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भारत के एनर्जी इकोसिस्टम में परिवर्तन के वास्तुकार नरेंद्र मोदी

भारत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प की बदौलत इसमें वैश्विक लीडर के रूप में उभरा है।

R.K. Singh
Written By R.K. SinghPublished By Vidushi Mishra
Published on: 30 Sept 2021 6:14 PM IST
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इकोसिस्टम (फोटो-सोशल मीडिया)

ग्रीन हाउस गैसों, सीओ2 उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग ने दुनियाभर में चिंता बढ़ा दी है; इससे स्वच्छ ऊर्जा अपनाने का दबाव भी बढ़ा है। ऊर्जा संक्रमण अब अंतरराष्ट्रीय एजेंडे में शीर्ष पर है । भारत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प की बदौलत इसमें वैश्विक लीडर के रूप में उभरा है। पेरिस में सीओपी 21 में, भारत ने संकल्प लिया कि साल 2030 तक वह अपनी ऊर्जा क्षमता का 40 फीसदी गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हासिल करेगा।

इसके समानांतर, प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि भारत 2022 के अंत तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का प्रयास करेगा। यह 2014 की अक्षय ऊर्जा क्षमता का लगभग 5 गुना था। लेकिन हम इसे हासिल करने के करीब पहुंच चुके हैं।

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश के लिए सबसे आकर्षक गंतव्य

आज हमारी अक्षय ऊर्जा क्षमता 147 गीगावॉट है (जलविद्युत समेत, जो दुनियाभर में आरई बास्केट में शामिल है)। हमारे पास 63 गीगावॉट पर काम चल रहा है। इस तरह यह 210 गीगावॉट तक बढ़ जाता है। हम नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में पहले से ही दुनिया में अग्रणी हैं। ब्लूमबर्ग ने हमें दुनिया में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश के लिए सबसे आकर्षक गंतव्य के रूप में वर्गीकृत किया है।

हम नवाचार कर रहे हैं। हम भंडारण के साथ सौर-पवन-हाइब्रिड जोड़ रहे हैं। 24 घंटे हरित ऊर्जा आपूर्ति क्षमता के लिए हमारे पास पहले से ही सफल बोलियां हैं। हम जल्द ही 1000 एमडब्लूएच की बैटरी स्टोरेज के लिए बोलियां आमंत्रित करने जा रहे हैं।

सौर-पवन-हाइब्रिड (फोटो- सोशल मीडिया)

यह दुनिया की सबसे बड़ी स्थापित भंडारण क्षमता का ढाई गुना है। हम लद्दाख में 14000 मेगावॉट घंटे के भंडारण के साथ 10000 मेगावॉट अक्षय ऊर्जा पार्क स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं।

पेरिस में सीओपी 21 में, भारत ने यह भी संकल्प लिया था कि वह अपनी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर की तुलना में 33 प्रतिशत तक कम करेगा। हम इस लक्ष्य को हासिल करने के अपने रास्ते पर हैं। एलईडी कार्यक्रम (उजाला) के तहत, 2015 से अब तक 1.15 अरब एलईडी की बिक्री की जा चुकी है, जिससे सीओ2 उत्सर्जन में हर साल 171 मिलियन टन की कमी आई है।

पीएटी (प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार) - उद्योग के लिए ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के तहत, हमने 2020 तक सीओ2 उत्सर्जन में 86 मिलियन टन प्रतिवर्ष की कमी हासिल की है। उपकरणों में ऊर्जा दक्षता के हमारे कार्यक्रम- स्टार रेटिंग प्रोग्राम के तहत हमने हर साल 53 मिलियन टन सीओ2 उत्सर्जन में कमी हासिल की है। 2019 तक, हमने उत्सर्जन तीव्रता में लगभग 28 प्रतिशत की कमी हासिल कर ली थी।

उपयोगिता के पैमाने पर सौर पार्कों के माध्यम से डेवलपर्स को 'प्लग-एंड-प्ले' मॉडल पेश करने की रणनीतिने अनिश्चितताओं को कम करने और परियोजना को चालू करने की समयसीमा को छोटा किया। यह जमीन, ग्रिड और अन्य बुनियादी ढांचे तक फौरन पहुंच प्रदान करती है।

सौर शहर कार्यक्रम

सौर पार्क (फोटो- सोशल मीडिया)

साल 2015 से सरकार ने 15 राज्यों में 47 सौर पार्कों को मंजूरी दी है, जिनकी कुल क्षमता 37.7 गीगावॉट है।कर्नाटक का 2 गीगावॉट का पावागढ़ सौर पार्क दुनिया के सबसे बड़े सौर पार्कों में से एक है।

मार्च 2019 में शुरू की गई पीएम-कुसुम योजना का उद्देश्य किसानों के स्वामित्व वाली बंजर,परती,दलदल भूमि पर सौर संयंत्रों के माध्यम से ~31 गीगावॉट क्षमता बढ़ाना है; ऐसे में सौर पंपों ने 2 मिलियन डीजल पंप की जगह ले ली। घरेलू स्तर पर बने सोलर सेल और मॉड्यूल का इस्तेमाल करके 1.5 मिलियन ग्रिड कनेक्टेड एग्री-पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़ दिया।

पीएम-कुसुम किसानों को ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान कर रहा है, कृषि क्षेत्र को डीजल के इस्तेमाल से मुक्ति दिला रहा है। अतिरिक्त सौर ऊर्जा बिक्री के माध्यम से किसानों की आय बढ़ा रहा है। इससे सालाना ~32 मिलियन टन सीओ2 उत्सर्जन रुकेगा। 1.4 अरब लीटर डीजल की बचत होगी।

शहरी क्षेत्र में, सौर शहर कार्यक्रम का लक्ष्य राज्य में कम से कम एक सौर शहर विकसित करना है, जहां जरूरत की सारी बिजली अक्षय ऊर्जा से प्राप्त हो सके। अब तक, 23 राज्योंव केंद्रशासित प्रदेशों ने सौर शहरों के रूप में विकसित किए जाने वाले शहरों की पहचान की है।

घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आरई उपकरण के लिए आयात निर्भरता घटाने के लिए, उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 2021 में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन यानी प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम शुरू की गई। इस मॉड्यूल में सेल्स, वेफर्स, इंगट और पॉलीसिलिकॉन जैसे अपस्ट्रीम वर्टिकल शामिल हैं।

हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात के लिए भारत को एक वैश्विक केंद्र बनाने के लक्ष्य के साथ, देश के माननीय प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2021 को राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन शुरू करने की घोषणा की।

ऐसा अनुमान है कि भारत में सालाना लगभग 5.6 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) हाइड्रोजन का उत्पादन होता है । विभिन्न औद्योगिक उद्देश्यों के लिए इसकी खपत हो जाती है। इस हाइड्रोजन का अधिकांश हिस्सा वर्तमान में जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है। साल 2030 तक हाइड्रोजन बाजार का आकार दोगुना बढ़कर 11 एमएमटी प्रति वर्ष होने की उम्मीद है।

स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा

तकनीकी-आर्थिक रुझानों के आधार पर इस बात पर व्यापक सहमति है कि हरित हाइड्रोजन के उपयोग से एक दशक या उससे भी कम समय में लागत-प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी। इसमें लंबी दूरी के भारी शुल्क वाले परिवहन और शिपिंग जैसे क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा की पहुंच बढ़ाने की क्षमता है। यह उर्वरक, पेट्रोकेमिकल्स, स्टील आदि जैसे क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन आधारित कच्चे माल की भी जगह ले सकता है।

यह ऊर्जा के वाहक के रूप में विशेष रूप से दूरस्थ क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय इसके अनुसार ही राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के दस्तावेज तैयार कर रहा है। हरित हाइड्रोजन को अपनाने में तेजी लाकर स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करना और कम लागत, इसकी व्यापक दूरदर्शिता है।

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (फोटो- सोशल मीडिया)

प्रस्तावित रणनीति के तहत उर्वरक, शोधन और प्राकृतिक गैस नेटवर्क जैसे क्षेत्रों में उपयुक्त शासनादेश के जरिए हरित हाइड्रोजन के लिए शुरुआती मांग पैदा करना है ।साथ ही इलेक्ट्रोलाइजर्स के स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देना है। यह अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाएगा, प्रौद्योगिकी विकास की सुविधा प्रदान करेगा और लागत में तेजी से कमी लाएगा।

यह मिशन मांग पैदा करने के प्रमुख क्षेत्रों और बाजार के उपकरणों; स्वदेशी विनिर्माण क्षमता विकसित करने खासतौर से इलेक्ट्रोलाइजर्स में; सुविधाजनक नीति और नियामक ढांचे की स्थापना; उत्पादन और आपूर्ति बुनियादी ढांचे का निर्माण; और हरित हाइड्रोजन के लिए अनुसंधान एवं विकास को शामिल करेगा।

दूसरे देशों को ऊर्जा तक पहुंच हासिल करने में मदद के लिए, भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की स्थापना की है। आज, आईएसए के 98 सदस्य देश हैं, जो 2030 तक वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित करने को सुविधाजनक बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। साल 2018 में, प्रधानमंत्री मोदी ने वन सन-वन वर्ल्ड-वन ग्रिड पहल का प्रस्ताव रखा था। यह एक वैश्विक ग्रीन ग्रिड की तरह है जो सीमाओं के पार सौर ऊर्जा पहुंचाएगा।

2018 में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने शीर्ष पर्यावरण सम्मान से सम्मानित किया। वैश्विक स्तर पर उनके साहसिक पर्यावरण संबंधी नेतृत्व, आईएसए के लिए उनके समर्थन और भारत में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने की उनकी प्रतिबद्धता के लिए उन्हें 'पृथ्वी का चैंपियन'कहा गया।

2021 में, अपनी स्वैच्छिक और क्रिया-उन्मुख स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियों और सतत् विकास के लिए नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण के लिए भारत को ऊर्जा संक्रमण के लिए संयुक्त राष्ट्र वैश्विक चैंपियन के रूप में चुना गया। हम ऊर्जा संक्रमण में सबसे आगे बने रहेंगे, हम जो करते हैं, बाकी दुनिया उस राह पर चल पड़ती है।

(लेखक केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री हैं)



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Vidushi Mishra

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