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Shri Ram: उत्तर से बृहत्तर भारत तक: कला एवं संस्कृति में राम

Maryada Purushottam Shriram: राम, रामकथा एवं रामायण के परिप्रेक्ष्य में समग्र बृहत्तर भारत, उत्तर भारत का ही प्रतिबिम्बन है। बृहत्तर भारत के नाम से ख्यात दक्षिण-पूर्व एशिया में रामसंस्कृति का गहन प्रभाव है।

Prof Yogeshwar Tiwari
Published on: 16 Jan 2024 12:07 PM IST (Updated on: 16 Jan 2024 12:34 PM IST)
Shri Ram: उत्तर से बृहत्तर भारत तक: कला एवं संस्कृति में राम
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Shri Ram: राम, रामकथा एवं रामायण के परिप्रेक्ष्य में समग्र बृहत्तर भारत, उत्तर भारत का ही प्रतिबिम्बन है। बृहत्तर भारत के नाम से ख्यात दक्षिण-पूर्व एशिया में रामसंस्कृति का गहन प्रभाव है। सुदूर अतीत काल में संस्कृत में निबद्ध आदिकाव्य रामायण का दक्षिण-पूर्व एशिया के मानसिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। रामायण आदिकाव्य भी है और उपजीव्य काव्य भी। रामायण से जीवन प्राप्त कर संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में तो प्रभूत साहित्य की सर्जना हुई ही, पर अन्य एशियाई देशों की भूमि पर भी रामकाव्यों का पर्याप्त प्रणयन हुआ। उत्तर भारत की भाँति बृहत्तर भारत का भी समग्र सांस्कृतिक वायुमण्डल राममय हो गया।

दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में आश्चर्यजनक रूप से पृथक् पृथक् रामायण- काव्य लिखे गए यथा थाइलैण्ड में 'रामकियेन', इण्डोनेशिया में 'रामायण ककविन', मलेशिया में इकायत सेरीराम', कम्बोडिया में 'रामकीर्ति', बर्मा में 'राम यागन', लाओस में 'फ्रालाक फ्रालाम' आदि। योगीश्वर द्वारा रचित प्राचीन जावाई 'रामायण ककविन' 26 सर्गों में दसवीं- ग्यारहवीं शताब्दी में लिखी गई। इण्डोनेशिया क्षेत्र की अन्य राम विषयक कृतियाँ हैं- रामायण ससक, राम क्लिंग, द राम किडुयंग बाली, द राम तम्बाङ्ग, सेरत काण्ड आदि। मलय 'हिकायत सेरी राम' रामकथा का एक लोकप्रिय रुप है। लाओस में रामकथा के दो संस्करण हैं। एक तो 'फ्रालाक फ्रालाम' है, जो मूलग्रन्थ भूमिका के साथ प्रकाशित है। दूसरा है लघु रूप 'ख्नवाय थुरफी' । आधुनिक वियतनाम क्षेत्र में भी रामकथा का रूप 'अन्नामाइट वर्जन' में उपलब्ध है। थाइलैण्ड के राजा राम प्रथम ने 1798 ई. में 'रामकियेन' नाम से एक क्लेसिक रचना लिखी। 19वीं शती के आरम्भ में इस कथा को राजा राम द्वितीय ने लघुतर रूप में 'नाट्यशैली' में तैयार किया। रामकियेन का नवीनतम तृतीय संस्करण 1996 में इमराल्ड बुद्धमन्दिर की गैलरियों में अङ्कित सुन्दरतम चित्रों के साथ प्रकाशित किया गया है। कम्बोडिया में 'रामकीर्ति' नाम से रामायण का रूप प्राप्त होता है, और वह थाई रामायण की अपेक्षा वाल्मीकि रामायण के अधिक निकट है। थाई रामकथा के आधार पर बर्मा में यू तो द्वारा 1800 ई. के लगभग 'राम यागन' की रचना की गई। आजकल बर्मी भाषा में 'यामप्वे' कहा जाने लगा राम-नाटक जहाँ बहुत लोकप्रिय है। इस प्रकार द्रष्टव्य है कि राम एवं रामायण का जन्म तो उत्तर भारत में हुआ, पर उसके आधार पर विविध रामायणों का आविर्भाव इन देशों में हुआ और इसीलिए यह क्षेत्र बृहत्तर भारत के नाम से बोधित हुआ।

भारत के साहित्य एवं संस्कृति में राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। राम साक्षात् शरीरधारी धर्म हैं- 'रामो विग्रहवान् धर्मः। राम धर्मधारियों में श्रेष्ठ हैं- 'रामो धर्मभृतां वरः'। राम का दृढ़ विचार है कि धर्म ही संसार में सर्वोच्च है, धर्म में सत्य प्रतिष्ठित है :

धर्मो हि परमो लोके धर्मे सत्यं प्रतिष्ठितम्।

धर्मसंश्रितमेतच्च पितुर्वचनमुत्तमम् ।।

- वाल्मीकि रामायण; 2.21.40

वाल्मीकि रामायण: Photo- Social Media

राम धर्म एवं सत्य का पालन करने के लिए राजपाट छोड़ देते हैं और वन को चले जाते हैं; पर इसके फलस्वरूप वे जनता के हृदय पर दृढ़तापूर्वक राज्य करते हैं। वन की समग्र यात्रा में वे लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित रहते हैं। उत्तर भारत के राम का यही आदर्श रूप है। यहाँ की रामसंस्कृति में राम दोषों से अस्पृष्ट एवं गुणगण-गरिमा-गरिष्ठ हैं। वृक्ष के पीछे से छिपकर राम द्वारा किया गया बालिवध हो अथवा लोकापवाद के कारण राम द्वारा किया गया सीता-निर्वासन हो, उत्तर भारतीय संस्कृति में धर्म, नीति एवं औचित्य की तुला पर उनके आचरण को मर्यादित एवं न्यायोचित ठहराया गया है। परन्तु दक्षिण-पूर्व एशिया की रामायणों में राम का चरित्र उत्तर भारतीय राम की अपेक्षा बहुत हल्का है। दक्षिण-पूर्व एशिया की रामायणों में राम के हृदय में सीता के चरित्र को लेकर संशय उत्पन्न हो जाता है, और यही राम को सीता-परित्याग जैसा अनुचित कदम उठाने को प्रोत्साहित कर देता है। उसके लिए ऐसी कहानियाँ गढ़ी गई हैं, जिनका कोई रूप भारतीय अथवा उत्तर भारतीय साहित्य में नहीं मिलता। मूल रामायणीय कथा से भिन्न रामादि पात्रों के चरित्राङ्कन उन-उन देशों की संस्कृतियों के अनुरूप परिवर्तित हुए हैं। फिर भी यह अवधेय है कि रामकथा के आधारभूत मानवमूल्य एवं नैतिक आदर्श दक्षिणपूर्व एशिया के लोगों के जीवनमूल्य बन गए। रामायण से प्रभावित होकर जहाँ राजाओं के नाम 'राम' के नाम पर रखे जाने लगे।

जहाँ तक थाईलैण्ड की बात है, चक्रीवंश के सभी राजाओं के नाम राम- प्रथम, राम-द्वितीय आदि रहे हैं और वर्तमान राजा राम-दशम हैं। रामसंस्कृति के प्रभाव के कारण थाइलैण्ड के एक नगर का नाम अयोध्या - अयुत्थया (Ayutthaya) है, जो ई. सन् 1350 से 1767 तक इस देश की राजधानी रहा। यहाँ एक लवपुरी-लोपबुरी (Lopburi) नगरी भी है और इसी के समीप साराबुरी में एक श्वेत पर्वतमाला पर हाथ में सञ्जीवनी बूटी सहित पर्वत उठाये हुए हनुमान की विशाल भव्य प्रतिमा है। उत्तर भारत में वाल्मीकि- रामायण के प्रभाव की भाँति थाई रामायण 'रामकियेन' के प्रभाव से 18वीं एवं 19वीं शताब्दियों के अनेक कवियों ने थाई भाषा में रामचरित-विषयक काव्य लिखे। प्रो. सत्यव्रत शास्त्री ने थाई 'रामकियेन' के आधार पर 25 सर्गों का 'श्रीरामकीर्तिमहाकाव्यम्' नामक संस्कृत-महाकाव्य रचा, जो 1990 में बैङ्काक से प्रकाशित हुआ। रामायण पर अनेक समीक्षा ग्रन्थ लिखे गए। थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, मलेशिया आदि देशों में रामायण पर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुए। थाई संस्कृति में राम के समाविष्ट हो जाने का ज्वलन्त निदर्शन है कि थाइलैण्ड के अनेक भवनों, मार्गों, बनस्पतियों, होटलों, पुलों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों के नाम राम एवं रामकियेन के पात्रों के नामों पर रखे गए हैं। यहाँ तक कि थाई सेना की टुकड़ियों के नाम राम की सेना के वीरों-हनुमान, सुग्रीव, अङ्गद, जाम्बवान आदि के नामों पर रखे गए हैं। थाइदेश में राम के प्रभाव का सर्वोत्तम उदाहरण है, बैङ्काक स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय, जहाँ के प्रवेशद्वार पर वीरमुद्रा में खड़े, हाथ में धनुष-चाप्ण लिये हुए राम की भव्य मूर्ति शोभायमान है। थाइलैण्ड की राजधानी बैङ्कॉक में प्रतिवर्ष वैशाख मास में एक 'राजकीय भूकर्षण उत्सव' (Royal Ploughing Ceremony) सम्पन्न होता है, जिस पर राजा जनक द्वारा किये गए भूकर्षण की कथा का प्रभाव है।

दक्षिण पूर्व एशिया में विकसित हुई राम-संस्कृति: Photo- Social Media

दक्षिण पूर्व एशिया में विकसित हुई राम-संस्कृति ने एक विशेष कला सौन्दर्य को विकसित किया है। उत्तर भारत की भाँति बृहत्तर भारत की नाट्यकला, नृत्यकला, सङ्गीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला आदि में राम व्यापक रूप में व्याप्त हैं। थाइलैण्ड की राजधानी बैङ्काक में स्थित भव्य राजप्रासाद 'Great Palace' में थाई रामायण की पूरी कथा सुन्दर, विशाल, रङ्गीन भित्तिचित्रों के रूप में अङ्कित है। रामकथा की ये लम्बी वीथिकाएँ विश्व भर से आने वाले पर्यटकों के लिए बहुत बड़ा आकर्षण- केन्द्र हैं। इसी तरह प्रासाद-परिसर में स्थापित रामकियेन के अनेक पात्र उत्कृष्ट मूर्तिशिल्प के सुन्दर निदर्शन हैं। थाइलैण्ड में 'रामकियेन' के नाट्य रूप से दो प्रकार की प्रयोगात्मक कला का विकास हुआ-पहला नांग (Shadow play), जिसमें पात्रों की छाया सुप्रकाशित स्क्रीन पर दृश्यमान होती है। दूसरा खोन (Masked dance), जिसमें पात्र मुखावरण पहनते हैं तथा रंगबिरंगी पोशाकों एवं सङ्गीत की मधुर धुनों के साथ आङ्गिक चेष्टाओं एवं अङ्गविक्षेपों के माध्यम से अपने भाव प्रकट करते हैं। रामकियेन की रामकथा का अभिनय प्रस्तुत करने वाले ये 'खोन' लोक-नृत्य-नाट्य थाइलैण्ड में अत्यधिक लोकप्रिय हैं, और अनेक समारोहों-सम्मेलनों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। इस तरह थाइलैण्ड पर रामायण का प्रभाव साहित्य, नाट्य- मञ्चन एवं शिल्प तीन रूपों में पाया जाता है।

इण्डोनेशिया में दिखाये जाने वाले छाया नाट्य (Shadow Plays) दक्षिणपूर्व एशिया में रामकथा: Photo- Social Media

इण्डोनेशिया में दिखाये जाने वाले छाया नाट्य (Shadow Plays) दक्षिणपूर्व एशिया में रामकथा को लोकप्रिय बनाने में बहुत सहायक हुए हैं। वहीं पर 'वायांग शोज' (Wayang shows) का प्रचलन है, जिसमें रात्रि के समय एक गायक कलाकार लम्बे समय तक रामकथा का गायन करता रहता है और छाया या प्रतिबिम्ब के रूप में रामकथा का प्रदर्शन करता रहता है। ये प्रदर्शन अब मानवजाति के लिए सांस्कृतिक विरासत बन गए हैं। इसी तरह इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में मुझे 'कीचक' अथवा 'चक-चक' नाम से विख्यात एक पारम्परिक नृत्य-नाट्य का प्रयोग देखने को मिला। 'चक-चक' एक अनुरणनात्मक ध्वनि है, एक लयात्मक वाचिक अभिव्यक्ति है, जिसे सामूहिक रूप से बोलते हुए हाथ में मशालें लिये हुए बड़ी संख्या में नट प्रवेश करते हैं और तीव्रता के साथ वे अपनी भूमिकायें बदल लेते हैं। वहीं बाली-सुग्रीव-युद्ध होने लगता है और राम-लक्ष्मण अपनी भूमिकाओं में आते हैं। नृत्य-नाट्य-कला में राम के दर्शन यहाँ होते हैं। मलेशिया के मलय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'अन्तर्राष्ट्रीय रामायण-महाभारत सम्मेलन' के अवसर पर हमें मूर्तिकला में राम के दर्शन हुए। मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर से दूर 'रामायण गुफाएँ' हैं, जिनमें रामकथा की अनेक आकर्षक मूर्तियाँ हैं, जैसे राम-वन-गमन, सुग्रीव-मैत्री-वृत्त, गाढनिद्रा में सोया भयङ्कर राक्षस कुम्भकर्ण जिसके पेट पर चढ़कर भट उसे जगा रहे हैं, अपने राजदरबार में सिंहासन पर बैठा गर्वमत्त रावण और सामने अपनी विशाल लम्बी पूँछ का आसन बनाकर बैठे वीर हनुमान आदि। पर्वत के अन्दर गहरी गुफाओं में काष्ठ अथवा मिट्टी से बनी ये कलाकृतियाँ राम की महिमा का बखान करती हैं।

जहाँ तक मूर्तिकला एवं स्थापत्यकला की बात है, इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में अनेक सुन्दर हिन्दू मन्दिर हैं, जिनमें अन्य देवताओं के साथ विष्णु एवं राम विराजमान हैं। मन्दिरों की वास्तुकला में भी रामायण का प्रभाव है। रामकथा एवं रामलीला वहाँ की संस्कृति के अभिन्न अङ्ग हैं। मूर्तिकला, वास्तुकला एवं स्थापत्यकला का सर्वोत्तम निदर्शन है कम्बोडिया का प्राचीन ‘अङ्कोरवाट' मन्दिर, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर दिया है। हिन्दू राजाओं द्वारा बनवाये गए इन विशिष्ट शैली के मन्दिरों में पाषाणनिर्माण कला अ‌द्भुत है। इन पाषाणीय कलाकृतियों में राम-रावण-युद्ध, बाली-सुग्रीव-युद्ध जैसे अनेक रामायणीय वृत्त टक्ङ्कित हैं। कम्बोज-कला पर राम-संस्कृति का प्रभूत प्रभाव है। अङ्कोरवाट शैली का सर्वाधिक प्रभाव अपने निकटवर्ती क्षेत्र उत्तरपूर्व थाइलैण्ड पर पड़ा है। उत्तरपूर्व थाइलैण्ड में ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में बनवाये गए 'फनोम रूङ्' एवं 'फिमाय' नाम के हिन्दू मन्दिरों में राम का अद्भुत प्रभाव है। फनोम रूङ् थाइलैण्ड के 'बुरी राम' प्रान्त में स्थित है, जो रामायण में विद्यमान शब्दावली 'पुरी रम्या' के समरूप है। भगवान् विष्णु के महिमामण्डित अवतार श्रीराम के मूर्तिशिल्पों का इस मन्दिर में बाहुल्य है। वाल्मीकि रामायण में निबद्ध रामकथा के विविध प्रसङ्गों को इसमें मूर्तिकला द्वारा प्रदर्शित किया गया है। मूर्तियों में थाई रामायण 'रामकियेन' का कुछ प्रभाव परिलक्षित होता है, पर कथांश समग्रतः वाल्मीकिरामायण से प्रभावित हैं। रामलीला के मुख्य शिल्प ये हैं-धर्म के विरोधी अनेक राक्षसों को मारते हुए राम, वनवास होने पर वन में विचरण करते हुए राम, सीता और लक्ष्मण, सीता को पकड़ने का तीव्र प्रयास करता हुआ विराध राक्षस, राक्षसराज रावण द्वारा सीता का हरण, बाली-सुग्रीव-युद्ध, बाली का वध करते हुए राम, कुम्भकर्ण और वानर सेना के मध्य युद्ध, राम-सीता-लक्ष्मण का अयोध्या- प्रत्यागमन आदि। इसी क्षेत्र में रामायण की शिल्पकला से प्रभावित 'फिमाय' भी एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है, जो 'अङ्कोर' राज्य के बड़े केन्द्रों में से एक है। यहाँ के मन्दिर के नीचे की डाट पर राम और लक्ष्मण को नागपाश में प्रदर्शित किया गया है। पश्चिमी भाग में छज्जे पर रामायण से सम्बन्धित एक युद्ध दृश्य दिखाया गया है। यहाँ द्वार के ऊपर वह दृश्य अङ्कित है, जहाँ राम लङ्का जाने के लिए सेतुमार्ग बना रहे है, और इसके लिए वानरगण समुद्र में पत्थर की शिलाएँ फेंक रहे हैं। उत्तर दिशा में छज्जे पर रामायण का एक और युद्ध दृश्य अङ्कित है। मन्दिर की पूर्व दिशा में जुड़े भवन में राम और रावण के मध्य छिड़े विवाद पर निर्णय देते हुए न्याय के देवता को दिखाया गया है। यहीं छज्जे पर राम को राक्षस विराध का वध करते हुए दिखाया गया है। एक डाट पर कुछ लोग नाव पर जाते हुए दिखाए गए हैं, जो सम्भवतः स्वजनों सहित लङ्का से अयोध्या लौटते हुए राम हैं।

अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर: Photo- Social Media

इस प्रकार द्रष्टव्य है कि भारत की अयोध्या की मिट्टी में जन्मे राम दक्षिणपूर्व एशिया की संस्कृति के अभिन्न अङ्ग एवं समन्वयकारी तत्त्व बन गए हैं। इस क्षेत्र के साहित्य, स्थापत्य, पुरातत्व, नाट्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला आदि सब पर राम का व्यापक एवं विलक्षण प्रभाव है।



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Shashi kant gautam

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