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सिंध पर भूगोल ने किया अन्याय! भारत अब: इतिहास बदले!!

योगी जी के उद्बोधन से यह मुद्दा फिर उठता है कि क्या बिना विभाजन के स्वतंत्रता न मिलती? अवध के कई मुसलमान पाकिस्तान आंदोलन के कर्णधार थे।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 9 Oct 2023 7:23 PM IST
Geography did injustice to Sindh India now change history
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Geography did injustice to Sindh India now change history (Photo-Social Media)

योगी आदित्यनाथजी ने हिंदुओं की दुखती रग को छू लिया। इन आस्थावानों की पीड़ा का कारण रहा पवित्र सिंधु प्रदेश का कट जाना। भारत का विभाजन ! यह केवल एक “व्यक्ति की हठ का नतीजा था,” बताया योगी जी ने (टाइम्स ऑफ इंडिया : पृष्ठ 3। कालम 5-8, अक्तूबर 9, 2023)। आधुनिक भारत के इतिहास का हर पाठक जानता है वह व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू ही थे। जैसे मध्य युगीन इतिहास में मोहम्मद बिन कासिम। उसे भुट्टो ने “प्रथम पाकिस्तानी” बताया था। सिंधियों को उसने इस्लामी बना दिया था। योगीजी का भाषण रुचिकर, सूचनात्मक था : सिंधी काउंसिल के राष्ट्रीय सम्मेलन में लखनऊ में कल (8 अक्टूबर 2023)। योगीजी के तंज के संदर्भ में पूर्व अमेरिकी राजदूत प्रो. जॉन गैलब्रेथ का प्रसंग उल्लेखनीय है। जवाहरलाल नेहरू ने इस अमेरिकी विद्वान से कहा था : “मैं आखिरी अंग्रेज हूं जो भारत पर शासन कर रहा हूं।” (पृष्ठ-23 “नेहरू : ए ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी”, लेखक स्टेनली वॉलपर्ट, प्रकाशित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस : 1996, न्यूयॉर्क).

योगी जी के उद्बोधन से यह मुद्दा फिर उठता है कि क्या बिना विभाजन के स्वतंत्रता न मिलती ? अवध के कई मुसलमान पाकिस्तान आंदोलन के कर्णधार थे। मगर रह गए भारत में ही। जायदाद की वजह से। बेगम एयाज़ रसूल, राजा महमूदाबाद, मेरठ के नवाब मोहम्मद इस्माइल खां, चौधरी खलीक्कुज्ज्माँ जो अंत में लखनऊ से कराची गए थे। मलिहाबाद से शायरे इंकलाब शब्बीर हसन खान उर्फ जोश भी। वे कराची से निराश होकर भारत लौटना चाहते थे। मगर तब इंदिरा गांधी का टके पर जवाब था : “मेरे पिता आपसे मिन्नत करते रहे, भारत मत छोड़िए। अब क्यों यहीं लौटना चाहते हैं ?”

इन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसी नेताओं ने सत्ता हस्तांतरण की जल्दी में सिंध के उन राष्ट्रीय नेताओं को दरकिनार कर दिया, जो विभाजन के सख्त खिलाफ थे। ऐसे जननायकों को इतिहास में स्थान नहीं दिया गया। इनमें एक महानायक थे अल्लाह बख्श सूमरो। वह 1938 और 1942 के बीच दो बार सिंध प्रांत के प्रमुख रहे। मुख्यमंत्री थे। वे एक प्रतिबद्ध देशभक्त थे जिनसे जिन्ना की मुस्लिम लीग बहुत नफरत करती थी। वह बस 20 साल के थे, जब उन्होंने खादी पहननी शुरू की। उन्होंने औपनिवेशिक काल में भी अपनी सरकारी गाड़ी में कभी झंडा नहीं लगाया। अविभाजित भारत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को याद किया जाना चाहिए। सूमरो सांप्रदायिक ताकतों की राजनीति के सामने चुनौती के रूप में उभरे, खासकर मुस्लिम लीग के सामने। उन्हीं की भांति थे गुलाम मुर्तजा सैयद। उन्होंने तो “सिंधुदेश” नाम से एक स्वतंत्र राष्ट्र के गठन का प्रस्ताव रखा। सिंध की आजादी की मांग की थी। सैयद के नेतृत्व में सिंधी भाषा और पहचान के लिए आंदोलन ने बांग्ला भाषा आंदोलन से प्रेरणा ली। सैयद ने अपनी पुस्तकों “हेन्यार पाकिस्तान खे तुत्तन खप्पे” (पाकिस्तान टूटे) और “सिंधु देश-ए नेशन” इन में खुले तौर पर पाकिस्तान से अलग होने और एक स्वतंत्र सिंधुदेश के निर्माण की मांग की थी। उन्होंने सिंध देश हेतु 1972 में जन आंदोलन भी चलाया। एक मातृभूमि बनाने की मांग थी। इसकी कल्पना बांग्लादेश की आजादी के बाद जीएम सैयद ने की थी। उन्होंने जय सिंध तहरीक की स्थापना की।

जब इन सैयद ने “जियो सिंध” आंदोलन चलाया तो डॉ. धर्मवीर भारती “धर्मयुग” के संपादक थे। उनके कहने पर मैंने तब “धर्मयुग” में पृथक सिंध के पक्ष में लेख लिखा था। डॉ. भारती को इस “जियो सिंध तहरीक” का समर्थन करने की प्रेरणा मिली थी। डॉ. भारती पत्रकार पंडित विष्णुकांत शास्त्री को कोलकत्ता लेकर पूर्वी पाकिस्तान के स्वाधीनता संग्राम और जनरल याह्या खान वाले युद्ध की रिपोर्टिंग के लिए गए थे। डॉ. भारती कई मायने में हिंदी के प्रथम वार (युद्ध) रिपोर्टर थे। उनका आंकलन था कि सिंध भी एक दिन बांग्लादेश की भांति स्वतंत्र गणराज्य बनेगा। अवध से गये मुसलमान भी जो 75 साल बाद भी शरणार्थी (मुहाजिर) कहे जाते हैं, भारत लौटना चाहते हैं। इन मुसलमानों के संगठन का नाम है मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट, जिसकी स्थापना कराची से 17 सितंबर 1953 को की गई थी।

सिंध प्रदेश से हमारे परिवार का बड़ा आत्मीय संबंध रहा। मेरे ताऊजी स्व. के. पुन्नाय्या चेन्नई से सिंध गए थे। वे आधुनिक सिंध में पत्रकारिता के आदि प्रवर्तक रहे। कराची के मुख्य अंग्रेजी दैनिक ‘‘सिंध आब्जर्वर’’ का ढाई दशकों (1922-1947) तक प्रधान संपादक बने। उसकी सम्पादकीय शैली के कायल थे : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माधव गोलवलकर और मुलिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना। उनके प्रशंसकों में युवा सिंधी पाठक लालकृष्ण आडवाणी, राम जेठमलानी, केवलराम मलकानी (आब्जर्वर-पांचजन्य) आदि रहे। उनके सहधर्मियों में सिंध प्रान्त के स्वाधीनता-सेनानी आचार्य जेबी कृपलानी, डाo चोइथराम गिडवानी, जयरामदास दौलतराम, साधु टी.एल. वासवानी आदि थे। ऐसे निराले सम्पादक थे कोटमराजू पुन्नय्या। उनके अनुज तथा मेरे पिता स्व. के. रामा राव लखनऊ के दैनिक ‘‘नेशनल हेराल्ड’’ के संस्थापक-संपादक (1938-46) तथा स्वाधीनता सेनानी और सांसद थे।

घटनाक्रम बताता है कि इस इस्लामी गणराज्य का दृश्य वही होगा जो आखिर में जिन्ना का हुआ था। तब भारत काटकर बनी जिन्ना की सल्तनत केवल एक साल हुए थे। बात 1948 की है। इस कैंसर रोगी गवर्नर-जनरल को छोटे से वाइकिंग वायुयान में पर्वतीय नगर क्वेटा से कराची लाया गया था। उनके अगवानी पर कोई भी न था। कराची एयरपोर्ट से मरणासन्न जिन्ना को इनके साथ आईं बहन फातिमा जिन्ना, निजी सचिव और पायलेट ने हाथों-हाथ एम्बुलेंस में लिटाया। स्ट्रेचर तक नदारद था। वह जीर्ण एम्बुलेंस अस्पताल की राह पर ही खराब हो गया। रुआंसी फातिमा को लगा कि भाई कहीं सड़क के किनारे फुटपाथ पर ही दम न तोड़ दे। सिर्फ दो घण्टे बाद अस्पताल में जिन्ना का निधन हो गया। वह शनिवार, 11 सितम्बर 1948, की शाम थी। चालीस वर्षों के सार्वजनिक जीवन के अन्त में, “कायदे आजम” अपने ही बनाये वतन में इतने अकेले थे, इतने विच्छिन्न !



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Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

Content Writer

अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

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