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सरकार ने पलटा फैसला, तबाही से बचा मध्य वर्ग
सरकार ने गुरुवार सुबह उस फैसले को वापस ले लिया, जिसकी वजह से बैंकों और डाक घर में पैसा रखना और ज्यादा नुकसान का सौदा बन जाता।
नई दिल्ली: फिलहाल देश का मध्य वर्ग एक बड़े प्रहार से बच गया है। सरकार ने गुरुवार सुबह उस फैसले को वापस ले लिया, जिसकी वजह से बैंकों और डाक घर में पैसा रखना और ज्यादा नुकसान का सौदा बन जाता। पहले से ही एफडी या दूसरी बचत योजनाओं में पैसा रखना मुनाफे की बात नहीं रह गई है। जब मुद्रास्फीति की दर छह प्रतिशत के आसपास हो और लगभग इसी के करीब दर से ब्याज मिल रहा हो, तो बस इतनी तसल्ली की बात है कि बैंकों या डाकघर में पैसा चोर- डाकुओं से सुरक्षित पड़ा हुआ है।
अगर बुधवार को लिया गया फैसला लागू हो जाता, तो उसका परिणाम होता कि बैंकों और डाकघर में जमा लोगों का पैसा हर महीने अपने मूल्य में घटने लगता। या इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि दरअसल लोग बैंकों- डाकघर को अपना पैसा रखने की फीस देते। बुधवार के फैसले की खबर आने के बाद जिस तेजी से विरोध की आवाजें उठीं, शायद उसका ही नतीजा है कि 'कभी अपना फैसला वापस ना लेने' की छवि वाली सरकार ने इसे तुरंत वापस ले लिया।
निवेश करने के लिए प्रोत्साहित
लेकिन ये खतरा टल गया है, ये मानना मुमकिन है कि सही ना हो। ब्याज दरें गिराना सरकार की घोषित और लगातार चल रही नीति है। बुधवार का फैसला उसी का हिस्सा था। कई विश्लेषक मानते हैं कि सरकार की एक अघोषित नीति यह भी है कि ऐसी बचत योजनाओं में पैसा रखने के बजाय लोगों को शेयर मार्केट में सीधे या मुचुअल फंड्स के जरिए निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। ये नीति नरेंद्र मोदी सरकार के कुल आर्थिक नजरिए का अंग है। इसलिए ताजा फैसला वापस होने से भले मध्य वर्ग ने राहत की सांस ली हो, लेकिन यह दीर्घकालिक संतोष की बात नहीं हो सकती।
सरकार ने तेजी से फैसला बदला
बल्कि संभव है कि सरकार ने जिस तेजी से फैसला बदला, उसके पीछे अभी पांच राज्यों में हो रहे चुनावों की भी भूमिका हो। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने पहले घोषित फैसले को निगरानी के अभाव में लिया गया निर्णय करार दिया है। लेकिन इस बात को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय में भूल से ऐसे फैसले हो सकते हैँ। बहरहाल, सरकार अगर मध्य वर्ग की हालत का ख्याल करे, तो उसे असल में ऐसी योजनाएं घोषित करनी चाहिए, जिससे सिकुड़ रहे इस तबके को असली संबल मिले।
भारतीय मध्य वर्ग से तीन करोड़ 20 लाख लोग बाहर
गौरतलब है कि हाल में अमेरिकी संस्था पिउ रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कोरोना महामारी के काल में भारतीय मध्य वर्ग से तीन करोड़ 20 लाख लोग बाहर हो गए। यानी वे गरीबी की रेखा के नीचे चले गए। पिउ रिसर्च ने मध्य वर्ग की श्रेमी में रोजाना दो डॉलर (लगभग 150 रुपये) से अधिक खर्च की क्षमता वाले लोगों को मध्य वर्ग की श्रेणी में रखा है। इस सदी के आरंभ में भारत के बाजार की शान इसके मध्य वर्ग की वजह से बननी शुरू हुई थी। अगर ये तबका कमजोर हुआ, तो उससे भारत की आर्थिक मुसीबत बढ़ेगी। अगर देश में लोगों के पास ऊंचे उपभोग के लिए जरूरी क्रय शक्ति नहीं होगी, तो फिर बाहरी कंपनियां यहां किसलिए निवेश करेंगी?