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Ganna Ki Kheti: प्रगतिशील नीतियों के जरिए गन्ना उत्पादकों का आर्थिक सशक्तिकरण

Indian Economy News:भारत दुनिया में गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, तकनीकी प्रगति और स्थिरता संबंधी ज़रूरतों ने गन्ने को जबरदस्त मूल्य प्रदान किया

Roshan lal Tamak
Written By Roshan lal Tamak
Published on: 3 March 2024 7:41 PM IST
Ganna Ki Kheti Increase Indian Economy
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Ganna Ki Kheti Increase Indian Economy

Ganna Ki Kheti: कृषक समुदाय ही भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। वे कई सालों से विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे थे और हाल के वर्षों में जाकर उन्हें एक हरा सोना मिला है- गन्ना। भारत दुनिया में गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसने वित्तीय वर्ष 2023 में 4905.33 लाख टन गन्ना उत्पादन दर्ज किया। विवेकपूर्ण नीति निर्धारण, तकनीकी प्रगति और स्थिरता संबंधी ज़रूरतों ने गन्ने को जबरदस्त मूल्य प्रदान किया है, जिससे ये सबसे महत्वपूर्ण कृषि उपजों में से एक बन गया है। इससे किसानों को काफी फायदा हुआ है।दुनिया सस्टेनेबिलिटी के मकसद से आगे बढ़ रही है। वहीं जैव ऊर्जा, भोजन, जैव-रसायन और जैव-उर्वरकों में अपने बहुआयामी इस्तेमाल के चलते गन्ना चक्रीयता यानी सर्कुलैरिटी का नायाब उदाहरण है। चीनी का उत्पादन करते समय इसका उप-उत्पाद खोई निकलता है। उसका उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन, कागज और पैकेजिंग, गुड़ से इथेनॉल बनाने, प्रेस मड से लेकर कंप्रेस्ड बायोगैस और जैव उर्वरकों आदि के लिए किया जा सकता है। हर मूल्य श्रृंखला में और भी कई अन्य उत्पाद संभव हैं।

ईबीपी ने गन्ने को भारतRoshan lal Tamak का हरा सोना बना दिया

बीते दशक में बड़े नीतिगत सुधारों ने गन्ना उद्योग को पुनर्जीवित किया है। इससे इस क्षेत्र को अपनी विराट क्षमता का एहसास हुआ है। केंद्र सरकार का इथेनॉल-मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) गन्ना उत्पादन और प्रसंस्करण का कायापलट करने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। साथ ही कीमतों में उतार-चढ़ाव, अनियमित उत्पादन और कम रिटर्न जैसी पारंपरिक चुनौतियों का समाधान भी कर रहा है। भारतीय चीनी क्षेत्र को अक्सर चक्रीयता के लिहाज से देखा गया है। पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण के लिए सरप्लस गन्ने का उपयोग करके ईबीपी ने गन्ने को भारत का हरा सोना बना दिया है।भारत के इथेनॉल-मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) ने गन्ना उत्पादकों को मिलने वाले पैसे में सुधार किया है, कार्बन उत्सर्जन में कमी को बढ़ावा दिया है, विदेशी मुद्रा प्राप्त की है और जीवाश्म ईंधन पर हमारी आयात निर्भरता को कम किया है। ईबीपी के निश्चित-मूल्य तंत्रों और सरप्लस चीनी को इथेनॉल उत्पादन में बदलने को दिए गए समर्थन ने चीनी मिलों को वित्तीय वर्ष 2023 में 95 प्रतिशत से ज्यादा और वित्तीय वर्ष 2024 में 99 प्रतिशत से ज्यादा गन्ने के बकाया चुकाने में सक्षम बनाया। मौजूदा बकाया 1 प्रतिशत से भी कम के रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। ईबीपी के तहत इथेनॉल की बिक्री से 94,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का उत्पादन हुआ, जिससे चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरी और समय पर गन्ना मूल्य भुगतान संभव हो सका। इसके अनुमानित असर में 2025 तक 30,000 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा बचत, 86 मिलियन बैरल गैसोलीन की जगह लेना और भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना शामिल है।

भारतीय चीनी क्षेत्र के लिए वैश्विक बाजार भी खुलेंगे

बढ़ती मांग ने गन्ना उत्पादन के प्रति आकर्षण बढ़ाया है। सरकार ने 2025 तक देश भर में ई-20 ईंधन का इस्तेमाल करने सहित ईबीपी का समर्थन करने के लिए दीर्घावधि का इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्मित करने पर ध्यान केंद्रित किया है। जी20 की भारतीय अध्यक्षता के दौरान वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन का गठन किया गया जिससे भारतीय चीनी क्षेत्र के लिए वैश्विक बाजार भी खुलेंगे। विवेकपूर्ण निर्यात नीतियों ने भारतीय किसानों के हितों की रक्षा करने में भी मदद की है। सरकार ने सस्ते चीनी निर्यात पर अंकुश लगाने, अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल उत्पादन के लिए भेजने और घरेलू बाजारों व कृषक समुदाय की रक्षा करते हुए घरेलू कीमतों को स्थिर करने के लिए निर्यात की अनुमति दी है।उपरोक्त तमाम कदमों से जो अनुकूल वातावरण निर्मित हुआ है उसके चलते चीनी मिलों, अनुसंधान संस्थानों और गन्ना उत्पादकों सहित तमाम हितधारक एआई/एमएल जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपना रहे हैं और कृषि आधुनिकीकरण पर सरकार के फोकस का सक्रिय समर्थन कर रहे हैं। फसल छिड़काव के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकियों ने गन्ना उत्पादकों के बीच लोकप्रियता पाई है। सरकार, उद्योग संघ, एग्री-टेक कंपनियां और चीनी मिलें एक साथ आ रहे हैं और सटीक फसल अनुमान, परिपक्वता मूल्यांकन एवं फसल की स्थिति की निगरानी से जुड़े उपायों के लिए डिजिटल उपकरण विकसित कर रहे हैं और अपना रहे हैं।

गन्ना इकोसिस्टम अन्य कृषि क्षेत्रों के लिए एक मिसाल कायम करता

चीनी उद्योग अभी एक ख़ास स्थिति में है क्योंकि कोई मध्यस्थ नहीं है और गन्ना विकास एवं आपूर्ति संबंधी गतिविधियों के लिए गन्ना उत्पादकों के साथ पूरे वर्ष निर्बाध जुड़ाव रहता है। सभी चीनी मिलें, योग्य कृषि कर्मियों के एक मजबूत विस्तार नेटवर्क से सुसज्जित हैं। बीते कुछ वर्षों में गन्ने की पूरी मूल्य श्रृंखला भी डिजिटल रूप से विकसित हुई है, जिससे ये ज्यादा पारदर्शी और सुविधाजनक हो गई है। एक संगठित क्षेत्र होने के नाते चीनी उद्योग ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम), गन्ने की टिकाऊ खेती का समर्थन करने के लिए मशीनीकरण पर उप मिशन (एसएमएएम) जैसी योजनाओं के तहत लाभ उठाने के लिए लाभार्थियों की पहचान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है।ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित मजबूत प्रसंस्करण ढांचे के साथ, ये विकसित होता गन्ना इकोसिस्टम अन्य कृषि क्षेत्रों के लिए एक मिसाल कायम करता है। क्षमता निर्माण और किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण को लेकर सहायक नीतियों का सकारात्मक प्रभाव पिछले 6 से 7 वर्षों में दिखी शानदार प्रगति से स्पष्ट है। सरकार के इन नीतिगत प्रयासों और उपायों ने इस क्षेत्र पर व्यापक सकारात्मक प्रभाव डाला है।

Shalini singh

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