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‘सौभाग्य’ योजना की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में
शैलेन्द्र दुबे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना अर्थात सौभाग्य के तहत 2018 तक हर घर में बिजली पहुंचाने की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में है। सौभाग्य योजना की सफलता का सारा दारोमदार मुख्य रूप से सार्वजानिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों पर है क्योंकि पुराने अनुभवों से साफ है कि निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों की घाटे वाले जनहित की योजनाओं में कोई रुचि नहीं रहती।
निजी कंपनियां केवल मुनाफे की श्रेणी के उपभोक्ताओं को बिजली देने में ही दिलचस्पी रखती हैं। इस दृष्टि से केन्द्र और राज्य सरकारों को निजी घरानों पर अति निर्भरता की ऊर्जा नीति में बदलाव कर ऊर्जा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियों को और सुदृढ़ करना होगा तभी सौभाग्य योजना सफल हो पाएगी।
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देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 17.92 करोड़ घर हैं जिनमें 13.87 करोड़ घरों के पास बिजली कनेक्शन है अर्थात ग्रामीण क्षेत्र में ही लगभग 4. 05 करोड़ घर ऐसे हैं जिनके पास बिजली कनेक्शन नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने 4 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने की योजना शुरू की है तो स्पष्टत: यह योजना मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है।
एक अध्ययन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रति यूनिट बिजली आपूर्ति में बिजली वितरण कंपनी को 4 से 5 रुपये प्रति यूनिट तक घाटा होता है। अत: इस घाटे को उठाने के लिए कोई निजी कंपनी तैयार नहीं होगी और स्वाभाविक तौर पर यह कार्य सरकारी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियों को ही करना पड़ेगा।
सौभाग्य योजना को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में है क्योंकि केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार उप्र के 71' और बिहार के 85 प्रतिशत ग्रामीण घरों में अभी बिजली कनेक्शन नहीं है। कुल 4.05 करोड़ शेष घरों में से लगभग 40 प्रतिशत घर अकेले उप्र में हैं। उप्र में तकनीकी कर्मचारियों की भारी कमी है और अधिकांश बिजली उपकेंद्र ठेकेदारों के भरोसे चलाए जा रहे हैं।
ऐसे में संविदा कर्मियों को नियमित करने और नयी भर्ती किये बगैर ठेकेदारों के भरोसे सौभाग्य योजना की सफलता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। वर्तमान ऊर्जा नीति की इससे बड़ी विफलता और क्या हो सकती है कि देश में बिजली की उत्पादन क्षमता 330000 मेगावाट है और मांग इसके आधे से भी कम 150000 मेगावाट है। फिर भी 30 करोड़ लोगों के पास अभी भी बिजली नहीं है।
सौभाग्य योजना के अंतर्गत लगभग 4 करोड़ से अधिक घरों में रहने वाले 30 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचाने का महत्वकांक्षी लक्ष्य है। इनमें से आधे से अधिक घर केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के सभी घरों को मिलकर देखें तो झारखंड के 56', नागालैण्ड के 55', बिहार के 53.5', उप्र के 49' और असम के 46.6' घरों में बिजली नहीं पहुंची है। सौभाग्य योजना की निर्धारित समय सीमा में सफलता की सबसे बड़ी चुनौती उप्र और बिहार में है जिसे पूरा कर सकना असंभव तो नहीं, किन्तु मौजूदा परिस्थितियों में बेहद मुश्किल नजर आता है।
प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना के अनुसार हर घर को बिजली कनेक्शन दिया जाएगा। कनेक्शन देने की प्रक्रिया में बिजली के खंभे से उपभोक्ता के घर तक तार खींचना, मीटर लगाना, एलईडी बल्ब लगाना और एक मोबाइल चाॄजग प्वाइंट देना सम्मिलित होगा। इस कार्य के लिए केन्द्र सरकार ने फिलहाल 16000 करोड़ रुपये का बजट बताया है जो वस्तुत: कहीं ज्यादा हो सकता है। देश की बिजली वितरण कंपनियों की खराब माली हालत और मानव संसाधन की भारी कमी को देखते हुए दिसंबर 2018 तक लक्ष्य पूरा होना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 15 महीनों में 40530031 घरों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रति माह 27 लाख बिजली कनेक्शन अर्थात प्रतिदिन 90000 से अधिक बिजली कनेक्शन देने होंगे जो वर्तमान प्रगति से 600 प्रतिशत अधिक प्रगति करने पर ही संभव हो सकेगा। अभी लगभग 4 लाख 75 हजार घरों को प्रति माह बिजली कनेक्शन दिए जा रहे हैं। जब हर घर तक बिजली पहुंचाने की बात हो रही है तो यह भी समझ लेना चाहिए कि ग्रामीण विद्युतीकरण और नयी घोषित सौभाग्य योजना में क्या फर्क है?
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत 2005 से बीपीएल परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन पहले से ही दिए जा रहे हैं। एनडीए सरकार आने के बाद इस योजना का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना कर दिया गया है। हर घर तक बिजली पहुंचाना एक बात है और हर घर को जरूरत के घंटों में बिजली मिलती रहे यह अलग मामला है। अभी भी देश के बड़े हिस्से में जिनके पास बिजली कनेक्शन है उन्हें भी बमुश्किल 4 से 6 घंटे भी बिजली नहीं मिल रही है।
उप्र, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान, झारखंड जैसे बड़े प्रांतों में भी बिजली आपूर्ति की स्थिति बदहाल है। मुख्य कारण सरकार की गलत ऊर्जा नीति के चलते बिजली कंपनियों की खराब वित्तीय स्थिति है और वे अंडर कैपेसिटी बिजली पारेषण तंत्र और जर्जर विद्युत वितरण तंत्र को जरूरत के हिसाब से सुदृढ़ करने में सक्षम नहीं हो पा रही हैं। बिजली वितरण कम्पनियों की हानियां लगभग 24' हैं जिसमें बड़ी मात्रा में चोरी है।
उप्र में हानि 40' तक हैं। बिजली चोरी बिना दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के नहीं रोकी जा सकती सौभाग्य योजना के तहत सभी घरों को बिजली कनेक्शन दे भी दिए जाएं तो इन घरों को देने के लिए वितरण कम्पनियां बिजली कैसे जुटाएंगी, यह बड़ा प्रश्न है। इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि यदि बिजली मिल भी जाए तो ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के जर्जर तंत्र को सुदृढ़ किये बिना हर घर को बिजली देना कैसे संभव होगा।
उप्र की बात करें तो आज प्रदेश में 20000 मेगावाट बिजली की जरूरत है। उप्र का अपना कुल बिजली उत्पादन 8 से 9 हजार मेगावाट है और पारेषण लाइनों की वर्तमान क्षमता के अनुसार अन्य प्रांतों से 8100 मेगावाट से अधिक बिजली नहीं लायी जा सकती। इस प्रकार आज की 20000 मेगावाट मांग के सापेक्ष अधिकतम उपलब्धता 17000 मेगावाट हो पाती है।
हर घर को बिजली देने की योजना में लगभग पौने दो करोड़ और घरों तक बिजली देने के बाद अगले वर्ष यह मांग 25000 से 27000 मेगावाट तक हो जाएगी। बिजली के तंत्र को दुरुस्त किये बिना जब हर घर तक बिजली देना संभव नहीं हो पायेगा तो मात्र बिजली कनेक्शन देने से क्या होने वाला है?
(लेखक ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन हैं और उप्र पावर कार्पोरेशन के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता हैं)