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G20 Summit 2023: भारत में आयोजित जी-20 की दो बड़ी उपलब्धियां

G20 Summit 2023: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा "हमारी टीम की कड़ी मेहनत से ही नई दिल्ली जी-20 लीडर्स घोषणा पत्र पर आम सहमति बनी है।"

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 11 Sept 2023 8:30 PM IST (Updated on: 12 Sept 2023 5:16 PM IST)
G20 Summit 2023 held in India Two major achievements
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G20 Summit 2023 held in India Two major achievements (Photo-Social Media)

G20 Summit 2023: अब तक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय जी- 20 शिखर सम्मेलन जो भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित हुआ, दो वजहों से याद रखा जायेगा। पहला, जी 20 घोषणा पत्र पर सभी सदस्य देशों की सहमति बन गई। हालांकि, इस मसले पर चीन, कनाडा आदि देशों से विवाद होने की आशंका जताई जा रही थी। दूसरा, अफ्रीका यूनियन को भारत की पहल पर जी-20 में शामिल कर लिया गया,जो “जी -20” में भारत की स्थिति को और मजबूत बनायेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा "हमारी टीम की कड़ी मेहनत से ही नई दिल्ली जी-20 लीडर्स घोषणा पत्र पर आम सहमति बनी है।" अब पाठकों को यह भी जानना जरुरी है कि नई दिल्ली घोषणा पत्र में किन चीज़ों का ज़िक्र है I दरअसल इसमें संसार के मजबूत, दीर्घकालीक, संतुलित और समावेशी विकास पर जोर दिया गया है।

जी-20 नेताओं ने आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की और माना कि यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर ख़तरों में से एक है। घोषणा पत्र में यह भी कहा गया, "यूक्रेन में युद्ध के संबंध में बाली में हुई चर्चा को दोहराते हुए हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्तावों पर अपने रुख को दोहराया और इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए।"

बेशक, अफ्रीकन यूनियन का जी20 का स्थाई सदस्य बनना इस जी-20 सम्मेलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि रही। इसका प्रस्ताव भारत ने ही रखा था, जिसका सभी ने समर्थन किया। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा,' सबको साथ लेकर चलने की भावना से ही भारत ने प्रस्ताव रखा था ताकि अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की स्थाई सदयस्ता दी जाए। मेरा विश्वास है कि इस प्रस्ताव पर हम सब की सहमति है।”

अफ्रीकन यूनियन के जी20 समिट का स्थाई सदस्य बनने से अफ्रीका के 55 देशों को फायदा मिलेगा। अफ्रीकन यूनियन की स्थापना 26 मई, 2001 को अदीस अबाबा, इथियोपिया में हुई थी और 9 जुलाई, 2002 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन में इसे औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया था। इसने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनियन की जगह ली थी। वैश्विक जीडीपी में इसका योगदान 18.81 हजार करोड़ रुपए है। अफ्रीकन यूनियन का उद्देश्य देश के आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को चर्चा करना और उनका स्थाई समाधान निकालना है।

भारत को अफ्रीका से जोड़ने में महात्मा गांधी की सबसे खास भूमिका रही थी। महात्मा गांधी ने अश्वेतों के हक दिलाने के लिये और नस्लवाद के लिए खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। दक्षिण अफ्रीका के शिखर नेता नेल्सन मंडेला भी गांधी जी को अपना आदर्श बताते थे। वे लंबी जेल यात्रा से रिहा होने के बाद 1990 में दिल्ली आए थे। वह उनकी जेल से रिहा होने के बाद पहली विदेश यात्रा थी। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया। भारत सरकार ने राजधानी में मंडेला के नाम पर एक प्रमुख मार्ग का नाम नेल्सन मंडेला मार्ग रखा । दरअसल मित्र राष्ट्र आपसी सौहार्द के लिए एक-दूसरे के देशों के महापुरुषों, जननेताओं तथा राष्ट्राध्यक्षों के नामों पर अपने यहां सड़कों,पार्कों और संस्थानों के नाम रखते हैं। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने मंडेला के नाम पर एक खास सड़क का नामकरण किया था।

गांधी जी के विचारों से प्रभावित मंडेला 1995 में फिर भारत आए। नेल्सन मंडेला के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में साल 2004 में नेल्सन मंडेला सेंटर फॉऱ पीस एंड कान्फ्लिक्ट रेज़लूशन की स्थापना की गई। इस सेंटर की स्थापना मुख्य रूप से इसलिए की गई थी ताकि दुनियाभर में शांति और सदभाव के लिए भारत की तरफ से की जाने वाली कोशिशों का गहराई से अध्ययन हो सके।

भारत तो सभी अफ्रीकी देशों से बेहतर संबंध स्थापित करने को लेकर प्रतिबद्ध रहा है। भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक है। अफ्रीका में टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही है। भारती एयरटेल ने अफीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डालर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही है। दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं।

अगर बात पूर्वी अफ्रीका की करें तो अंग्रेज सन 1896 से लेकर 1901 के बीच करीब 32 हजार मजदूरों को देश के विभिन्न भागों से केन्या, तंजानिया, युंगाड़ा लेकर गए थे। इऩ्हें केन्या में रेल पटियों को बिछाने के लिए लेकर जाया गया था। सिखों का संबध रामगढिया समाज से था। पूर्वी अफ्रीका का सारा रेल नेटवर्क पंजाब के लोगों ने तैयार किया था। इन्होंने बेहद कठिन हालतों में रेल नेटवर्क तैयार किया। उस दौर में गुजराती भी केन्या में आने लगे। पर वे वहां पहुंचे बिजनेस करने के इरादे से। रेलवे नेटवर्क का काम पूरा होने के बाद अधिकतर पंजाबी श्रमिक वहां पर ही बस गए। अब तो समूचे ईस्ट अफ्रीका के हर बड़े छोटे शहर में भारतवंशी और उनके पूजा स्थल हैं। केन्या के तो तमाम बड़े शहरों जैसे नैरोबी और मोम्बासा में बहुत सारे मंदिर और गुरुद्वारे हैं। इन भारतवंशियों के चलते भी अफ्रीका में भारत को लेकर एक बेहतर माहौल रहा है। केन्या की राजधानी नेरोबी हो या फिर साउथ अफ्रीका के सभी प्रमुख शहर, सभी में भारतीय कंपनियों के बड़े विशाल विज्ञापनों को प्रमुख चौराहों पर लगा हुआ देखा जा सकता था। भारत की ख्वाहिश रही है कि अफ्रीका के बाजार में भारत को और भी स्पेस मिले।

खैर, ‘जी-20 शिखर सम्मेलन’ यादभरा रहा। यह कतई मामूली बात नहीं है कि जी-20 सम्मेलन के लिये राजधानी दिल्ली में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जापान के पीएम फुमियो किशिदा, ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथोनी अल्बनीज, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के अलावा बाकी सदस्य देशों के मंत्री और नेता भी हाजिर रहे। यूं तो 1983 में नई दिल्ली में हुये गुट निरपेक्ष सम्मेलन में जी-20 की तुलना में कहीं अधिक राष्ट्राध्यक्ष आये थे, पर वे ज्यादा बहुत छोटे और गरीब देशों से संबंध रखते थे। उनकी विश्व की कूटनीति या व्यापार में कोई खास हैसियत नहीं थी।

एक बात और। यह मानना होगा कि राजधानी दिल्ली को जी-20 शिखर सम्मेलन भारत मंडपम के रूप में एक बहुत शानादार उपहार दे गया। इसकी विज्ञान भवन से तुलना नहीं की जा सकती जिधर गुट निरपेक्ष सम्मेलन से लेकर राष्ट्रकुल सम्मेलन आयोजित होते रहे थे। भारत मंडपम की सुविधाओं के लिहाज से तुलना दुनिया के किसी भी श्रेष्ठ सभागार से की जा सकती है। भारत मंडपम को देखकर लगता है कि ये नये और समर्थ भारत का सशक्त प्रतीक है।

Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

Content Writer

अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

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