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Mumbai Taxi and George Fernandes: मुंबईया टैक्सी और जॉर्ज का नाता था, दोनों मात्र यादें रहीं

Mumbai Taxi and George Fernandes: मुंबई की टैक्सी, जो (20 अक्टूबर 2023) से लुप्त हो जायेगी, के साथ भारत में विरोध की राजनीति का एक ऐतिहासिक अनुच्छेद भी खत्म हो जाएगा। इस बॉम्बे टैक्सीमेंस यूनियन के संस्थापक-अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस थे।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 30 Oct 2023 10:12 PM IST
George Fernandes, founder-president of Bombay Taximens Union
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मुंबईया टैक्सी और जॉर्ज का नाता था, दोनों मात्र यादें रहीं: Photo- Social Media

Mumbai Taxi and George Fernandes: मुंबई की टैक्सी, जो (20 अक्टूबर 2023) से लुप्त हो जायेगी, के साथ भारत में विरोध की राजनीति का एक ऐतिहासिक अनुच्छेद भी खत्म हो जाएगा। इस बॉम्बे टैक्सीमेंस यूनियन के संस्थापक-अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस थे। जेल के मेरे साथी (आपातकाल में)। मुंबई की फुटपाथों से उठकर जॉर्ज भारत के रक्षा, रेल, उद्योग और संचार मंत्री रहे। तीन प्रधानमंत्रियों के काबीना सहयोगी थे : मोरारजी देसाई, विश्वनाथ प्रताप सिंह और अटल बिहारी वाजपेई के। आज इस संदर्भ में जब संवाद समिति (पीटीआई) की एक खबर सुर्खियों में आई तो मुंबई के गत सदी का समूचा इतिहास कालचक्र की तरह घूम गया। खबर थी कि फिएट (स्थानीय जुबान में काली पीली) टैक्सी अब नहीं चलेगी। नहीं दिखेगी। पद्मिनी तीरोभूत हो जायेगी। ताड़देव आरटीओ में रजिस्टर्ड इस अंतिम पद्मिनी टैक्सी के मालिक अब्दुल ने बताया कि यह मुंबई की शान और ड्राइवरों की जान रही थीं। आरटीओ के नियमानुसार, 20 साल पुरानी टैक्सियों को सर्विस से हटाना पड़ता है।

जॉर्ज फर्नांडीज, मुंबई टैक्सी और आपातकाल

जॉर्ज फर्नांडीज के साथी और विख्यात श्रमिक नेता फ्रेड्रीक डीसा (फोन : 99675,43835) ने एक लंबी (फोन पर) बातचीत में बताया कि इन टैक्सियों का बंद होना जॉर्ज के जीवन के एक खास अध्याय भी समाप्त कर देना है। उस दौर में (अक्टूबर 1962) बंबई में पेट्रोल के दाम बढ़ते रहे। पर टैक्सी का भाड़ा सरकार ने नहीं बढ़ाया था। इससे टैक्सी ड्राइवरों को भुखमरी का सामना करना पड़ा। तब महाराष्ट्र के श्रमिक जगत में पुच्छल तारा, बल्कि लघु ग्रह की भांति जॉर्ज सर्जा था। उस शाम (शुक्रवार, 19 अक्टूबर 1962) को महाराष्ट्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण की सरकार ने टैक्सी आंदोलन को अवैध करार दिया। शिवाजी पार्क में नियोजित विशाल रैली पर भी पाबंदी लगा दी। जॉर्ज को विभिन्न जेलों में कैद रखा गया। साल भर नजरबंद रहे। मगर इस सरकारी हरकत से बंबई के मजदूर संघर्ष को नई जान मिली। कम्युनिस्ट पार्टी (श्रीपाद डांगेवाली) ने कपड़ा मिल मजदूरों को तो कमजोर कर ही डाला था। तभी (20 अक्टूबर 1962) कम्युनिस्ट चीन ने भारत पर हमला बोल दिया था। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी चीन-विरोधी और समर्थकों के खेमों में खंडित हो गई थी। मगर टैक्सीमेंस यूनियन के मजबूत हो जाने से वह रिक्तता भर गए। सोशलिस्टों के हिंदू मजदूर किसान पंचायत को ताकतवर बनाया।

जॉर्ज ने बॉम्बे मजदूर यूनियन का किया नेतृत्व

जॉर्ज ने इस पंचायत से सम्बद्ध बॉम्बे मजदूर यूनियन का नेतृत्व संभाला। भारत की 19 मई 1974 की रेल मजदूर हड़ताल में बंबई के इन टैक्सी ड्राइवरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बात 1974 की है। आजादी के बाद तक तीन वेतन आयोग आ चुके थे। लेकिन रेल कर्मचारियों के वेतन को लेकर कोई बढ़ोतरी नहीं हुई थी। जॉर्ज फर्नांडिस नवंबर 1973 को ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में यह फैसला हुआ कि वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। फिर 8 मई 1974 को बंबई में हड़ताल शुरू हो गई। न सिर्फ पूरी मुंबई बल्कि पूरा देश थम सा गया था। करीब 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। बाद में कई और यूनियनें में भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं। टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी। हड़ताल का असर पूरे देश में दिखने लगा। सरकार ने सख्त रुख अपनाया। सेना को तैनात कर दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट थी कि हड़ताल तोड़ने के लिए 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। भारत के इतिहास में यह टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय स्तर पर छा गए। देश में उनकी पहचान फायरब्रांड मजदूर नेता के तौर पर कायम हो गई। इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लागू करने का एक बहाना मिल गया। प्रधानमंत्री ने जून 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी। “इंदिरा हटाओ” लहर के नायक बनकर जॉर्ज उभरे। वह लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे। लेकिन एक साल बाद उन्हें बड़ौदा डायनामाइट केस के अभियुक्त के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया। जॉर्ज की गिरफ्तारी के बाद मैं अभियुक्त नंबर दो हो गया था। तब तक पहले पहला अभ्युक्त मैं ही था।

छोटी टैक्सी कार आई कैसे

आखिर यह छोटी टैक्सी कार आई कैसे ? पद्मिनी कार इटली के मार्वल फैब्रीका इटालियाना ऑटोमोबाइल टोरिनो कंपनी की थी। आजादी के बाद आटोजगत में दो ही कारे थीं। हिंदुस्तान मोटर्स की एम्बेसडर और प्रीमियर ऑटो लिमि टेड (वालचंद ग्रुप) की पद्मिनी। अस्सी के दशकों में इन्हीं से भारत की सड़कें गुलज़ार रहा करती थी। इन कारों को रंग लोगों पर ऐसा चढ़ा कि इन्हे लोग “रानी” तक कहकर पुकारने लगे।

लाल बहादुर शास्त्री ने सन् 1964 में प्रधानमंत्री बनने के बाद फिएट कार खरीदना चाहा। “पद्मिनी की कीमत तब 12,000 रुपए थी। शास्त्री जी के पास मात्र 7,000 रुपए थे। उन्होंने लोन लिया। एक फिएट खरीद ली। लोन की रकम चुकाने से पहले ही शास्त्री जी की मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी ललिता ने बकाया लोन चुकाया। आज यह कार दिल्ली में लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल संग्रहालय में तीन मूर्ति भवन में है। महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने इन प्रतिष्ठित प्रीमियर पद्मिनी टैक्सियों को श्रद्धांजलि देते हुये कहा : “इन्होंने कई लोगों के लिए अनगिनत यादें संजोई हैं।” इन काली पीली टैक्सियों से मुंबई की जनता का भावनात्मक लगाव भी रहा। आधी सदी तक। आम बंबईया और शहर में आने वाले पर्यटक भी इन काली पीली गाड़ियों को धन्यवाद कहता था। मगर अब भारी मन से अलविदा भी कह रहा है।



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Shashi kant gautam

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