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मदरसों पर दूरगामी न्यायिक फैसला

Assam: इस्लामिक संस्थाओं और संगठनों ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में असम के मदरसों को साधारण विद्यालयों में तब्दील करने वाले अधिनियम के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सरकारी शिक्षा संस्थाओं में मजहबी तालीम अवैध है।

Bishwajeet Kumar
Published By Bishwajeet KumarWritten By K Vikram Rao
Published on: 5 Feb 2022 10:53 AM GMT
मदरसों पर दूरगामी न्यायिक फैसला
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एक मदरसा छात्र ओसामा बिन लादेन के तस्वीर के साथ

Assam: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम में समस्त राज्य-प्रबंधित मदरसों को साधारण विद्यालयों में तब्दील करने वाले (विधानसभा द्वारा दिसम्बर 2020 में पारित) अधिनियम को कल ही (4 फरवरी 2022) वैध करार दिया हैं। अर्थात मुख्य न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया तथा न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की पीठ ने विभिन्न इस्लामी संस्थानों और संगठनों द्वारा दायर तेरह याचिकाओं को सिरे से खारिज कर डाला है। दो वर्ष बीते तत्कालीन शिक्षा मंत्री (अधुना मुख्यमंत्री) हेमंत विश्वशर्मा (Hemant Vishwasharma) (सोनोवाल काबीना के शिक्षा मंत्री) ने मदरसों के सुधार हेतु यह विधेयक पारित कराया था। इस द्विसदस्यीय बैंच का निर्णय था कि सेक्युलर गणराज्य में संविधान की धारा 25, 26, 29 तथा 30 के तहत कोई भी उल्लंघन कतई नहीं हुआ है। न्यायालय का मानना है कि सरकारी शिक्षा संस्थाओं में मजहबी तालीम अवैध है।

हालांकि मदरसों के आधुनिकीकरण हेतु स्वयं इस्लामी पुरोधाओं ने अक्सर प्रेरक पहल की है। पर तालिबानी प्रवृत्ति के कारण सदैव ऐसे तरक्की-पसंद कदमों की मुखालफत होती रही है। मसलन दिल्ली सरकार में मदरसा बोर्ड के अगुवा रहे मियां हारुन युसुफ (Mian Haroon Yusuf) ने खुद मदरसों के पाठ्यक्रमों में अंग्रेजी भाषा, विज्ञान आदि को शामिल करना सुझाया था। उत्तर प्रदेश के योगी शासन ने मदरसों में एनसीआरटी (NCRT) की अध्ययन प्रणाली प्रस्तावित की थी।

दिल्ली शासन से संबद्ध मदरसों के दुरुप्रयोग को बाधित करने के लिये प्रत्येक संस्थान को अनिवार्यत: पंजीकृत करने का नियम रचा है। उनके पाठ्यक्रम को संशोधित किया है। नयी शिक्षा नीति के तहत नेशनश इंस्टीट्यूट आफ ओपन स्कूल्स के अध्यक्ष सरोज शर्मा ने प्राथमिक शिक्षा में भारतीय परंपरा के विषय योग, कौशल विकास संस्कृत, रामायण आदि के अध्ययन का प्रस्ताव रखा था।

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार ने 17,000 मदरसों के तीन लाख छात्रों को उच्च शिक्षा हेतु केन्द्रीय विश्वविद्यालयों से जोड़ दिया है। इनमें नरेन्द्र मोदी, मौलाना आजाद, डा. एपीजे अब्दुल कलाम आदि के विषय में पढ़ाया जायेगा। राष्ट्र से मोहब्बत करने का विषय भी पढ़ाया जायेगा। वतनपरस्ती का इस्लाम से क्या संबंध है भी विस्तार से बताया जायेगा।

अभी तक इन मदरसों में कुरान, शरिया, हदीस के साथ दूसरे राष्ट्रों पर इस्लामी आक्रमण का इतिहास पढ़ाया जाता है। ऐतराज की बात यह है कि इन मदरसों में हिन्दुओं को काफिर बताकर उनसे घृणा करना, गजवाये हिन्द (भारत का इस्लामीकरण) आदि भी बताया जाता है। विश्वभर में एकमात्र इस्लामी राज कायम करने हेतु प्रेरित कराया जाता हैं। ऐसे विषय काबिले ऐतराज हैं, राष्ट्र-विरोधी हैं। इसी संदर्भ में विचारक एवं लेखक तनवीर जाफरी (Tanveer Jaffrey) का लेख (6 जनवरी 2005) काफी सूचनात्मक है। पड़ोसी पाकिस्तान के मदरसों की शिक्षा पर उन्होंने लिखा है : ''जेहाद के नाम पर मुसलमानों में सशस्त्र युद्ध छेड़ने की भावना को उकसाने के आरोप में वहां लगभग 75 खतीबों (उपदेशकों) के विरुद्ध मुकदमें दर्ज किये गये हैं। इनमें से 40 धर्म उपदेशकों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। गौरतलब है कि 1947 में मात्र 130 इस्लामिक मदरसोंवाला पाकिस्तानी भूभाग आज 12,000 मदरसों वाला देश बन चुका है। यहां प्रत्येक वर्ष 17 लाख छात्र इस्लामी शिक्षा ग्रहण करते हैं।

अपदस्थ राष्ट्रपति (आजमगढ़ के जनरल परवेज मुशर्रफ) को श्रेय देना होगा ​कि इन मदरसों का बेजा इस्तेमाल करनेवाले मुल्लाओं को नियंत्रित करने के लिये उन्होंने कई कदम उठाये।

भारत विरोधी कार्यक्रम सीमा पर किया जा रहा लागू

एक सनसनीखेज भारत विरोधी कार्यक्रम सीमा पर क्रमश: लागू किया जा रहा है। मसलन नेपाल सीमा पर पाकिस्तान की आर्थिक मदद से सैकड़ों मदरसें स्थापित किये गये हैं। भारत विरोधी योजनायें वहीं से रची जाती हैं। गुजरात-सिंध सीमा पर कच्छ से सटे क्षेत्र में मदरसे निर्मित हुये हैं। स्कूल न होने के कारण स्थानीय छात्र लाचारी से इन मदरसों में पढ़ते हैं। आतंकी बनते हैं। तत्कालीन शिक्षा मंत्री (अधुना यूपी की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल) ने रोकथाम की कोशिश करायी थी।

मदरसों को केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा नहीं सोचना चाहिये। उर्दू में छात्र को तालिब (खोजी और उत्सुक) कहते हैं। बहुवचन है तालिबान। अर्थात् अफगानिस्तान पर आज मदरसों में प्रशिक्षित तालिबान छाये हैं। उनका लक्ष्य वहां गजवाये हिन्द है। अफगानिस्तान को खोरासान भी कहते हैं। वहां से हरा परचम लेकर जेहादी चलेंगे तथा शमशीरे इस्लाम की बदौलत भारत को इस्लामी मुल्क बनायेंगे। अत: लक्ष्य भारत है। बचाना भारत सरकार पर है। पहला कदम होगा मदरसों को आतंक का गढ़ बनने से रोकें।

इन मदरसों के पाठ्यक्रम का केवल एक प्राचीन घटना शामिल है। भारत पर प्रथम इस्लामी आक्रमण को खलीफा द्वारा प्रेरित मोहम्मद बिन कासिम ने किया था। उसने हिन्दू सिंध पर हमला कर सम्राट दाहिर सेन की लाश को बोरे में भरकर खलीफा को भेजी थी। यहां से भारत का इस्लामी करण शुरु हुआ। इस आक्रामक कासिम को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने ''प्रथम पाकिस्तानी'' कहा था। उसे गाजी की पदवी से सम्मानित किया गया था। भारत के मदरसों में यह डाकू, लुटेरा मोहम्मद बिन कासिम गाजी कहलाता है। सर्वभौम सेक्युलर भारतीय गणराज्य ऐसे वृत्तांत के पठन को सह सकता है? इसीलिये मदरसे पर राष्ट्रहित में गुवाहटी उच्च न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है।

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