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फ़्रांस के लोगों ने चाहा गाँजा लीगल हो

France: फ्रांस धीरे धीरे गांजा भांग के प्रयोग को क़ानूनी मान्यता देने की तरफ बढ़ रहा है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Shreya
Published on: 12 July 2021 12:46 PM GMT
फ़्रांस के लोगों ने चाहा गाँजा लीगल हो
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गांजा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

People Want Cannabis To Be Legal In France: दम्म मारो दम्म। दुनिया भर में दम मारने के सामान को लेकर इन दिनों बहस बहुत तेज है। क्योंकि कई देशों में भांग (Cannabis) के इस्तेमाल को क़ानूनी संरक्षण मिला हुआ है। पर गाँजे को लेकर दुनिया भर में आंशिक व पूर्ण प्रतिबंध के हालात है। जबकि गाँजा व भांग एक ही पौधे की प्रजाति के अलग अलग रूप हैं। नर प्रजाति को भांग व मादा प्रजाति को गाँजा कहते हैं। जबकि गाँजा पौधे के फूल, पत्ती और जड़ को सुखाकर तैयार किया जाता है। भांग पत्तियों को पीस कर तैयार किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, दुनिया की क़रीब 2.5 फ़ीसदी आबादी यानी 14.7 करोड़ लोग भांग का इस्तेमाल करते हैं। भांग खाने से डोपामीन होर्मोन का स्तर बढ़ जाता है।इसे हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं।गाँजा या भांग को अंग्रेज़ी में कैनाबीस , मैरिजुआना, वीड कहते हैं। गाँजे में टेट्राहाइड्रोकैनाबिलॉन यानी टीएचसी व कैनाबिडॉल यानी सीबीडी पाया जाता है। नशा का कारण टीएचसी है। वैज्ञानिकों की रूचि सीबीडी में है। आयुर्वेद में गाँजे का इस्तेमाल प्रतिबंधित नहीं है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गांजे के ख़िलाफ़ सख़्त कानून

पूरे यूरोप में गांजे के ख़िलाफ़ सबसे सख़्त कानून हैं। बावजूद इसके फ़्रांस में सबसे ज़्यादा गाँजे का उपभोग होता है। गांजा-भांग पर कानून के डंडे से रोक लगा पाने में असफल रहने पर फ़्रांस के सभी दलों के सांसदों ने इस मसले पर जनता की राय लेने का आभियान चलाया। रायशुमारी से अब यह अंदाज़ा लगने लगा है कि फ्रांस धीरे धीरे गांजा भांग के प्रयोग को क़ानूनी मान्यता देने की तरफ बढ़ रहा है। इसकी एक वजह यह है कि ज्यादातर फ्रेंच लोग चाहते हैं कि गांजे को मनबहलाव के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

फ़्रांस के ढेरों सांसदों का मानना है कि देश के राजनीतिक वर्ग को गांजे को लीगल करने के बारे में सोचना चाहिए। इसी मंशा के चलते फ़्रांस की नेशनल असेम्बली की वेबसाइट पर बीते 13 जनवरी को जनता की राय मांगने का कंसल्टेशन पेपर जारी किया गया। देखते देखते पाँच लाख लोगों ने अपनी राय वेबसाइट पर डाल भी दी। इस रायशुमारी का मकसद 2022 के चुनाव के बाद सुधारों की जमीन तैयार करना है।

फ्रेंच प्रेसिडेंट इमानुएल माक्रों की पार्टी की सांसद कैरलाइन जनिविएर का कहना है कि जनता की राय जानने से हमें बहुत फ़ायदा मिला। तभी तो सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए गांजे के मेडिकल इस्तेमाल की एक प्रायोगिक योजना शुरू कर दी। फ़्रांस के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार दो साल तक देश में एक योजना चला कर यह पता किया जाएगा कि गांजा - भांग के मेडिकल प्रयोग के क्या प्रभाव मानव जीवनश पर पड़ते हैं?

इस योजना के तहत फ़्रांस के तीन हजार मरीजों के इलाज में मेडिकल गाँजे को शामिल किया जाएगा। इसकी गहन मॉनिटरिंग की जायेगी। यह योजना 2019 में ही शुरू की जानी थी। लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसे कई बार स्थगित करना पड़ा। इस योजना में 170 अस्पताल भाग लेंगे।इसमें ऐसे मरीज़ भाग ले सकते हैं जिनके ऊपर फार्मास्यूटिकल दवाओं का असर नहीं हो रहा है। इस योजना में मिर्गी, नयूरोपैथिक दर्द, कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव और मल्टीपलस्क्लेरोसिस जैसी वस्थाएं शामिल की गयी हैं। बच्चों पर भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। अगर वे कैंसर या मिर्गी से पीड़ित है।

गांजे का सेवन (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गांजे को कानूनी वैधता देने पर सरकार सख्त

हर साल फ़्रांस 568 मिलियन यूरो गांजे की तस्करी रोकने पर खर्च करता है। फ़्रांस की सरकारों ने हमेशा ही गांजे को अपराध की श्रेणी से बाहर लाने की मज़बूत ख़िलाफ़त की है। 2019 में जब प्रधानमंत्री कार्यालय के आर्थिक सलाहकार ग्रुप ने 'नशाबंदी पर असफलता की रिपोर्ट प्रकाशित की। गांजे को कानूनी वैधता देने का प्रस्ताव किया तो सरकार ने सख्त प्रतिक्रिया दिखाई। हेल्थ मिनिस्टर एग्नेस बुज्य्न ने सार्वजानिक तौर पर कहा कि वे गांजे के खिलाफ हैं। सितम्बर 2020 में आन्तरिक मंत्री गेराल्ड दर्मनिन ने कहा था कि हम लोग इसे लीगल करने नहीं जा रहे।

इसके बावजूद फ़्रांस में गाँजे से संबंधित एक और बड़ी बात यह हुई कि वहाँ के सुप्रीम कोर्ट ने गाँजे के पौधे से निकाले गये तेल (कैनाबिडीओल) के आयात को मंजूरी दी है। इसी साल 23 जून को फ्रेंच सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल सेक्शन ने आदेश दिया कि यूरोपियन यूनियन में कैनाबिससटीवा पौधे से निकाले गए कैनाबिडीओल (सीबीडी) को रखने या उसकी बिक्री करने पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इस ऐतिहासिक फैसले का मतलब यह है कि अब ईयू के किसी भी देश से फ़्रांस में सीबीडी का एक्सपोर्ट किया जा सकेगा। फ़्रांस में उसकी बिक्री बिना किसी डर के हो सकेगी।

पूरे यूरोप में फ़्रांस ही ऐसा देश है जहां जहाँ गांजा सबसे ज्यादा उपभोग किया जाता है।2016 में 15 से 64 वर्ष के फ़्रेंच नागरिकों में से 41 फीसदी ने कम से कम एक बार गांजा जरूर पिया था।यूरोप में यह आँकड़ा 18.9 फीसदी का है।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मैक्सिको ने गांजे के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से किया बाहर

उधर अमेरिकी कांग्रेस में गाँजे को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने से जुड़ा एक बिल पेश किया गया है। बीते एक दशक में अमेरिका के 17 राज्यों ने मनोरंजन के लिए, 36 राज्यों ने दवा के तौर पर गाँजे के इस्तेमाल को मंज़ूरी पहले ही दे रखी है। हाल में मैक्सिको ने मनोरंजन के लिए गाँजे का इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। उरुग्वे ने 1974, कनाडा ने 2020 और दक्षिण अफ़्रीका की सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी थी।न्यूज़ीलैंड में इसे लेकर चर्चा जारी है। लेसोथो ने इसकी खेती को मंज़ूरी दी है। मोरक्को ने इसके मेडिकल इस्तेमाल का आदेश दे दिया है। नीदरलैंड में सरकार इस बात को जानने की कोशिश कर रही है कि क्या गाँजे का नियंत्रित क़ानूनी व्यापार संभव है।

स्विट्ज़रलैंड व इसरायल भी गाँजे के पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। 2014 में गाँजे का बाज़ार 3.3 अरब अमेरिकी डॉलर का था। जो 2020 में 20.6 अरब अमेरिकी डॉलर का हो गया। 2024 तक इसके 42.7 अरब अमेरिकी डॉलर का हो जाने का अनुमान है। 2020 में संयुक्त राष्ट्र कमीशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग ने गाँजे को खतरनाक और अत्यधिक नशे की लत वाली सूची से निकाल दिया। पर इसके नान मेडिकल व नान साइंटिफिक इस्तेमाल को अवैध कैटेगरी में ही रखा गया है।मतलब अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत सदस्य देश गाँजे के इस्तेमाल को क़ानूनी मान्यता नहीं दे सकते।

रिसर्च बताती है कि गाँजे का इस्तेमाल मिर्गी , मानसिक विकारों कैंसर के मरीज़ों के दर्द कम करने, कई तरह के स्क्लेरोसिस और त्वचा की बीमारियों में किया जा सकता है। गाँजे का औसत वैश्विक इस्तेमाल 3.9 फ़ीसदी है। जबकि भारत में यह आँकड़ा 1.9 फ़ीसदी का है। भारत में भांग क़ानूनी है। क़रीब दो करोड़ लोग भांग खाते हैं।अफ़ीम से बनने वाले मादक पदार्थ दुनिया में औसतन 0.7 फ़ीसदी लोग इस्तेमाल करते हैं। जबकि भारत में 2.1 फ़ीसद लोग अफ़ीम से बने नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।

जिस तरह दुनिया भर में गाँजे के इस्तेमाल को लेकर बहस चल रही है। उससे यह तो कहा ही जा सकता है कि सरकारें दबाव झेल रहीं है। यह दबाव जनता की ओर से तो है ही वैज्ञानिकों की ओर से भी कम नहीं है। देखना है सरकारें इन दबावों के आगे कितना और किस तरह झुकती हैं।क्या दम मारने को क़ानूनी अनुमति मिलती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Shreya

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