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Gandhi Jayanti 2023 Special: क्यों बापू पसंद करते थे विद्यार्थियों से मिलना

Gandhi Jayanti 2023 Special: सेंट स्टीफंस क़ॉलेज की स्थापना दिल्ली में ब्रदरहुड ऑफ दि एसेंनडेंड क्राइस्ट ने सन 1877 में हुई थी। अब इसे दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी कहा जाता है।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 2 Oct 2023 12:45 AM GMT (Updated on: 2 Oct 2023 12:45 AM GMT)
Gandhi Ji
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Gandhi Ji (Photo-Social Media)

Gandhi Jayanti Special: महात्मा गांधी को विद्यार्थियों से मिलना-जुलना और उनसे बातें करना पसंद था। वे स्कूलों, कॉलेजों और विश्व विद्लायों में भी अक्सर जाते थे। वे एक बार मास्टर जी की भी भूमिका में आ गए थे। वे पहली बार 12 मार्च, 1915 को राजधानी दिल्ली आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे। वे वहां पर छात्रों और फेक्ल्टी से भी मिले। उनके साथ सामयिक सवालों पर लंबी चर्चाएं की। दरअसल उन्हें दिल्ली प्रवास के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज में रूकने का आग्रह उनके करीबी सहयोगी दीनबंधु सी.एफ.एंड्रयूज ने किया था। दीनबंध एंड्रयूज उसी दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े हुए थे जिसने सेंट स्टीफंस क़ॉलेज और सेंट स्टीफंस अस्पताल की स्थापना की थी। यहाँ के छात्रों पर गांधी जी और एंड्रयूज का असर न हो यह नहीं हो सकता। यहां की दीवारों पर अभी भी गांधीजी और एंड्रयूज के चित्र टंगे हैं। सेंट स्टीफंस क़ॉलेज की स्थापना दिल्ली में ब्रदरहुड ऑफ दि एसेंनडेंड क्राइस्ट ने सन 1877 में हुई थी। अब इसे दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी कहा जाता है।

दिल्ली ब्रदरहु सोसायटी के फादर सोलोमन बताते हैं कि सेंट स्टीफंस क़ॉलेज को भले ही ब्रिटेन की एक मिशनरी ने शुरू किया पर इसकी भारत तथा यहां के लोगों के प्रति निष्ठा और समर्पण असंदिग्ध रहा। दीनबंधु एंड्रयूज ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी भारत की आजादी के प्रबल पक्षधर थे। इसी से अंदाजा लग जाएगा कि सेंट स्टीफंस क़ॉलेज को खोलने वाली संस्था का मूल चरित्र किस तरह का है। गांधी जी यहां 1918 तक रहे । उन्हें यहां पर ब्रजकृष्ण चांदीवाला नाम के एक छात्र मिले जो आगे चलकर उनके पुत्रवत हो गए। उन्होंने ही गांधी जी की मृत्यु के बाद अंतिम बार स्नान करवाया था। गांधीजी का काशी से भी गहरा लगाव था। वे अपने जीवनकाल में 12 बार काशी आए। अपना पहला राजनीतिक उद्बोधन गांधीजी ने 5 फरवरी 1916 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिया था।


सेंट्रल हिंदू कॉलेज परिसर में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का स्थापना समारोह मनाया जा रहा था। साथ में बीएचयू के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय, एनी बेसेंट, दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह के साथ कई रियासतों के राजा वहां मौजूद थे। गुजराती वेशभूषा (धोती, पगड़ी और लाठी) में आए गांधीजी ने मंच से लोगों के सामने तीन बातें रखी थीं।

गांधीजी ने कहा था- “देश की जनता, छात्र और आप सभी भारत का स्वराज कैसा चाहते हैं? कांग्रेस और मुस्लिम लीग के लोग स्वराज को लेकर क्या सोचते हैं, यह स्पष्ट होना चाहिए? इसी बीच गांधीजी की नजर वहां मौजूद राजाओं के आभूषणों पर पड़ी। उन्होंने कहा- अब समझ में आया कि हमारा देश सोने की चिड़िया से गरीब कैसे हो गया? आप सभी को अपने स्वर्ण जड़ित आभूषणों को बेचकर देश के जनता की गरीबी दूर करनी चाहिए।”


इस बीच,यह जानकारी भी कम लोगों को है कि गांधी जी मास्टर जी के भी भूमिका में रहे। राजधानी में उनकी पाठशाला चलती थी। वे अपने छात्रों को अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाते थे। उनकी कक्षाओं में सिर्फ बच्चे ही नहीं आते थे। उसमें बड़े-बुजुर्ग भी रहते थे। वे राजधानी के वाल्मिकि मंदिर परिसर में 214 दिन रहे। 1 अप्रैल 1946 से 10 जून,1947 तक। वे शाम के वक्त मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों को पढ़ाते थे। उनकी पाठशाला में खासी भीड़ हो जाती थी। गांधी अपने उन विद्यार्थियों को फटकार भी लगा देते थे, जो कक्षा में साफ-सुथरे ढंग से तैयार हो कर नहीं आते थे। वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे। वे मानते थे कि स्वच्छ रहे बिना आप शुद्ध ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। यह संयोग ही है कि इसी मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014को स्वच्छ भारत अभियान की भी शुरुआत की थी।

बहरहाल वह कमरा जहां पर बापू पढ़ाते थे, अब भी पहले की तरह ही बना हुआ है। इधर एक चित्र रखा है, जिसमें कुछ बच्चे उनके पैरों से लिपटे नजर आते हैं। आपको इस तरह का चित्र शायद ही कहीं देखने को मिले। बापू की कोशिश रहती थी कि जिन्हें कतई लिखना-पढ़ना नहीं आता वे भी कुछ लिख-पढ़ सकें। इस वाल्मिकी मंदिर में बापू से विचार-विमर्श करने के लिए पंडित नेहरू से लेकर सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान भी आते थे। सीमांत गांधी यहां बापू के साथ कई बार ठहरे भी थे। अब भी इधर बापू के कक्ष के दर्शन करने के लिए देखने वाले आते रहते हैं। वाल्मिकी समाज की तरफ से प्रयास हो रहे हैं कि इधर गांधी शोध केन्द्र की स्थापना हो जाए।

गांधी जी की संभवत: महानतम जीवनी ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ के लेखक लुई फिशर भी उनसे वाल्मिकी मंदिर में ही मिलते थे। वे 25 जून,1946 को दिल्ली आए तो यहां पर बापू से मिलने पहुंचे थे। उस समय इधर प्रार्थना सभा की तैयारियां चल रही थीं। ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ को आधार बनाकर ही फिल्म गांधी का निर्माण हुआ था। यही नहीं, गांधी जी के आशीर्वाद से ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी स्थापित हुई। वे इसके पहले करोल बाग और फिर ओखला के परिसरों में कई बार गए भी।

महात्मा गांधी ने अगस्त 1920 में, असहयोग आंदोलन का ऐलान करते हुए भारतवासियों से ब्रिटिश शैक्षणिक व्यवस्था और संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया था। गांधी जी के आह्वान पर, उस समय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुछ अध्यापकों और छात्रों ने 29 अक्तूबर 1920 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद रखी। बाद में जामिया, अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित हो गया।

ब्रिटिश शिक्षा और व्यवस्था के विरोध में बने, जामिया मिल्लिया इस्लामिया को धन और संसाधनों की बहुत कमी रहती थी। रजवाड़े और पैसे वाले लोग, अंग्रेज़ी हुकूमत के डर से इसकी आर्थिक मदद करने से कतराते थे। इसके चलते 1925 के बाद से ही यह बड़ी आर्थिक तंगी में घिर गया। ऐसा लगने लगा कि यह बंद हो जाएगा। लेकिन गांधी जी ने कहा कि कितनी भी मुश्किल आए, स्वदेशी शिक्षा के पैरोकार, जामिया को किसी कीमत पर बंद नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘जामिया के लिए अगर मुझे भीख भी मांगनी पड़े तो मैं भीख मांगूगा।” गांधी जी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी ने जामिया में एक शिक्षक के रूप में काम किया। गांधी जी के पोते रसिकलाल ने भी जामिया में पढ़ाई की। यह जरूरी है कि देश गांधी जी के व्यक्तित्व के इस पक्ष को भी जाने की वे छात्रों और नौजवानों के बीच में जाना पसंद करते थे।

Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

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अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

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