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Padmashree Vindhyavasini Devi: लोकसंगीत साधिका पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी
Padmashree Vindhyavasini Devi: पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी कवयित्री आ नाट्य लेखिको रहली। मानव' (सन् 1952 ई०) संगीत-पृत्य रुपक प्रकाशित भइल, जवना का बारे में आचार्य शिवपूजन सहाय जी लिखली-"लोकसंगीत विशारदा श्रीमती विंध्यवासिनी देवी बिहार की सबसे पहली महिला है।
Padmashri Vindhyavasini Devi: आखर परिवार, बिहार के महान लोक गायिका बिहार के हर भाषा के आपन आवाज देबे वाली सुर के देवी विंध्यवासिनी देवी जी के पुण्यतिथि प बेर बेर नमन क रहल बा। 50,000 भोजपुरी, मैथिली, बज्जिका आ मगही लोकगीतन के अपना सुर-ताल, आरोह-अवरोह आ गति-त्वरा, लय-मात्रा का साथे अपना कंठ में बसावे वाली पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी जी के जन्म 5 मार्च, 1920 के भइल रहे। विंध्यवासिनी देवी जी के संपूर्ण जीवन लोकसंगीत के समर्पित रहे। आर्य कन्या विद्यालय, नया टोला, पटना के संगीत शिक्षिका (सन् 1945-54 ई०) आकाशवाणी के पटना केन्द्र के लोकगीत गायिका आ लोकगीत प्रोड्यूसर (सन् 1948-1980 ई०), सदस्य, संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली (सन् 1959 ई०); सदस्य, श्रव्य दृश्य परिषद, शिक्षा विभाग, बिहार आ फेलो, संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली (सन् 2000-2006 ई०) विन्ध्यावासिनी देवी के सन् 1954 ई० में भारत के पहिलका राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वर्ण पदक दे के सम्मानित कइली ओकरा बाद अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, देवी अहिल्या बाई पुरस्कार (मध्यप्रदेश). संगीत शिरोमणि, बिहार रत्न', 'बिहार गौरव' का साथे- साथ संगीत नाटक अकादमी के यशस्वी 'रत्न पुरस्कार' उहाँ का लोकगीत का दिसाई महत्वपूर्ण सेवा खातिर मिलल।
सन् 1976 ई० में ही विंध्यवासिनी देवी के भारत सरकार 'पद्मश्री' से अलंकृत कर चुकल रहे। भारत सरकार का ओर से पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी सन् 1976 ई० में मॉरीशस गइली आ अपना लोकगीतन के गायन खातिर ना खाली श्री वजेन्द्र मधुकर द्वारा अभिनन्दित भइली; बलुक ओह देश के भारतवंशी समाज के 'मौसी' बन गइली। अपना जीवन का अन्तिम क्षण तक ऊ विन्ध्य कला मंदिर संगीत महाविद्यालय, पटना के निदेशक के पद पर कार्यशील रहली। लोकगीत, लोकनृत्य, लोकनाट्य आ शास्त्रीय संगीत के विधिवत शिक्षा आ प्रशिक्षण का एह संस्था के स्थापना पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी अपना पति (अब स्वर्गीय) सहदेवेश्वर चन्द्र प्रसाद वर्मा का सहयोग से सन् 1949 ई० में कइले रही। स्व० वर्मा जी विंध्यवासिनी देवी के पतिये ना, इनकर प्रथम संगीत गुरु आ पारसी थियेटर के मंझल कलाकार आ सफल निदेशक रहली। उहाँ के सतत् सहयोग, मार्गदर्शन आ प्रोत्साहन देवीजी के मिलल, जवना कारण उहाँ के उपलब्धि के राह पर ऊँचाई तक पहुँच गइली। लोकसंगीत का विश्व सांस्कृतिक इतिहास के एगो सुनहरा अध्याय के समापन 18 अप्रैल, 2006 के बरह्म मुहुर्त्त में हो गइल।
पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी कवयित्री आ नाट्य लेखिको रहली। मानव' (सन् 1952 ई०) संगीत-पृत्य रुपक प्रकाशित भइल, जवना का बारे में आचार्य शिवपूजन सहाय जी लिखली-"लोकसंगीत विशारदा श्रीमती विंध्यवासिनी देवी बिहार की सबसे पहली महिला है, जिन्होंने सामाजिक गीतो को शुद्ध और सांस्कृतिक रूप देने का प्रशंसनीय काम किया है।" एकरा अलावे उहाँ का लोकगीतन पर आधारित संगीत-नृत्य रुपक के रचना आ प्रसारण कइली, ओह में कुछ प्रमुख बा -वर्षा मंगल, 'सामा-चकेवा', 'जट-जटिन', 'सुहावन सावन', विवाह मंडप', 'नन्द पर बाजे बधैया', 'जनमे राम रमैया, 'रामलीला, 'राधा ऊधो संवाद', 'जमुना तीरे बाजे बेंसुरिया', 'रासलीला, 'आयल बसंत बहार, चांदनी चितवा चुरावे', 'कान्हा संग खेलब होरी", 'संदेशा', 'सावन उमड़े बदरिया 'चौहट', झिझिया', 'डोमकच, 'बड़ो बराइन', 'पंवडिया', 'वर्धमान महावीर', भगवान बुद्ध', 'वैशाली महिमा 'बटगमिनी', 'बेटी की विदाई, 'सावन आया', 'संयुक्त स्वयंवर तथा 'जय माँ दुर्गे' आदि। एह सभ संगीत नृत्य रुपकन में बिहार के पारपारिक आ देवीजी के स्वरचित लोकगोतन के भरमार बा, चाहे ऊ भोजपुरी, वज्जिका मैथिली आ मगही के होखो। एह चारों लोकभाषा से विंध्यवासिनी देवी के गहिरा लगाव रहे, काहेकि उहाँ के जनम मैथिली क्षेत्र में भइल, बचपन बज्जिका क्षेत्र में बीतल, विवाह भोजपुरी क्षेत्र में भइल आ आजीविका मगही क्षेत्र में रहे। एही से एह सभ लोकभाषा के गीतन पर उहाँ के समान अधिकार रहे।
विंध्यवासिनी देवी लोक रामायण (महाकाव्य) लोकगीत शैली में लिखली। जवना के प्रकाशन मध्यप्रदेश के तुलसी अकादमी से सन् 1998 ई० में भइल। ई अपना में एगो महत्वपूर्ण काम बा। एह रचना के कारण उहाँ के 'लोकगीत के तुलसीदास' कहल उचित होई। सन् 2000 ई० में 'ऋतु गीत' में उहाँ के लिखल लगभग 250 लोकगीत व्याख्या का साथे प्रकाशित भइल बा जवना में लोकधुन, लोक लय आ परम्परागत लोक संगीत के स्वाद मिलत बा। छहो ऋतुयन पर आधारित देवीजी के रचल गीत आ संबंधित ऋतु पर भाव-चित्र से उहाँ के रुचि संपन्नता के बोध होत बा।
इहाँ के लिखल वैशाली माहात्म्य' प्रकाशनाधीन विवादास्पद बा। काश, एकर प्रकाशन संभव हो सकत।पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी कई फिल्म में पार्श्व संगीत दिहले बानी। पद्म श्री विन्ध्यवासिनी देवी से हमार संबंध पारिवारिक रहल बा। ऊ हमार मित्र, सहपाठी आ ऐतिहासिक नाटकन के यशस्वी नाटककार स्व० संतोष कुमार सिन्हा के माताजी रहली ह। पछिला पचास बरिस से अपना निकट संबंध का कारण हमहूँ 'बेटा' के संबोधन पावत रहली हैं आ उहो हमार 'माताजी' संबोधन स्वीकार करत रहली ह। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के बीसवाँ अधिवेशन मार्च, 2006) के पटना में भइल रहे, जवना के अध्यक्षता हम कइलीं ओह अधिवेशन के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के उद्घाटन पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी कइले रही। संभवतः ई उहाँ के अन्तिम जन-उपस्थिति रहे। उद्घाटन का बाद उहाँ के जब विदा करे खातिर हम गाड़ी पर चढ़ावत रही. त कहले रही-'बेटा, बस हो गइल। अब हमार ई अखिरिये बा। अब ना चलब।"
दूनूँ आदमी के आँख में आँसू आ गइल रहे।
हमनी के घर में, संगीत महाविद्यालय में, सभा-सम्मेलन में, संगीत प्रस्तुति में भा आकाशवाणी में हम जतना बेर उनका के देखली, ऊ एगो ग्रामीण महिला जइसन लगली-साड़ी माथा पर, साधारण वेश-भूषा आ बातचीत में सहजता। कहीं से उनका पद आ सम्मान के कवनों अहंकार ना। आत्मीय ढंग से सभे से बातचीत। छोट-छोट कलाकरो के प्रोत्साहन दे के ऊ आपन अगिली पीढ़ी बनावे में लागल रहली। आज हम लोकसंगीत साधिका लोककंठ स्मृतिशेष पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी के स्मृति के प्रणाम करत बानी। आखर परिवार पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी, बिहार के सुर के देवी , लोक भाषा के अप्रतीम गायिका के पुण्यतिथि प याद क रहल बा बेर बेर नमन क रहल बा ।
[अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ( सन् 2007 में ) डॉ तैयब हुसैन पीड़ित जी के लेख जवन पश्चिम बंग भोजपुरी परिषद, कोलकाता के मासिक मुखपत्र 'भोजपुरी माटी' वर्ष 21 अंक 5 मई 2007 में प्रकाशित भइल रहे, ओहि लेख के तनि संसोधन क के एजुगा लगावल जा रहल बा।
(आखर फेसबुक पेज से साभार)