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Foreign Debt on India: क्या भारत अत्यधिक विदेशी कर्ज की समस्या से जूझ रहा है?

Foreign Debt on India: आरबीआई (RBI) की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2021 तक भारत का कुल बाहरी कर्ज 570 बिलियन डॉलर था।

Vikrant Nirmala Singh
Written By Vikrant Nirmala SinghPublished By Chitra Singh
Published on: 4 July 2021 7:07 PM IST
Foreign Debt on India
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नरेंद्र मोदी (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Foreign Debt on India: फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट (Franklin D. Roosevelt) कहते थे कि हमारा राष्ट्रीय ऋण एक आंतरिक ऋण है, जो न केवल राष्ट्र का बल्कि राष्ट्र के लोगों का भी है। यदि हमारे बच्चों को इस पर ब्याज देना हो तो वे उस ब्याज का भुगतान स्वयं करेंगे। यह आंतरिक ऋण हमारे बच्चों को गरीब या राष्ट्र को दिवालियेपन (Bankruptcy) में नहीं डालेगा। यह बातें किसी देश के आंतरिक कर्ज के संदर्भ में कही गई थी। लेकिन विश्व बैंक (world Bank) के अनुसार, जब किसी देश का कर्ज कुल जीडीपी के अनुपात में 77 फीसदी से ज्यादा हो जाता है, तो दीर्घकाल में उस अर्थव्यवस्था के लिए समस्या का कारण बन जाता है। 77 फीसदी के अनुपात के बाद अगर एक प्रतिशत भी कर्ज बढ़ता है तो देश की आर्थिक वृद्धि दर तकरीबन 1.5 फ़ीसदी की दर से घट जाती है।

कोई भी अर्थव्यवस्था दो स्तर पर कर्ज लेती है। पहला आंतरिक ऋण (Internal debt) और दूसरा विदेशी (बाह्य) ऋण (Foreign Debt)। आंतरिक ऋण वह ऋण होता है जो देश के अंदर ही मौजूद स्रोतों से लिया जाता है। उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक (RBI), कॉर्पोरेट हाउस, देश के अंदर मौजूद बैंकों, बीमा कंपनियों इत्यादि। विदेशी ऋण (बाह्य) देश के बाहर मौजूद स्रोतों से लिया जाता है। उदाहरण के लिए किसी देश के जरिए अपने मित्र देशों से कर्ज, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक आदि) से और एनआरआई इत्यादि से लिया जाता है।

भारत की क्या स्थिति है?

आरबीआई (RBI) की सालाना रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2021 तक भारत का कुल बाहरी कर्ज 570 बिलियन डॉलर था। पिछले 1 वर्ष में कुल बाहरी कर्ज की राशि $11.5 बिलियन डॉलर बढ़ी है। भारत का वर्तमान में कुल कर्ज 147 लाख करोड़ रुपए का है। वर्ष 2021-22 के लिए सरकार ने कुल 12 लाख अतिरिक्त कर्ज लेने का फैसला बजट के जरिए किया है। यानी कि कुल कर्ज की राशि 159 लाख करोड़ हो जाएगी। ध्यान रहे कि भारत की जीडीपी (India GDP) कुल 200 लाख करोड़ रुपए की है।

आईएमएफ (IMF) के अनुसार, भारत का कुल कर्ज जीडीपी के अनुपात में 90 फीसदी पहुंच चुका है। कोविड-19 के पहले यह अनुपात 74 फ़ीसदी हुआ करता था। वर्ष 2014 से 2019 के बीच भारत का कुल विदेशी कर्ज 118 अरब डालर बढ़ा है। वर्ष 2014 में भारत का कुल विदेशी कर्ज 446 बिलियन डालर था।

आरबीआई-आईएमएफ (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

बढ़ते कर्ज के खतरे क्या हैं?

विदेशी कर्ज के साथ दो प्रमुख जोखिम होते हैं। पहला है कि इन ऋणों पर लगाए जाने वाले ब्याज दरों में कभी भी अप्रत्याशित परिवर्तन हो सकते हैं। जब कभी भी ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो देशों को उच्च ब्याज भुगतान करने में समस्याएं आती हैं। दूसरा जोखिम कर्ज लेने वाले देश की मुद्रा के कमजोर होने में है। ऐसी स्थिति में निकट भविष्य में कर्ज के भुगतान की राशि लिए गए कर्ज की राशि से अधिक हो जाती है।

राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से जूझ रही अर्थव्यवस्था के लिए बाहरी कर्ज बेहद चिंताजनक साबित हो जाते हैं। भुगतान समय पर कर्ज और उस पर लगने वाले ब्याज की अदायगी के लिए कई देश दूसरे देशों से कर्ज ले लेते हैं। राजकोषीय घाटे से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह क्रम सा बन जाता है। कर्ज लिए देश को अगले वर्ष फिर ब्याज भुगतान और ऋण भुगतान के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। इस वजह से सरकार को फिर से घाटे का सामना करना पड़ता है और एक और बाहरी ऋण लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

कर्ज ना चुका पाने की स्थिति में देश को दिवालियापन या फिर अधिक जोखिम वाली सूची में डाल दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं उस देश की साख रेटिंग को घटा देती हैं। उच्च मात्रा में विदेशी ऋण लेने वाला देश संभावित उधारदाताओं के बीच परेशानियों का सामना करता है। लगातार बढ़ते कर्ज को देखते हुए कई देश और संस्थाएं उधार देने के लिए तैयार नहीं होते हैं। एक लंबे समय तक कर्ज न चुका पाने की स्थिति में संबंधित देश को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है जिसे सॉवरेन डिफॉल्ट के रूप में जाना जाता है।

वहीं आंतरिक कर्ज के साथ सबसे बड़ी समस्या कर्ज के एनपीए हो जाने की है। भारत इस समस्या से बुरी तरह जुझ रहा है। भारत के बैंकों का कुल एनपीए तकरीबन ₹10 लाख करोड़ के पास है। आज भारतीय बैंक एनपीए की वजह से कर्ज देने की शर्तों और जटिल बना रहे हैं। लेकिन सरकार अपनी आर्थिक नीतियों के जरिए लगातार अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखने के लिए कर्ज आधारित नीतियां बनाती है। अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि पिछले कुछ वर्षों में बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ रेट कम हुआ है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार बैंकों का क्रेडिट ग्रोथ पिछले 4 साल की सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। वर्तमान में बैंकों ने 100 लाख करोड़ से ऊपर का कर्ज दे रखा है।

लेकिन भारत के संदर्भ में कर्ज की स्थिति बहुत चिंताजनक नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड 600 अरब डॉलर डालर से अधिक है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी भारत अपनी देनदारियों को पूरा कर सकता है। साथ ही साथ भारत का विदेशी व्यापार भी तेजी से बढ़ने की वजह से यह समस्या बहुत गंभीर नहीं दिखती है। हाल के वर्षों में भारत में विदेशी पूंजी का एक बड़ा निवेश देखा जिसकी वजह से भारत कर्ज की वजह से आने वाली समस्याओं से अभी काफी दूर है।

Chitra Singh

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