी। राष्ट्रपति को गिराने वाले इस युवाद्वय ने युगांतरकारी घटना को अंजाम दिया था। दुनिया के हम जैसे रिपोर्टरों के लिये वे सदा यादगार हैं। वाटरगेट साजिश को निर्भयता से पर्दाफाश करने वाले वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार युगों तक आराध्य रहेंगे। अनुकरणीय उदाहरण हैं।

आज यह घटना बरबस याद आ गयी। कारण है। इस कलंकपूर्ण वाटरगेट हादसे के मूल रचनाकार और रिचर्ड निक्सन के खास साथी जार्ज गार्डन लिड्डी का कल नब्बे वर्ष की आयु में वर्जीनिया में निधन हो गया। उनकी स्मृतिमात्र से पत्रकारी शौर्य की गाथा आखों के सामने आ गयी। मानों कल की बात हो। कल निधन तक अपने किये पर उनमें लेशमात्र पश्चाताप भी नहीं दिखा। बल्कि टीवी पर तेवर तर्रार भरे ही रहते थे। अपनी कार में शान से प्लेट लगाते थे : ''एच—टू—गेट'' (पानी का रासायिनिक फार्मूला है)। वाटरगेट काण्ड की बहादुरी को बिल्ला माने बैठे थे।

सालो से जेल काटने के बाद उन्हें राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने माफी दे दी। तब ये साजिशकर्ता रिहा हुआ था। चार दशकों तक वे बेशर्मी से अपने वाटरगेट वाले हिम्मती कारनामें के किस्से टीवी पर सुनाते थे। बताते थे कि एडोल्फ हिटलर उनसे बात किया करता था।

क्या संयोग था। उस वर्ष (1971) ही मेरी मुम्बई से अहमदाबाद फिर बडोदरा पोस्टिंग हुयी। मेरी पहली ही स्टोरी ''टाइम्स'' के लिये थी कि ''वाशिंगटन के वाटरगेट'' की भांति बडोदरा में भी एक पानी गेट है। मगर वह केवल ऐतिहासिक द्वार है जो मांडवी मोहल्ले के पास है। वहां पानी की बूंद तक नहीं है। गायकवाड नरेशों ने बनवाया था। यह पानी गेट बडोदरा नगर की पूर्वी दिशा में किलाये—दौलताबाद के नाम से मशहूर है जो अजब तथा राजे झीलों के समीप है। इसे राजा खलील खान ने बनवाया था। इसमें जालीदार झरोखे पर कमल के निशान बने है। इसी पर एक झुका हुआ लोहे का छड़नुमा टुकड़ा लगा है जिसे बड़ौदा की नाक कहा जाता है।

फिलहाल राजधानी वाशिंगटन में छह इमारतों से बना बहुमंजलीय वाटरगेट होटल है। यहां की विशाल छठी मंजिल पर डेमोक्रेटिक पार्टी ने (1971) राष्ट्रपति चुनाव में अपना अभियान मुख्यालय खोला था। वहां दिवंगत गोर्डन लिड्डी ने कुछ बढ़ई लोगों की मदद से उस कार्यालय में जासूसी करने की योजना रची और विपक्षी के दस्तावेज चुराये थे। पुलिसिया जांच के दौरान चौकीदार फ्रैंक विल्स ने कुछ अजनबियों को सेंध मारते पकड़ा। पता चला वे सब सत्तारुढ रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक, गुप्तचर थे। गिरफ्तार हुये। वह दिन शनिवार था। तारीख 17 जून 1972 जब यह पांच सेंधमार पकड़े गये थे। दैनिक ''वाशिंगटन पोस्ट'' के रिपोर्टर कक्ष में फोन की घंटी बजी। संवादददाता एल्फ्रेड लीविस को सूचना मिली कि डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यालय में सेंधमार पकड़े गये। तभी यशस्वी संपादक बेन ब्रेडली ने नगर संस्करण संपादक बेर्री सुस्मेन को विवरण मंगाने का निर्देश दिया।

तब कार्यालय में बाब वुडवर्ड था। सक्षम संवाददाता जो रिपोर्टर बनने के पूर्व अमेरिकी नौसेना में नौ वर्ष तक सेवारत था। साथ में कार्ल बर्नस्टेइन था जो पुलिस की खबर लाता था। उस से संपादक को काफी हिचक थी क्योंकि वह दफ्तर को खर्चे का लम्बा चौड़ा बिल देता था, खूब वसूलता था। एक बार तो उसने किराये की मोटरकार ही गुमा दी और तगड़ी रकम प्रबंधन से ले ली। संपादक ने इन दोनों से वाटरगेट में गिरफ्तार सेंधमारों के बारे में जानकारी मंगाई और विस्तृत रपट भी।

दोनों द्वारा कर्मठ और प्राणपण से की गयी तफ्तीश साल भर चली। आखिर में पता चला कि शीर्ष पर राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन है जो राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा लड़ने की तैयारी कर रहे थे। विपक्षी को बदनाम करने की मंशा से डेमेक्रेटिक पार्टी के दस्तावेज और गुप्त फैसलों की जानकारी हासिल की। बाकी रपट सब जानते ही हैं।

बस इतना और कि राष्ट्रपति निक्सन ने विशेषाधिकार के नियम की आड़ में अदालती कार्यवाही का विरोध किया। तब अमेरिका के प्रधान न्यायाधीश वोरेन ई. बर्गर ने निर्णय दिया था कि निक्सन के अक्षम्य अपराध को दंडित करना संवैधानिक मर्यादा की अनिवार्यता है। विवश होकर 8 अगस्त 1972 को शर्मसार राष्ट्रपति ने पदत्याग किया। महाभियोग से बच गये। उपराष्ट्रपति गेरार्ड फोर्ड 38वें राष्ट्रपति बने। निक्सन की यह दूसरी पराजय थी। वे 1960 में जान कैनेडी से हार चुके थे।

मगर रिचर्ड निक्सन का वह दौर ऐतिहासिक और अमेरिका के लिये बड़ा मुफीद था। माओ जेडोंग के आमंत्रण पर फरवरी 1972 में निक्सन कम्युनिस्ट चीन की यात्रा गये। तब तक सोवियत रुस से चीन किनारा कर चुका था। तभी वियतनाम की जनता अमेरिकी साम्राज्यवाद से मुक्ति के लिये संघर्ष कर रही थी। उस छोटे से स्वाभिमानी देश पर परमाणु बम गिराने का निर्णय निक्सन ने ले लिया था। रुस के जवाबी हमले से वह रुक गये। तभी भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति हेतु ढाका के निकट पहुंची थी। निक्सन ने अमेरिकी बेड़े का सांतवा जंगी जहाज रवाना कर दिया। मगर उसके पहुंचने के पूर्व ही पाकिस्तानी जनरल नियाजी तथा टिक्का खान ने आत्म समर्पण कर दिया।

वाटरगेट के बारे में 8 फरवरी 1997, लगभग पच्चीस वर्षों बाद, पीटीआई ने वाशिंग्टन से मिले टेप पर आधारित एक खबर प्रकाशित की थी। इसके अनुसार निक्सन ने स्वयं अपने विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रत्याशी एडवर्ड कैनेडी तथा एडमण्ड मस्की को बदनाम करने हेतु उस सेंधमारी का आदेश दिया था।

पांच दशक बीते। हम संवाददाता लोग ''वाशिंगटन पोस्ट'' के संपादक और दोनों खोजी रिपोर्टरों पर गर्व करते हैं। पर दो प्रश्न अनुत्तरित रह गये। पहला, वाटरगेट काण्ड पर सिवाय वाशिंगटन पोस्ट के शेष समाचार—पत्र और टीवी वाले खामोश क्यों बैठ गये थे ? दूसरा प्रश्न क्या भारतीय समाचारपत्र उद्योग में ''पोस्ट'' की कैथरीन ग्राहम सरीखी स्वामिनी तथा बेन ब्रेडली सदृश निडर संपादक कभी होगा जो सत्ता के शीर्ष को चुनौती दे सकें? कार्ल बर्नस्टेइन और बाब वुडवर्ड जैसे दिलदार रिपोर्टर तो कई मिल ही जायेंगे हैं।

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K Vikram Rao

K Vikram Rao

Senior Writer

लेखक, पत्रकार, 45 वर्षों से मीडिया विश्लेषक, के. विक्रम राव तकरीबन 95 अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और उर्दू पत्रिकाओं के लिए समसामयिक विषयों के स्तंभकार हैं।

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