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'जॉर्ज फर्नांडीज तुमको न भूल पाएंगे'

हम दोनों ने अलग-अलग विचारधारा से राजनीति की शुरूआत की पर हम दोनों को करीब लाने वाला प्रेम था रेलवे कर्मचारी और प्रतिदिन यात्रा करने वाले यात्रियों की सुविधा की बात करना।

Dharmendra kumar
Published on: 3 Feb 2019 12:54 PM IST
जॉर्ज फर्नांडीज तुमको न भूल पाएंगे
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राम नाइक, लखनऊ: मुंबई उपनगरीय रेल क्षेत्र में प्रथम डहाणु-विरार रेलवे शटल सेवा से लेकर कारगिल के शहीद परिजनों को पेट्रोल पंप एवं गैस एजेंसी वितरण के समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमण्डल में साथ रहने तक जार्ज फर्नांडीज के साथ काम किया। इन दोनों मामलों में जार्ज फर्नाडीज ने पूरे मनोयोग से सहयोग किया। राजनीति में अलग-अलग दल के होते हुए बिना किसी राजनैतिक विद्वेष के साथ रहे। कुछ ऐसे ही क्षणों को याद किया राम नाईक ने....

पुणे से बीकाम उपाधि प्राप्त करने के बाद नौकरी के लिये मुंबई आने के बाद मैंने भारतीय जनसंघ के लिये काम करना शुरू किया। सन् 1961 में मुंबई नगर निगम के गोरेगांव चुनाव में नगरसेवक यानी पार्षद का मैं चुनाव प्रभारी था। जनसंघ का प्रत्याशी चुनाव हार गया और इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की मृणाल गोरे और जार्ज फर्नांडीज चुनकर आये। गोरेगांव में जनसंघ का कोई भी पार्षद नहीं था फिर भी मेरी दिलचस्पी नगर निगम के काम में थी। जार्ज स्वयं कन्नड़ भाषी थे फिर भी उन्होंने नगर निगम में मराठी भाषा में व्यवहार करने का भरपूर समर्थन किया। वे पूरी निडरता और आक्रमकता से जनहित के मुद्दे उठाते जिसके कारण मेरे मन में उनके प्रति सद्भाव और लगाव की छवि बनी। बाद में 1967 के लोकसभा चुनाव में मुंबई कांग्रेस के दिग्गज नेता श्री स.का. पाटील को पराजित किया, जिसकी चर्चा संसदीय गलियारों में दीर्घकाल तक होती रही।

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हम दोनों ने अलग-अलग विचारधारा से राजनीति की शुरूआत की पर हम दोनों को करीब लाने वाला प्रेम था रेलवे कर्मचारी और प्रतिदिन यात्रा करने वाले यात्रियों की सुविधा की बात करना। हम दोनों दैनिक यात्रियों के लिये संघर्ष करते थे। वे बेस्ट बस, टैक्सी एवं ऑटोरिक्शा, रेलवे यूनियन तथा श्रमिक नेता के रूप में आगे बढ़ रहे थे। सन् 1974 में उनके नेतृत्व में बहुत बड़ी रेलवे की हड़ताल हुई, जैसी आज तक दुनिया में कहीं नहीं हुई। मेरे जैसा रेलवे यात्रियों के लिये काम करने वाले को यह समझ में आया कि रेल यातायात का क्या महत्व है।

जार्ज फर्नांडीज दृढ़ निश्चय वाले कद्दावर नेता थे जो बात ठान लेते थे उसे पूरा अवश्य करते थे। हड़ताल के बाद आपातकाल की घोषणा हुई। आरम्भ में जार्ज फर्नांडीज भूमिगत थे। बाद में उन्हें, उनके साथ गांधीवादी उद्योगपति विरेन शाह और पत्रकार विक्रम राव को गिरफ्तार किया और देशद्रोह के अपराध में उन्हें गंभीर यातना दी गयी।

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आपातकाल के बाद उन्होंने चुनाव न लड़ने का निश्चय किया पर जय प्रकाश नारायण के आग्रह पर उन्होंने अपना मन बदला और चुनाव लड़ने को तैयार हो गये। मोरारजी देसाई की सरकार में वे उद्योग मंत्री रहे। आपातकाल के दौरान वे अटल जी, आडवाणी जी के सम्पर्क में आये। जिस जनता पार्टी की सरकार को उन्होंने बनाया था, जब उन्हें लगा कि वह अपने लक्ष्य से हट रही है तो सरकार गिराने में उनकी प्रमुख भूमिका थी। वे अपने हृदय और मस्तिष्क की मानते थे, बिना इसकी परवाह किये कि लोग क्या कहेंगे। वे जनसंघ के घोर विरोधी थे। 1989 में वे प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में रेलमंत्री बने और मैं पहली बार लोक सभा का सदस्य चुन कर गया। मैं उनके विरोधी दल जनसंघ का था फिर भी मेरे सभी प्रस्ताव पर उनका सकारात्मक दृष्किोण होता था। मैं मुंबई से लोक सभा का सदस्य था इस दृष्टि से मुंबई के लोगों के लिये सबसे महत्व का विषय उपनगरी रेल यातायात था।

जार्ज फर्नांडीज की कर्मभूमि भी मूलतः मुंबई थी। उनका कथन था कि 'रेलवे मुंबई की नाक है। नाक बंद करेंगे तो मुँह खुल जायेगा। इसलिये मैं मुंबई में रेल यातायात बन्द करवाता हूँ।' मेरा सुझाव था कि सरकार को संसद में रेलवे को लेकर श्वेत पत्र जारी करना चाहिये तो उन्होंने उसे तत्काल स्वीकार कर लिया और श्वेत पत्र जारी किया।

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मेरा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर मुंबई सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र था जो पालघर से लेकर जोगेश्वरी तक 89 किलोमीटर लम्बाई का था। डहाणु से पालघर के लोग रोजगार के लिये रोज मंुबई आते थे। उस समय लोग लम्बी दूरी की रेल यात्रा करते थे जो सामान्यता अनारक्षित डिब्बे से होती थी। मैंने मांग की थी कि विरार से डहाणु तक अलग से शटल सेवा आरम्भ करनी चाहिये। यह मांग रेल मंत्री जार्ज फर्नांडीज ने इसलिये मानी क्योंकि वे मुंबई के यातायात से जुड़ी समस्याओं से परिचित थे।

इस 'शटल सेवा' का शुभारम्भ स्वयं जार्ज फर्नांडीज को करना था पर किसी वजह से न आने के कारण उन्होंने विषय की महत्ता को समझते हुये वित्त मंत्री प्रो. मधु दण्डवते को भेजा। पहली शटल सेवा जो विरार और डहाणु के बीच शुरू हुई उसे आज भी क्षेत्रीय लोग 'राम नाईक शटल' बोलते हैं। इस काम को करने का श्रेय यात्रियों ने मुझे दिया पर असली श्रेय तो जार्ज फर्नांडीज को जाता है।

जार्ज फर्नांडीज सदैव ऐसे निर्णय लेते थे जो सही होते थे और जिनकी आवश्यकता होती थी। कई बार वे जनहित में निर्णय लेते पर लोगों को राजनैतिक रूप से लगता था कि जार्ज बदल गये हैं और विरोधियों की बात मानते हैं। उनका हर निर्णय योग्यता और गुणवत्ता के आधार पर होता था। इसलिये अटल बिहारी वाजेपयी ने जार्ज फर्नांडीज को एनडीए का प्रमुख बनाया था। उन्होंने अपने व्यवहार से इस निर्णय को सही भी साबित किया।

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कर्तव्य पथ पर अडिग रहने वाले जार्ज फर्नांडीज ने एनडीए के साथ रहने के लिये अपने पुराने सहयोगी नीतीश कुमार से भी दूरी बना ली थी। वे 'दोस्त जाये पर जनहित न जाये' के भाव को सबसे ऊपर रखते थे। वे एक प्रखर राष्ट्रवादी थे, यह अणु परीक्षण के समय रक्षा मंत्री के रूप में देखने को मिला। अटल जी ने अणु परीक्षण का क्रांतिकारी निर्णय लिया। अटल जी हर स्तर पर स्वयं सक्रिय थे। जार्ज फर्नांडीज ने रक्षा मंत्री के रूप में अटल जी का पूरा सहयोग किया। मैंने सहयोगी मंत्री के रूप में दोनों के परस्पर संबंध करीब से देखे हैं। कारगिल युद्ध के समय भी उन्होंने सरकार का सभी स्तर पर पूरा सहयोग किया।

कारगिल विजय की खुशी से ज्यादा उन्हें युद्ध में शहीद परिजनों की चिन्ता थी। जब मैंने पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से सरकारी खर्च पर पेट्रोल पम्प और गैस एजेन्सी देने की बात कही तो उन्होंने मंत्रिपरिषद में न केवल सहयोग किया बल्कि इसका व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखा कि प्रस्ताव किसी स्तर पर लाल फीताशाही के कारण रूकने न पाये। जब एक भव्य समारोह में शहीदों के परिजनों को एजेन्सी और पेट्रोल पम्प दिये गये तो उन्होंने आंसू भरी आखों के साथ भावुक होकर शहीदों के परिजनों का अभिवादन किया। मैंने जार्ज फर्नांडीज जैसे 'फायर ब्राण्ड' नेता को पहली बार नम आखों में देखा।

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नियति के खेल निराले होते हैं। अटल जी और जार्ज फर्नांडीज, दोनों मेरे वरिष्ठ सहयोगी थे जो कुशल और प्रभावी वक्ता के रूप में जाने जाते थे। दोनों लम्बे समय तक बीमार रहे और दोनों की 'वाणी शक्ति' चली गई थी और बोल नहीं सकते थे। अटल जी के देहान्त के मात्र पांच महीने के बाद जार्ज फर्नांडीज ने भी दुनिया छोड़ दी। 'जार्ज लोग कहते है तुम्हारी स्मरण शक्ति खो गई थी पर जार्ज मुझे विश्वास है कि तुम अपने कार्य और व्यवहार से सदैव सबके स्मरण में रहोगे, मित्र हमेशा-हमेशा के लिये। तुमको न भूल पायेंगे।'

(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यपाल हैं)

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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